हरियाणा के गांव खंडरा की तस्वीर अब तेजी से बदलने लगी। इस गांव की पहचान अब किसी आसपास के गांव या शहर से नहीं, बल्कि गांव के बेटे और जेवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा के नाम से होती है। पहले गांव में सिर्फ 8वीं तक स्कूल था, लेकिन नीरज के ओलिंपिक में गोल्ड मेडल जीतने के बाद इसे अपग्रेड कर 12वीं तक कर दिया गया। साथ ही, गांव में एक इंग्लिश मीडियम स्कूल, स्टेडियम, बैंक और अस्पताल बनाए जाने की योजना पर काम चल रहा है। पढ़िए, पानीपत जिले के खंडरा गांव की नई पहचान की कहानी…
वुमन भास्कर की टीम जब पानीपत से आगे खंडरा गांव की ओर बढ़ी तो दो से तीन जगह गाड़ी रोकी। फिर अपने आसपास खड़े लोगों से पूछा- नीरज चोपड़ा के घर जाना है, क्या यह रास्ता सही है? इसके जवाब में कई लोगों ने गांव तक का पूरा रोडमैप समझा दिया। गांव के नजदीक पहुंची तो एक सज्जन व्यक्ति नीरज के घर तक पहुंचाने के लिए साथ चल पड़े।
नीरज के पिता सतीश सिंह बताते हैं, ‘पहले लोग मुझे मेरे नाम से बुलाते थे, लेकिन अब गांव के आसपास करीब 50 किलोमीटर तक की दूर पर, मैं जहां भी जाता हूं, लोग मुझे नीरज का पापा कहकर बुलाते हैं। उस वक्त मुझे कितनी खुशी मिलती है, यह बताना भी मुश्किल है। बस फक्र से सीना चौड़ा हो जाता है और मन से दुआ निकलती है कि मेरे जैसा सौभाग्य हर बाप को नसीब हो। तभी मां सरोज सिंह कहती हैं कि गूगल में जब गांव का नाम सर्च किया जाता है तो साथ में मेरे बेटे की तस्वीरें और खबरें आती हैं। अब घर आने वाले जान-पहचान और रिश्तेदार अगर रास्ता भूल जाते हैं तो वे गांव नहीं, बल्कि नीरज के घर के बारे में पूछते हैं और लोग उन्हें घर तक पहुंचा जाते हैं। उस वक्त लगता है कि मेरे बेटे की मेहनत रंग ला रही है।
बेटे की जिद पर बना गांव में मकान
सतीश सिंह बताते हैं कि आज से 3 साल पहले की बात है। मैं गांव में घर बनाने की सोच रहा था, उस वक्त मैंने नीरज से पूछा था कि कहां रहना चाहते हो, गांव या फिर बाहर कहीं शहर में? इस पर बेटे ने कहा कि जहां मेरा बचपन बीता, जिस मिट्टी में खेला, अगर वहां का विकास नहीं होता है तो फिर मेरी कामयाबी का कोई मतलब नहीं। आप गांव में ही घर बनाइए। हम सब वहीं रहेंगे। मां कहती हैं- ‘मुझे लगा था कि अब बेटा गांव में रहना चाहेगा या नहीं, लेकिन उसकी जिद पर ही गांव में मकान बनाया गया।’
अब 12वीं तक गांव में ही पढ़ रहे बच्चे
चाचा भीम सिंह ने बताया कि पहले गांव में सिर्फ एक प्राइमरी स्कूल था, लेकिन नीरज के ओलिंपिक जीतने के बाद उसे अपग्रेड कर इंटर काॅलेज कर दिया गया है। हरियाणा सरकार से बात हुई है। गांव में 50 एकड़ जमीन पर स्टेडियम बनाने और एक इंग्लिश मीडियम स्कूल खोलने पर काम चल रहा है। इसके अलावा भी कई और योजनाओं पर काम चल रहा है।
पिता सतीश सिंह का कहना है, हमने अपनी दुनिया देख ली। हमारे सारे सपने पूरे हो गए। हमारा सरकार से कहना है कि जो भी करना चाहते हैं, हमारे गांव के लिए करें। गांव में करीब 400 परिवार रहते हैं और गांव में कोई भी डिस्पेंसरी या फिर हाॅस्पिटल नहीं है। अभी कोई रात-बिरात बीमार होता है तो उसे पानीपत ले जाना पड़ता है। ऐसे में हमारी सरकार से मांग है कि 4-5 बेड का ही सही, लेकिन गांव में एक अस्पताल बनवाया जाए। साथ ही गांव में बैंक खोलने की भी मांग रखी है। राज्य सरकार की ओर से पॉजिटिव रिस्पॉन्स मिला है। उम्मीद है कि जल्द गांव में इंग्लिश मीडियम स्कूल, स्टेडियम, बैंक और अस्पताल बनेगा। हालांकि, अभी काम शुरू नहीं हुआ है।
नीरज की बहनें भी कर रहीं जेवलिन थ्रो की प्रैक्टिस
मां सरोज का कहना है कि नीरज से पहले गांव के किसी भी बच्चे ने जेवलिन थ्रो नहीं खेला, लेकिन नीरज के मेडल जीतने के बाद अभी गांव के 50 से 60 हर रोज जेवलिन थ्रो की प्रैक्टिस कर रहे हैं। हमारे परिवार में 10 बच्चे हैं, जिनमें छह बेटियां और चार बेटे। इनमें नीरज सबसे बड़ा है। नीरज के बाद अभी दो बेटियां- नैंसी और गरिमा भी जेवलिन थ्रो की प्रैक्टिस कर रही हैं।
नीरज से गुरुमंत्र लेकर दीपिका ने जीते कई मेडल
खंडरा गांव में हर रोज छात्रों को जेवलिन थ्रो की प्रैक्टिस कराने वाले कोच जितेंद्र जगलान बताते हैं, अभी गांव के स्कूल में हर दिन करीब 60 बच्चे जेवलिन थ्रो की प्रैक्टिस कर रहे हैं। इन बच्चों के साथ प्रैक्टिस करने वाली गांव की बेटी दीपिका ने दो महीने पहले ही 12वीं हरियाणा स्टेट सीनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप में ब्राॅन्ज मेडल जीता है। इससे पहले दीपिका ब्लाॅक स्तर से लेकर जिला स्तर तक कई गोल्ड मेडल जीत चुकी हैं। नीरज चोपड़ा खुद दीपिका से मिलकर उसे गुरुमंत्र दे चुके हैं।
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