1789 में फ्रांस की क्रांति का हीरो माने जाने वाला नेपोलियन जब कड़कड़ाती ठंड में आल्पस की पहाड़ियों पर चढ़ रहा था, तब उसके सैनिकों की हालत बदतर हो रही थी। ऐसे में शहद बनाने वाली मधुमक्खियों ने उसका साथ दिया। इन मधुमक्खियों ने यूरोप जीतने के दौरान नेपोलियन के दुश्मनों को इतना काटा कि वो मैदान छोड़ भाग खड़े हुए।
अब बात करें भारत की, जहां नक्सल प्रभावित इलाकों में मुस्तैदी से डटे पैरामिलिट्री फोर्सेज के जवान घने जंगलों में घुस नहीं पाते, यहां मधुमक्खियां स्निफर्स डॉग का रोल निभाती हैं, पैरा मिलिट्री फोर्सेज के लिए रास्ता क्लियर करती हैं। वे जंगलों में बिछे विस्फोटकों और लैंडमाइंस का पता लगाने में मदद करती हैं।
ये थे मधुमक्खियों के दो ऐसे किस्से जो जंग जीतने से जुड़े थे। अब आपको ले चलते हैं उनकी शहद बनाने की प्रेम कहानी की ओर, इसे पढ़कर आप हैरान रह जाएंगे। एक चम्मच शहद जो आपकी डायनिंग टेबल तक पहुंचता है, उसे बनाने में मादा मधुमक्खी की पूरी जिंदगी खप जाती है और नर मधुमक्खी को अपनी जान गंवानी पड़ती है।
अगर आपके जेहन में ये सवाल उठ रहा है कि आखिर नर मधुमक्खी शहद बनाने की प्रक्रिया में क्यों मरती है तो इसके लिए आपको उसकी प्रेम कहानी पढ़नी होगी...
दरअसल, मधुमक्खी के एक छत्ते में 5-10 हजार के आसपास मादा, 50-100 नर मधुमक्खी यानी (ड्रोन) और एक रानी मधुमक्खी रहती है। छत्ते में मधुमक्खियों की आबादी बढ़ाने का काम रानी मधुमक्खी के जिम्मे होता है। मतलब प्रजनन का काम केवल रानी मधुमक्खी ही करती है। छत्ते की बाकी सभी मधुमक्खियां ‘श्रमिक मधुमक्खियां’ कहलाती हैं।
रानी मधुमक्खी अपने छत्ते से बाहर निकलती है और अपने शरीर से कुछ ऐसे केमिकल छोड़ती है, जिससे आसपास के नर मधुमक्खियों को जानकारी होती है कि किसी रानी मधुमक्खी को उनकी जरूरत है।
जब नर मधुमक्खी और रानी मधुमक्खी के बीच दूर कहीं आसमानों में ये संबंध बन रहे होते हैं तब मादा मधुमक्खियों का पूरा जत्था रानी मधुमक्खी के साथ उसकी सुरक्षा के लिए होता है। ये ‘मेटिंग’ इतनी आसान नहीं होती। दुश्मन मधुमक्खियां रानी मधुमक्खी पर हमला न कर दें इसलिए ये जत्था साथ जाता है। संबंध बनाने का ये काम कुछ सेकेंड्स का होता है।
रानी मधुमक्खी और नर मधुमक्खी जब संबंध बनाते हैं तो नर मधुमक्खी के शरीर का प्रजनन अंग रानी मधुमक्खी के शरीर में ही रह जाता है। इस प्रक्रिया में नर मधुमक्खी का पेट फट जाता है और वह तड़पते हुए जमीन पर आ गिरता है। नर मधुमक्खी संबंध बनाने के तुरंत बाद मर जाता है।
रानी मधुमक्खी के होते हैं मल्टीपल पार्टनर, खुद चुनती है
मधुमक्खियों की दुनिया में रानी मधुमक्खी पर ये बंदिश नहीं होती कि वह एक ही नर मधुमक्खी के साथ संबंध बनाएगी। वह एक ही बार में अलग-अलग नर मधुमक्खियों से रिलेशन बना सकती है। जब रानी मधुमक्खी के शरीर में नर मधुमक्खियों से मिले स्पर्म का कोटा पूरा हो जाता है तब वह जिंदगी भर के लिए वापस अपने छत्ते में चली जाती है।
