नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2021 के अनुसार भारत में फर्टिलटी रेट घट गई है, 10-15 फीसदी कपल प्रजनन अक्षमता के कारण माता-पिता बनने के सुख से वंचित रह जाते हैं। मगर, आज सोरगेसी और आईवीएफ के जरिए मां अपने बच्चे को जन्म दे सकती है।
हमारे देश में बात जब बच्चे को अडॉप्ट करने की आती है तो कागजी कार्यवाही करने में लंबा वक्त लग जाता है, जिसकी वजह से कई माता-पिता को पेरेंट्स बनने के सुख के लिए संघर्ष करना पड़ता है। जबकि नॉर्मल प्रोसेस से मां बनने के लिए किसी तरह के कागज दिखाने की जरूरत नहीं पड़ती। एडवोकेट किरण सिंह बता रही हैं कि हमारे देश में अडोप्शन, सरोगेसी या आईवीएफ के जरिए मां बनने के लिए क्या और किस डाक्यूमेंटेशन को पूरा करना पड़ता है।
अडोप्शन के लिए डाक्यूमेंटेशन
बच्चे को अगर गोद लेना चाहती हैं तो सबसे पहले कारा (cara) वेबसाइट पर रजिस्टर करना पड़ता है। इस वेबसाइट पर खुद से जुड़ी कई जानकारियां मसलन नाम, पता, फैमिली डिटेल्स, उम्र, कॉम्पलेक्शन, जेंडर, और किस धर्म के बच्चे को अडॉप्ट करना चाहती हैं, क्या वो किसी बीमारी से जूझ रहा है। इसके अलावा डाक्यूमेंट्स जैसे फैमिली फोटोग्राफ, पैन कार्ड, आधार कार्ड, बर्थ सर्टिफिकेट, सैलरी स्लिप, इनकम प्रूफ, मेडिकल सर्टिफिकेट (ताकि ये पता चल सके कि कही अडॉप्ट करने वाले पेरेंट्स को कोई जानलेवा बीमारी तो नहीं है) मैरिज सर्टिफिकेट, एफिडेविट, दो रिफ्रेंस द्वारा साइन किए गए एक्सेप्टेंस लेटर और पहले से कोई बच्चा, जो कि पांच साल से बड़ा है तो उसके द्वारा साइन किया गया एप्रूवल लेटर जैसे डाक्यूमेंट्स अपलोड करने पड़ते हैं।
वेबसाइट द्वारा एप्लिकेशन को स्वीकृति मिलने के बाद स्टेट अडोप्शन एजेंसी (saa) कई प्रोसेस के जरिए एप्लिकेंट को स्टडी करती है और उनके द्वारा दिए गए डाक्यूमेंट्स को भी चेक करती है। इसके बाद जैसा बच्चा एप्लिकेंट को चाहिए, अगर वैसा कोई बच्चा अडॉप्शन के लिए उपलब्ध होता है तो एप्लिकेंट को बुलाकर बच्चे को दिखाया जाता है। अगर एप्लिकेंट को कोई बच्चा पसंद आता है तो उन्हें एनओसी कमेटी द्वारा एनओसी जाती है और कारा के रेगुलेशन के अंतर्गत स्टेट अडोप्शन एजेंसी की तरफ से कोर्ट में पिटीशन फाइल किया जात है। इसके बाद कोर्ट की सुनवाई चलती है और फिर जाकर कोर्ट अपना फैसला सुनाता है। एप्लिकेंट पैरेंट्स को जैसा बच्चा चाहिए उसके अनुसार वेटिंग और पूरी प्रक्रिया में लगभग 2 से 3 साल का समय लग सकता है। हालांकि कई बार कम समय में ये प्रक्रिया पूरा हो जाती है।
क्या आप अडॉप्शन के लिए एलिजिबल हैं
