जनवरी के पहले सप्ताह में दिल्ली उच्च न्यायालय से प्रेग्नेंसी के 7वें महीने में गर्भपात की इजाजत दी गई। आमतौर पर मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत 24 सप्ताह के बाद गर्भपात कराने की इजाजत नहीं दी जाती है। इस मामले में इजाजत दिए जाने की वजह थी कि गर्भ में मौजूद भ्रूण कई विसंगतियों के साथ जन्म लेता है।
डॉक्टर और कानूनविद् दोनों यह स्वीकारते हैं कि लंबे समय के गर्भ के मामले में कोर्ट को तुरंत कार्रवाई के बाद फैसला सुना देना चाहिए। ऐसा करने से महिला मानसिक और शारीरिक कष्ट से बच जाती है।
किस समय तक का गर्भ को गिराने की अनुमति
अमूमन महिलाओं को 3 महीने (12 सप्ताह) तक का गर्भपात करने का अधिकार दिया गया है। ऐसे मामलों में किसी की सहमति की भी जरूरत नहीं होती है। आमतौर पर गर्भनिरोधक उपायों के फेल होने पर महिला अबॉर्शन करा सकती है। इसके अलावा अनचाहे गर्भ की स्थिति में भी 3 महीने तक के गर्भपात का प्रावधान है।
तीन से 5 महीने में अबॉर्शन की इजाजत इन खास वजहों में
अगर महिला और उसके गर्भ में पल रहे भ्रूण के जीवन को खतरा हो, तो ऐसे मामलों में 3 से लेकर 5 महीने तक के भ्रूण को समाप्त किए जाने की इजाजत दी गई है। अगर महिला को कोई गंभीर बीमारी हो, जिसके बारे में डॉक्टर को लगे कि यह प्रेग्नेंसी के समय और भी बढ़ सकती हो, तो इन ग्राउंड्स पर पांच महीने तक के गर्भ को गिराने की इजाजत मिल जाती है।
कौन-सी हैं वो क्रोनिक प्राॅब्लम्स
गुरुग्राम स्थित मणिपाल हॉस्पिटल की गायनोकोलॉजिस्ट सीनियर कंसल्टेंट डॉ. ज्योति शर्मा के अनुसार, अगर महिला को दिल की बीमारी है, तो क्योंकि मां का ब्लड सर्कुलेशन प्रभावित होगा। इससे हार्ट पर दबाव बढ़ सकता है। इसके अलावा रूमेटाइड आर्थराइटिस के केसेज में भी कई बार मां की तकलीफें बढ़ने की आशंका होती है, इसका असर दिल पर पड़ने से खतरा बढ़ जाता है।‘
अनियंत्रित डायबिटीज’ या ‘अनियंत्रित हायपरटेंशन’ के केसेज में भी महिलाओं को गर्भ गिराने की अनुमति होती है। मां को खसरा जैसी बीमारियों में भी गर्भपात की इजाजत है। इस तरह की अनियंत्रित बीमारियों में प्रेग्नेंसी रिस्की हो जाती है। महिला की जान का खतरा बढ़ जाता है।
भ्रूण के अंगों की बनावट में समस्या होने पर भी गर्भपात
गर्भावस्था के दौरान भ्रूण के विकास को जांचने के लिए कई तरह के टेस्ट किए जाते हैं। अगर जांच में यह पता चलता है कि गर्भस्थ शिशु के अंगों का सही विकास नहीं हो रहा
या उसका मानसिक विकास ( डाउन सिंड्रोम) सही तरीके से नहीं हो रहा हो, तो पांचवें महीने में गर्भ समाप्त करने की इजाजत मिल जाती है।
इसके अलावा गर्भस्थ शिशु में ऑटो इम्युन जैसी समस्या का पता चले, तो भी 20 सप्ताह की प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट कराया जा सकता है। इस तरह के गर्भपात के लिए दो गाइनैकोलाजिस्ट की इजाजत जरूरी होती है।
2021 में हुए एमटीपी कानून में बदलाव महिलाओं के हित में
सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट उमेश शर्मा के अनुसार, मार्च 2021 में केंद्र सरकार ने प्रेग्नेंसी टर्मिनेशन कानून में बदलाव करते हुए कुछ मामलों में गर्भपात की सीमा को बढ़ाकर 20 सप्ताह से 24 सप्ताह कर दी है।
इसके लिए एमटीपी (संशोधन) रूल्स 2021 जारी किया है। इसके तहत रेप पीड़िता को 24 हफ्ते तक की प्रेग्नेंसी टर्मिनेट कराने की इजाजत होगी। अभी तक यह केवल 20 हफ्ते तक थी।
नाबालिगों को भी मिलती है इजाजत
नए कानून के तहत नाबालिग लड़की के प्रेग्नेंसी के मामले में भी 24 हफ्ते के गर्भपात की इजाजत दी गई है। इतना ही नहीं, अगर प्रेग्नेंसी के बाद महिला का मैरिटल स्टेट्स बदल जाता है जैसे ‘प्रेग्नेंसी के दौरान महिला विधवा हो जाती है या उसका तलाक’ हो जाता है, तो उसे 6 महीने के गर्भ को गर्भपात कराने की इजाजत है।
नए कानून के तहत 20 से 24 सप्ताह की प्रेग्नेंसी टर्मिनेशन के मामले में महिला की रिपोर्ट को राज्य स्तर के मेडिकल बोर्ड के जांचने के बाद ही इजाजत मिलती है।
लंबी उम्र के गर्भ को गिराने के मामलों पर जल्दी सुनवाई जरूरी
एडवोकेट उमेश शर्मा इस बात पर भी जोर देते हैं कि जिन मामलों में गर्भस्थ शिशु की उम्र अधिक हो गई हो और कोर्ट से अबॉर्शन की इजाजत ली जा रही हो, तो इन मामलों पर कुछ ही दिनों में सुनवाई होनी चाहिए ताकि महिला की जान काे खतरा न पहुंचे।
डॉ. ज्योति शर्मा भी इस बात से इत्तेफाक रखती हैं कि कई दूसरे देशों के तुलना में भारत में गर्भपात का कानून महिलाओं के जीवन की सुरक्षा के अधिकारों की रक्षा करता है लेकिन अगर अधिक उम्र के गर्भ के केसेज में तुरंत सुनवाई की व्यवस्था हो, तो यह महिला स्वास्थ्य के मामले में बेहतर होगा।
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