बेटियां-बेटे कितने होंगे, यह फैसला मादा मधुमक्खियों का
छत्ते के अंदर श्रमिक मधुमक्खियां रानी मधुमक्खी के लिए सफाई का काम करती हैं। फिर सभी मधुमक्खियां मिलकर तय करती हैं कि कितनी बेटियां यानी मादा मधुमक्खियां और कितने बेटे यानी नर मधुमक्खियां पैदा करनी हैं।
छत्ते में बैठी श्रमिक और रानी मधुमक्खियां मिलकर तय करती हैं कि रानी मधुमक्खी को 99 फीसदी मादा और सिर्फ एक प्रतिशत नर मधुमक्खियों को ही जन्म देना है। रानी मधुमक्खी एक बार में 500-2000 अंडे देती है। शहद बनाने का काम सिर्फ मादा मधुमक्खियां करती हैं। रानी और नर मधुमक्खी का काम सिर्फ प्रजनन (Reproduction) प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का होता है।
इतनी सारी कवायद का मकसद शहद का उत्पादन होता है
मधुमक्खियों की इस पूरी मेहनत के केंद्र में शहद होता है। वही शहद जिसे आप मोटापा कम करने के लिए, चेहरे को सुंदर बनाने के लिए और बड़े से बड़े घाव को ठीक करने के लिए इस्तेमाल करते हैं।
आयुर्वेदाचार्य डॉ. राहुल चतुर्वेदी बताते हैं, शहद में 24 गुण पाए जाते हैं, जो शरीर को बीमारियों से दूर रखते हैं। शहद में दो जरूरी तत्व होते हैं- फ्रक्टोज और ग्लूकोज। इन दोनों पदार्थों से शहद में मिठास आती है।
आइए बताते हैं कितने गुण वाला शहद है फायदेमंद
24 गुणों में से 2 गुण जो फ्रक्टोज में पाए जाते हैं, उन्हें निकालने बाद शहद ज्यादा गुणकारी होता है। फ्रक्टोज में शुगर और मोटापा बढ़ाने वाले तत्व होते हैं, इसलिए जब छत्ते से शहद निकाला जाता है तो इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि फ्रक्टोज छत्ते से ही चिपका रहे और ग्लूकोज नीचे गिरे। इस हिसाब से 22 गुणों वाला शहद सभी के लिए गुणकारी है।
दिल्ली के बापू नेचर क्योर हॉस्पिटल एंड योगाश्रम में मेडिकल सुपरिनटैंडैंट डॉ. रुक्मिणी नायर का कहना है कि शहद बड़े से बड़े घाव को भरने में भी काम आता है। नैचुरोपैथी में तो शहद शरीर को डिटॉक्स करने के लिए भी यूज होता है। वजन कम करता है। टाइफाइड बुखार में सुबह खाली पेट और लंच के बाद दिन में 3-4 चम्मच शहद खाने से फायदा होता है।
पटना के आयुर्वेदाचार्य आशुतोष का कहना है कि खाने की चीजों में जहां भी चीनी की जगह शहद का इस्तेमाल मुमकिन हो, उसका उपयोग करें। जैसे दही में चीनी की जगह शहद डालकर खाएं। शहद में एंटीऑक्सीडेंट होते हैं, जो दिल के लिए फायदेमंद होते हैं। शहद में मौजूद फ्लेवोनॉयड, फेनोलिक एसिड, लैसोजाइम में एंटीबैक्टीरियल और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं। ये सूजन से बचाते हैं और घाव भरने में मदद करते हैं।
शहद में गुलाब जल मिलाकर घाव पर लगाने से आराम मिलता है। शहद में मौजूद जायलोज (Xylose) और सुक्रोज, वॉटर एक्टिविटी को कम करते हैं और बैक्टीरिया को बढ़ने से रोकते हैं। इस वजह से शहद मुहांसे भी दूर करता है।
क्या सभी तरह का शहद खाने लायक होता है?
