ताजमहल के पास लगे गंदगी के अंबार को लेकर प्रदर्शन कर रही एक 10 साल की लड़की की तस्वीर वायरल हो रही है। इस तस्वीर में लड़की को समाजवादी पार्टी (सपा) नेता ने लड़की को विदेशी बता दिया। जिसके बाद एक्टिविस्ट ने खुद को भारतीय बताया और अब नेता ट्रोल हो रहे हैं।
भारतीय को विदेशी बता ट्रोल हुए नेता
मणिपुर की 10 साल की क्लाइमेट एक्टिविस्ट लिसिप्रिया कांगुजम ने आगरा प्रशासन और नगर निगम को आइना दिखाया है। लिसिप्रिया कांगुजम ने ताजमहल के पीछे फैले कचरे के ढेर का फोटो सोशल मीडिया पर शेयर किया। फोटो में उन्होंने प्रदूषण को लेकर लोगों को मैसेज देने की कोशिश की है जिसमें लिखा है -'ताजमहल की खूबसूरती के पीछे की खूबसूरती प्लास्टिक है।' उन्होंने ट्विटर पर लिखा, 'ताजमहल की खूबसूरती के पीछे, शुक्रिया इंसानों ।
विदेशी भी अब सरकार को दिखा रहे आइना
समाजवादी पार्टी के डिजिटल मीडिया कोऑर्डिनेटर मनीष जगन अग्रवाल ने अपने ट्वीट में लिखा कि "विदेशी पर्यटक भी भाजपा शासित योगी सरकार को आईना दिखाने को मजबूर हैं। भाजपा की सरकार में यमुना जी गंदगी से भरी पड़ी हैं, ताजमहल को खूबसूरती पर ये गंदगी एक बदनुमा दाग है, विदेशी पर्यटक द्वारा सरकार को आईना दिखाना बेहद शर्मनाक है। भारत और यूपी की ये छवि भाजपा सरकार ने बनाई है।"
इस पर लिसिप्रिया कांगुजम ने कहा कि "हेलो सर। मैं एक गौरवान्वित भारतीय हूं। मैं विदेशी नहीं हूं।" हालांकि बाद में सपा नेता को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने माफी मांग ली।
नॉर्थ ईस्ट के लोगों के लिए उठाई आवाज
Licypriya Kangujam ने नॉर्थ ईस्ट के लोगों के साथ होने वाले इस व्यवहार के खिलाफ आवाज उठाते हुए Licypriya ने लिखा, 'नॉर्थ ईस्ट के लोगों के प्रति इस तरह के नस्लवादी रवैये को रोकें। यह किसी भी कीमत पर अस्वीकार्य है। '
नॉर्थ ईस्ट के लोग अपने ही देश में भेदभाव के शिकार हैं। इस इलाके के लोग अपने रंग-रूप, खान पान और भाषा की वजह से हमेशा नस्लीय भेदभाव का शिकार होते हैं। कई लोग इन्हें चाइनीज़, चिंकी या मोमो जैसे नामों से बुलाते हैं।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के ताजा सर्वेक्षण से ये पता चलता है कि-
- 54% उत्तर पूर्वी लोग ये मानते हैं कि जातीय असहिष्णुता के मामले में दिल्ली उनके लिए सबसे ज्यादा असुरक्षित जगह है।
- 67% उत्तर पूर्वी लोगों ने ये माना कि वो जातीय और नस्लीय भेदभाव का शिकार हुए हैं।
जामिया मिलिया इस्लामिया के उत्तर पूर्वी अध्ययन केंद्र, की एक स्टडी कहती है कि -
- मेट्रो शहरों में उत्तर पूर्वी लोगों खासकर महिलाओं के साथ होने वाले नस्लीय भेदभाव की तो कोई सीमा ही नहीं है।
- करीब 32 प्रतिशत महिलाओं का मानना है कि वो दिल्ली में नस्लीय भेदभाव की शिकार हुई हैं।
Copyright © 2023-24 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.