ऐसे कपल जिनकी जिंदगी 9 टू 5 वाली नौकरी में फिट नहीं होती। वे हर छुट्टी पर फैमिली ट्रिप के लिए नहीं जा सकते। कई बार दोनों को एक-दूसरे से शिकायत रहती है कि दूसरे के पास टाइम नहीं। आज के सातवें कपल ऑफ द वीक में हम आपको एक ऐसी जोड़ी से मिलाने जा रहे हैं, जिसमें से लड़का सिनेमा और लड़की पब्लिक हेल्थ से जुड़ी है। अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्रों में काम करते हुए भी इस कपल के बीच प्यार कैसे बन रहता है? जानें अमर दुबे और नेहा की जुबानी।
आज भी सोसायटी में जाति प्यार करने वालों के बीच बहुत बड़ी रुकावट है। बनारस की नेहा और अमर ने इस बंधन को तोड़ कर प्यार की नई परिभाषा गढ़ी। अब यह एक खुशहाल कपल का जीता जागता उदाहरण हैं। अमर फिल्म निर्देशक हैं और नेहा बनारस में ही हेल्थ सेक्टर में काम करती हैं। अपने प्यार को शादी की मंजिल तक पहुंचाने में दोनों को 8 साल लग गए।
दोनों के बीच ये प्यार का किस्सा कहां से शुरू हुआ? इसके पीछे की कहानी बताते हुए नेहा कहती हैं-’मेरे पति खुद फिल्म डायरेक्टर हैं और हमारी लव स्टोरी भी किसी फिल्म की कहानी से कम नहीं।’
कॉलेज से शुरू हुआ प्यार का किस्सा
खुशी भरे अंदाज में नेहा बताती हैं, ‘वो कॉलेज के दिन थे। ये (अमर) बालों में हाथ फेरते हुए मेरी तरफ आ रहे थे। फिर एक सीनियर ने मिलवाया कि ये अमर हैं और हमारे सीनियर हैं। वो हमारी पहली मुलाकात थी। मुझे तो पहली नजर में लड़का पसंद आ गया था, लेकिन पहली ही मुलाकात में इमोशन्स की बाढ़ न आ जाए इसलिए इंतजार किया।
मुझे अमर के बारे में यही मालूम था कि ये स्ट्रगलिंग आर्टिस्ट है और नुक्कड़ नाटक वगैरह में एक्टिव रहते हैं। फ्रेशर्स पार्टी में जब अमर आए तब गैंग्स ऑफ वासेपुर में काम कर रहे थे। इनका लुक विलेन वाला था। बड़े-बड़े बाल और लंबी दाढ़ी थी और मुझे ये विलेन पसंद आ गया। चुलबुले अंदाज में नेहा कहती हैं कि ‘फॉर्चुनेटली’ या ‘अनफॉर्चुनेटली’ जो भी कहें, मैंने ही आगे बात बढ़ाई। मेरे दिल में तो प्यार की चिंगारी भड़कने लगी थी। लेकिन उस मुलाकात के बाद अमर का कहीं नामोनिशान नहीं था। मैं परेशान कि लड़का पता नहीं कहां गायब हो गया?
