पाकिस्तान के कराची में आज 'औरत मार्च' होना है। इस मौके पर हम पाकिस्तान बनाने और उसे संवारने वाली ऐसी 5 महिलाओं की कहानी से रुबरू करा रहे हैं, जिनके नाम तारीख में दर्ज हैंं। इनमें से कई महिलाओं की हत्या कर दी गई, कुछ को देश छोड़ना पड़ा तो कुछ आज भी कट्टरपंथियों से लोहा ले रही हैं।
पाकिस्तानी कौम की मां थीं ‘मादर-ए-मिल्लत’ फातिमा जिन्ना, जनाजे पर चले पत्थर
पाकिस्तान के सूत्रधार मोहम्मद अली जिन्ना की बहन फातिमा जिन्ना को ‘मादर-ए-मिल्लत’ यानी ‘कौम की मां’ का दर्जा मिला हुआ है। कायदे-आजम जिन्ना अपना हरेक फैसला अपनी बहन से पूछकर ही लेते थे। कलकत्ता से पढ़ीं डेंटिस्ट फातिमा जिन्ना आखिर तक अपने भाई के साथ बनी रहीं।
बताया जाता है कि पाकिस्तान बनाने के पीछे की असल राजनीति फातिमा जिन्ना की ही थी। वो सार्वजनिक रूप से भी जिन्ना के साथ नजर आती थीं। बंटवारे के बाद पलायन करने वाली महिलाओं के लिए फातिमा जिन्ना ने काफी काम किया था। वो नए बने पाकिस्तान में महिलाओं को ऊंचे ओहदे पर देखना चाहती थीं।
लेकिन 1948 में जिन्ना की मृत्यु के बाद उनकी खुद की स्थिति खराब हो गई। रेडियो पर उन्हें बोलने की भी इजाजत नहीं दी गई। उन्हें पाकिस्तान की सियासत से अलग-थलग कर दिया गया।
1967 में जब फातिमा की मृत्यु हुई तो उनके कब्र को लेकर भी बवाल हुआ। उनके जनाजे पर पथराव की भी घटना हुई। कुछ लोगों ने यह भी आरोप लगाया कि सरकार ने फातिमा जिन्ना की हत्या कराई है।
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पहले पीएम की कुमाऊंनी बेगम ने बनाया था महिलाओं का संगठन, तानाशाह ने कतरे पर
लियाकत अली खान पाकिस्तान के पहले पीएम थे। उनकी बेगम थीं राणा लियाकत अली खान। मूल रूप से कुमाऊं के एक ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखने वाली राणा ने पहले ईसाई और बाद में इस्लाम धर्म अपनाया।
फातिमा जिन्ना की ही तरह पाकिस्तान बनाने के आंदोलन में राणा की अहम भूमिका रही। वो भी जिन्ना की कोर टीम में शामिल थीं।
लखनऊ यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र की पढ़ाई करने वाली राणा बंटवारे के बाद पाकिस्तान की फर्स्ट लेडी बनीं। लेकिन नए बने पाकिस्तान में उन्हें महिलाओं का भविष्य धुंधला नजर आया। जिसके बाद उन्होंने साल 1949 में ‘ऑल पाकिस्तान वुमंस एसोसिएशन’ की स्थापना की। ये संगठन पाकिस्तान में महिलाओं के हक की आवाज मुखरता से उठाता था।
लियाकत अली खान की मृत्यु के बाद राणा पाकिस्तान की एक्टिव पॉलिटिक्स में भी आईं। वो तत्कालीन पीएम जुल्फिकार अली भुट्टो की इकोनॉमिक एडवाइजर बनीं। बाद में वो सिंध प्रांत की पहली महिला गवर्नर भी रहीं।
लेकिन जुल्फिकार भुट्टो का तख्तापलट कर उन्हें फांसी दे दी गई। जनरल जिया उल हक पाकिस्तान के तानाशाह बने। उस दौरान राणा का कद पाकिस्तान में काफी तेजी से घटता गया। जनरल जिया ने जो नियम बनाए, उसने महिलाओं को घर तक सीमित कर दिया।
काली साड़ी पहन जनरल को जलाने वाली गायिका ने गाया- हम देखेंगे…
हरियाणा के रोहतक में जन्मीं इकबाल बानो बंटवारे के बाद परिवार संग पाकिस्तान चली गईं। दिल्ली में उन्होंने खूब दादरा और ठुमरी गाई थीं। वो दिल्ली के उन्मुक्त माहौल में पली-बढ़ी थीं। पाकिस्तान में भी उनकी गजलें काफी पसंद की गईं।
लेकिन जनरल जिया उल हक के राज में महिलाओं पर तमाम तरह के प्रतिबंध लगा दिए गए। मुल्क के इस्लामीकरण के नाम पर कड़े कायदे-कानून बनाए गए। साड़ी को ‘हिंदू पहनावा’ घोषित कर प्रतिबंध लगा दिया गया। खुल कर बोलने की भी आजादी नहीं थी।
