अंग्रेजों की तरह गोरे- चिट्टे लोगों को देखकर लगता है कि वो विदेशी हैं। लेकिन वो एल्बिनो यानि सूरजमुखी होते हैं। यह रेयर डिसऑर्डर है जिसके कारण शरीर,आंखों और बालों का रंग जन्म से ही सफेद होता है। सूरजमुखी की बीमारी सांवले लोगों में आसानी से देखने को मिलती है। इस बीमारी के शिकार लोग पूरी दुनिया में हैं।
गड़ती हैं आंखें, स्किन पर ही आ जाते हैं चकते
इस बीमारी का असर सिर्फ स्किन पर ही नहीं, आंखों पर भी होता है। सूरज की किरणें आंखों की पुतली (प्यूपिल) से गुज़रती हैं। आइरिस में मौजूद पिगमेंट सूरज की किरणों को अंदर जाने से रोकता है। जबकि सूरजमुखी की बीमारी से ग्रसित व्यक्ति की आइरिस पारदर्शी होती है जिससे अल्ट्रावायलेट किरणें आसानी से आंखों में पड़ती है। इससे आंखें चुभती हैं।
मेलेनिन पिगमेंट की होती है कमी
पीडियाट्रिक्स एंड नियोनेटोलॉजिस्ट डॉ. मेजर मनीष मन्नान कहते हैं ऐल्बिनिज्म में बच्चों में मेलेनिन पिगमेंट की कमी होती है। इसके कारण बालों और शरीर में रंग की कमी हो जाती है। जीन्स में हुई गड़बड़ी से बच्चे में मेलेनिन का प्रोडक्शन नहीं होता। यह रेयर बीमारी है जिसे एल्बिनो कहा जाता है। जिसके कारण त्वचा, बाल या आंखों में रंग का अभाव होता है। ऐल्बिनिज्म आंखों की परेशानी से भी जुड़ा होता है।
इस तरह एल्बीनो नाम पड़ा
स्टडी की मुताबिक ये बीमारी बीस हजार व्यक्तियों में से एक में पाई जाती है। जो जीन के कारण होती है। ये बीमारी मां-बाप से बच्चों में पीढ़ी-दर-पीढ़ी बच्चों में पहुंचती है। मान्यता है “एल्बीनिज़्म” शब्द की शुरुआत 17वीं शताब्दी में पुर्तगाली शोधकर्ताओं ने की। जब वो जहाज पश्चिम अफ्रीका के तटवर्ती इलाकों के पास से गुज़र रहे थे तो उन्हें कुछ लोग दिखाई दिए जिसमें कुछ गोरे और कुछ सांवले थे। उनको लगा ये लोग अलग-अलग जाति के होंगे। इसलिए उन्होंने सांवले लोगों का नाम पुर्तगाली में ‘निग्रो’ रखा और गोरे लोगों का ‘एल्बीनो’ रख दिया।
अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाने वाले चश्मे भी बाजार में
-सूरजमुखी व्यक्तियों की आंखों की पुतली हल्की स्लेटी, भूरी या नीली होती है
-जिनकी आंखों में भेंगापन होता है उनकी रेटिना की नसें दिमाग से नहीं जुड़ी होतीं
-आंखों का तालमेल सही नहीं बैठता, ऑब्जेक्ट की दूरी नहीं समझ आती
-इसका इलाज चश्मा लगाकर या सर्जरी से किया जा सकता है
-अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाने वाले चश्में पहनना चाहिए।
बीमारी के ये हैं लक्षण
ये हैं बीमारी के कारण
-एल्बिनो जन्म के साथ होने वाली जेनेटिक बीमारी होती है
-माता-पिता दोनों में ऐल्बिनिज्म है तो खतरा अधिक होता है
-बॉडी में मेलेनिन का उत्पादन करने वाले जीन में दोष से होता है
-इस जीन की वजह से ही त्वचा, आंखों और बालों को रंग मिलता है
-जीन की कमी हो तो बच्चा सूरजमुखी पैदा हो सकता है
एल्बिनो के प्रकार क्या है
ओकुलक्यूटेनियस ऐल्बिनिज्म
ओकुलक्यूटेनियस ऐल्बिनिज्म जिसे ओसीए भी कहा जाता है। ओसीए त्वचा, बालों और आंखों को इफ़ेक्ट करता है। 70 में से करीब 1 व्यक्ति के ओसीए जीन में बदलाव होता है।
ओकुलर ऐल्बिनिज्म
ओकुलर ऐल्बिनिज्म एक्स गुणसूत्र पर जीन परिवर्तन का परिणाम है। ओकुलर ऐल्बिनिज्म वाले लोगों की रेटिना में रंग कम होता है। यह त्वचा या बालों को प्रभावित नहीं करता है।
हर्मनस्की-पुडलक सिंड्रोम
हर्मनस्की-पुडलक सिंड्रोम एल्बिनो का एक दुर्लभ रूप है जो 10 जीनों में से एक में दोष के कारण होता है। यह ओसीए के समान लक्षण पैदा करता है। सिंड्रोम फेफड़े, आंत और ब्लीडिंग डिसऑर्डर के साथ होता है।
कोडियाक-हिगाशी सिंड्रोम
कोडियाक-हिगाशी सिंड्रोम ऐल्बिनिज्म का एक और दुर्लभ रूप है जो एल एल वाईएसटी जीन में एक दोष का परिणाम है। यह ओसीए के समान लक्षण पैदा करता है, लेकिन यह त्वचा के सभी क्षेत्रों को प्रभावित नहीं कर सकता है। एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व स्तर पर इस तरह के 500 से कम मामले सामने आए हैं।
ग्रिसली सिंड्रोम
ग्रिसली सिंड्रोम एक अत्यंत दुर्लभ जेनेटिक सिंड्रोम है। 1978 और 2018 के बीच दुनिया भर में इस सिंड्रोम के सिर्फ 150 मामले आये । ग्रिस्केली सिंड्रोम जन्म के 10 साल के अंदर मृत्यु का कारण बन सकता है।
लोगों का सामना भी करना पड़ता है
सूरजमुखी लोगों को अपनी बीमारी के साथ जीना आ जाता है। लेकिन इस बीमारी से ग्रसित कुछ लोग को बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। दूसरे लोग उन्हें अपने से अलग समझते हैं। बच्चों के लिए ये बड़ी चुनौती है।
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