देश में प्लास्टिक के बढ़ते इस्तेमाल और इसके खतरों को लेकर हाल ही में यह मुद्दा संसद में उठा। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत का सालाना प्लास्टिक का कचरा उत्पादन 3.3 मिलियन मीट्रिक हो गया है।
जिंदगी के हर पहलू में प्लास्टिक की पहुंच
हमारी जिंदगी का हर पहलू प्लास्टिक पर निर्भर हो गया है। बच्चों के खिलौनों से लेकर पानी की बोतल और खाने की प्लेट, रसोई, बाथरूम, इलेक्ट्रिक उपकरणों, कार, एरोप्लेन में, क्रॉकरी, फर्नीचर, कन्टेनर, बोतलें, पर्दे, दरवाजे, दवाईयों के रैपर और बोतलें, डिस्पोजिबिल सिरिंजों का उपयोग बहुत बढ़ गया है। शरीर और पर्यावरण दोनों के लिए नुकसानदेह होने के बावजूद, विकल्प के अभाव में इसे पूरी तरह बंद नहीं किया जा सकता है।
प्लास्टिक का कचरा खत्म होने में लगेंगे सैकड़ों साल
एक्सपर्ट मानते हैं कि जिस रफ्तार से हम प्लास्टिक इस्तेमाल कर रहे हैं, उससे 2021 तक दुनिया भर में करीब 12 अरब टन प्लास्टिक कचरा जमा हो जाएगा। इसे साफ करने में सैकड़ों साल लग जाएंगे। अपने देश की बात करें तो हमारे यहां गोवा और दिल्ली में इतना देश भर के औसत प्लास्टिक से छह गुना ज्यादा है।
160 साल पुराना है प्लास्टिक, जानिए कैसे पड़ा इसका नाम
प्लास्टिक का आविष्कार सन् 1862 में इंग्लैंड के एलेंक्जेंडर पार्क्स ने किया था। मानव निर्मित पहला प्लास्टिक सार्वजनिक रूप से लंदन में 1862 की अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी में प्रदर्शित किया था। प्लास्टिक एक प्रकार का पॉलिमर हैं जिनको कार्बनिक उत्पाद से बनाया जाता है। प्लास्टिक शब्द लेटिन भाषा प्लास्टिक और ग्रीक भाषा के शब्द प्लास्टिकोस से लिए गया है। जिसका मतलब है रुप देने वाला लचीला या किसी भी रूप में ढालने के योग्य।
प्लास्टिक के दो प्रकार, दोनों के विकल्प हमारे पास नहीं
थर्मोप्लास्टिक- यह वह प्लास्टिक होता है जो गर्म करने पर विभिन्न रूपों में बदल जाता है। जैसे- पॉलीथीन, पॉली प्रोपीलीन, पॉली विनायल क्लोरायड।
थर्मोसेटिंग- यह वह प्लास्टिक होती है जो गर्म करने पर सेट हो जाती है, जैसे- बिजली के स्विच बनाने में, गाड़ियों की बैटरियां बनाने में। अभी तक इनके सस्ते और आसान विकल्प नहीं तलाशे जा सके हैं।
पृथ्वी के कोने-कोने में पहुंचा प्लास्टिक, समुद्री जीवन पर खतरा
दुनिया की प्रमुख नदियों में लगभग 14 लाख टन प्लास्टिक का कचरा है। इसमें गंगा नदी दुनिया में दूसरे नंबर पर है। 'वर्ल्ड इकोनामिक फोरम' की रिपोर्ट के अनुसार, हर वर्ष लगभग 80 लाख टन कचरा समुद्रों में मिल रहा है।
माइक्रो प्लास्टिक- कॉस्मेटिक में उपयोग हो रहा माइक्रो प्लास्टिक या प्लास्टिक बड्स पानी में घुलकर प्रदूषण बढ़ा रहे हैं। इसकी मौजूदगी जलीय जीवों में भी मिली है। माइक्रो प्लास्टिक मछलियों के साथ-साथ, पक्षियों और कछुओं में भी मिलने की पुष्टि हुई है। रीसाइक्लिंग से बचे और बेकार हो चुके प्लास्टिक का बड़ा हिस्सा हमारे समुद्रों में डंप हो रहा है। अनुमान है कि 2016 तक समुद्र में 70 खरब प्लास्टिक के टुकड़े मौजूद थे।