एजुकेशन टूर में गहराया ‘आंखें चार’ होने का सिलसिला
अब तक नेहा और अमर की कहानी किसी फिल्म की पटकथा की तरह चल रही थी। कुछ समय के पॉज के बाद दोनों की मुलाकात कॉलेज के एजुकेशन टूर में हुई। यहां कैंप में नेहा और अमर ने एक दूसरे को और अच्छे से जाना। अमर कहते हैं कि मैं जब सभी स्टूडेंट्स को नुक्कड़ नाटक के गुर सिखाता था, तब नेहा सबसे ज्यादा एक्टिव रहतीं। इसलिए मेरा इनकी तरफ झुकाव ज्यादा रहने लगा।
नेहा कहती हैं कि हमारा 15 दिन का वो एजुकेशन टूर था। हमने पूरे बनारस में गांव-गांव घूमकर लोगों को महिला मुद्दों पर जागरुक किया। जब उस टूर के खत्म होने पर अपने-अपने घर वापस जाने का टाइम आया तब अमर ने बड़े ही प्यार भरे अंदाज में मुझे ऑटो में बैठाकर कहा कि घर पहुंचने पर उन्हें मेसेज करूं।
नेहा और अमर के बीच इस छोटे से दिल गुदगुदाने वाले पलों के बाद हल्की-फुल्की बातचीत और मैसेजिंग शुरू हुई। नेहा कहती हैं कि मैं इन्हें रोज ‘गुड मॉर्निंग’ मैसेज भेजती, लेकिन इनका मेरे पास कोई जवाब नहीं आता। मैं बार-बार फोन उठाकर देखती। फिर मुझे लगा कि लड़के को इंटरेस्ट ही नहीं है और शायद मैं ही ‘चेप’ हो रही हूं। कुछ दिनों बाद इनका फोन आया- ‘आज कॉलेज आना है?’ इस कॉल के बाद मैं खुशी से झूम उठी और कहा- हां। आज कॉलेज आना है।
अमर चॉकलेट की जगह बाइक के स्पेयर पार्ट्स पकड़ा रहे थे : नेहा
नेहा कहती हैं कि अमर कॉलेज में मेरे लिए चॉकलेट लेकर आए थे। नेहा की बात को काटते हुए अमर कहते हैं कि दरअसल, मुझे उस समय लग रहा था कि ये लड़की सबसे ज्यादा एक्टिव है तो इसे बढ़िया सी चॉकलेट खिलाकर अपना ‘प्ले’ बढ़िया करवा लिया जाए। अमर की इस दलील पर नेहा कहती हैं, अब फर्जी बातें मत बनाइए। हा हा हा…
नेहा बताती हैं कि एजुकेशन टूर के बाद जब अमर कॉलेज में आए तब इन्होंने मुझे कॉर्नर में बुलाया और मैं भी झूमते-झूमते इनके पीछे चल दी। मेरे मन में चल रहा था कि लड़का कुछ टेडी बेयर या गुलाब का फूल थमाएगा, लेकिन जब अमर ने मुझे चॉकलेट की जगह मोटरबाइक के स्पेयर पार्ट्स पकड़ाए तो मुझे लगा कि ये क्या ‘ढाक के तीन पात।’ कहां चॉकलेट कहां स्पेयर पार्ट।
मैंने इनको कहा कि इन स्पेयर पार्ट्स की मैं दुकान लगाऊंगी क्या और ये हंसने लगे। दो-तीन स्पेयर पार्ट्स निकलने के बाद इनके बैग से चॉकलेट निकली। अब पता नहीं वो सब मुझे चिढ़ाने के लिए जानबूझकर कर रहे थे या मुझे देखकर नर्वस हो गए थे। इस पर अमर कुछ भी सफाई दिए बिना खिलखिलाकर हंस दिए। फिर चुपके से बोले थोड़ी सी घबराहट तो रहती ही है। दोनों खिलखिलाकर हंस दिए।
2013 में 28 तारीख की रात नेहा ने अमर को मैसेज को किया- ‘आई लाइक योअर हेयर।’ उधर, से जवाब आया ‘ये मेरी मम्मी की मेहनत का कमाल है।’ लड़के का ऐसा फीका सा जवाब सुनकर नेहा को लगा कि मुझे ही प्रपोज करना पड़ेगा। इसके बाद नेहा ने ही अमर को कह दिया- ‘आई लव यू।’ इस पर अमर का जवाब आया कि ‘अच्छा हुआ नेहा तुमने कह दिया, वरना मैं कभी नहीं कह पाता।’ उत्सुकता से भरे अंदाज में नेहा बताती हैं कि उस दिन मैंने प्रपोज किया तब तो हमारी शादी हो पाई और ये नन्ही-मुन्नी हमारे आंगन में आ पाई। हा हा हा…
मुंबई में करिअर का स्ट्रगल और खाने के ‘लाले पड़ना’
