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72% महिलाएं मैरिड लाइफ से असंतुष्ट:स्त्री-पुरुष में संबंध बनाने की चाहत का स्तर अलग, इससे बढ़ रहीं शादी में परेशानियां

नई दिल्ली3 महीने पहलेलेखक: मनीष तिवारी
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पति के नपुंसक होने और पत्नी के रिलेशन न बनाने की शिकायतों के चलते शादी तोड़ने के मामले बढ़ रहे हैं। सेक्शुअल कंपैटिबिलिटी न होने पर इस बारे में पति-पत्नी एक-दूसरे से बात नहीं करते, एक-दूसरे की जरूरतों की परवाह नहीं करते, जिससे समस्या बढ़ती है और बात तलाक तक पहुंच जाती है।

साइंस डायरेक्ट पर मौजूद एक रिसर्च के मुताबिक शारीरिक संबंधों में असंतुष्टि रिश्तों में दरार की बड़ी वजह बनती है। रिसर्च बताती है कि संबंध बनाने की चाहत पूरी न होने की शिकायत करने वालों की शादीशुदा जिंदगी में दिक्कतें ज्यादा होती हैं। वहीं, जिनकी फिजिकल रिलेशन की जरूरतें जितनी ज्यादा पूरी होती हैं, उनकी मैरिड लाइफ उतनी ही बेहतर होती है और समस्याएं भी कम होती हैं।

स्त्री और पुरुष के लिबिडो लेवल में अंतर को लेकर भी काफी रिसर्च हो चुकी हैं...

पार्टनर से लिबिडो लेवल मैच न होने से फैमिली में बिखराव

एक ऑनलाइन सर्वे में 72 फीसदी महिलाओं ने अपनी शादीशुदा जिंदगी में 'सेक्स लाइफ' से असंतुष्टि की बात मानी। 12 फीसदी महिलाओं ने बताया कि उनके पति से कभी उनके संबंध नहीं बने। वहीं, 8 फीसदी महिलाओं ने उनकी मर्जी के खिलाफ संबंध बनाने के लिए मजबूर किए जाने की बात बताई। सर्वे में सामने आया कि 23.6 फीसदी पुरुषों और 17.6 फीसदी महिलाओं ने अपने पार्टनर के साथ चीटिंग की।

जर्नल SAGE की एक रिसर्च के मुताबिक 39 फीसदी पुरुष और 27 फीसदी महिलाओं ने माना कि अगर उनका और उनके पार्टनर का लिबिडो लेवल मैच न हुआ, तो वे ऐसी रिलेशनशिप में नहीं रहना चाहेंगे।

पार्टनर न बनाए संबंध तो मांग सकते हैं तलाक

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक मामले में कहा है कि बिना किसी खास वजह के लंबे समय तक शारीरिक संबंध न बनाना पार्टनर के साथ मानसिक क्रूरता है और इसके आधार पर तलाक मांगा जा सकता है। नपुंसकता के आधार पर भी तलाक की मांग की जा सकती है।

रिसर्चगेट पर मौजूद एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में तलाक के 16 फीसदी मामलों में पति या पत्नी के किसी और से संबंध बनाने और 14 फीसदी मामलों में साथी के प्रति क्रूरता बरतने को आधार बनाया गया था। रिसर्च में तलाक के 6 फीसदी मामलों की वजह नपुंसकता पाई गई।

देश में डिवोर्स रेट में बढ़ोतरी हो रही है और इसकी कई वजहों में शारीरिक संबंधों की चाहतें पूरी न हो पाना भी शामिल है...

