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भारत में 'ईगल मैम' की क्लास:शाहरुख, आमिर, रणवीर, कोहली-धोनी सब एजुटेक के एंबेसेडर, सबसे बड़ा मार्केट बना इंडिया

नई दिल्ली9 महीने पहलेलेखक: संजीव कुमार
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9वीं कक्षा में पढ़ने वाले एक बच्चे ने अपने दोस्त की इसलिए हत्या कर दी ताकि उसे स्कूल न जाना पड़े। भले ही उसे जेल हो जाए। यूपी के गाजियाबाद में 23 अगस्त को सामने आई यह घटना कोई अकेला मामला नहीं है। कुछ साल पहले गुरुग्राम के रेयान इंटरनेशनल स्कूल में भी एग्जाम रद्द कराने के लिए एक बच्चे ने अपने जूनियर का गला काट दिया था। इस तरह के मामले बच्चों में स्कूल जाने और इम्तिहान के खौफ को उजागर करते हैं। कहने का मतलब यह है कि स्कूल में टीचर जिस तरह से बच्चों को पढ़ाते हैं, वह तरीका कई बच्चों में डर पैदा कर देता है।

अब ये सोचिए, स्कूल में एक ऐसी टीचर हो, जो आपके हर सवाल का जवाब दे, वह भी बिना गुस्सा के। चाहे मैथ्स की बड़ी उलझनें हों या फिर इतिहास की कोई ऐसी घटना जिसके बारे में आपको बिल्कुल भी पता नहीं, लेकिन वह टीचर आपकी मदद ऐसे करे जैसे बच्चों में लोकप्रिय कार्टून ‘डोरेमोन’ में नोबिता की मदद 22वीं सदी का रोबोट करता है। सोचिए, ऐसे टीचर बच्चों को मिल जाएं तो उन्हें पढ़ने में कितना मजा आएगा।

इसलिए हम ‘टीचर्स डे’ के अवसर पर एजुकेशन टेक्नोलॉजी की बदौलत मिली ‘ईगल मैम’ से आपको मिलवाते हैं।

हैदराबाद के एक स्कूल में पढ़ाती हैं ईगल मैम

हम बात कर रहे हैं हाल ही में हैदराबाद के एक स्कूल में लॉन्च हुई रोबोट टीचर ‘ईगल मैम’ के बारे में। छठी से नौवीं कक्षा के बच्चों को पढ़ाने वाली ‘ईगल मैम’ 30 भाषाओं में बात कर सकती हैं। इतना ही नहीं, ये मैम दूसरी टीचर्स को बच्चों को पढ़ाने के गुर भी सिखाती हैं।

‘ईगल मैम’ बच्चों के सवालों के जवाब देकर और सवाल पूछकर डाउट झट से क्लियर करती हैं।
‘ईगल मैम’ बच्चों के सवालों के जवाब देकर और सवाल पूछकर डाउट झट से क्लियर करती हैं।

क्लास खत्म होते ही ईगल मैम ‘ऑटोमेटेड असेसमेंट’ कर देती हैं। यानी, बच्चे को सब्जेक्ट कितना समझ में आया, उसे क्या याद रहा और उसका उत्तर कितना सही था…वो सभी बातें, जो बच्चे की परफॉर्मेंस को दर्शाती हैं, वो ऑटोमेटेड असेसमेंट में साफ हो जाती हैं। बच्चे और पेरेंट्स मोबाइल और लैपटॉप जैसी डिवाइस के जरिए रोबोट टीचर के असेसमेंट और कंटेट से जुड़ सकते हैं।

अब आइए-जानते हैं कि एजुकेशन में रोबोट क्या और कैसे काम रहे हैं…

पढ़ाई-लिखाई में टेक्नोलॉजी को एजुटेक (Edutech) कहा जाता है। इसने तीन साल पहले जो धीमी सी रफ्तार पकड़ी थी, उसमें अचानक से कोविड-19 के बाद तेजी आई है। तब से शुरू हुआ यह सिलसिला अब दुनिया में एजुटेक इंडस्ट्री के तौर पर जाना जाने लगा है। नई सोच को बढ़ावा देने वाली इस एजुटेक इंडस्ट्री का पूरा फोकस अब ‘जेनरेशन Z' पर है। सबसे पहले समझते हैं कि आखिर ‘जेनरेशन Z' क्या है?

