सदी क्या बदली कि इंडिया में ब्यूटी के पैमाने भी बदल गए। वर्ष 2000 को भारत की फैशन इंडस्ट्री में बेंचमार्क माना गया। इसी साल भारत की प्रियंका चोपड़ा मिस वर्ल्ड और लारा दत्ता मिस यूनिवर्स बनीं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन्हें सबसे ब्यूटीफुल करार देने में किसका हाथ था? इसका सीधा जवाब है-फैशन इंडस्ट्री का।
आगे बढ़ने से पहले थोड़ा फ्लैशबैक में चलते हैं, जब 1991 में भारत में ग्लोबलाइजेशन का दौर शुरू हुआ।
भारत का बाजार दुनिया भर की कंपनियों के लिए खोल दिया गया। इंडियन मार्केट में सबसे पहले विदेशी कारों और खानपान की चीजों की बिक्री बढ़ी। साल 1994 में सुष्मिता सेन के मिस यूनिवर्स और ऐश्वर्या राय के मिस वर्ल्ड बनने के बाद इंडियन मार्केट में ब्यूटी प्रोडक्ट्स की बाढ़ आ गई। ये भारत की फैशन इंडस्ट्री के बूम का दौर था।
1994 में विदेशी कंपनियों को मिलाकर भारत में ब्यूटी इंडस्ट्री की टोटल वैल्यू लगभग 1 हजार करोड़ रुपए थी। 28 साल बाद आज यह 200 गुना बढ़कर 2 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा चुकी है।
यहां यह जानना भी जरूरी है कि साल 1994 में ही पर्सनल केयर प्रोडक्ट्स पर एक्साइज ड्यूटी 120% से घटाकर 70% कर दी गई। जिसके बाद इंडिया में कॉस्मेटिक्स और ब्यूटी इंडस्ट्री तेजी से बढ़ती गई।
मार्केट और ब्यूटी ख़िताब के बीच रिलेशन को इस ग्राफिक से समझिए...
ब्यूटी इंडस्ट्री में आने वाली इस तेजी का गणित भी मजेदार है। आइए अब इसे समझने की कोशिश करते हैं।
हाल ही में मिस बारबाडोस रहीं लीलानी मैककॉने ने एक चौंकाने वाली बात कही। क्या आपने भी उनकी बात सुनी है?
उनका आरोप है कि प्रियंका चोपड़ा को विश्व सुंदरी घोषित करना पहले से फाइनल था। यह सब ब्यूटी और फैशन इंडस्ट्री के स्पॉन्सर्स ने पहले से तय कर रखा था। क्योंकि वे भारत में अपने प्रोडक्ट्स की बिक्री बढ़ाना चाहते थे। इसके लिए उन्हें एक प्योर नए इंडियन चेहरे के साथ नए मार्केट की तलाश थी। मैककॉने ने प्रियंका चोपड़ा के साथ वर्ष 2000 में ब्यूटी कॉम्पिटिशन में हिस्सा लिया था।
हम यहां मिस बारबाडोस के आरोप की तहकीकात नहीं कर रहे और न ही प्रियंका को कमतर साबित करने की कोई मंशा है। ख़ूबसूरती के पारखी माने जाने वाले फैशन इंडस्ट्री के चंद खिलाड़ियों ने प्रियंका को दुनिया की सबसे सुंदर महिला घोषित किया। जिसके बाद ब्यूटी मार्केट का खेल शुरू हुआ।
लोग प्रियंका की पसंद का ऑयल, सोप और क्रीम अपनाने लगे। प्रियंका जो पहनतीं वही ख़ूबसूरती का पैमाना बन जाता। कइयों ने तो प्रियंका और लारा जैसी दिखने के लिए अपने चेहरे की प्लास्टिक सर्जरी तक करवा ली।
