साड़ी एक ऐसा भारतीय परिधान है, जिसमें हर महिला बला की खूबसूरत नजर आती है। शादी में अलग दिखना हो या फिर पार्टी की शान बनना हो, ऑफिस की कॉन्फ्रेंस हो या फिर राजनीतिक पार्टी की रैली- हर अवसर के लिए साड़ी परफेक्ट परिधान रही है। अमेरिकी दौरे पर पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के दौरान प्रवासी भारतीय महिलाएं सतरंगी साड़ियों में नजर आईं। वहीं भारत आने वाली विदेशी महिलाएं भी साड़ी पहनना पसंद करती हैं। जबकि देश की राजधानी दिल्ली में एक महिला को रेस्तरां में सिर्फ इसलिए एंट्री नहीं मिली क्योंकि उसने साड़ी पहनी हुई थी। ऐसे में बहस छिड़ गई है कि जब विदेश में भारतीय महिलाएं फख्र से साड़ियां पहनती हैं, तो फिर देश में साड़ी पर शर्मिंदगी क्यों?
दिल्ली: महिला को साड़ी पहनने पर रेस्तरां में नहीं मिली एंट्री
1. अनीता चौधरी नाम की महिला को दक्षिणी दिल्ली के अंसल प्लाजा में अक्विला नाम के एक रेस्तरां में साड़ी पहनने के चलते प्रवेश नहीं दिया गया। सोशल मीडिया पर वायरल 16 सेकंड के वीडियो में अनीता चौधरी रेस्तरां के कर्मचारियों से पूछती हैं कि वो डॉक्यूमेंट दिखाइए, जहां लिखा है कि साड़ी पहनकर रेस्तरां में नहीं आ सकते हैं? इसके जवाब में रेस्तरां की महिला कर्मचारी ने कहा, 'हम केवल 'स्मार्ट कैजुअल' पहनकर आने की अनुमति देते हैं और साड़ी 'स्मार्ट कैजुअल' के अंतर्गत नहीं आती।' इस वीडियो को शेयर करते हुए अनीता चौधरी ने पूछा कि आखिर स्मार्ट कैजुअल की परिभाषा क्या है? इसके बाद से इस घटना पर बवाल मचा हुआ है।
स्कूल की प्रिंसिपल को साड़ी पहनने के चलते नहीं मिली एंट्री
2. पिछले साल 10 मार्च को दिल्ली के वसंत कुंज स्थित काईनिल एंड ईवी नाम के रेस्तरां में भी कुछ इसी तरह की घटना हुई थी। गुरुग्राम के पाथवे सीनियर स्कूल की प्रिंसिपल संगीता नाग और उनके पति को रेस्तरां ने सिर्फ इसलिए ही एंट्री नहीं दी थी क्योंकि संगीता नाग ने साड़ी पहन रखी थी। संगीता नाग ने जब इस घटना का वीडियो ट्विटर पर पोस्ट किया, उसके बाद रेस्तरां प्रबंधन ने उनसे माफी मांगी थी।
साड़ी है परफेक्ट आउटफिट
फैशन डिजाइनर श्रुति संचेती कहती हैं, ''भारतीय महिलाओं के लिए साड़ी सबसे फॉर्मल, एलिगेंट, ग्रेसफुल और स्मार्ट आउटफिट है। हमारे देश में महिलाओं के लिए साड़ी हर अकेशन के लिए परफेक्ट आउटफिट होता है। विदेशी फैशन डिजाइन भारतीय परिधान साड़ी को कॉपी कर नए-नए कलेक्शन निकाल रहे हैं और इसके उलट हमारे ही देश में साड़ी पहनने के कारण रेस्तरां में न आने देना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। मैं इस घटना का विरोध करती हूं।''
साड़ी: हर महिला की अपनी चॉइस है
इस घटना पर फैशन डिजाइनर राखी गुप्ता कहती हैं कि हम लोकतांत्रिक देश में रहते हैं, जहां सबको अपनी पसंद के कपड़े पहनने की आजादी है। भारतीय महिलाओं को साड़ी पहनना पसंद है, ऐसे में वेस्टर्न या फिर कोई भी आउटफिट थोपा नहीं जाना चाहिए।
साड़ी को स्मार्ट कैजुअल से कैसे हटा सकते हैं?
