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बुरी नजर और नेगेटिविटी से बचाता है शीशा:काले टीके की नहीं पड़ेगी जरूरत, जींस, कुर्ती, लहंगा, साड़ी हर स्टाइल में पहनें मिरर वर्क

एक वर्ष पहलेलेखक: दीक्षा प्रियादर्शी
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मिरर वर्क आउटफिट में एक चमक जोड़ देता है। कोई त्योहार हो या शादी अलग लुक चाहिए तो मिरर वर्क वाले ड्रेसेस को एहमियत दे सकती हैं। आजकल मिरर वर्क को कई तरह के फैब्रिक के साथ जोड़ा जा रहा है। कपड़ों में लगने वाले मिरर कई आकार में आते हैं, जो कपड़े पर कढ़ाई के माध्यम से जोड़े जाते हैं।

फैशन डिजाइनर भावना जिंदल बताती है कि इस टेकनिक को अपैरल डिजाइनिंग के नाम से जाना जाता है। इन दिनों मार्केट में इसकी बहुत डिमांड है। कई डिजाइनर ने इसे डेनिम और प्रिंडेट फैब्रिक के साथ भी लॉन्च किया है, जो ट्रेंड में है।

बुरी नजर से बचाएगी मिरर वर्क ड्रेस

दुनिया में मिरर वर्क की शुरुआत 13वीं शताब्दी के दौरान पर्सिया में हुई थी जबकि भारत में ये मुगल काल के दौरान प्रसिद्ध हुआ। इस्लामी मान्यताओं के अनुसार शीशा बुरी नजर को बेअसर करने में सबसे अधिक कारगार माना गया है। इसलिए मुगल दौर के हस्तशिल्प कारिगरों ने सोचा कि अगर इसे कपड़ों में लगाया जाए तो पहनने वाले को काले टीके की जरूरत नहीं पड़ेगी, वो चाहे कितना भी सुंदर दिखे उसे बुरी नजर नहीं लगेगी।

मान्यताओं के अनुसार शीशा मिरर वर्क किए हुए ड्रेसेस पहनेंगी तो बुरी नजर नहीं लगेगी।
मान्यताओं के अनुसार शीशा मिरर वर्क किए हुए ड्रेसेस पहनेंगी तो बुरी नजर नहीं लगेगी।

हिंदू और जैन धर्म में शीशे का महत्व

हिंदू धर्म और जैन धर्म के अनुसार शीशे का तोरण घर के दरवाजे के बाहर लटकाया जाता है ताकि बुरी आत्माएं और किसी भी तरह की नेगेटिविटी घर से दूर रहे।

आज फैशन में जिस तरह का मिरर वर्क चलन में है उसकी शुरुआत 17 वीं शताब्दी में हुई थी। जब जाट समुदाय के पूर्वज (जो कच्छ जिले के बन्नी ग्रासलैंड रिजर्व में रहते हैं) बलूचिस्तान चले गए और वहां उन्होंने मिरर वर्क और बलूची कढ़ाई की तकनीक सीखी। तब मिरर वर्क के लिए शीशे को फूलों की पंखुड़ियों और पत्तियों जैसी आकृतियों में काटा गया और उसे कढ़ाई की मदद से कपड़ों पर लगाया जाने लगा।

अब पहले की तरह भारी मिरर के बजाय चमकीले प्लास्टिक का मटेरियल का इस्तेमाल किया जाता है।
अब पहले की तरह भारी मिरर के बजाय चमकीले प्लास्टिक का मटेरियल का इस्तेमाल किया जाता है।

हैंडिक्राफ्ट में होती है पहचान

मिरर वर्क भी एक तरह का हैंडिक्राफ्ट है, जिसे एक एक कर हाथ से लगाया जाता है। इस हैंडीक्राफट को सबसे ज्यादा राजस्थान, गुजरात और हरियाणा जैसे राज्यों में तैयार किया जाता है। आज भी इन राज्यों में प्रिंट्स से लेकर मिरर वर्क, बुनाई, कढ़ाई जैसे काम सबसे ज्यादा किए जाते हैं।

इसे हर तरीके के फैब्रिक और डिजाइन्स के साथ मिक्स एंड मैच किया जा रहा है।
इसे हर तरीके के फैब्रिक और डिजाइन्स के साथ मिक्स एंड मैच किया जा रहा है।

इंडियन से लेकर वेस्टर्न कपड़ों में मिरर वर्क

आज कई मशहूर डिजाइनर द्वारा इस क्राफ्ट को हर तरीके के फैब्रिक और डिजाइन्स के साथ मिक्स एंड मैच किया जा रहा है। इसका प्रयोग डेनिम जैकेट से लेकर जींस तक पर किया गया, जिसे विदेशियों द्वारा भी खूब पसंद किया गया। इसे इंडियन डिजाइनर आशिष गुप्ता द्वारा लंडन फैशन वीक में स्टाइलिश तरीके से रैंप पर भी प्रस्तुत किया गया। हालांकि अब पहले की तरह भारी मिरर के बजाय चमकीले प्लास्टिक का मटेरियल का इस्तेमाल किया जाता है।

इसे लहंगा, शरारा, स्कर्ट, कूर्ती पर कढ़ाई के साथ लगाया जाता है, जो दिखने में बेहद खूबसूरत लगते हैं। प्रिंटेड शिफॉन मटेरियल से लेकर जॉर्जेट की साड़ी के बॉर्डर तक इसे हर तरीके के मटेरियल के साथ अटैच किया गया। इसके अलावा इसे गोटा-पट्टी और कढ़ाई के घांगों के साथ ब्लाउज के बॉर्डर और नेक डिजाइन पर लगाया जाता है। इससे सिर्फ महिलाओं के कपड़े नहीं बल्कि पुरुष के कुर्ते पर भी लगाया जाता है।