आज हम ‘सुंदरता’ के अलग-अलग पैमानों और ब्यूटी मार्केट के भ्रमजाल की पड़ताल करेंगे। हम यह भी बताएंगे कि ख़ूबसूरती और बदसूरती जैसी कोई चीज नहीं होती। साथ ही जानेंगे कि कैसे फैशन इंडस्ट्री के खिलाड़ी अपने प्रोडक्ट्स का मार्केट बढ़ाने के लिए करोड़ों महिलाओं की कमजोरियों को भुनाते हैं और उनमें आत्मविश्वास जगाने-बढ़ाने के दावे भी करते हैं।
खिताब मिला 'सुंदरियों' को मालामाल हुईं कंपनियां
विज्ञापनों के जरिए आम औरत के अंदर यह विश्वास जगाया जाता है कि वह किसी फिल्मस्टार, खूबसूरत मॉडल से कम नहीं है, बशर्ते कि वे उन ब्यूटी प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करे, जो स्क्रीन पर दिखने वाले सभी खूबसूरत चेहरे करते हैं। हालांकि, क्या ये खूबसूरत चेहरे उन सभी प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करते भी हैं, जिनकी वो स्क्रीन पर पैरवी करते देखे जाते हैं, ये एक अलग सवाल है। लेकिन तब से अब तक भारत में ब्यूटी एंड फैशन इंडस्ट्री जरूर 2 लाख करोड़ रुपए की हो चुकी है।
28 साल में ब्यूटी इंडस्ट्री 1 हजार करोड़ रुपए से बढ़कर 2 लाख करोड़ रुपए की कैसे हो गई। इस इंड्रस्टी के फलने-फूलने में ब्यूटी कॉन्टेस्ट्स ने क्या रोल प्ले किया, यह जानना आपके लिए रोचक होगा।
भारत के बजट से ज्यादा है दुनिया भर का कॉस्मेटिक्स बिजनेस
140 करोड़ आबादी वाले भारत का सालाना बजट 2022-23 के लिए 39 लाख करोड़ रुपए है। जबकि दुनिया भर के लोग हर साल 534 बिलियन डॉलर, यानी लगभग 43.5 लाख करोड़ रुपए के कॉस्मेटिक्स और पर्सनल केयर प्रोडक्ट्स खरीद लेते हैं। वर्ल्ड फूड प्रोग्राम के मुताबिक यह रकम इतनी ज्यादा है कि इससे पूरी दुनिया की भुखमरी खत्म हो सकती है।
क्या है सुंदरता का पैमाना
‘सुंदरता देखने वाले की आंखों में होती है’ आपने यह कहावत कभी न कभी सुनी ही होगी। लेकिन सच्चाई यह भी है कि ऐसी बातें समाज के पैमाने पर ‘कम सुंदर’ दिखने वाले लोगों को दिलासा दिलाने भर के लिए कही जाती हैं।
क्या आपने कभी सोचा है कि किसी भी महिला को कौन-सी चीजें सुंदर बनाती हैं? गोरा बदन, काली जुल्फें और ब्यूटीफुल फिगर? जवाब है- इन में से कोई भी नहीं।
गोरे बदन की तुलना मशहूर साहित्यकार सआदत हसन ‘मंटो’ पानी में सड़कर सफेद पड़ चुकी लाश से करते थे। दुनिया जीतने निकला भूरे बाल वाला हिटलर काले बाल वालों को खराब नस्ल का मानता था। मिडिल ईस्ट में महिलाओं की सुंदरता उनके मोटापे से मापी जाती है। रोम में छोटी छाती वाली महिलाओं को कुलीन समझा जाता था। इसलिए सुंदरता की कोई रूल बुक नहीं होती है।
ब्यूटी, फैशन और कल्चरल इंडस्ट्री का शिगूफा है ‘सुंदरता’
‘सुंदरता क्या है’ यही सवाल हमने एंथ्रोपॉलोजिस्ट गीतिका शर्मा से पूछा। गीतिका बताती हैं- ‘मौजूदा वक्त में सुंदरता के जितने भी पैमाने हैं, सब ब्यूटी, फैशन और कल्चरल इंडस्ट्री के शिगूफे हैं। आदिम समाज में स्वस्थ महिला ही सुंदर समझी जाती थी। लेकिन जैसे-जैसे समाज विकसित हुआ; लोगों पर, खास तौर से महिलाओं पर सुंदरता के तमाम पैमाने लाद दिए गए। अलग-अलग संस्कृति में अलग-अलग पैमाने बने। कहीं उन्हें पतली होने के लिए कहा गया तो कहीं मोटी। कहीं बाल बड़े करने के लिए कहा गया तो कहीं छोटे, कहीं नीली आंखें खूबसूरत कही गईं तो कहीं भूरी या काली।’