हाई लिबिडो वाली महिलाएं 'सेक्शुअल शेमिंग' की शिकार

डॉ. कोठारी बताते हैं कि महिलाओं और पुरुष दोनों का लिबिडो हाई हो सकता है। कुछ कपल में मेल पार्टनर की सेक्शुअल ड्राइव ज्यादा होती है, तो कुछ में फीमेल पार्टनर में। यह जरूरी नहीं है कि पुरुषों का लिबिडो लेवल ही हाई हो। लेकिन, रिपोर्ट्स ये कहती हैं कि महिला को सेक्शुअल चाहतों के लिए न सिर्फ जज किया जाता है, बल्कि उसके चरित्र पर सवाल उठने लगते हैं।

जिसकी वजह से उसे शर्मिंदगी, डिप्रेशन और एंजाइटी से जूझना पड़ता है, अपनी इच्छाओं को दबाना पड़ता है। जबकि, 2016 में प्रकाशित 'जर्नल ऑफ सेक्स' की एक रिपोर्ट के मुताबिक जिन महिलाओं का लिबिडो लेवल हाई रहता है, वे फिजिकल रिलेशन में ज्यादा संतुष्टि महसूस करती हैं और उनकी 'एक्टिव सेक्स लाइफ' भी बेहतर होती है।

जानें आखिर क्या है लिबिडो

साइकोएनालिसिस की बुनियाद रखने वाले सिगमंड फ्रायड ने करीब 100 साल पहले बताया कि हर इंसान में जन्म से ही 2 इन्स्टिंक्ट (instinct यानी मूल प्रवृत्ति) होती हैं- लाइफ इन्स्टिंक्ट और डेथ इन्स्टिंक्ट। लाइफ इन्स्टिंक्ट में सेक्शुअल ड्राइव्स यानी संबंध बनाने की चाहत होती हैं, जिसकी एनर्जी को उन्होंने नाम दिया 'लिबिडो'। यही एनर्जी जीवन का आधार है। इसी से संसार रचता और बसता है।

इसी लिबिडो को वेदों में ‘काम’ कहा गया है, जो 4 पुरुषार्थों में से एक है। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष। संन्यासी आदि शंकराचार्य को भी मंडन मिश्र और उनकी पत्नी भारती से शास्त्रार्थ जीतने के लिए इसी ‘काम’ का ज्ञान लेना पड़ा था।

दरअसल, लिबिडो ही व्यक्ति की ओवरऑल सेक्शुअल ड्राइव है। इसमें प्रेम है, रोमांस है, हॉर्मोंस का केमिकल लोचा है और फिजिकल फिटनेस के संग मेंटल हेल्थ भी। इन सबके असर के चलते ही किसी का लिबिडो लेवल हाई रहता है, तो किसी का लो।

लेकिन, हाई लिबिडो वाले लोगों को सेक्शुअल शेमिंग से लेकर शर्मिंदगी, डिप्रेशन, अपराध बोध जैसी समस्याओं से जूझना पड़ता है, जिसका असर उनकी प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ को बर्बाद कर देता है। रिश्तों में दरार आ जाती है।

एक्सपर्ट बताते हैं कि मैरिड लाइफ पर इंटिमेट रिलेशन का पॉजिटिव असर पड़ता है...

हर व्यक्ति का 'नॉर्मल लिबिडो लेवल' अलग होता है

एक्सपर्ट बताते हैं कि 'सेक्स ड्राइव' बहुत ही निजी मामला है, जो हर किसी का अलग-अलग होता है। किसी के लिए ‘लो ड्राइव’ भी नॉर्मल होती है और किसी के लिए ‘हाई ड्राइव’ भी।

सेक्सोलॉजिस्ट डॉ. प्रकाश कोठारी के मुताबिक किसी में नशा और मानसिक बीमारियां लिबिडो लेवल बढ़ा सकती हैं, लेकिन बहुत से लोगों में जन्म के समय से ही लिबिडो लेवल हाई रहता है। सेक्शुअल प्रॉब्लम्स से जूझ रहे कपल्स को थेरेपी देने वाले डॉ. अनिर्बन बिस्वास कहते हैं कि कुछ लोगों में डोपामाइन और सेरोटोनिन का बैलेंस गड़बड़ होता है। जिससे उनका लिबिडो लेवल बढ़ने लगता है।

