अमेरिका की पूर्व विदेश मंत्री मेडलीन आलब्राइट का 84 साल की उम्र में निधन हो गया। उनके परिवार ने बताया कि मेडलीन आलब्राइट कैंसर से जूझ रही थीं। वो अमेरिका की 64वीं विदेश मंत्री और इस पद पर पहुंचने वाली पहली महिला थीं।
विदेश मंत्री रहते हुए उनकी धाक पूरी दुनिया में जमती थी। पुतिन और कोरियाई तानाशाह की भी बोलती बंद कराने वाली मेडलीन आलब्राइट अमेरिका के सबसे बड़े नेताओं में शामिल थीं। बावजूद इसके वो कभी राष्ट्रपति नहीं बन सकीं। इसके पीछे उनका मूल रूप से अमेरिकी न होना था। 2012 में ओबामा प्रशासन ने उन्हें देश के सबसे बड़े नागरिक सम्मान 'मेडल ऑफ फ्रीडम' से नवाजा था।
दुनिया के बड़े-बड़े नेताओं को झुकाने वाली मेडलीन का रिश्ता भारत के साथ तनाव भरा रहा। उन्होंने पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद प्रधानमंत्री अटल जी को झुकाने की पूरी कोशिश की। लेकिन अटल जी 'अटल' ही रहे। दुनिया की सबसे ताकतवर विदेश मंत्री रहीं मेडलीन आलब्राइट की कहानी काफी दिलचस्प है..
चेकोस्लोवाकिया में हुआ था जन्म, हिटलर के डर से छोड़ना पड़ा देश
मेडलीन आलब्राइट का जन्म 1937 में चेकोस्लोवाकिया की राजधानी ‘प्राग’ में हुआ था। चेकोस्लोवाकिया पर नाजियों के कब्जे के बाद उनके परिवार को देश छोड़ना पड़ा। क्योंकि मेडलीन का परिवार मूल रूप से यहूदी था और हिटलर समर्थक नाजियों ने यहूदियों का कत्लेआम करना शुरू कर दिया था । ऐसे में मेडलीन का परिवार कई देशों में भटकता हुआ अंततः 1948 में अमेरिका पहुंचा और हमेशा के लिए यहीं बस गया।
बनी पहली महिला विदेश मंत्री, बड़े-बड़े नेताओं की कर देती थी बोलती बंद
अमेरिका में बसने के बाद मेडलीन जल्द ही यहां के कल्चर में ढलने लगीं। 1960 के दशक में ही उन्होंने राजनीति में अपने पांव बढ़ा दिए। 1975 में उनकी पीएचडी पूरी हुई। राजनीति में उन्हें पहला मुकाम तब हासिल हुआ जब 1975 में राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने उनके पूर्व प्रोफेसर को देश का सुरक्षा सलाहकार बनाया। ऐसे में मेडलीन अमेरिका के सुरक्षा सलाहकार के सहायक के रूप में काम करने लगीं। उनकी पहुंच व्हाइट हाउस तक हो गई। फिर उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
विदेश मंत्री बनने से पहले उन्होंने डिप्लोमैट के रूप में काम किया। 1997 से 2001 तक बिल क्लिंटन प्रशासन में उन्होंने विदेश मंत्री का जिम्मा संभाला। इस दौरान उनके दमदार रुख से दुनिया वाकिफ हुई।
विदेश मंत्री रहते हुए उन्होंने उत्तर कोरियाई तानाशाह को ऐटम बम टेस्ट नहीं करने के लिए मना लिया था। पद पर रहते हुए उन्होंने क्यूबा समेत सभी पूर्व एवं तत्कालीन कम्युनिस्ट देशों के प्रति सख्त रुख अपनाया।
चेचन्या में रूस की गतिविधियों से नाराज होकर उन्होंने विरोध के लिए एक अलग रास्ता अपनाया। पुतिन से मुलाकात के वक्त उन्होंने 'बुरा मत देखो-बुरा मत बोलो-बुरा मत सुनो' का संदेश देने वाला ब्रोच पहन रखा था।
लोगों ने उड़ाया था मजाक, मेडलीन के काम ने की बोलती बंद
मेडलीन अमेरिका की विदेश मंत्री बनीं तब खाड़ी देशों में युद्ध का माहौल था। ऐसे में कई लोगों ने यह कह कर उनका मजाक उड़ाया कि अरब के लोग किसी महिला से बात करना पसंद नहीं करेंगे और उनकी कोई अहमियत नहीं रह जाएगी। लेकिन अपने काम के दम पर मेडलीन ने लोगों को जल्द ही गलत साबित कर दिया। उनके कार्यकाल में अमेरिका की धाक पूरी दुनिया में बढ़ी थी। उन्होंने इजराइल-फिलस्तीन विवाद को भी सुलझाने की पूरी कोशिश की। प्रसिद्ध फिलस्तीनी नेता यासिर अराफात उनके बड़े प्रशंसक थे।
दुनिया को झुकाया पर अटल जी को झुकाने की कोशिश में नाकाम रहीं
मेडलीन के विदेश मंत्री रहते हुए ही 1998 में भारत ने अपना दूसरा परमाणु परीक्षण किया था। इस परीक्षण के बाद अमेरिका और पश्चिमी देश खुल कर भारत के विरोध में खड़े हो गए। विदेश मंत्री मेडलीन ने तत्कालीन भारतीय पीएम अटल बिहारी वाजपेयी को झुकाने की पूरी कोशिश की। वो चाहती थीं कि अटल जी परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (CTBT) पर साइन कर दें। लेकिन अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद अटल जी ने झुकने से इनकार कर दिया। इस फैसले के बाद मेडलीन भारत से काफी खफ़ा हो गईं। उन्होंने भारत के परमाणु परीक्षण को ‘भविष्य के खिलाफ अपराध’ बताया था। बाद में भी वो कश्मीर के मुद्दे पर अक्सर भारत को घेरने की कोशिश करती रहींं।
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