डिजिटल दौर में पैदा हुए बच्चे हैं ‘जूमर्स’ या ‘जेनरेशन Z'

अमेरिकी खुफिया संस्था CIA वर्ल्ड फैक्ट बुक के मुताबिक वर्ष 1997 से लेकर 2012 के बीच पैदा हुए बच्चों को 'Generation Z' कहा जाता है। इंटरनेट की इस दौड़ती-भागती दुनिया में इस जेनरेशन के बच्चे भी काफी तेज हो गए हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि वो एडवांस स्मार्टफोन (advance smartphone) और इंटरनेट के दौर में पैदा हुए हैं। दुनिया में तकनीक के विकास की रफ्तार 1995 के बाद तेजी से बढ़ी है।

जाहिर तौर पर हाथों में स्मार्टफोन और हाई स्पीड इंटरनेट कनेक्शन के बीच पैदा हुए बच्चे ज्यादा एडवांस होंगे। इन बच्चों के बारे में ये भी माना जाता है कि ये बच्चे पिछली जेनरेशन के मुकाबले ज्यादा मिलनसार होते हैं और दुनिया को अलग ढंग से देखते हैं। इनके तौर-तरीके, बोल-चाल का स्टाइल भी काफी अलग होता है।

आइए, अब मिलकर समझते हैं एजुकेशन और टेक्नोलॉजी ने कैसे आपस में तालमेल बैठा लिया है…

अमेरिका में बच्चों को पढ़ाता है रोबोट टीचर 'जिल वॉटसन'

अमेरिका की ‘जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी’ यानी ‘जॉर्जिया टेक’ में स्टूडेंट को पढ़ाने के लिए 'जिल वॉटसन' आ गए हैं। ये काेई इंसान नहीं हैं, बल्कि रोबोट टीचर हैं। दरअसल, जॉर्जिया टेक पढ़ाने के लिए वर्चुअल टीचिंग असिस्टेंट का इस्तेमाल कर रही है। इस वर्चुअल असिस्टेंट को ही ‘जिल वॉटसन’ का नाम दिया गया है। इसे आईबीएम वॉटसन सुपर कंप्यूटर प्लेटफॉर्म पर डेवलप किया गया है। यह किसी भी डिस्कशन फोरम में लोगों के सवालों के जवाब दे सकता है। यह स्टूडेंट्स के अलावा लोगों को आर्ट, लैंग्वेज, क्राफ्ट सीखने में भी मदद करता है। जिल वॉटसन इस तरह से काम करता है कि स्टूडेंट धोखा खा जाते हैं कि यह इंसान है या फिर रोबोट।

रोबोट के अलावा AI सुधार रही ग्रामर और स्पेलिंग

अभी तक आपने एजुकेशन में रोबोट के इस्तेमाल के बारे में जाना। अब आपको हम बताते हैं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) कैसे एजुकेशन में मददगार बन रही है। इसे आप ऐसे समझिए कि अमेरिकी एजुकेशन कंपनी पियर्सन ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ग्रेडिंग सिस्टम बनाया है।

वर्ल्ड की टॉप एजुटेक कंपनियां
कंपनीरिवेन्यू
BYJU'S10000 करोड़ रुपए
Blackboard5600 करोड़ रुपए
Upgrad1900 करोड़ रुपए
Coursera960 करोड़ रुपए

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‘बार्नेस एंड नोबेल एजुकेशन’ ने भी ऐसा ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस राइटिंग टूल बनाया है। ये दोनों ही टूल्स लिखने-पढ़ने के दौरान ग्रामर, पंक्चुएशन और स्पेलिंग की कमियों को दूर कर सकते हैं। वहीं, एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी छात्रों के सिग्नेचर पर नजर रखने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल कर रही है।