इन्हीं दिनों इकबाल बानो ने लाहौर के एक खुले स्टेडियम में हजारों की भीड़ के सामने फैज़ की नज्म ‘हम देखेंगे, लाजिम है कि हम भी देखेंगे’ गाया। इस दौरान उन्होंने काली साड़ी पहनी। उनके गाने और लिबास को तानाशाह जनरल के विरोध से जोड़ा गया।
इकबाल बानो पाकिस्तान में तानाशाही के विरोध की पोस्टर गर्ल बन गईं। भारत में अक्सर विरोध के दौरान फैज अहमद फैज की ये नज्म इकबाल बानो के ही सुर में गाई और सुनी जाती है।
सीमा किरमानी ने डांस को बनाया एक्टिविज्म का हथियार
सीमा किरमानी मौजूदा वक्त में पाकिस्तानी महिलाओं की सबसे मुखर आवाजों में एक मानी जाती हैं। खास बात है कि उन्होंने पाकिस्तान में रहकर भारतीय शास्त्रीय नृत्य का प्रचार किया। उन्होंने डांस और साड़ी को महिलाओं की अस्मिता से जोड़ा।
सीमा किरमानी ने ‘तहरीक-ए-निस्वां’ गठन किया। ‘औरत मार्च’ में सीमा और ‘तहरीक-ए-निस्वां’ की बड़ी भूमिका है। सीमा कोक स्टूडियो के काफी पॉपुलर हुए गाने 'पसूरी' में भी नाचते हुए देखी जा सकती हैं।
मलाला नई पीढ़ी की पाकिस्तानी पावर, पर अपने मुल्क में नहीं मिली पनाह
पाकिस्तान में नई पीढ़ी में मजबूत महिलाओं को मलाला युसुफजई का नाम सबसे ऊपर आता है। पढ़े-लिखे पाकिस्तानी उन पर गर्व भी करते हैं। लेकिन मलाला का भी हश्र फतिमा जिन्ना और राणा लियाकत अली खान जैसा ही हुआ।
पाकिस्तान में रहने के दौरान मलाला की हत्या की कोशिश हुई। गंभीर रूप से जख़्मी होने के बाद मलाला परिवार समेत ब्रिटेन चली गईं। अब वो वहीं रहती हैं।
मौजूदा हालात की वजह से से निकल रहे हैं ‘औरत मार्च’, कट्टरपंथी करते हैं विरोध
पाकिस्तान में मलाला यूसुफजई को इसलिए गोली मार दी गई; क्योंकि उन्होंने स्कूल छोड़ने से इनकार कर दिया था। जबकि तालिबानी उसे पर्दे में कैद रखना चाहते थे।
इसी तरह देश की पूर्व पीएम बेनजीर भुट्टो की भी सरेराह हत्या कर दी गई। बताया जाता है कि बेनजीर के बढ़ते कद के उनके कुछ अपने ही परेशान थे। एक महिला का इतना आगे बढ़ना उन्हें सहन नहीं हो रहा था।
पाकिस्तान आए दिन लड़कियों की ऑनर किलिंग को लेकर भी चर्चा में रहता है। टिकटॉकर कंदील बलोच की हत्या उसके सगे भाई ने सिर्फ इसलिए कर दी, क्योंकि वो सोशल मीडिया पर अपने वीडियोज पोस्ट करती थी। इसी तरह पाकिस्तान से यूरोप जाकर बसे एक परिवार ने अपनी दो सगी बेटियों की हत्या कर दी, क्योंकि उन्होंने अपने चचेरे भाइयों की बीवी बनने से इनकार कर दिया था।
एक वक्त में राजनीति से लेकर साहित्य और कला और सिनेमा में ऐसी महिलाएं हुईं, जिन्होंने कट्टरपंथ को चुनौती दी और एक नई लकीर खींचने की कोशिश की।
लेकिन बाद में दिनों दिन महिलाओं की स्थिति खराब होती गई। ऐसे में पाकिस्तान की महिलाओं ने अपने हक और हुकूक को लेकर ‘औरत मार्च’ करने का ऐलान किया। 'औरत मार्च' को लेकर पाकिस्तान में काफी चर्चा है। हर साल महिला दिवस के आसपास पाकिस्तान के अलग-अलग शहर में ‘औरत मार्च’ निकाला जाता है। इन मार्च में बड़ी संख्या में महिलाएं और महिला अधिकारों की बात करने वाले पुरुष शामिल होते हैं।
दूसरी ओर, मुल्क के कट्टरपंथी इस मार्च का विरोध करते हैं। इस बार 8 मार्च बुधवार को था। हफ्ते के बीच में ज्यादा महिलाएं 'औरत मार्च' में शामिल नहीं हो पाएंगी, यह सोचकर आयोजकों ने इसे 12 मार्च यानी रविवार को निकालने का फैसला किया ताकि छुट्टी के दिन ज्यादा से ज्यादा महिलाएं इसमें हिस्सा ले सकें।
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