गवर्नमेंट ऑफ इंडिया के अनुसार एप्लिकेंट किसी भी अनाथ बच्चे, जिसके ऊपर कोई लीगल बंदिश नहीं है, उसके अडॉप्शन के लिए अप्लाई कर सकते हैं। अगर मुस्लिम या क्रिश्चियन धर्म से आते हैं तो जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत उन्हें बच्चा अडोप्ट करने की स्वीकृति दी जाती है। जबकि, हिन्दू अडॉप्शन एंड मेंटेनेन्स एक्ट (1956) के किसी भी बच्चे को गोद ले सकते हैं। इसके अलावा एप्लिकेंट पेरेंट्स को शारीरिक, मानसिक और फाइनेंसियल तौर पर मजबूत होना जरूरी। उसके अलावा अगर पेरेंट सिंगल हैं तो उनकी उम्र 55 साल से अधिक नहीं होनी चाहिए। वहीं कानून के अनुसार एक अकेली महिला किसी भी जेंडर के बच्चे को गोद ले सकती है। जबकि, पुरुष को एक लड़की को गोद लेने की स्वीकृति नहीं है।
सरोगेसी के लिए कानून
सरोगेसी में कपल या सिंगल पेरेंट को किसी सरोगेट की जरूरत पड़ती है। पिछले कुछ सालों में भारत में सरोगेसी को गलत तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा था। इसलिए सरकार द्वारा सरोगेसी के लिए लाए गए नए कानून के तहत अब कमर्शियल सरोगेसी को बैन कर दिया गया है।
वो लड़की जिसकी शादी नहीं हई है वो सरोगेट मदर नहीं बन सकती। वो कपल, जो इस प्रोसेस के जरिए बच्चा पैदा करना चाहते हैं, उनके लिए जरूरी है कि उनकी शादी को कम से कम पांच साल पूरे हो चुके हो। पुरुष की उम्र 26 से 55 साल और महिला की उम्र 26 से 50 साल के बीच होनी चाहिए। उन्होंने पहले से कोई बच्चा अडॉप्ट नहीं किया हो। इसके अलावा उनके पास इनफर्टिलिटी रिपोर्ट हो, जो ये दावा कर सके कि कपल नॉर्मल प्रोसेस से बच्चा पैदा नहीं कर सकता है।
क्लोज रिलेटिव ही बन सकती हैं सरोगेट
इसके अलावा इस कानून में कपल के क्लोज रिलेटिव को प्राथमिकता दी जाती है। अगर कोई कपल किसी क्लोज रिलेटिव के जरिए इस प्रोसेस के लिए जाते हैं तो उन्हें कागजी कार्यवाही में ज्यादा परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ेंगे।
आईवीएफ के लिए चाहिए ये कागजात
आईवीएफ ट्रीटमेंट एक प्रकार का असिस्टिव रिप्रोडक्विव टेक्नोलोजी है। इस प्रोसेस में केवल कपल ही शामिल रहते हैं। इसमें महिला की ओवरी से एग निकाल की उसे लैब में स्पर्म के साथ फर्टिलाइज किया जाता है। इस फर्टिलाइज एग को एम्ब्रियो कहा जाता है। इस एग के मैच्योर होने के बाद, इसे महिला के गर्भाशय में इम्प्लांट कर दिया जाता है।
इसके लिए सबसे पहले क्लिनिक द्वारा कपल का पर्सनल डिटेल और जरूरी डॉक्यूमेंट्स लिए जाते हैं और उसके बाद इनफर्टिलिटी रेट और बाकी जरूरी टेस्ट किए जाते हैं। इसके बाद प्रोसेस शुरू होने पर कपल से एक कंसेंट फॉर्म साइन करवाया जाता है। उसके बाद एम्ब्रायो इम्प्लांटेशन के समय भी कपल से एक कंसेंट फॉर्म साइन करवाया जाता है, जिसमें ये लिखा होता है कि मिसकैरेज या प्रोसेस फेल होने के लिए क्लिनिक की कोई जिम्मेदारी नहीं है। भारत में इस पूरे प्रोसेस में 2 से 3 लाख का खर्चा आता है।
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