जानकारों का मानना है कि मौजूदा दौर के बदलते एजुकेशन सिस्टम में किताबों और ब्लैकबोर्ड से पढ़ाने के साथ-साथ ऑडियो और वीडियो का उपयोग ज्यादा किया जाना चाहिए। इस तरह से टेक्नोलॉजी को जोड़कर एजुटेक को फलने-फूलने का मौका मिलेगा।

अब जान लीजिए कि हमारे देश में डिजिटल एजुकेशन का स्ट्रक्चर कितना फल-फूल रहा है

  • देश में नेशनल डिजिटल एजुकेशन आर्किटेक्चर (NDEAR) बनाया गया है।
  • पीएम ई-विद्या प्रोग्राम: 2020 में ई-लर्निंग आसान बनाने के लिए स्कूलों में शुरू किया गया। 25 करोड़ स्कूली स्टूडेंट्स और हायर एजुकेशन हासिल करने वाले 3.7 करोड़ स्टूडेंट्स को इसका फायदा मिलेगा।
  • स्वयं : 2017 में 9वीं से पीजी तक के स्टूडेंट्स के लिए इंटीग्रेटेड ऑनलाइन कोर्सेस का यह फोरम शुरू किया गया था।
  • स्वयंप्रभा : 2017 में 34 डीटीएच चैनलों को 24 घंटे एजुकेशन प्रोग्राम प्रसारित करने के लिए शुरू किया गया।
  • ई-पाठशाला पोर्टल : 2015 में यह पोर्टल एजुकेशन के कंटेंट को डिजिटल रूप में लाने के लिए हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू में शुरू किया था।
  • निष्ठा : 2021 में नेशनल इनिशिएटिव फॉर स्कूल हेड्स एंड टीचर्स होलिस्टिक एडवांसमेंट (निष्ठा) शुरू हुआ। 56 हजार टीचर्स को ट्रेंड किया गया।
  • ‘दीक्षा’ (DIKSHA) : 2017 में ओपन सोर्स लर्निंग प्लेटफॉर्म डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर ‘दीक्षा’ (Digital Infrastructure for knowledge Sharing) की शुरुआत हुई।
  • UDISE+ : करीब 10 साल पहले भारत में दुनिया की इस सबसे बड़ी शिक्षा प्रबंधन सूचना प्रणाली की शुरुआत हुई। पहले इसे केवल UDISE कहा जाता था। इसे सही आंकड़ों और कम समय में अपडेट के लिए शुरू किया गया। वर्ष 2018 में इसे UDISE+ कर दिया गया। अब यह सिस्टम 15 लाख से ज्यादा स्कूलों, 96 लाख अध्यापकों और 26 करोड़ से ज्यादा स्टूडेंट को कवर कर रहा है।

एजुटेक के बारे में पेरेंट्स और बच्चे क्या सोचते हैं

एक सर्वे में पाया गया है कि भारत में 33 फीसदी माता-पिता इस बात को लेकर चिंतित हैं कि वर्चुअल लर्निंग (Virtual Learning) से बच्चों के सीखने और कॉम्पिटिटिव स्किल्स पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। ये बात Indian School of Business (ISB) में किए गए एक सर्वे में सामने आई है।

सर्वे में यह भी पता चला कि 67 फीसदी बच्चों को स्लो इंटरनेट की वजह से ऑनलाइन क्लास में मुश्किलों का सामना करना पड़ा। मोबाइल का स्पेस जल्दी भर जाता है जिससे जरूरी लेसन और फाइलें सेव नहीं हो पाती है।

अब आइए मिलते हैं भारत में एजुकेशन को मनोरंजक बनाने पर काम करने वाली तीन महिलाओं से