भारत में करीब 500 प्रकार के ऐसे पौधे पाए जाते हैं, जिनमें फूल लगते हैं, जिनसे मधुमक्खियां पोलन और नेक्टर चूसती हैं। कहा जा सकता है कि जितने तरह के पेड़ हैं, उतने तरह का शहद है। भारत में सरसों की खेती ज्यादा होती है। इसलिए सरसों का शहद ज़्यादा खाया जाता है। बाकी सभी तरह का शहद भी फायदेमंद है।
इस मिलावटी जमाने में कैसे जान पाएंगे कि कौन सा शहद असली?
‘राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड’ के आंकड़े बताते हैं, देश में हर साल लगभग 3 करोड़ किलो मिलावटी शहद बनाया जाता है। ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि कौन सा शहद असली है?
असली शहद जमता नहीं है, चाहे फ्रिज में कितनी ही देर के लिए रख लें। शहद में जरा भी चीनी होगी तो जम जाएगा। क्रिस्टल वाला शहद असली होता है। पानी में डालते ही शहद घुल जाए तो वह नकली शहद होता है। पानी में बैठ जाने वाला शहद सही है।
गांव- देहात में असली और नकली शहद की जांच के लिए कई नुस्खे प्रचलित हैं। कई का मानना है कि अगर शहद को आंख में लगाया जाए और पानी न आए तो शहद असली है वरना नकली। वैसे शहद की जांच का सही तरीका है- न्यूक्लियर मैग्नेटिक रेजोनेंस टेस्ट। इस टेस्ट से शहद की शुद्धता का पता चलता है। शहद के निर्यात के लिए इस टेस्ट को कराना जरूरी होता है।
दरअसल, मधुमक्खियां शहद बनातीं तो अपने खाने के लिए हैं पर खा इंसान जाते हैं, तो आप जानना नहीं चाहेंगे कि आखिर ये मधुमक्खियां शहद बनाती कैसे हैं?
जब इजिप्ट की ममियां खोदी गईं तो उनके ताबूतों में खाने लायक शहद मिला। मिस्र की प्राचीन सभ्यता में यह माना जाता था कि जब व्यक्ति गुजर जाता है तब वह दूसरी दुनिया की ओर एक लंबे सफर पर निकलता है। सफर के लिए जरूरी चीजें जैसे कपड़े, खाने-पीने की चीजें, जेवरात रखे जाते हैं। इसी परंपरा के चलते शहद भी रखा जाता था।
दुनियाभर में मधुमक्खियों की 20 हजार से ज्यादा प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें से सिर्फ पांच तरह की मधुमक्खियां ही शहद बनाती हैं। इनमें एपिस डोर्साटा, एपिस मेलिफेरा, एपिस सेराना, एपिसफ्लोरिया और ट्राईगोना मधुमक्खियां आती हैं।
मधुमक्खी के होते हैं दो तरह के पेट
बीकीपर अक्षय बोरसे बताते हैं कि मधुमक्खी के दो तरह के पेट होते हैं। एक में वह खाना रखती हैं तो दूसरे में शहद। मधुमक्खियों के पेट के निचले हिस्से से वैक्स निकलता है। वैक्स यानी मोम, जिससे वे अपना छत्ता बनाती हैं। एक किलो वैक्स बनाने के लिए मधुमक्खियां 3 किलो शहद खा लेती हैं।
मधुमक्खियों में ऐसे एंटीना होते हैं जो उन्हें बताते हैं कि फूल किस दिशा में है। दिशा दिखाने का काम सूरज की किरणें करती हैं। जिस फूल से वे पराग और नेक्टर चूसकर लाती हैं, उसे वे अपने छत्ते में लाकर रख देती हैं।