ऐश्वर्या, प्रियंका और कटरीना को रिजेक्ट कर देते आदिमानव
गीतिका आगे बताती हैं- ‘अगर किसी आदिमानव को अपना पार्टनर चुनना होता हो तो वो कटरीना, प्रियंका या ऐश्वर्या को कतई नहीं चुनते। क्योंकि ये सब उनके पैमाने पर सुंदर यानी स्वस्थ नहीं हैं। कटरीना, ऐश्वर्या और प्रियंका में इतनी ताकत नहीं कि वो शिकार कर सकें और पेड़ पर चढ़ सकें।
इसलिए आदिमानवों की नजरों में ये तीनों ब्यूटीज रिजेक्ट हो जातीं। सुंदरता का कोई एक पैमाना सही नहीं हो सकता है। लेकिन आदिमानवों का ‘स्वस्थ ही सुंदर है’ वाला पैमाना सच के सबसे करीब नजर आता है। क्योंकि इस पैमाने में बनावटीपन बिलकुल भी नहीं है।’ आज के सभी पैमाने एक जगह ठीक लगेंगे तो दूसरी जगह या लोगों के बीच अटपटे। ऐसा इसलिए क्योंकि इन पैमानों में बनावटीपन ज्यादा है।
‘वास्कोडिगामा अफ्रीकी होता तो आज काला होने की क्रीम बिकती’
मौजूदा वक्त में खूबसूरती का सबसे बड़ा पैमाना है- फेयर कॉम्प्लेक्शन यानी गोरा रंग। लेकिन ऐसा क्यों? भारत में पारंपरिक रूप से श्याम वर्ण को तरजीह दी जाती रही है। इसके पीछे वजह है कि हमारे देश में करीब आठ महीने गर्मी रहती है और सूरज सीधे सिर पर रहता है तो गर्मी की वजह से भारतीय सांवले रंग के होते हैं।
मेडिकल साइंस के मुताबिक भी काले रंगे के लोग गोरे लोगों की तुलना में अधिक स्वस्थ होते हैं। तो फिर आज भारत समेत दुनिया भर के लोगों में गोरेपन को लेकर इतनी दीवानगी क्यों है? ऐसा इसलिए क्योंकि भारत के अलावा जहां भी दुनिया में गोरों ने लोगों को गुलाम बनाया, वहां इस सोच को मजबूती मिली कि फेयर कॉम्प्लेक्शन के लोग सुपीरियर होते हैं। और इसी सोच की वजह से सांवले लोगों के अंदर एक कुंठा पनपने लगी। फेयरनेस क्रीम की मार्केट ने उसी कुंठा को भुनाना शुरू कर दिया।
मेकअप इंडस्ट्री के बढ़ने के साथ कुछ पॉजिटिव बदलाव भी हुए; मेकओवर आर्टिस्ट प्रीति सिंह कहती हैं-
भारत के बाद अफ्रीका पर पड़ी ब्यूटी और फैशन इंडस्ट्री की नजर
भारत में अपने पांव जमाने के बाद फैशन इंडस्ट्री ने अफ्रीकी देशों में अपने पैर पसारने शुरू किए। 1995, 1998 और 1999 में तीन ब्लैक महिलाओं ने मिस यूनिवर्स का खिताब जीता। जिसके बाद अफ्रीकी देशों में ब्यूटी और फैशन इंडस्ट्री तेजी से बढ़ती चली गई।
लेकिन पिछले कुछ सालों में अफ्रीकी देशों में फेयरनेस क्रीम के खिलाफ एक अभियान चलाया गया। जिसके बाद सूडान, रवांडा और नाइजीरिया जैसे देशों में फेयरनेस क्रीम की ब्रिक्री और विज्ञापनों पर रोक लगानी पड़ी।
