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एब्नॉर्मल बेबी, ज्यादा बेटियां अनचाही प्रेग्नेंसी...महिलाएं ही निशाने पर:अबॉर्शन पर अमेरिका से बेहतर है भारत का कानून, गर्भपात महिला का निजी फैसला

एक वर्ष पहलेलेखक: मरजिया जाफर
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हैश टैग “अबॉर्शन बैन” का ट्विटर पर सैलाब आ गया है। अमेरिका की सड़कों पर लोग विरोध पर उतरे। मामले पर जमकर राजनीति भी हो रही है। क्योंकि सवाल वही घिसा पिटा लेकिन दमदार है। ये अमेरिका की 16.75 करोड़ महिलाओं के मौलिक अधिकार का हनन है।

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने अबॉर्शन बैन को कानूनी तौर पर मंजूरी दे दी।
अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने अबॉर्शन बैन को कानूनी तौर पर मंजूरी दे दी।

13 राज्यों में कानून पारित, फैसले के विरोध में US राष्ट्रपति

दरअसल अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने अबॉर्शन बैन को कानूनी तौर पर मंजूरी दे दी। इस फैसले के बाद अबॉर्शन का हक कानूनी रहेगा या नहीं इसे लेकर राज्य अपने अलग नियम बना सकते हैं। अमेरिका के 13 राज्य पहले ही ऐसे कानून पारित कर चुके हैं। 50 साल पुराने 'रो बनाम वेड' मामले में फैसले के खिलाफ लोग सड़कों पर उतर आए हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कोर्ट के फैसले का विरोध करते हुए कहा कि महिलाओं के हक की सुरक्षा के लिए हरसंभव कोशिश करेंगे। राजनेताओं को उन फैसलों में दखल देने की इजाजत नहीं दी जाएगी। यह महिला और उसके डॉक्टर के बीच के मामला है। उन्होंने जनता से शांतिपूर्ण तरीके से विरोध-प्रदर्शन करने की अपील की।

अमेरिका में अबॉर्शन बैन लॉ को मंजूरी मिलने के बाद हमने भारत में अलग-अलग फील्ड में काम कर रहे एक्सपर्ट्स की राय ली और उनसे अलग-अलग स्थिति के बारे में जानने की कोशिश की।

भारत में अमेरिका से ज्यादा मानवीय है व्यवस्था

गायनेकोलॉजिस्ट डॉ मीरा पाठक बताती हैं भारत में गर्भपात करना गैरकानूनी है लेकिन विशेष परिस्थिति के लिए कोर्ट की इजाजत से ही अबॉर्शन कराया जा सकता है। कभी-कभी महिलाओं की सेहत से जुड़ी परेशानियों को देखते हुए उन्हें अबॉर्शन की सलाह दी जाती हैं। जैसे गर्भवती महिला को दिल या किडनी की बीमारी हो। कुपोषित महिलाओं को भी अबॉर्शन की राय दी जा सकती है। क्योंकि प्रेग्नेंसी में उनकी जान को खतरा हो जाता है। इसके अलावा गर्भ में पल रहे शिशु की स्थिति के अनुसार अबॉर्शन का फैसला लिया जाता है। ऐसे में अबॉर्शन पर रोक लगा देना किसी गंभीर स्थिति के लिए महिलाओं की सेहत के साथ खिलवाड़ है।

अबॉर्शन हो, एब्नॉर्मल बेबी या बेटियां.. भेंट चढ़ती हैं महिलाएं

लंबे समय से हेल्थ रिपोर्टिंग कर रहीं वरिष्ठ पत्रकार ज्योति अर्चना कहती हैं ऐसा कई बार देखने में आता है कि महिलाओं की सेहत से जुड़े फैसले लेने वालों में पुरुषों की राय को अहमियत दी जाती है। ऐसे में महिला हितों की बात कई बार दब जाती है। अमेरिका का अबॉर्शन का फैसला भी इनमें से एक है। ये फैसला महिलाओं की जान जोखिम में डाल सकता है। कई मामलों में देखने को मिला है कि खानदान के वारिस की चाहत में महिलाओं ने अपनी जान पर खेलकर बच्चा पैदा किया और उनकी जान चली गई। ऐसे मामले भी हैं जिसमें बच्चा एब्नॉर्मल पैदा हो गया है तो मां को ही उसका दोषी ठहराया जाता है। हमारे देश तो कई बार गर्भ में लड़के न होने पर महिलाओं का अबॉर्शन कराते हैं।