Eduauraa की संस्थापक और सीईओ आकांक्षा चतुर्वेदी

कोलंबिया विश्वविद्यालय की 23 वर्षीय पूर्व छात्रा आकांक्षा चतुर्वेदी ने दिसंबर 2018 में मुंबई में स्टार्टअप Eduauraa शुरू किया। इसका मकसद देश के हर कोने में शुरुआत से 12वीं कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों ( के-12) को बेहतरीन एजुकेशन सुलभ कराना है। अभी हम ऐसा 3 फीसदी बच्चों के लिए ही कर पाए हैं और "बचे हुए 97 प्रतिशत " पर भी अपना फोकस कर रहे हैं।

आकांक्षा चतुर्वेदी कहती हैं कि हम ICSC, CBSE, महाराष्ट्र, राजस्थान, UP, बिहार, MP, छत्तीसगढ़ और तमिलनाडु के शिक्षा बोर्ड के लिए इंटरैक्टिव वीडियो लेक्चर तैयार करते हैं।
आकांक्षा चतुर्वेदी कहती हैं कि हम ICSC, CBSE, महाराष्ट्र, राजस्थान, UP, बिहार, MP, छत्तीसगढ़ और तमिलनाडु के शिक्षा बोर्ड के लिए इंटरैक्टिव वीडियो लेक्चर तैयार करते हैं।

Eduauraa की संस्थापक और सीईओ आकांक्षा चतुर्वेदी कहती हैं, ‘एजुटेक सब्सक्रिप्शन भारत में अभी भी बहुत महंगा है। यह 50,000 रुपए से लेकर 1.5 लाख रुपये तक है। यह कक्षा 1 से 12 तक के 31 करोड़ छात्रों में से ज्यादातर के लिए मुश्किल है, जिन्हें असल में ऑनलाइन शिक्षा की जरूरत है। महंगी होने की वजह से ये उन्हें मिल नहीं पाती है।’

इसका फोकस साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथ (SETM) विषयों पर है और इसका मैटेरियल 6th क्लास से 10 तक काम आता है। इसमें इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र और नागरिक शास्त्र के पाठ भी शामिल हैं।

इसमें स्कूल सिलेबस के अलावा, ई-बुक्स, टेस्ट पेपर्स, माइंड मैप्स, MCQs, पिछले पेपर्स और प्रैक्टिस मैटेरियल जैसी कई चीजें मिलती हैं। इसके अलावा इसमें, Eduauraa प्रोफिशिएंसी क्वोटिएंट (सीखने की प्रोगेस नापने के लिए) और Eduauraa असिस्टेंट (स्टडी ट्रैक और शेड्यूल करने के लिए) की सुविधाएं भी हैं।

छोटे बच्चों को सिखाने से जुड़ा है अनघा राजध्यक्षा का प्लेडेटे

अनघा प्लेडेटे डिजिटल प्लेटफॉर्म प्लेडेटे (playydate) की मदद से एजुटेक को आगे बढ़ा रही हैं। यह एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जो बच्चों की एक्टिवटी और स्किल क्लासेस से जुड़ा है।

कोलंबिया यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट अनघा इंडियन फूड नेटवर्क और पिंग नेटवर्क की भी को-फाउंडर रही हैं।
कोलंबिया यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट अनघा इंडियन फूड नेटवर्क और पिंग नेटवर्क की भी को-फाउंडर रही हैं।

अनघा बताती हैं, ‘प्लेडेट शुरू करने की प्रेरणा मुझे घर से ही मिली। मेरी मां टीचर रही हैं और उनके काम के तरीके को मैंने नजदीक से देखा है। पेरेंट्स से संपर्क, छोटे बच्चों को क्या सिखाना चाहिए और भी बहुत कुछ सीखने को मिला है।’

बेहतरीन कंटेंट देने वाला आशी शर्मा का एडबुल एप

आशी शर्मा, एडबुल की फाउंडर हैं जिन्होंने कोरोना काल में ऑनलाइन एजुकेशन के मामले में नई बुलंदी को छुआ और इसी दिशा में लगातार काम कर रही हैं।

