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बारिश में क्यों लगाते हैं महावर:शादी, सावन, त्योहारों में ये सोलह श्रृंगार का हिस्सा, देवी की मूर्ति भी इसके बिना अधूरी

एक वर्ष पहलेलेखक: दीक्षा प्रियादर्शी
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हिंदू मान्यताओं में महावर यानी आलता को सोलह श्रृंगार में से एक कहा गया है। नवरात्रों में जब छोटी बच्चियों को देवी के रूप में पूजा जाता है, तो उन्हें महावर जरूर लगाते हैं। लाल रंग के महावर को बहुत शुभ माना गया है। कई जगहों पर दुल्हन जब पहली बार ससुराल आती है तो गृह प्रवेश की रस्म के अनुसार वो लाल महावर से घर के अंदर बढ़ते कदमों की छाप छोड़ती है। इसे धन लाभ और लक्ष्मी के वास से जोड़कर देखा जाता है।

कई राज्यों में महिलाएं इसे तीज-त्योहारों में जरूर लगाती हैं। इसके अलावा पूजा या शुभ कार्य में इस लगाने का प्रचलन है। नेचुरोपैथ की जानकार डॉक्टर रुक्मिणी नायर बताती हैं कि इन मान्यताओं के अलावा अगर इसे नेचुरल तरीके से तैयार कर के लगाया जाए तो एड़ियों को ठंडक मिलती है, जिससे स्ट्रेस दूर करता है।

किसानी करने वाली महिलाएं क्यों लगाती हैं महावर

बारिश के मौसम में ग्रामीण क्षेत्रों में किसानी करने वाली महिलाएं खेत में जाने से पहले महावर जरूर लगाती हैं। पूर्वांचल और यूपी के कुछ ग्रामीण इलाको में माना जाता है कि खरीफ सीजन में धान की निराई, गोड़ाई और रोपाई के दौरान महिलाएं घंटों खेतों में काम करती हैं, जिससे उनकी एड़ियां और तलवे फट जाते हैं। इसलिए महिलाएं महावर लगाती हैं ताकि वो पैरों को त्वचा को खराब होने से बचा सकें।

आज भी ग्रामीण इलाकों में खेत में जाने से पहले महिलाएं महावर लगाती हैं, ताकि उनके पैर की त्वचा खराब ना हो।
आज भी ग्रामीण इलाकों में खेत में जाने से पहले महिलाएं महावर लगाती हैं, ताकि उनके पैर की त्वचा खराब ना हो।

स्ट्रेस को कम करता है महावर

भारत में महावर लगाने का चलन बंगाल, बिहार, झारखंड ओडिशा में सबसे अधिक है। आलता मूल रूप से एक बंगाली शब्द है। हिन्दी में इसे महावर कहते हैं। पुराने समय मे आलता कच्ची लाख और पान को पीस कर उसे पानी में पका कर तैयार किया जाता था। जिसे लगाने से एड़ियों को ठंडक मिलती है और ये तनाव को दूर करता था।

महावर को शुभ,धन लाभ और सुहाग की निशानी से जोड़कर देखा जाता है।
महावर को शुभ,धन लाभ और सुहाग की निशानी से जोड़कर देखा जाता है।

महावर को लेकर क्या मान्यताएं हैं

महावर को लेकर एक कहावत प्रसिद्ध है, जिसमें कहा जाता है कि पुराने समय में जब महावर लगे पैर से सुंदर महिलाएं अशोक वृक्ष के चारों तरफ घूमती थी तो उस पर कलियां खिल जाती थी, जिसे वसंत आने का संकेत माना जाता था। सावन और तीज की पूजा में सुहागन महिलाएं इसे जरूर लगाती हैं। आज भी कई राज्यों में, खास करके बिहार बंगाल और ओडिशा में महावर के दुल्हन का श्रृंगार अधूरा माना जाता है। बंगाल और ओडिशा में तो दुल्हन के हाथों में महावर लगाया जाता है।

बंगाल और ओडिशा में सिर्फ दुल्हन के पैरों मे ही नहीं बल्कि हाथों में महावर लगाया जाता है।
बंगाल और ओडिशा में सिर्फ दुल्हन के पैरों मे ही नहीं बल्कि हाथों में महावर लगाया जाता है।

देवी की मूर्ति भी इसके बिना अधूरी

देवी के लिए गाए गए कई भक्ति गीतों में भी लाल महावर का जिक्र है। देवी की शृंगार पूजा में भी इसे जरूर रखा जाता है। इसके बिना देवी की मूर्ति भी अधूरी है। हमारे यहां बेटियों को लक्ष्मी का रूप माना जाता है। इसलिए कई लोग बेटी के पैदा होने पर उसके नन्हें पैरों को महावर में डुबो कर उसके छाप लेते हैं और उसे संभाल कर रखते हैं।

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