डोपामाइन और सेरोटोनिन न्यूरोट्रांसमीटर और हॉर्मोंस हैं। डोपामाइन जहां सेक्शुअल ड्राइव बढ़ाता है, वहीं सेरोटोनिन इस पर कंट्रोल रखता है।

कुछ लोगों में फिजियोलॉजिकली लिबिडो लेवल ज्यादा होता ही है, लेकिन इसकी वजह भी साफ नहीं है। यह स्त्री और पुरुष दोनों में हो सकता है। अमूमन टेस्टोस्टेरॉन का स्तर 20 साल की उम्र में सबसे ज्यादा होता है। जिससे सेक्शुअल ड्राइव बढ़ जाती है।

जानें 'नॉर्मल लिबिडो लेवल' के बारे में क्या कहते हैं डॉक्टर...

9 वजहों से लिबिडो का स्तर हाई हो सकता है

फिजिकल संबंध बनाने की चाहत हर किसी में हमेशा एक जैसी ही बनी रहे, यह जरूरी नहीं है। उम्र, हॉर्मोंस, स्ट्रेस लेवल, साथी के साथ संबंध जैसे कई कारण इस पर असर डालते हैं, जिनकी वजह से लिबिडो लेवल कभी कम या ज्यादा हो सकता है।

1. हॉर्मोंस में बदलाव: एस्ट्रोजन, प्रोजेस्टेरॉन और टेस्टोस्टेरॉन को सेक्स हॉर्मोंस भी कहा जाता है। हर व्यक्ति में कई कारणों से इन हॉर्मोंस का लेवल घटता-बढ़ता रहता है। इसका असर सेक्स ड्राइव पर भी पड़ता है। NCBI पर मौजूद एक रिपोर्ट के अनुसार मेनोपॉज के दौरान महिलाओं को दी जाने वाली एस्ट्रोजन थेरेपी भी चाहतें बढ़ा देती हैं।

इसी तरह, पुरुषों में टेस्टोस्टेरॉन उनके लिबिडो लेवल को बढ़ा देता है। स्टेरॉयड यूज करने वाले एथलीट्स में टेस्टोस्टेरॉन हाई रहता है, जिससे इंटिमेट रिलेशन की चाहत उनमें ज्यादा होती है।

2. ओवुलेशन साइकल: महिलाओं में ओवुलेशन के दौरान और उससे पहले एस्ट्रोजन लेवल बढ़ जाता है। इस कारण ओवुलेशन के दौरान, ठीक उससे पहले या उसके बाद कई महिलाओं की सेक्स ड्राइव में इजाफा होता है।

3. प्यूबर्टी और एजिंग: युवाओं में लिबिडो लेवल बुजुर्गों से ज्यादा होता है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक प्यूबर्टी के दौरान किशोरों में टेस्टोस्टेरॉन का प्रोडक्शन 10 गुना ज्यादा होता है। इसलिए टीनेज के दौरान लड़कों में फिजिकल रिलेशन बनाने की चाहत ज्यादा दिखती है।

लेकिन, महिलाओं में इसके विपरीत होता है। 'यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सस एट ऑस्टिन' के साइकोलॉजी डिपार्टमेंट की एक स्टडी के मुताबिक 18 से 26 साल की युवतियों की तुलना में 27 से 45 साल की महिलाएं सेक्शुअल एक्टिविटीज और फैंटेसी के बारे में ज्यादा सोचती हैं। इसलिए महिलाओं की 'एक्टिव सेक्स लाइफ' भी युवतियों से ज्यादा होती है।

4. नियमित एक्सरसाइज: एक्सरसाइज और वेट लॉस से कॉन्फिडेंस बढ़ता है, तनाव कम होता है और नींद अच्छी आती है। इससे भी लिबिडो लेवल बढ़ सकता है। NCBI पर मौजूद एक रिसर्च के अनुसार फिजिकल फिटनेस से सेक्स ड्राइव बढ़ जाती है। शोधकर्ताओं ने पाया कि बेहतर 'कार्डियोवैस्कुलर एंड्यूरेंस' से कामेच्छा बढ़ती है। 'कार्डियोवैस्कुलर एंड्यूरेंस' यानी एक्सरसाइज और ऐसी ही दूसरे मेहनत वाले कामों के दौरान आपका दिल, फेफड़े कितनी अच्छी तरह से काम करते हैं।

