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पति-पत्नी के बीच एक हॉर्मोन बनता है विलेन:पुरुषों में 'एंड्रोपॉज' महिलाओं के ‘मेनोपॉज’ जैसी समस्या, यही है ‘मिजरेबल हस्बैंड सिंड्रोम’

नई दिल्ली4 महीने पहलेलेखक: ऐश्वर्या शर्मा
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रिलेशनशिप 2 लोगों के इमोशन, आपसी समझ, भरोसे और अच्छे-बुरे वक्त में साथ खड़े रहने के वादे पर टिकी होती है। जरूरी नहीं कि हर शादी इन कसौटियों पर खरी उतरे। कई रिश्ते एकतरफा होकर बोझ लगने लगते हैं। अगर रिश्ता हमेशा से एकतरफा हो तो दूसरे शख्स को पार्टनर के बिहेवियर के बारे में पता होता है कि वह शादी के शुरुआती दिनों से ही ऐसा है। लेकिन अगर पार्टनर में अचानक बदलाव नजर आएं तो रिश्ता शक के दायरे में आ जाता है। शक की वजह में हमेशा रिश्ते में आया कोई तीसरा नहीं होता। इसकी वजह पार्टनर के हार्मोन्स भी हो सकते हैं।

पत्नी के मूड स्विंग कभी पीरियड्स या कभी मेनोपॉज की वजह से हो सकते हैं,किन क्या पति भी मूड स्विंग का शिकार होते हैं? इस सवाल का जवाब है- हां। हस्बैंड के बिहेवियर में धीरे-धीरे आ रहे बदलाव की वजह ‘एंड्रोपॉज’ भी हो सकता है। जिसे मॉडर्न और सरल भाषा में 'मिजरेबल हस्बैंड सिंड्रोम' (Miserable husband syndrome) कहा जाता है।

रिलेशनशिप एक्सपर्ट डॉ. गीतांजलि शर्मा कहती हैं इस सिंड्रोम में हस्बैंड पत्नी को इग्नोर करने लगते हैं। आपसी बातचीत कम या बंद हो जाती हैं और धीरे-धीरे सेक्स में रुचि भी नहीं रहती। पति का यह बर्ताव रिश्ते में दरार ला सकता है। कहीं न कहीं यह डिवोर्स का अज्ञात कारण भी बन सकता है।

'मिजरेबल हस्बैंड सिंड्रोम' क्या एक बीमारी है या वक्त का फेर, चलिए बताते हैं।

मेल मेनोपॉज यानी 'मिजरेबल हस्बैंड सिंड्रोम'

हो सकता है आप में से कई लोगों ने 'मिजरेबल हस्बैंड सिंड्रोम' (Miserable husband syndrome) / 'इरिटेबल मेल सिंड्रोम' ( Irritable male syndrome) के बारे में पहली बार सुना हो। लेकिन यह कोई नया सिंड्रोम नहीं है। इसे एंड्रोपॉज (Andropause) कहा जाता है। यह ठीक वैसा ही है जैसे महिलाओं में मेनोपॉज होता है। यानी 'मिजरेबल हस्बैंड सिंड्रोम' एक तरह का ‘मेल मेनोपॉज’ है जिसमें टेस्टोस्टेरोन का लेवल कम हो जाता है।

कई पुरुषों में यह 40 की उम्र के बाद शुरू होता है लेकिन आजकल यह यंग लड़कों में भी देखने को मिल रहा है।

आगे बढ़ने से पहले आपको समझाते हैं कि पुरुषों के लिए क्यों जरूरी है टेस्टोस्टेरोन। लेकिन उससे पहले ग्राफिक में आपको बताते हैं ‘एंड्रोपॉज’ शब्द का संबंध किस भाषा से है:

पुरुषों में सेक्स हॉर्मोन है टेस्टोस्टेरोन

पुरुषों में पाए जाने वाले सेक्स हाॅर्मोन को टेस्टोस्टेरोन कहते हैं। इससे पुरुषों में बॉडी मास, मसल्स, ताकत और सेक्स ड्राइव कंट्रोल और रेगुलेट होती है। यह हाॅर्मोन रेड ब्लड सेल्स और स्पर्म बनाने में भी मददगार है।