इसी ग्राफिक में भी एक पैटर्न छिपा है। आप देखेंगे कि ब्लैक महिलाओं को 5 में से तीन ख़िताब 1995 से 1999 के बीच मिले; बता दें कि यह अफ्रीकी बाजारों के खुलने का दौर था
पहले सांवले रंग को बढ़िया मानते थे भारतीय
ऐतिहासिक रूप से देखें तो भारत में गहरे रंग को बढ़िया माना जाता था। कृष्ण और श्याम रंग की एक अलग पहचान थी। रामचरितमानस में तुलसी दास ने भगवान राम की तारीफ करते हुए लिखा- ‘केकी कंठ दुति स्यामल अंगा’। यानी भगवान मोर के कंठ की तरह सांवले हैं। महाभारत में सांवले रंग की द्रौपदी को अनिंद्य सुंदरी बताया गया है।
हमें गोरे होने की और यूरोपियंस को टैनिंग क्रीम बेचती हैं कंपनियां
एशियाई और अफ्रीकी देशों में भले ही सप्ताह भर में कॉम्प्लेक्शन का एक शेड फेयर करने करने का दावा करती क्रीम तेजी से बिकती हों। लेकिन यूरोप में बिलकुल अलग हालात हैं। वहां एक से बढ़कर एक ऐसे प्रोडक्ट्स की भरमार है जो स्किन टैन करने का काम करते हैं, यानी रंग को गहरा करने का दावा करते हैं।
क्या आपके मन में कभी ये सवाल आया कि हजारों किलोमीटर की यात्रा कर यूरोपियंस गोवा, मुंबई और साउथ इंडिया के बीच पर क्यों लेटे दिखते हैं। जबकि समुद्र तो उनके यहां भी है। दरअसल, गोरे लोग ऐसी टैनिंग के लिए तरसते हैं और भारत की गर्म आबोहवा उनके स्किन को जल्दी टैन करती है।
देश की ब्यूटी इंडस्ट्री को इस ग्राफिक की मदद से समझिए
अगल-अलग कल्चर में ब्यूटी के अलग-अलग पैमाने
करीना कपूर ने बॉलीवुड में जीरो फिगर को पॉपुलर किया। जिसके बाद आम-ओ-खास में ये पॉपुलर होता चला गया। कई लड़कियां करीना जैसी दिखने के चक्कर में खाना-पीना छोड़ ‘माल-न्यूट्रिशन’ का शिकार हो गईं। दूसरी ओर, भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में अम्रपाली दूबे और मोनालिसा जैसी तंदुरुस्त हीरोइनों का जलवा आज भी बरकरार है और साउथ फिल्म इंडस्ट्री में भी ऐसा ही है।
बॉलीवुड में भले ही करीना की जीरो फिगर को खूबसूरत माना जाता है; पर करीना का यह जीरो फिगर भारत की ही दूसरी फिल्म इंडस्ट्री में प्लस पॉइंट की तरह नहीं देखा जाएगा।
यहां लड़कियों को जबरदस्ती खिलाकर मोटी करते हैं
मिडिल ईस्ट और अफ्रीका के कुछ देशों में हेल्दी महिलाएं सुंदर मानी जाती हैं। मॉरिटानिया, नाइजर, युगांडा, सूडान, ट्यूनीशिया जैसे देशों में ‘लेब्लोह’ नाम की एक परंपरा का चलन है। इस प्रॉसेस में कम उम्र से ही लड़कियों को जबरदस्ती खिलाया जाता है। ताकि वो ज्यादा से ज्यादा हेल्दी दिख सकें।
जिन्हें हम प्लस साइज की महिलाएं मानते हैं उन्हें इन देशों में हेल्दी और अमीर माना जाता है। उनकी शादी भी आसानी से हो जाती है।
इन सभी जानकारियों से आप ये समझ गए होंगे कि जीरो फिगर की महिलाएं ‘लेब्लोह’ वाले देशों में रिजेक्ट कर दी जाएंगी।
अब हम दुनिया में सुंदरता के कुछ अजीबोगरीब पैमानों के बारे में बताएंगे-
