कुछ दिन पहले लेस्बियन गर्ल्स का करवा चौथ मनाने वाले विज्ञापन ने विवादाें को जन्म दिया। भारत में समलैंगिकता को अब अपराध नहीं माना जाता, फिर भी एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी को मन से स्वीकारने में हिचक हो रही है। प्यू रिसर्च सेंटर की स्टडी के अनुसार भारत में करीब 37 % लोगों ने होमोसेक्सुअलिटी के अस्तित्व को स्वीकारा। इसके बावजूद यह शब्द सुनते ही फैमिली और सोसाइटी की भौंहे क्यों तन जाती है ?
बच्चों की दिलचस्पी को समझें पेरेंट्स
एक प्यारी सी लड़की कंसल्टेशन के लिए साइकेट्रिस्ट के पास आई। काफी पढ़ी-लिखी और नौकरीपेशा 24 साल की लड़की के पेंरेंट्स जबरदस्ती उसकी शादी करा रहे थे। लेकिन पुरुष की तरफ उसका कोई रुझान नहीं था। बेटी की यह बात पेरेंट्स को स्वीकार नहीं थी। कुछ मामलों में यह भी पाया गया कि व्यक्ति को बड़ी देर से सेक्स के प्रति खुद के झुकाव का पता चला हो । पारस हॉस्पिटल की साइकेट्रिस्ट डॉक्टर ज्योति कपूर बताती है, “ करीब 27 साल का एक परेशान युवक कंसल्टेशन के लिए आया। उसने बताया कि वह स्मार्ट हैंडसम पुरुष की ओर आसानी से आकर्षित हो जाता है। स्वभाव के विपरीत जाकर उसने लड़कियों में रुचि लेने की कोशिश की। लेकिन नाकाम रहा। पुरुषों के प्रति उसका आकर्षण पहले जैसा ही रहा। मजाक उड़ाए जाने के डर से वह अपने स्वभाव को किसी के साथ शेयर नहीं कर पाता। इस गिल्ट की वजह से वह तनाव से गुजर रहा है। रोज के कामकाज में उसकी दिलचस्पी पास कम होती जा रही है।
ग्रहण की तरह होती है जबरदस्ती की शादी
एक तमिल लड़की को दिल्ली के लड़के से मोहब्बत हो गई । चार साल के इश्क के बाद पूरे परिवार की सहमति से दोनों ने शादी की। डेढ़ साल बाद लड़की को महसूस हुआ कि उनकी शादी दूसरे जोड़ों की तरह नॉर्मल नहीं है। परिवार और समाज के लिए दोनों पति-पत्नी हैं लेकिन उनके बीच पति-पत्नी जैसे संबंध नहीं। दोनों का तलाक हो गया। लड़की बताती है कि शादी के पहले दोनों कई बार आउटडोर घूमने गए। लेकिन आधुनिक सोच रखने के बावजूद लड़के ने कभी भी लड़की के बेहद करीब जाकर प्यार नहीं जताया। तब लड़की ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। शादी के बाद उसे पता चला कि लड़का 'गे' है।
डॉ. ज्योति कपूर ऐसी स्थितियों को स्वीकारती हैं। उनके अनुसार, “ एलजीबीटीक्यू संतानों के कई पेरेंट्स ऐसी परेशानी लेकर आते हैं कि उनकी बेटी अपनी सहेली में रुचि ले रही है या बेटा अपने दोस्त के साथ रहना चाहता है। इसलिए इनका इलाज करें। पेरेेंट्स को समझना होगा कि सेम सेक्स के प्रति आकर्षण बीमारी नहीं। जिस तरह से अपोजिट सेक्स में लगाव सामान्य बात है, ठीक उसी तरह सेम सेक्स के साथ भी है। उदाहरण के तौर पर एक-दूसरे को पसंद करनेवाले लड़का-लड़की को सेम सेक्स के साथ शादी करने को कहना जबरदस्ती कहलाएगा । उसी तरह सेम सेक्स में यकीन करने वालों को अपोजिट सेक्स के साथ जबरदस्ती का आकर्षण पैदा करने को विवश नहीं किया जा सकता है। ऐसी जबरदस्ती की शादियां कई बार टूट भी जाती हैं। एक बार एक शादीशुदा दो बच्चे की मां की शादी इसी वजह से टूट गई। महिला ने आत्महत्या करने की भी कोशिश की। फिलहाल वह अपनी महिला मित्र के साथ रिश्ते में है और जिंदगी से संतुष्ट और खुश है।”
सेम सेक्स मैरिज पर सवाल .
सितंबर 2020 को दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई। इसमें हिंदू मैरिज एक्ट के तहत ‘सेम सेक्स मैरिज’ को मान्यता देने की अपील की गई थी। इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ‘जीवनसाथी’ का मतलब पति या पत्नी से है। ‘विवाह’ अलग जेंडर के जोड़ों से जुड़ा एक शब्द है। इसलिए इसे स्वीकारा नहीं जा सकता। इस पर मित्र ट्रस्ट की फाउंडर डाइरेक्टर रूद्राणी छेत्री बताती है, “समाज बदल रहा है। समलैंगिकता को स्वीकारा जाना इसी में शामिल है। खासकर कॉलेज में पढ़ने वाले युवाओं की सोच बदली है। वह एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी को दिखावे के तौर पर नहीं, दिल से स्वीकारते हैं। उन्हें उम्मीद है कि नए और युवा सोच के कारण आने वाले समय में सेम सेक्स मैरिज पर भी सकारात्मक पहल होगी।” वे बताती हैं कि थर्ड जेंडर के कुछ लोगों ने बेहतरीन काम किया है, उसे खूब बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है। खूब तारीफ की जाती है। लेकिन थर्ड जेंडर समाज के हर व्यक्ति के लिए ऐसी सोच कायम होने में समय है।
प्राइड परेड क्या है
लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर, नॉन-बाइनरी और क्वीर की ओर से निकाले गए मार्च को 'प्राइड परेड' का नाम दिया जाता है। कुछ देशों में यह कम्युनिटी अपने अस्तित्व को सेलिब्रेट करने के लिए सलाना प्राइड परेड निकालती हैं। कोविड की वजह से पिछले दो साल से कई देशों में यह मार्च नहीं निकाला गया । हाल में जून 2021 में इजरायल में बड़ी संख्या में ‘गे’ समुदाय से जुड़े लोगों ने राजधानी में तेलअवीव प्राइड निकाला । इसमें करीब 2.5 लाख लोगों ने भाग लिया। भारत में भी धारा 377 को लेकर इस तरह के मार्च होते रहे हैं।
एक बार फिर समझें इनके अधिकारों को
सर्वोच्च न्यायालय के 6 सितंबर 2018 के फैसले के बाद से समलैंगिकता अपराध नहीं रही। सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यों की बेंच ने डेढ़ सौ साल पुराने कानून को अमान्य ठहराया । इसके अनुसार भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत अप्राकृतिक सेक्स अपराध माना जाता था । कोर्ट के आदेश के अनुसार इस धारा से गरिमा के साथ जीने के अधिकार का उल्लंघन होता है। यह भी स्वीकारा गया कि इस तरह से बने अप्राकृतिक शारीरिक संबंध न तो नुकसानदेह है और न ही संक्रामक।
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