एक हॉर्मोन जिसका लोचा बिगाड़ देता है शादी

अगर टेस्टोस्टेरोन का लेवल कम होने लगे तो पुरुष को एंग्जाइटी, डिप्रेशन, चिड़चिड़ापन और गुस्सा घेर लेगा। वह पार्टनर से बात करने से बचेगा। उसका सेल्फ कॉन्फिडेंस डगमगाएगा। इसे वह महसूस भी करेगा और घबराएगा भी और यही घबराहट उसकी सेक्शुअल रिलेशनशिप पर नेगेटिव असर डालेगी।

पुरुष का ऐसा बर्ताव पत्नी के मन में शक पैदा करता है। पत्नी के छूने पर वह असहज महसूस करता है और धीरे-धीरे पत्नी को इग्नोर करने लगता है। जब रिश्ते में नजदीकी नहीं रहती तो शादी भी मुश्किल में पड़ती दिखती है।

मिजरेबल हस्बैंड सिंड्रोम को कैसे पहचाना जा सकता है, ग्राफिक से समझें:

हस्बैंड का बदलता व्यवहार बन जाता है पत्नी की परेशानी

रिलेशनशिप काउंसलर डॉ. के. आर. धर कहते हैं कि पति के इस बिहेवियर की वजह स्त्री की बढ़ती अवेयरनेस और कॉन्फिडेंस है। पहले के वक्त में संयुक्त परिवार, बच्चों का ज्यादा होना, दंपती के बीच एक उम्र के बाद दूरियां, पति की अपनी जिम्मेदारियां और पत्नी की घरेलू कामों में व्यस्तता होती थी। आज के समय में इन सब चीजों में कमी आई है। बच्चे 1 या 2 होते हैं।

पति पर अकेले घर की जिम्मेदारी नहीं रही और पत्नी भी जिम्मेदारी बांटने में उसका साथ देने लगी है। वक्त के साथ पत्नी डिमांडिंग भी बनी है और अपनी जरूरतों को लेकर जागरूक भी हुई है। जिससे वह हस्बैंड के बदलते व्यवहार को पहचान लेती हैं और परेशान होती है।

अचानक नहीं आता पुरुषों में बदलाव

'मिजरेबल हस्बैंड सिंड्रोम' के लक्षण अचानक नहीं आते। सेक्सोलॉजिस्ट डॉ. प्रकाश कोठारी ने बताया कि टेस्टोस्टेरोन का लेवल अक्सर 45 की उम्र के बाद कम होने लगता है। इसे एंड्रोपॉज कहा जाता है।

पुरुषों में ये बदलाव धीरे-धीरे आते हैं। पुरुषों को मांसपेशियों में कमजोरी महसूस होती है। वे चिड़चिड़े होने लगते हैं। डिप्रेशन का शिकार हो सकते हैं। सेक्स ड्राइव धीरे-धीरे कम होने लगती है और उनकी डाइट भी कम होने लगती है। हालांकि ऐसा सबके साथ हो, यह जरूरी नहीं।

दरअसल, टेस्टिकल्स में टेस्टोस्टेरोन बनता है। फिर यह हार्मोन लिवर से होते हुए टारगेट ऑर्गन में जाता है।

टेस्टोस्टेरोन का लेवल तभी कम होता है जब अंडकोश में कमी हो या टेस्टिकल्सस या लिवर में कोई गड़बड़ी हो।

आगे बढ़ने से पहले ग्राफिक से जानें कैसे कराएं टेस्टोस्टेरोन का टेस्ट:

युवाओं को भी हो सकती है दिक्कत

छोटी उम्र में भी टेस्टोस्टेरोन का लेवल कम हो सकता है। इसके पीछे का कारण है खराब लाइफस्टाइल। अगर कम उम्र में सिगरेट, शराब की आदत पड़ जाए या स्ट्रेस हो तो इसका असर टेस्टोस्टेरोन पर पड़ता है और इनका स्तर शरीर में कम होने लगता है।

डॉ. प्रकाश कोठारी बताते हैं कि जिन लोगों की शादी नहीं हुई या शादी हो गई लेकिन बच्चे नहीं हुए हैं तो डाइट के जरिए शरीर में इस हार्मोन का स्तर सुधारा जा सकता है। उन्हें सिंथेटिक टेस्टोस्टेरोन का इंजेक्शन की सलाह नहीं दी जाती। क्योंकि इससे स्पर्म कम होने की संभावना रहती है।