‘फैनिंग’ से नमी का स्तर ठीक रखती हैं
जमा किया गया शहद इतना गाढ़ा नहीं होता है। वे इसे सुखाती हैं फिर फैनिंग यानी अपने पंखों से हवा करके छत्ते के अंदर का नमी का स्तर कम करती हैं। अगर आप किसी छत्ते के पास खड़े हैं तो फैनिंग की आवाज को सुन सकते हैं।
मधुमक्खियां शहद के ऊपर वैक्स लगाकर उसे ढंक देती हैं। वैक्स लगाने से बाहर के वातावरण की नमी और अन्य बाहरी चीजों से शहद सुरक्षित रहता है। मधुमक्खियां एक साल में 8 बार माइग्रेट करती हैं। माइग्रेट यानी जिस मौसम में जिस राज्य में फूल खिलते हैं, मधुमक्खियों की टोली उसी ओर रवाना हो जाती हैं।
क्या मधुमक्खियां सिर्फ शहद ही बनाती हैं
मधुमक्खियां सिर्फ शहद ही नहीं बनातीं बल्कि उन्होंने बड़े-बड़े युद्ध भी जितवाए हैं। जून 2021 में ‘रिसर्चगेट’ में छपे रिसर्च पेपर ‘हनी बी एज आ वेपन ऑफ वॉर: अ रिव्यू’ से पता चलता है कि पुरा पाषाणकाल में इंसान जब गुफाओं में रहता था तब दुश्मन से बचने के लिए वे उनके ऊपर मधुमक्खियों का छत्ता फेंक देते थे। यहीं से टर्म ईजाद हुई ‘बी-बॉम्ब।’ कीट विज्ञानशास्री जेफ्री लॉकवुड ने यहां तक कहा है कि सभ्यता की शुरुआत से ही मधुमक्खियों का इस्तेमाल इंसान ने अपनी सुरक्षा और युद्ध में हथियार के रूप में किया।
मधुमक्खियां नेपोलियन के यूरोप जीतने से लेकर लेकर प्रथम विश्व युद्ध में प्रभावी हथियार बनीं। माना जाता है कि 11वीं शताब्दी में जनरल इम्मो की कमान में सम्राट हेनरी प्रथम के सैनिकों ने ड्यूक गीजलबर्ट की सेना पर मधुमक्खियों का छत्ता फेंक दिया था ताकि उनके किले की सुरक्षा हो सके। कई सरकारों ने तो हिंसक भीड़ को तितर-बितर करने के लिए भी मधुमक्खियों का इस्तेमाल किया है। दरअसल, मधुमक्खियों में ऐसे रिसेप्टर होते हैं जो सूंघकर बताती हैं कि दुश्मनों ने कहां, क्या छुपा रखा है।
मधुमक्खियां हमें शहद दे रही हैं, युद्ध में जीत दिला रही हैं, पर हम उन्हें क्या दे रहे हैं। आइए समझते हैं।
साल 2014 में दक्षिण भारत में कम होती मधुमक्खियों की जनसंख्या पर एक रिसर्च पेपर लिखा गया था, जिसके मुताबिक, फसलों में अंधाधुंध कीटनाशकों का इस्तेमाल, सूखा, वायु प्रदूषण, ग्लोबल वॉर्मिंग से मधुमक्खियों को मार रहे हैं।
पिछले दिनों खबर आई थी कि ऑस्ट्रेलिया में बड़ी संख्या में मधुमक्खियों को मारा जा रहा है। इसके पीछे वजह थी। वरोआ माइट नाम का पैरासाइट जो मधुमक्खियों के लिए खतरा बन गया था। एक ही जमीन पर बार-बार खेती करने से मिट्टी की उर्वरता खराब होती है फिर फसल पर असर पड़ता है। इस तरह की फसल को मोनो-क्रॉपिंग कहा जाता है। मोनो-क्रॉपिंग भी मधुमक्खियों की संख्या कम कर रही है। प्लास्टिक का इस्तेमाल भी मधुमक्खियों पर निगेटिव असर डाल रहा है।
मधुमक्खियों मरीं तो इंसान की जान पर भी खतरा, जानें कैसे?