5. रिश्तों में रोमांस: रोमांटिक रिलेशनशिप न सिर्फ माहौल को खुशनुमा करती है, बल्कि जिंदगी भी बेहतर बनाती है। इससे कपल के संबंध मजबूत होते हैं, उनमें एक-दूसरे के लिए चाहत भी बढ़ती है। खासकर नई रिलेशनशिप और हनीमून पीरियड के दौरान एक्साइटमेंट भी खूब होता है। इन वजहों से कई लोगों का लिबिडो लेवल बढ़ जाता है।

6. एक्सपीरियंस: अगर कपल के बीच 'गुड सेक्स' होता है और दोनों पार्टनर के लिए अनुभव सुखद होता है, तो उनमें संबंध बनाने की चाहत भी बढ़ती है। एक्सपर्ट कहते हैं कि जो चीज अच्छा महसूस कराती है, उसकी चाहत भी उतनी बढ़ जाती है।

7. तनाव से मुक्ति: तनाव न होने पर व्यक्ति खुश रहता है और उसका लिबिडो लेवल हाई होता है। तनाव की वजह से कॉर्टिसोल हॉर्मोन रिलीज होता है, जिसे स्ट्रेस हॉर्मोन और फाइट हॉर्मोन भी कहते हैं। कॉर्टिसोल का सेक्स ड्राइव पर बुरा असर पड़ता है। यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सस एट ऑस्टिन के साइकोलॉजी डिपार्टमेंट ने 30 महिलाओं पर एक रिसर्च की। इन महिलाओं को बोल्ड फिल्म दिखाने के बाद कॉर्टिसोल हॉर्मोन की जांच की गई। रिसर्चर्स ने पाया कि जिन महिलाओं में कॉर्टिसोल लेवल कम हुआ था, उनकी सेक्स ड्राइव बढ़ गई थी।

8. खाने की चीजें: खानपान से भी लिबिडो का स्तर बढ़ता है। एक्सपर्ट बताते हैं कि चॉकलेट, स्ट्रॉबेरी, अंजीर, शतावर, जिनसेंग, केसर, ऑयस्टर, चिलगोजा, एवोकाडो, ब्रोकली जैसी चीजें सेक्शुअल डिजायर बढ़ाने में मदद करती हैं।

9. दवाओं में बदलाव: दवाओं का असर भी लिबिडो लेवल पर पड़ता है। खासकर डिप्रेशन और एंजाइटी को कंट्रोल करने के लिए दी जाने वाली दवाएं खाना बंद करने से सेक्स ड्राइव बढ़ सकती है। NCBI पर मौजूद एक रिपोर्ट के मुताबिक ऐसी दवाएं खाने वाले 40 फीसदी लोगों के लिबिडो लेवल पर बुरा असर पड़ा और उन्होंने सेक्शुअल डिस्फंक्शन की शिकायत की। दवाएं बंद होने के बाद लिबिडो एनर्जी फिर से बढ़ जाती है।

हाई लिबिडो के अस्थायी तौर पर कुछ नुकसान भी दिखाई देते हैं...