स्वतंत्र टिप्पणीकार डॉ. पश्यन्ती शुक्ला मोहित कहती हैं कि ट्रेडिशनल साड़ियों की 50 से अधिक वैरायटी है और उन्हें तरह-तरह की स्टाइल से कैरी किया जाता है। देश में महिलाओं की पहली पसंद साड़ी रही है। अगर हम कॉरपोरेट इंडस्ट्री की बात करें तो वहां पर भी साड़ी महिलाओं की पहली पसंद होती है। ऐसे आप देश की राजधानी दिल्ली में साड़ी को 'स्मार्ट कैजुअल' ड्रेस कोड से कैसे हटा सकते हैं?
क्या है साड़ी का इतिहास
साड़ी शब्द असल में संस्कृत शब्द 'सट्टिका' से आया है, जिसका अर्थ कपड़े की पट्टी है। साड़ी के इतिहास को लेकर इतिहासकारों और फैशन डिजाइनरों के अलग-अलग मत हैं। वहीं ऋगवेद में यज्ञ के समय महिलाओं का साड़ी पहनना और महाभारत में द्रोपदी के चीर हरण के वर्णन के दौरान साड़ी का जिक्र है। मुगल और ब्रिटिश काल की तस्वीरों और लेखों में भी साड़ी का इतिहास देखने को मिलता है। हालांकि, उससे पहले गुप्त अथवा मौर्य काल में महिलाओं के चित्र में वो कम कपड़ों में नजर आती थीं। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि धोती ही सबसे पुराना लपेटना वाला कपड़ा होता था, उस समय पुरुष और महिलाएं सभी इसे पहनते थे। धीरे-धीरे ये महिलाओं की साड़ी और पुरुषों की लुंगी बन गया।
ये हैं सदाबहार साड़ियां
भारत में अलग-अलग शैली की साड़ियों में कांजीवरम, बनारसी, पटोला और हकोबा मुख्य हैं। इसके अलावा मध्य प्रदेश की चंदेरी, महेश्वरी, बिहार की मधुबनी छपाई व तसर, असम की मूंगा मूंगा रेशम, उड़ीसा की बोमकई, राजस्थान की बंधेज और लहरिया, गुजरात की गठोडा, छत्तीसगढ़ की कोसा रेशम, दिल्ली की रेशमी साड़ियां, महाराष्ट्र की पैथानी, तमिलनाडु की कांजीवरम, उत्तर प्रदेश की तांची, जामदानी, जामवर और पश्चिम बंगाल की बालूछरी व कांथा टंगैल प्रसिद्ध गाड़ियां हैं।
बता दें कि भारत साड़ी का सबसे बड़ा बाजार है। टेक्सटाइल मिनिस्ट्री की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रेडिशनल कपड़ों की ब्रिकी काफी ज्यादा होती है। ये बच्चों के कपड़़ों की बिक्री के बाद दूसरे नंबर पर है। इसके बाद ही वेस्टर्न कपड़ों की खरीदी होती है। यानी देखा जाए तो इकनॉमी और फैशन, दोनों के ही लिहाज से साड़ी टॉप पर है। ऐसे में देश के कैपिटल में साड़ी पर बवाल समझ से परे है।
तिलोहरी ब्रान्ड की ओनर निधि अरोड़ा ने बताया कि हमारे यहां बिकने वाले कुल आउटफिट्स में से 30 प्रतिशत सेल साड़ियों की होती है। वहीं ट्रेनिशन और वेस्टर्न की बात की जाए, तो 30 साल से कम उम्र वाले वेस्टर्न आउटफिट अधिक खरीदते हैं, जबकि 30 साल से अधिक उम्र वाले ग्राहक साड़ी, सूट व अन्य ट्रेडिशनल आउटफिट्स लेना प्रिफर करते हैं।
Copyright © 2022-23 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.