कोई आपसे मिले। आपका हाल चाल पूछे और आप उसे पहचान ना पाएं…क्या आपके साथ ऐसा कभी हुआ है। कभी-कभी ऐसा सबके साथ होता है, लेकिन कुछ के साथ यह हमेशा ही होता है। यह कोई सामान्य बात नहीं है। यह एक बीमारी है जिसे प्रोसोपेग्नोसिया कहते हैं। इसे फेस ब्लाइंडनेस भी कहते हैं। हाल ही में बॉलीवुड की हिट फिल्म ‘इश्क-विश्क’ की एक्ट्रेस शेनाज ट्रेजरी ने खुलासा किया कि वह भी इस बीमारी से जूझ रही हैं।
वहीं, हॉलीवुड एक्टर ब्रैड पिट ने भी इस बात का खुलासा किया था कि उन्हें लोगों के चेहरे याद नहीं रहते।
इंस्टाग्राम पर पोस्ट कर दर्द किया साझा
बॉलीवुड एक्ट्रेस और ट्रैवल ब्लॉगर शेनाज ट्रेजरी ने इंस्टाग्राम पर पोस्ट शेयर कर लिखा कि उन्हें पता चला है कि वह प्रोसोपेग्नोसिया यानी फेस ब्लाइंडनेस से ग्रस्त हैं। अब वह समझ पा रही हैं कि उन्हें चेहरे याद क्यों नहीं रहते। उन्हें शर्म आती है कि वह चेहरे नहीं पहचान सकतीं लेकिन वह आवाज पहचानती हैं।
150 साल पहले पहचानी गई थी यह बीमारी
प्रोसोपेग्नोसिया ग्रीक शब्द है। प्रोसोपैन का मतलब चेहरा होता है और एग्नोसिया का अर्थ है ज्ञान ना होना। प्रोसोपेग्नोसिया फेस ब्लाइंडनेस है। यह एक मानसिक विकार है जिसमें इंसान को चेहरा याद नहीं रहता।
प्रोसोपेग्नोसिया का पहला मामला 150 साल पहले मिला था। 1947 में जर्मन न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. जोआचिम बोडामर ने अपनी रिपोर्ट में इसका खुलासा किया। इसमें लिखा गया कि घायल सैनिक चेहरा नहीं पहचान पा रहे थे।
किसी को जन्म से तो किसी को दिमाग पर चोट लगने से हो सकती है दिक्कत
दिल्ली स्थित सर गंगाराम हॉस्पिटल के न्यूरोलॉजिस्ट डॉक्टर अंशु रोहतगी ने बताया कि दिमाग के दाएं हिस्से में फ्यूजीफॉर्म गाइरस नाम का हिस्सा होता है जो चेहरे पहचानने में मदद करता है। इसमें टेम्पोरल लोब होता है।
इस बीमारी के कई कारण होते हैं। ज्यादातर मरीजों को ब्रेन स्ट्रोक के बाद ऐसा होता है। वहीं, अगर किसी को दिमाग पर चोट लगे या डिमेंशिया (भूलने की बीमारी) हो, तब भी प्रोसोपेग्नोसिया हो सकता है।
अक्सर किसी के परिवार में इस तरह की बीमारी रही हो तो कुछ बच्चों को यह जन्म से हो सकती है। लेकिन इस तरह के मामले 100 में से 2 ही होते हैं।
डॉक्टर अंशु रोहतगी ने बताया कि फेस ब्लाइंडनेस का कोई इलाज नहीं है। अगर किसी को ब्रेन स्ट्रोक हो या डिमेंशिया तो उसी बीमारी की दवा दी जाती है।
मरीजों ने इस तरह अपनों को पहचाना
केस 1: शादी की अंगूठी से हस्बैंड को पहचाना
40 साल की मृदुला कुमारी एक शादी में गईं। वहां कई रिश्तेदार पहुंचे थे। इस मौके पर कई लोग उनके पास आए, उन्हें नमस्ते कर हाल-चाल पूछा लेकिन वह सबको इग्नोर करती रहीं। उनके हस्बैंड को समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है। वे लोग घर आ गए। इसके बाद से उनके पति रामअवतार ने महसूस किया कि मृदुला पड़ोसियों को भी नहीं पहचान पा रहीं।
एक दिन वह ऑफिस से घर पहुंचे तो उनकी पत्नी ने उन्हें ही पहचानने से इनकार कर दिया और घर में घुसने नहीं दिया। जब उन्होंने हाथ में पहनी शादी की रिंग दिखाई, तब वह पहचानीं। इसके बाद रामअवतार उन्हें डॉक्टर के पास लेकर पहुंचे जहां उन्हें पता चला कि पत्नी को फेस ब्लाइंडनेस है।
केस 2: दोस्त को आवाज से पहचाना
दिल्ली के रहने वाले नितिन एक इंजीनियर हैं। हैदराबाद में जॉब करते थे। बहुत दिनों बाद छुट्टी मिली तो घर आने का प्लान बनाया। इस बीच सब दोस्तों को फोन कर आने की खबर दे दी। जिस दिन उनकी फ्लाइट थी, उससे पहले ही उन्होंने एक दोस्त को फोन किया और कहा एयरपोर्ट आकर उन्हें पिक कर ले। वह दिल्ली पहुंचे तो उन्हें अपने दोस्त का चेहरा ही याद नहीं आ रहा था।
लेकिन उनके दोस्त ने उन्हें ढूंढ लिया। वह सामने आया तो नितिन ने देख कर भी अनदेखा कर दिया लेकिन जब वह बोला कि क्या हुआ? आवाज सुनते ही वह उसे पहचान गए। उनका इलाज चल रहा है। दरअसल कुछ साल पहले उनका एक्सीडेंट हुआ था और चोट लग गई थी। इसके बाद से उन्हें प्रोसोपेग्नोसिया की बीमारी हुई।
8 सेकंड से ज्यादा लगते हैं चेहरा पहचानने में
एक रिसर्च के मुताबिक सामान्य व्यक्ति को चेहरा पहचानने में 1 सेकंड का वक्त लगता है। वहीं, प्रोसोपेग्नोसिया के मरीजों को 8 सेकंड से ज्यादा का समय लग जाता है। यह भी हो सकता है कि वह चेहरा पहचाने ही नहीं।
रिश्ते हो सकते हैं खराब
मनोचिकित्सक अवनि तिवारी ने बताया कि प्रोसोपेग्नोसिया से पीड़ित मरीज की जिंदगी मुश्किलों भरी होती है। कई बार उनका पार्टनर उन्हें समझ नहीं पाता। इससे उनके रिलेशनशिप पर असर होता है। मरीज के पार्टनर को लगता है कि वह जानबूझकर इग्नोर किए जा रहे हैं। जबकि ऐसा नहीं होता। इस बीमारी की वजह से करियर भी खत्म हो सकता है। कई बार मरीज समाज से दूर होने लगता है और डिप्रेशन का शिकार हो जाता है।
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