आगे आपको बताएंगे कैसे रिश्ते को बिगड़ने से बचाया जा सकता है लेकिन पहले ग्राफिक से समझें टेस्टोस्टेरोन के अलग-अलग लेवल:

मेडिकल नहीं साइकोलॉजिकल दिक्कत भी हो सकती है

मिजरेबल हस्बैंड सिंड्रोम के बारे में रिलेशनशिप काउंसलर डॉ. गीतांजलि शर्मा कहती हैं कि टेस्टोस्टेरोन के लेवल का कम होना एक मेडिकल प्रॉब्लम है, लेकिन कई बार वर्क प्रेशर, स्ट्रेस, फाइनेंशियल क्राइसिस या आइडेंटिटी क्राइसिस से भी पुरुषों का बर्ताव बदल सकता है। 70% मामलों में इसका कारण स्ट्रेस ही होता है। यानी यह एक साइकोलॉजिकल इश्यू भी है।

घरेलू उपायों को अपनाकर टेस्टोस्टेरोन का लेवल बढ़ाया जा सकता है। ग्राफिक्स देखिए:

शक करने से बेहतर है पॉजिटिव अप्रोच रखना

रिलेशनशिप काउंसलर के अनुसार शक तभी होता है जब रिश्ते में कोई और दिक्कत हो या पहले से कपल के बीच दूरियां हों। अगर हस्बैंड का बर्ताव अचानक बदले तो यह मेडिकल प्रॉब्लम हो सकती है।

हालांकि शक करना इंसानी फितरत है। अगर पार्टनर इग्नोर करे तो पत्नी को लगता है कि उनके साथ धोखा हो रहा है।

लेकिन रिश्ते में हमेशा पॉजिटिव अप्रोच रखें। बिना सबूत के किसी गलत फैसले या नेगेटिव सोच से बचना चाहिए। सारे फैक्ट्स को जांचने के बाद ही किसी नतीजे पर पहुंचें। बेहतर है पार्टनर पर शक करने की जगह उनसे बात करें। क्योंकि कम्युनिकेशन ही रिलेशनशिप की ज्यादातर समस्याओं का हल है।

पुरुषों में ही नहीं महिलाओं में भी इस हार्मोन का लेवल कम हो जाता है, ग्राफिक से समझें

पत्नी को समझना होगा पार्टनर की समस्या

हस्बैंड के बिहेवियर में बदलाव को रिश्ते का मुद्दा न बनाएं। आपको इस बात पर गौर करना चाहिए कि पति को कोई मेडिकल प्रॉब्लम तो नहीं।

गीतांजलि शर्मा कहती हैं कि पत्नी को समझना होगा कि यह समस्या रिश्ते को लेकर नहीं, बल्कि उम्र के साथ पति के शरीर में आ रहे हार्मोनल बदलावों का असर है जिसकी वजह से उनकी मेंटल और फिजिकल हेल्थ दोनों ही प्रभावित हो रही है। तो शक को पीछे छोड़ पार्टनर की दिक्कत को समझने और उसे सुलझाने में मदद करें।

हस्बैंड को कम्फर्टेबल फील कराएं ताकि वह आपसे अपनी समस्या साझा करें। अगर तब भी दिक्कत दूर न हो तो रिलेशनशिप एक्सपर्ट, मनोचिकित्सक या सेक्सोलॉजिस्ट से संपर्क करें।

रिलेशनशिप काउंसलर डॉ. के. आर. धर कहते हैं कि बढ़ती उम्र में हर पुरुष एंड्रोपॉज की स्थिति से गुजरता है। यह एक नैचुरल प्रक्रिया है। भले ही इसे मिजरेबल हस्बैंड सिंड्रोम का नया नाम दे दिया गया हो लेकिन ये हमेशा से होता रहा है। इसका असर कुछ पुरुषों पर कम तो कुछ पर ज्यादा दिखता है। इसके बारे में अगर लोगों को पहले से जानकारी होगी तो कपल्स के बीच इस तरह की दिक्कत आएगी ही नहीं।

इस स्थिति का मिलकर सामना करें। काउंसिलिंग लें ताकि आप एक दूसरे के शरीर, मन और हार्मोन को समझ पाएं। झगड़ा न करें। काउंसलर ही आपके मिस मैच पार्ट को मैच करेंगे।

ग्राफिक्स: सत्यम परिडा

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