2014 में अमर को फिल्म की शूटिंग के सिलसिले में बनारस से मुंबई आना पड़ा। सिनेमा जगत में अपनी पहचान बनाने के लिए अमर को बहुत स्ट्रगल करना पड़ा। अमर कहते हैं कि मुंबई जाने के बाद डीडी चैनल का शो ‘अनुदामिनी’ में ही काम मिला। यहां मुझे एक वक्त का खाना मिलता था। काम का कोई पैसा नहीं था। वो सीरियल 2 महीने तक चला। इसके बाद मुझे सावधान इंडिया और फिर फियर फाइल्स में एसोसिएट डायरेक्टर के तौर पर काम मिल गया। अब अमर के करिअर का डायरेक्शन सही दिशा में था और इन कामयाबियों के बाद इन्होंने मुंबई में ही अपना घर खरीद लिया।
प्रेम कहानी में जब हुई विलेन एंट्री
अमर ने इसके बाद ‘रामनगर यूपी 65’ फिल्म बनाई फिर रीजनल फिल्म ‘एक योगी’ बनाई। अमर कहते हैं कि इस समय तक मैं सोशली और फाइनेंशियली स्ट्रांग होने लगा था। कट टू में बनारस आया और यहां लॉकडाउन लग गया फिर हमने 2020 में शादी कर ली।
अमर बताते हैं कि मेरा नाम मेरी कम्युनिटी बताने के लिए काफी है और नेहा ओबीसी हैं। इसलिए मेरी फैमिली इस शादी के लिए तैयार नहीं थी। मुझे परिवार को समझाने में आठ साल लग गए फिर हमारी शादी हुई।
फिल्म डायरेक्टर अमर और हेल्थ सेक्टर में नौकरी करने वाली नेहा कहती हैं कि हमने एक-दूसरे से प्यार जाति देखकर नहीं किया है, लेकिन समाज प्यार नहीं जाति देखता है।
मुसीबत के दिनों में नेहा बनीं अमर की संजीवनी
अमर बताते हैं कि जब मैं मुंबई में स्ट्रगल कर रहा था तब नेहा ही मेरा सहारा बनी थीं। तब नेहा यहां बनारस में नौकरी करके मुझे फानेंशियल मदद मुहैया कराती रहीं। नेहा कॉलेज के दिनों से मेरे काम को जानती थीं और मुझे समझती थीं। शायद यही वजह है कि हमारी अंडरस्टैंडिंग कमाल की है।
मैं कई-कई महीने घर से बाहर रहता हूं। कभी फैमिली ट्रिप पर नहीं जा पाता। अपने करिअर में आज शाइन कर रहा हूं तो सिर्फ नेहा की वजह से। आज दोनों परिवारों के बीच सबकुछ अच्छा चल रहा है। नजर न लगे।
काम से फुरसत पाकर परिवार के साथ समय बिताते हैं
खाली समय में दोनों क्या करते हैं? इस सवाल के जवाब में अमर कहते हैं कि फिल्मों का काम मौसमी है। जब फिल्में होती हैं तब बिजी रहते हैं। जब नहीं रहतीं तब फैमिली के साथ ही समय निकलता है। जब मैं काम करता हूं तब खाली समय निकालकर बेटी और बीवी से बात कर लेता हूं।
नेहा कहती हैं कि शादी के बाद हमें बहुत कम समय साथ बैठने का मिला, लेकिन जब भी थोड़ा समय मिलता है तो हम परिवार के साथ बात करते हैं। खाली समय में अमर अपनी लिखी कहानियां हमें सुनाते हैं और मैं एक्सपर्ट कमेंट देती हूं। हा हा हा…
नोकझोंक को मिटाता पनीर पराठा
नेहा कहती हैं कि मेरी अमर से किसी भी बात पर नोंकझोंक हो जाती है। अमर जब नाराज हो जाते हैं तब मैं पनीर पराठा बनाकर खिलाती हूं और उनका गुस्सा फुर्र हो जाता है। अमर मुझे मनाने के लिए कुछ नहीं करते। जब हमारे बीच लड़ाई होती है, तब मजाल है कि वो सॉरी भी बोल दें। मनाने का सारा जिम्मा मेरा है, लेकिन अमर ज्यादा देर तक नाराज नहीं रहते। मेरा ही गुस्सा तेज है।
अमर और नेहा की ये जोड़ी समाज के तानों से रच बसकर मजबूत हो गई है। ऐसे कपल दुनिया के लिए मिसाल हैं कि जब प्यार होता है तब जाति मायने नहीं रखती। ऐसी परिस्थति में अगर कुछ मायने रखता है तो बस प्यार, प्यार और सिर्फ प्यार…
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