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चाइल्ड-फ्री मैरिज:लगभग 9% भारतीय शादी तो चाहते हैं, लेकिन बच्चे नहीं, कई देशों में युवा महिलाएं हटवा रहीं यूटरस, कर्नाटक के हेल्थ मिनिस्टर के बयान से मचा बवाल

एक वर्ष पहलेलेखक: सुनाक्षी गुप्ता
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‘मॉडर्न इंडियन वुमन’ के बारे में बताते हुए कर्नाटक के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. के सुधाकर ने एक ऐसा बयान दे दिया, जिसके बाद से सोशल मीडिया पर उनकी खिचाई हो रही है। डॉ. के सुधाकर ने एक सभा में बोल दिया कि मॉडर्न भारतीय महिलाएं सिंगल रहना चाहती हैं, शादी के बाद भी बच्चे पैदा नहीं करना चाहती और सरोगेसी के जरिए बच्चे चाहती हैं। हालांकि अपने इस बयान के बाद मंत्री जी खुद ही फंस गए। उनसे ये सवाल किया जा रहा है कि आखिर वे लड़कियों पर बच्चे पैदा करने का मानसिक दबाव क्यों बना रहे हैं।

कर्नाटक के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. के सुधाकर
कर्नाटक के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. के सुधाकर

इसके जवाब में हेल्थ मिनिस्टर ने कहा कि वे सिर्फ सर्वे की बात को ही जनता के बीच रख रहे थे। दरअसल साल 2020 में yougov-mint-CPR मिलेनियल्स सर्वे में सामने आया कि 19% मिलेनियल्स शादी और बच्चे दोनों ही नहीं चाहते हैं। वहीं 9% भारतीय यंगस्टर्स ऐसे हैं जो शादी तो करना चाहते हैं, लेकिन बच्चा नहीं चाहते।

पढ़िए, आखिर क्यों बच्चा पैदा करने से कतराती है युवा पीढ़ी।

सिंबॉलिक
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बच्चा गोद लेना चाहते हैं - देश में 2.5 करोड़ से ज्यादा बच्चे अनाथ हैं। इन बच्चों की देखभाल कई सरकारी व गैर सरकारी संस्थाएं करती हैं। भारतीय कपल की सोच ऐसे बदल रही हैं, कि अब वे खुद का बच्चा करने के बजाए अनाथ बच्चों को गोद लेना चाहते हैं। ताकि उस बच्चे को एक परिवार मिल सके। वहीं कुछ कपल अपनी प्लानिंग ऐसी कर रहे हैं कि एक बच्चा पैदा करते हैं और दूसरा बच्चा गोद लेते हैं।

पर्यावरण नहीं सुरक्षित - बंगाल निवासी श्रीमोई बताती हैं कि उनकी शादी साल 2019 में हुई थी। पति-पत्नी दोनों की जॉब दिल्ली में है। करियर की वजह से दोनों ही दिल्ली छोड़कर नहीं जा सकते। लेकिन दिल्ली की दमघोंटू हवा में सांस लेना उनके लिए काफी मुश्किल है। दोनों कई बीमारियों से घिरे हुए हैं, ऐसे में वे बच्चे को जन्म देकर उसे प्रदूषण का शिकार नहीं बनाना चाहते। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट की माने तो दिल्ली की हवा इतनी जहरीली है कि यहां एक बार सांस लेना 10 सिगरेट पीने के बराबर है। यही हाल भारत के सभी बड़े शहरों का है।

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अकेले ज्यादा खुश हैं - 18 से लेकर 40 वर्ष तक के लोग, छोटे परिवार की सोच के साथ आगे बढ़ रहे हैं। ज्यादातर कपल ये मान रहे हैं कि उन्हें ज्यादा बड़ा परिवार नहीं चाहिए और न ही बच्चे की जिम्मेदारियां। इसलिए कई कपल अकेले रहकर घूमने फिरने में विश्वास रखते हैं और अकेले ज्यादा खुश हैं।

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करियर पर है ज्यादा ध्यान - चाहे आप नौकरी करें या बिजनेस, या फिर अपना पैशन फॉलो कर रहे हों, परिवार और बच्चा आपको सीमित कर देता है। एक ये भी कारण है जिसकी वजह से यंग कपल बच्चा नहीं चाहते। कई कपल शादी से पहले अपने पार्टनर से खुलकर इसपर चर्चा भी करने लगे हैं। रिश्ता देखते समय पार्टनर एक-दूसरे से बच्चों को लेकर सवाल करते हैं कि उन्हें बच्चे चाहिए या नहीं।

चाइल्डहुड ट्रॉमा - जिनका बचपन किसी तरह के चाइल्ड एब्यूज से गुजरा हो, वे अक्सर उस सदमे से बाहर नहीं निकल पाते। इसलिए बच्चा पैदा करने से डरते हैं। जिन्होंने बचपन में अपने माता-पिता को लड़ते - झगड़ते देखा है, बड़े होने पर भी उनके मन से वो घाव नहीं जाते। वे बच्चों को उस दर्द से बचाने के लिए बच्चा प्लान ही नहीं करते।

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30 से पहले ही करवा लेती हैं नसबंदी
विदेशों के बाद अब भारतीय महिलाएं भी चाइल्ड-फ्री पॉलिसी को अपनाने लगी हैं। भले ही इसके पीछे कई कारण हों, लेकिन स्टडी की माने तो समय के साथ बच्चे पैदा करने का ट्रेंड हमेशा से बदलता आ रहा है। साल 1950 - 80 में महिलाओं के लिए 120 फॉर्मूला लाया गया था। जिसमें महिला की उम्र का उनके बच्चों की संख्या से गुणा करते थे, जिसका उत्तर 120 आना चाहिए। 30 वर्ष की होने से पहले महिला के कम से कम तीन से चार बच्चे होने चाहिए, तभी उसकी नसबंदी की जाती थी। लेकिन समय के साथ इस सोच में काफी बदलाव आया है। शिकागो ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक नसबंदी कराने में सबसे आगे यंग, गरीब और कम पढ़ी लिखी महिलाएं हैं। रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि 30 वर्ष से पहले नसबंदी कराने वाली 80% महिलाएं अपने निर्णय से खुश हैं।

महिलाओं के स्वास्थ्य पर इस तरह का असर
गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. चित्रा राजू बताती हैं कि बच्चा न पैदा करने से महिलाओं के स्वास्थ्य पर कई तरह से असर पड़ता है, खासकर उनकी रिप्रोडक्टिव हेल्थ पर।
- प्रेगनेंसी के समय शरीर में होने वाले बदलाव से स्तन सुरक्षित रहते हैं।
- महिलाओं के रिप्रोडक्टिव हार्मोन पर भी इसका असर पड़ता है।
- प्रेगनेंसी के कारण महिला के रिप्रोडक्टिव ऑर्गन जैसे कि यूटरस, ओवरी, फैलोपियन ट्यूब, सर्विक्स और वजाइना कैंसर से काफी हद तक सेफ रहते हैं।

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