सिंगल यूज प्लास्टिक है सबसे ज्यादा खतरनाक
प्लास्टिक खतरनाक होता है, लेकिन सिंगल यूज प्लास्टिक सबसे ज्यादा खतरनाक है। यह सिर्फ एक बार ही इस्तेमाल के लिए बनाया जाता है। इनमें कैरी बैग, कप, पानी या कोल्ड ड्रिंक की बोतल, स्ट्रॉ, फूड पैकेजिंग आदि आते हैं।
सस्ता-सुलभ होने की वजह से बढ़ा प्लास्टिक का इस्तेमाल
प्लास्टिक के इस्तेमाल की सबसे बड़ी वजह है कि इसे बहुत कम खर्च में तैयार किया जा सकता है। जैसे कि कांच की बोतल, प्लास्टिक की बोतल से काफी महंगी होती है। फिर उसे कहीं ले जाने में भी परेशानी होती है। जबकि प्लास्टिक को आसानी से कहीं भी ले जाया जा सकता है। ये हल्का होता है। कांच के मुकाबले प्लास्टिक की बोतल बनाना सस्ता पड़ता है।
प्लास्टिक से अस्थमा और कैंसर का खतरा सबसे ज्यादा
दिल्ली की डॉक्टर काव्या मेहता कहती हैं कि प्लास्टिक के इस्तेमाल से सबसे ज्यादा दो बड़ी बीमारियों का खतरा रहता है- अस्थमा और पल्मोनरी कैंसर। प्लास्टिक में मौजूद टॉक्सिन से व्यक्ति अस्थमा की समस्या से जूझता है, जिसमें उन्हें सांस लेने में परेशानी होती है। प्लास्टिक जलाने से जहरीली गैस निकलती है, जिसे हम इनहेल करते हैं और इससे पल्मोनरी कैंसर होने की सबसे ज्यादा संभावना होती है।
इम्यूनिटी को करता है कमजोर, बर्थ डिसऑर्डर की भी वजह
डॉक्टर काव्या के अनुसार, प्लास्टिक की चीजों में कई केमिकल होते हैं, जो हमारे शरीर के लिए अच्छे नहीं हैं। इनमें लेड, मरकरी और कैडमियम होता है, जिनके कॉन्टेक्ट में आते ही कई तरह की सीरियस डिजीज का रिस्क होता है। और अगर इसके डायरेक्ट संपर्क में आ गए, तो बर्थ डिसऑर्डर का खतरा पैदा हो जाता है। डॉक्टर काव्या के अनुसार प्लास्टिक में हमारे इम्यून सिस्टम को कमजोर करने के कण होते हैं।
प्लास्टिक का खतरा कम करने के लिए 4R का फंडा
R (Reuse): किसी भी चीज को बेकार समझकर न फेंकें। उसे दोबारा इस्तेमाल करने की सोचें।
R (Reduce): सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल धीरे-धीरे बंद कर दें। इसके जगह पर जूट या कपड़े का थैला, कागज के लिफाफे आदि का इस्तेमाल करें।
R (Recycle): ऐसी चीजें जिन्हें रिसाइकल किया जा सकता है, उन्हें एक जगह इकट्ठा कर कबाड़ी वाले को बेच दें। इन चीजों में लोहा, एल्युमिनियम, प्लास्टिक, कांच आदि शामिल हैं।
R (Refuse): जिसे रीसाइकल नहीं किया जा सकता, उस प्लास्टिक के इस्तेमाल से बचें। साथ ही ऐसी रीसाइकल होने लायक प्लास्टिक को भी न कहें जिसकी बहुत ज्यादा जरूरत न हो।
6 तरीकों से कम कर सकते हैं प्लास्टिक का इस्तेमाल
प्लास्टिक वेस्ट का बेस्ट मैनेजमेंट
कचरे में फेंके गए प्लास्टिक से सड़कें बन रही हैं। ये सड़कें मॉनसून के दौरान ज्यादा टिकाऊ भी होती हैं। इसके अलावा यह 50 डिग्री सेल्सियस तापमान पर भी नहीं पिघलती हैं। इससे शहर में उड़ते पॉलीथिन और प्लास्टिक के कचरे से निजात मिलेगी।
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