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सोनिया-प्रियंका ने काले कपड़े क्यों पहने:कभी यूरोप-अमेरिका में काले कपड़े पहन शुरू किया गया था विरोध, भारत में साइमन कमीशन को दिखाए गए काले-झंडे

नई दिल्ली10 महीने पहलेलेखक: संजीव कुमार
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बेरोजगारी और महंगाई को लेकर सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी और राहुल गांधी के नेतृत्व में शुक्रवार को देशव्यापी विरोध का आह्वान किया है। इस दौरान संसद में कांग्रेसियों ने पूरी तरह काले कपड़े पहने और सरकार के खिलाफ नारे लगाए। विरोध प्रदर्शन के लिए काले कपड़ों का इस्तेमाल आज से ही नहीं बल्कि सदियों से किया जाता रहा है। दरअसल, पूरी तरह से काले कपड़े पहनने की शुरुआत अमेरिकी महाद्वीप से मानी जाती है।

प्यूरिटन्स ने विरोध के लिए पहली बार काले कपड़ों को अपनाया

सबसे पहले प्यूरिटन्स यानी ईसाई धर्म के शुद्धतावादियों ने काले लिबास को कैथोलिकों के विरोध में अपनाना शुरु किया था। कैथोलिक उजले, नीले, लाल और आकर्षक रंगों वाले कपड़े पहनने की सलाह लोगों को देते थे। उस समय के कुलीन ऐसे रंगों का ही ज्यादा इस्तेमाल करते थे जबकि, काले रंग के कपड़ों को नकारात्मक मान लिया जाता था। प्यूरिटन्स ने काले कपड़ों को पोशाक के तौर पर अपनाकर अपने विरोध को एक आवाज दी।

प्यूरिटन व्यक्ति के तौर पर चर्चित मैंटन डीडी की काले रंग की पोशाक।
प्यूरिटन व्यक्ति के तौर पर चर्चित मैंटन डीडी की काले रंग की पोशाक।

कभी काले कपड़े पहनने वाले कहलाते थे न्यूयॉर्कर

18वीं सदी के दौरान जब समूह में लोग पूरी तरह काले कपड़े पहने हुए होते थे तो दिमाग में किसी मुद्दे को लेकर विरोध की छवि सबसे पहले उभर कर आती थी। पश्चिमी देशों में ऐसे लोगों को न्यूयॉर्कर समझ लिया जाता था। क्योंकि अमेरिकी शहर न्यूयॉर्क के लोगों ने काले रंग के कपड़े पहने को लोकप्रिय कर दिया था।

महिलाओं की काली पोशाक बन गई थी एक जवाब

20वीं शताब्दी का शुरुआती दौर, फैशन से जुड़े बेहतरीन कपड़ों से भरा हुआ था, लेकिन उस महंगे और महिलाओं पर रोक-टोक वाले माहौल में, कोको चैनल ने छोटी काली पोशाक को पेश किया था। चैनल ने पोशाक को उन लोगों के लिए एक जवाब के तौर पर डिजाइन किया था, जो मानते थे कि महिलाओं को चमकदार, हल्का और सजावटी बने रहना चाहिए।

महिला की काले रंग की पोशाक जिसने नए दौर की महिला के लिए प्रेरणा का काम किया।
महिला की काले रंग की पोशाक जिसने नए दौर की महिला के लिए प्रेरणा का काम किया।

बता दें कि इस छोटी काली पोशाक ने महिलाओं को निडरता से आगे बढ़ने, अपने शरीर को और अधिक दिखाने की स्वतंत्रता दी। सबसे बड़ी बात इस पोशाक ने महिला की अहमियत को कई तरह से दर्शाया। उस दौर में यह किसी क्रांति से कम नहीं था।

फ्रांस में काली टोपी पहनकर किया गया था विरोध

20वीं शताब्दी के दौरान, कुछ राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों में काले कपड़े पहनकर विरोध किया गया था। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान, फ्रांस में असंतुष्ट सेनानियों ने काले रंग की टोपियां पहन कर विरोध जताया था। उन्होंने क्यूबा में क्रांति के प्रतीक रहे चे ग्वेरा इस तरह के विरोध की प्रेरणा ली थी।

दक्षिण अमेरिकी देश क्यूबा में क्रांति को आगे बढ़ाने वाले चे ग्वेरा।
दक्षिण अमेरिकी देश क्यूबा में क्रांति को आगे बढ़ाने वाले चे ग्वेरा।

अमेरिका में ब्लैक पैंथर्स ने पूरी काली ड्रेस ही कर ली थी तैयार

1960 के दशक में, ब्लैक पैंथर्स ने अमेरिका में नस्लीय अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ी। पैंथर्स के दो नेताओं, ह्युई पी. न्यूटन और बॉबी सीले ने नाजियों के प्रति फ्रांसीसी प्रतिरोध के बारे में एक वृत्तचित्र देखा और निर्णय लिया कि पैंथर्स को श्रद्धांजलि में काली वर्दी पहननी चाहिए। इस वर्दी में एक काले चमड़े की जैकेट, काली पैंट, काले जूते और काले दस्ताने शामिल थे।

भारत में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान हुआ था काले झंडों का इस्तेमाल

स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान काले झंडे का प्रदर्शन सबसे ज्यादा तब हुआ था जब अंग्रेजी हुकूमत ने साइमन कमीशन को भारत भेजा था। 3 फरवरी 1928 को कमीशन भारत पहुंचा। साइमन कोलकाता लाहौर लखनऊ, विजयवाड़ा और पुणे सहित जहां-जहां भी पहुंचा उसे जबर्दस्त विरोध का सामना करना पड़ा और लोगों ने उसे काले झंडे दिखाए। पूरे देश में साइमन गो बैक (साइमन वापस जाओ) के नारे गूंजने लगे थे।

फरवरी 1928 के दौरान काले झंडे लिए 'साइमन गो बैक' के नारे लगाते हुए प्रदर्शनकारी
फरवरी 1928 के दौरान काले झंडे लिए 'साइमन गो बैक' के नारे लगाते हुए प्रदर्शनकारी

स्वतंत्रता के बाद तो अक्सर ऐसे मौके आते हैं जब सामाजिक और राजनीतिक विरोध प्रदर्शन में काले झंडों का इस्तेमाल देखने को मिलता है। इतना ही नहीं काले रंग के झंडे, पोशाक, टॉपी के अलावा काली पट्टी बांधकर भी विरोध किए गए हैं।

दरअसल, विरोध के लिए काले रंग की पोशाकों का चलन कोई हाल-फिलहाल का नहीं है। इसको लोकप्रिय बनाने में क्रांतिकारियों का एक समृद्ध इतिहास है।

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