ब्रिटेन में कमर को 14 इंच करने लिए महिलाएं पहनती थीं कॉर्सेट
मध्यकाल में ब्रिटेन में महिलाओं की खूबसूरती को पतली कमर से आंका जाता था। कहा जाता है कि वहां कि महारानी क्वीन एलिजाबेथ-1 की कमर मात्र 14 इंच की थी। ऐसी कमर के लिए महिलाएं कॉर्सेट पहनती थीं। यह कमर में कस कर बांधी जाने वाली एक चौड़ी बेल्ट होती थी।
कुलीन महिलाओं के लिए कॉर्सेट पहनना अनिवार्य माना जाता था। लेकिन इसका उनकी सेहत पर बहुत बुरा असर होता है। लगातर पेट और कमर को कसकर बांधे रखने से उन्हें अल्सर जैसी बीमारियां हो जाती थीं।
चीन में छोटे पैर वाली महिलाओं को मानते हैं सुंदर, पहनाते हैं लोहे के जूते
चीन के कुछ हिस्सों में महिलाओं की सुंदरता उनके पैरों से मापी जाती है। महिला का पैर जितना छोटा होगा; उसे उतना सुंदर समझा जाएगा। इसी कारण वहां की कई लड़कियों को बचपन में लोहे के जूते पहनाए जाते हैं। चीन में छोटे पांव को ‘लोटस फुट’ यानी कमल के फूल जैसा पैर समझा जाता। मान्यता यह भी है कि छोटे पांव वाली लड़कियां शादी के बाद अपने पति को ज्यादा यौन सुख देती हैं।
लगातार लोहे के जूते पहनने से पैर छोटे रह जाते हैं। लेकिन ऐसी महिलाओं को चलने-फिरने में भी दिक्कतें होती हैं। कई बार पैरों में इन्फेक्शन और गैंगरीन जैसी बीमारियां तक हो जाती हैं। 1911 में चीन सरकार ने इस प्रथा पर रोक लगा दी। लेकिन कई पारम्परिक चीनी आज भी बच्चियों को लोहे के जूते पहनाते हैं।
थाईलैंड में लंबी गर्दन के लिए महिलाएं गले में पहनती हैं 5 किलो का छल्ला
उत्तरी थाईलैंड और म्यांमार की बॉर्डर पर करेनेनी नाम की ट्राइब रहती है। इस जनजाति की महिलाओं की गर्दन दुनिया भर में सबसे लंबी होती है। लेकिन ऐसा नेचुरली नहीं होता। यहां कम उम्र से ही लड़कियों के गर्दन में मेटल का छल्ला पहना दिया जाता है। कई बार इसका वजन पांच किलो तक होता है।
बॉडी में जितने कट्स होंगे, उतनी सुंदर मानी जाती हैं महिलाएं
कई अफ्रीकी जनजातियों में शरीर को काट कर निशान बनाने की परम्परा है। यहां महिलाओं के शरीर पर पड़ने वाले निशानों को ब्यूटी मार्क्स माना जाता है।
आखिर में ‘खूबसूरत कौन’ का जवाब…
अब तक आप समझ चुके होंगे कि खूबसूरती को लेकर कोई ब्यूटी मीटर नहीं। जिसे हम आज ब्यूटीफुल कहते या समझते हैं आने वाले समय में उसे ब्यूटी बाजार के मदारी उसे कोई भी नए नाम से बुला सकते हैं और नए नजरिए से देख सकते हैं। आज के वक्त में लड़कियों का कॉन्फिडेंस ही उन्हें ब्यूटीफुल बनाता है। जो कॉन्फिडेंट है, वही ब्यूटीफुल है।
सुष्मिता, ऐश्वर्या, लारा और प्रियंका सभी अपने आत्मविश्वास के बल पर मिस ब्यूटीफुल कहलाईं। इसलिए कॉन्फिडेंस को एन्जॉय कीजिए और ब्यूटीफुल फील कीजिए।
ग्राफिक्स: प्रेरणा झा
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