नशे की लत खराब कर देती है परफॉर्मेंस

सेक्सोलॉजिस्ट डॉ. प्रकाश कोठारी बताते हैं कि लिबिडो बढ़ने की वजह मानसिक और शारीरिक दोनों हो सकते हैं। जैसे किसी ने शराब पी ली, तो अस्थायी तौर पर उसकी सेक्शुअल क्षमता बढ़ जाएगी, क्योंकि नशे में उसकी चिंता कम हो जाती है। ऐसे में वह ज्यादा उत्तेजित महसूस करता है और ज्यादा आक्रामक तरीके से संबंध भी बनाता है। लेकिन, आखिर में शराब एक जहर है, जो डिजायर तो बढ़ा देती है लेकिन परफॉर्मेंस खराब कर देती है। चरस, गांजा, अफीम जैसे ड्रग्स में भी यही होता है।

कुछ मानसिक बीमारियों में भी बढ़ जाती है लिबिडो एनर्जी

डॉ. कोठारी के मुताबिक कुछ मानसिक बीमारियां, जैसे कि मेनिया में भी सेक्शुअल ड्राइव बढ़ सकती है। ऐसा मरीज हर चीज बढ़ा-चढ़ा कर बताता है, बड़ी-बड़ी बातें करता है। कई बार सीजोफ्रेनिया में भी चिंता न रहने की वजह से लिबिडो हाई हो जाता है, तो कई बार यह एकदम खत्म ही हो जाता है। इन मानसिक समस्याओं का इलाज किया जा सकता है।

कपल के बीच न हो बैलेंस तो साइकोलॉजिस्ट की मदद लें

डॉ. अनिर्बन के मुताबिक इसमें समस्या तब होती है, जब कपल के बीच बैलेंस नहीं होता है। उनमें से किसी एक का लिबिडो हाई होता है, तो दूसरे को फिजिकल रिलेशन उतना पसंद नहीं आता। ऐसे में वे बाहर सेक्स की तलाश करते हैं और असुरक्षित संबंध बना लेते हैं। ऐसे लोगों का बिहेवियर कंपल्सिव भी हो सकता है। वे मास्टरबेशन ज्यादा करने लगते हैं, प्रोस्टीट्यूट के पास जाने लगते हैं। उन्हें समझ नहीं आता कि क्या करें, इससे प्रॉब्लम्स हो सकती हैं।

कई बार इसकी वजह से रिश्ते खराब होने लगते हैं और फैमिली लाइफ पर बुरा असर पड़ने लगता है। इन हालात में कपल को काउंसलिंग के लिए साइकोलॉजिस्ट के पास जाना चाहिए। वे खासकर डायवर्जन तकनीक सिखाते हैं कि माइंड को कैसे डायवर्ट किया जाए। किसी दूसरी तरफ लगाएं। यह बेस्ट टेक्नीक मानी जाती है। कुछ दवाएं हैं, जिससे हम सेक्शुअल अर्ज को कम कर सकते हैं, लेकिन साइकोलॉजिकल ट्रीटमेंट प्रिफर किया जाता है। इसमें समय लग सकता है, लेकिन असर होता है।

शादीशुदा जिंदगी को बेहतर बनाने में एक्सपर्ट्स काफी मदद कर सकते हैं...

हाईपर लिबिडो जब बन जाती है समस्या

मायो क्लिनिक के मुताबिक जब हाई लिबिडो परेशानी की वजह बन जाए और कोई व्यक्ति खुद को आउट ऑफ कंट्रोल महसूस करने लगे, तब इसे हाईपर सेक्शुएलिटी या आउट ऑफ कंट्रोल सेक्शुअल बिहेवियर (OCSB) कहा जाता है। इसका असर व्यक्ति की सेक्स लाइफ और उससे बाहर की जिंदगी पर भी पड़ने लगता है।

2013 में जारी हुए 'डायग्नोस्टिक एंड स्टैटिस्टिकल मैनुअल ऑफ मेंटल डिसऑर्डर्स' के लेटेस्ट एडिशन DSM-5 में हाईपर सेक्शुएलिटी को मानसिक बीमारी नहीं माना गया है। लेकिन, अगर इसकी वजह से व्यक्ति ऐसे सेक्शुअल बिहेवियर में शामिल होने लगे जो उसके या आसपास के लोगों के लिए नुकसानदेह हो सकता है, तब इसके लिए थेरेपी और काउंसिलिंग दी जाती है।

ग्रैफिक्स: सत्यम परिडा

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