दिल्ली यूनिवर्सिटी से मल्टीमीडिया एंड मासकम्युनिकेशन में बैचलर आशी शर्मा के पिता जीडी शर्मा पहले से ही विजियोनेट (VISIONet) के एमडी हैं।
दिल्ली यूनिवर्सिटी से मल्टीमीडिया एंड मासकम्युनिकेशन में बैचलर आशी शर्मा के पिता जीडी शर्मा पहले से ही विजियोनेट (VISIONet) के एमडी हैं।

एडबुल का कहना है कि वो हर सीखने वाले को कंटेंट उपलब्ध कराते हैं। इसमें ट्यूटर और ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट के लिए भी बहुत कुछ है। एडबुल 10 राज्य सरकारों और करीब 400 सरकारी संस्थानों को कंटेंट उपलब्ध कराते हैं। इनमें राजस्थान और महाराष्ट्र के स्कूल भी शामिल हैं।

आशी नोबेल विजेता कैलाश सत्यार्थी के चिल्डर्न फाउंडेशन के साथ काम कर चुकी हैं। इसलिए वह बहुत अच्छे ढंग से जानती हैं कि क्वालिटी एजुकेशन का क्या मतलब है। एडबुल पर कई तरह का कंटेंट मौजूद है उनमें से कुछ फ्री है तो कुछ बहुम कम पैसों में खरीदा जा सकता है।

रणवीर से लेकर शाहरुख, कोहली, धोनी एजुटेक के ब्रांड एंबेसेडर

बिना किसी मार्केटिंग के और केवल चर्चा के जरिए शुरुआत करने वाले Eduauraa ने बॉलीवुड अभिनेता रणवीर सिंह को अपना ब्रांड एंबेसेडर बनाया।

हालांकि ऐसा पहली बार नहीं है कि एजुटेक स्टार्टअप्स ने अपने ऐप को बढ़ावा देने के लिए मशहूर हस्तियों को साथ जोड़ा है- BYJU’S के ब्रांड एंबेसेडर शाहरुख खान और नीरज चोपड़ा रहे हैं। ग्रेट लर्निंग ने विराट कोहली और वेदांतु ने आमिर खान और अनअकेडमी ने एम.एस. धोनी को अपना ब्रांड एंबेसेडर बनाया है।

आगे का रास्ता

  • सरकार एजुटेक इंडस्ट्री में निवेश करे।
  • लर्निंग को चौथी औद्योगिक क्रांति के साथ जोड़ा जाए।
  • बुनियादी ढांचे, बिजली और सस्ती इंटरनेट कनेक्टिविटी मिले।
  • स्वस्थ और बेहतर शिक्षण माहौल बनाना होगा।

चलते-चलते टीचर्स डे की शुरुआत कैसे हुई, एक किस्सा जान लीजिए

बात उन दिनों की है, जब भारत के पहले उप राष्ट्रपति डॉ. एस. राधाकृष्णन 'प्रोफेसर' हुआ करते थे। कॉलेज में स्टूडेंट उनके लिए कुछ न कुछ करने के लिए तैयार रहते थे। एक बार 5 सितंबर को उनके जन्मदिन की खबर स्टूडेंट्स में फैल गई। वे सभी डॉ. राधाकृष्णन के पास आए और उनसे बर्थडे मनाने के लिए कहने लगे। तब उन्होंने कहा कि मेरा बर्थडे मनाने की बजाय अगर आप इसको शिक्षक दिवस के तौर पर मनाएं तो सभी शिक्षकों का मान बढ़ेगा और मुझे भी गर्व होगा। इस तरह से 1962 में पहली बार शिक्षक दिवस मनाया गया। डॉ. राधाकृष्णन पूरी दुनिया को एक विद्यालय मानते थे। उनके मुताबिक, एजुकेशन से इंसानी दिमाग का सदुपयोग किया जा सकता है।

ग्राफिक: प्रेरणा झा

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