अबॉर्शन की टाइम लिमिट पर बने कानून

साइकोलॉजिस्ट योगिता कादियान कहती हैं कई बार महिलाओं को किसी तरह की शारीरिक समस्या रहती है, जिसमें बच्चा पैदा करना ठीक नहीं है। जैसे सिस्ट हो या कोई गंभीर बीमारी हो या फिर एड्स जैसी बीमारी। ऐसे में महिलाओं को अपने शरीर के लिए खुद फैसला लेने का हक होना चाहिए। इस कंडीशन में उन्हें प्रेग्नेंसी और प्रेग्नेंसी के बाद का स्ट्रेस हो जाता है। एक मां होने के नाते उन्हें इस बात की चिंता भी रहेगी कि उनके कारण बच्चे में कोई बीमारी न आ जाए। रेप केस या लिव इन रिलेशन के कारण अगर प्रेग्नेंसी हो गई है तो गर्भपात के फैसले का हक महिला को ही मिलना चाहिए। योगिता कहती हैं कि कानून बनाना है तो अबॉर्शन की टाइम लिमिट पर बने न कि उसे रोकने के लिए।

महिलाएं फैसला खुद करें, इसके लिए जागरूकता जरूरी

सोशल एक्टिविस्ट काकोली रॉय कहती हैं महिलाओं को गर्भपात के जोखिम से बचाने के लिए "बूंद पे बात” और “चुप्पी तोड़ बैठक” अभियान चलाकर झुग्गीवासियों में रहने वाली महिलाओं को जागरूक किया जा रहा है। हैं। ताकि उन्हें गर्भावस्था और असुरक्षित गर्भपात से निपटने के लिए तैयार किया जा सके। 18 से 30 साल की महिलाओं में अबॉर्शन ज्यादा होता है। इसका कारण लिव-इन रिलेशनशिप, गर्भ निरोधकों का इस्तेमाल न करना, बलात्कार और अनियोजित परिवार है। ऐसे में महिलाओं को जागरूक होने की जरूरत है कि वो अपना अधिकार समझें और खुद फैसले लें।

हालात देखकर हो फैसला, न कि सख्त कानून थोपा जाए

होली स्प्रिट चर्च के फादर जेसूराज अमेरिकी गर्भपात कानून का विरोध करते हुए कहते हैं, “किसी की जान से खेलने का हक किसी को नहीं है। जान लेना और देना सिर्फ ईश्वर के हाथ में है।” फादर जेसूराज कहते हैं कि अगर गंभीर स्थिति में एक ही जान को ही बचाया जा सकता है तो ये देखना चाहिए कि किसकी जान ज्यादा जरूरी है। यानी कम पाप वाला फैसला लेना चाहिए। इसे "प्रिंसिपल ऑफ इनेक्स्सिओरेब" कहते हैं। इसका मतलब है कि किसी की जान लेना गलत है लेकिन किसी की जान बचाने का भी सवाल है यानी कम पाप करना। ऐसे फैसले हालात और सेहत को देखकर ही करना चाहिए न कि उस पर सख्त कानून थोपा जाए।

भारत में बढ़ाई गई है गर्भपात कराने की अवधि

अमेरिका के मुकाबले भारत में 25 मार्च 2021 में गर्भपात कानून 1971 में बदलाव कर रेप और व्यभिचार जैसे केस में अबॉर्शन कराने की सीमा को बीस हफ्ते से बढ़ाकर 24 हफ्ते कर दिया गया। हालांकि इसके लिए दो डॉक्टरों की मंजूरी की जरूरी है। भारत में सामान्य तौर पर एक डॉक्टर की मंज़ूरी से 20 हफ्ते का गर्भपात कराया जा सकता है।

क्या था रो बनाम वेड मामला

  • 1971 में गर्भपात कराने में नाकाम रही एक महिला की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई। इसे 'रो बनाम वेड' मामला कहा गया।
  • 1973 में कोर्ट ने मामले पर फैसला देते हुए गर्भपात को कानूनी करार दिया और कहा कि संविधान गर्भवती महिला को गर्भपात से जुड़ा फ़ैसला लेने का हक़ देता है।