एक मां के लिए उसके बच्चे ही उसका पूरा संसार होते हैं। बच्चों के सपने मां के लिए किसी भी कीमती चीज से ज्यादा अहमियत रखते हैं। इसकी जीता जागती मिसाल मुंबई की रहने वाली साक्षी रांबियां की मां ने पेश की है। अपनी बेटी को US में पढ़ाने के लिए उन्होंने अपना 'मंगलसूत्र' गिरवी रख दिया। अपने सुहाग की निशानी को देते हुए वो एक बार भी नहीं हिचकिचाई। जबकि महाराष्ट्र में एक विवाहित महिला के लिए उसका मंगलसूत्र बहुत ही कीमती चीज होती है। यह उनके लिए गहने से ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उनके सुहागन होने का प्रतीक है।
बेटी में रखा मां के बलिदान का मान, UN-गूगल में किया काम
साक्षी ने न्यूयॉर्क इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी विद फ्लाइंग कलर्स से कंप्यूटर सांइंस में डिग्री हासिल की है। वह गूगल-US में एसोसिएट प्रोडक्ट मैनेजर की इंटर्नशिप हासिल कर चुकी हैं। इस इंटर्नशिप के लिए गूगल दुनियाभर से मात्र 45 स्टूडेंट्स को ही चुनता है। जिसमें साक्षी भी शामिल हैं।
इन स्टूडेंट्स से नई-नई टेक्नोलॉजी पर इंजीनियरिंग, डिजाइन, मार्केटिंग आदि फील्ड में काम कराया जाता है और प्रोडक्ट लॉन्च में शामिल किया जाता है। साक्षी फिलहाल यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया से मैनेजमेंट साइंस एंड इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री की पढ़ाई कर रही हैं।
एक कमरे के मकान में रही, लड़ाई से बचने के लिए छोड़ा घर
मुंबई में एक छोटा सा कमरा, उसी के अंदर किचन। वही ड्राइंग रूम और बेडरूम भी है। इसी छोटे से कमरे में साक्षी अपने माता-पिता और दादा-दादी के साथ रहती थीं। मगर उसके सपने हमेशा से बड़े थे। जिन्हें पूरा करने के लिए वे घर से बाहर निकलीं थी।
साक्षी को किताबें पढ़ने का बहुत शौक है, स्कूल जाती तो ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की किताबें पढ़तीं। विदेश जाकर पढ़ाई करने के सपने देखतीं। हमेशा सोचतीं कि अगर ऐसी किसी यूनिवर्सिटी में जाउंगी तो बहुत सारी किताबें पढ़ने का मौका मिलेगा।
12वीं में पढ़ते हुए बनाया पहला मोबाइल ऐप, 90 भाषाओं में करता है काम
12वीं कक्षा में पढ़ते हुए ही साक्षी ने अपना पहला मोबाइल ऐप तैयार कर लिया था। इसमें 90 भाषाओं में बोलने पर वही मैसेज लिखकर आ जाता है। यह ऐप साक्षी ने अपने दादा-दादी को ध्यान में रखते हुए बनाया था।
वह मोबाइल पर मैसेज करना नहीं जानते थे, इसलिए उन्हें एक ऐसा डिवाइस चाहिए था जो उनकी बात को लिखकर बता सके। साक्षी ने उनकी समस्या का हल ढूंढ निकाला। इसी से उन्हें जिंदगी की रियल प्रॉब्लम को हल करने के लिए नई-नई टेक्नोलॉजी पर काम करने का आइडिया भी मिला।
स्कूल से लेकर कॉलेज की पढ़ाई तक अपनी फीस के लिए इकट्ठे किए पैसे
विदेश में पढ़ने के लिए काफी पैसे खर्च होते हैं। जिसे इकट्ठा करने के लिए एक तरफ उनके माता-पिता मेहनत कर रहे थे। वहीं दूसरी तरफ साक्षी भी स्कूल में फ्रीलांसर का काम कर कुछ पैसे जमा करती रहती। जब अमेरिका जाकर पढ़ने की बात आई तो साक्षी की बचत से ट्यूशन फीस का थोड़ा सा हिस्सा तो भर सका, मगर बाकी की फीस भरने के लिए उनकी मां ने एक लोन लिया। हालांकि यूएस में साक्षी के एक अंकल पहले से रहते थे, इसलिए उन्हें शुरुआत में रहने का खर्च नहीं उठाना पड़ा।
अमेरिका के कॉलेजों में पहले सेमेस्टर में बच्चों को नौकरी करने की इजाजत नहीं दी जाती। इसलिए पहले साल साक्षी ने कॉलेज में वॉलंटियर के काम किए जिसका फायदा उन्हें आने वाले वर्षों में मिला। साक्षी ने पहले ही साल में माइक्रोसॉफ्ट और टेस्ला जैसी बड़ी कंपनियों के साथ जुड़कर इंटर्नशिप की और फैलोशिप हासिल की। वह यूनाइटेड नेशन हेडक्वार्टर तक पहुंची और कई देशों के डिप्लोमैट्स से मिली। कैंपस जॉब हासिल की और दूसरे वर्ष की फीस भी भरी।
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