‘मूनशाइन मीडरी’ की शुरुआत करने वाले रोहन रेहानी बताते हैं कि सभी कीटों में मधुमक्खियां सबसे ज्यादा क्रॉस-पोलिनेशन यानी परागण करती हैं। क्रॉस-पोलिनेशन फसलों को बचाने के लिए बेहद जरूरी है। इसे ऐसे समझिए कि जैसे पुरुषों में स्पर्म होता है वैसे ही नर पौधों में नर युग्मक यानी परागकण होते हैं।
महिलाओं में ओवम होता है तो मादा पौधों की ओवरी में अंडे होते हैं, जिसे मादा युग्मक कहते हैं। क्रॉस-पोलिनेशन से नर पौधे का पराग मादा पौधे में आता है और फल उगते हैं।
इसी क्रॉस-पोलिनेशन को लेबनीज और अमेरिक कवि-लेखक खलील जिब्रान ने कुछ इस तरह फरमाया था -मधुमक्खी के लिए फूल जिंदगी का फव्वारा है, और फूल के लिए मधुमक्खी प्यार की संदेशवाहक।
मधुमक्खियां क्यों हैं ‘मैसेंजर ऑफ लव’
पौधों में कुछ नर और कुछ मादा होते हैं। ये पौधे खुद चलकर एक-दूसरे के पास नहीं पहुंच पाते, ऐसे में उनके बीच क्रॉस पोलिनेशन नहीं हो पाता। मधुमक्खी एक नर फूल का पराग लेकर मादा फूल पर पहुंचती है। यह पराग मादा फूल के वर्तिकाग्र (स्टिग्मा) पर चिपक जाते हैं। इसे क्रॉस-पोलिनेशन कहते हैं। इसलिए मधुमक्खियां ‘मैसेंजर ऑफ लव’ कहा जाता है।
यही नहीं बीकीपर्स यानी मधुमक्खियों को पालने वालों के बीच भौतिक विज्ञानी अल्बर्ट आइंस्टाइन की एक पंक्ति ‘अगर पृथ्वी से मधुमक्खियां खत्म हो गईं तो इंसान के पास जीने के लिए चार साल से अधिक का समय नहीं बचेगा।’ बहुत प्रसिद्ध है।
मधुमक्खियों को बचाने की क्या कोशिश हो रही है?
बीकीपर्स ने शहद जमा करने के नए तरीके ढूंढे हैं, जिससे मधुमक्खियों को नुकसान न हो। शहद इकट्ठा करने के दो तरीके हैं। पहला, बीकीपर्स का और दूसरा बी हंटर्स का। पहले बीकीपर्स का तरीका जान लेते हैं-
‘एक बड़े बॉक्स में 8 से 10 लंबे बॉक्स होते हैं। इनमें वैक्स की एक शीट लगाई जाती है, बिल्कुल वैसे जैसे मधुमक्खियां अपने छ्त्ते के लिए लगाती हैं। इस बॉक्स में बहुत सी मधुमक्खियां भरी जाती हैं, फिर शहद बनता है। इस प्रक्रिया में मधुमक्खियों को नुकसान नहीं पहुंचता क्योंकि इन बॉक्स में से वॉशिंग मशीन की तरह घूमती एक मशीन से शहद निकाला जाता है। मधुमक्खियों को वैक्स बनाने की मेहनत नहीं करनी पड़ती और वो केवल शहद बनाती हैं।
बी हंटर्स का तरीका पुराना है। जिसमें वे छत्ते के नीचे धुआं करके मधुमक्खियों को भगाते हैं, फिर पूरा का पूरा छत्ता काटकर निकाल लेते हैं। पूरा छत्ता निकालने से उसके अंदर का लारवा, अंडे सब खत्म हो जाते हैं। मधुमक्खियां इस छत्ते से निकलकर दूसरी जगह चली जाती हैं।
अमेरिका जैसे देशों में मधुमक्खियों की संख्या कम होने पर लोग हाथों से पोलिएनेशन का काम कर रहे हैं। यह काम पेंटब्रश की मदद से होता है। जैसे मधुमक्खियां परागण करती हैं, वैसे इंसान ब्रश से पोलिएनेशन कर रहे हैं। अक्षय बोरसे कहते हैं कि यह प्रक्रिया बहुत मेहनत वाली है, लंबे समय तक सफल नहीं होगी।
12 साल की कड़ी मेहनत और रिसर्च के बाद अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में रोबोबी बनाई गईं। ये रोबोट की तरह काम करती हैं और आर्टिफिशियल पोलिनेशन में मददगार साबित होती हैं। पर दुख की बात ये है कि ये रोबो-मधुमक्खियां शहद नहीं बना सकतीं।
इनपुट: मृत्युंजय
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