तीन साल पहले की बात है। रात के करीब 10 बज रहे थे, अफगानिस्तान में लड़ाकुओं के खिलाफ अमेरिकी मरीन का दस्ता कार्रवाई करने को तैयार था। इस दौरान पहाड़ी क्षेत्र में विदेशी लड़ाकुओं के ऊपर बमबारी की गई। वे लड़ाकू ऐसे क्षेत्र में छिपे हुए थे जहां कुछ कच्चे घर भी बने थे। बमबारी में वे घर पूरी तरह नेस्तनाबूद हो गए। मरीन दस्ते के अमेरिकी सैनिक जब उस क्षेत्र में नीचे उतरे तो उन्हें अकस्मात ही महज 40 दिन की बच्ची तड़पते हुए दिखाई पड़ी। बच्ची के सिर और एक टांग पर गहरी चोट के निशान थे।
एक अमेरिकी सैनिक जोशुआ मस्ट ने उसे उठाया और उसके संबंधियों को आस-पास ढूंढ़ने की कोशिश की। लेकिन, उसके सभी संबंधी संभवत: इस दुनिया से चल बसे थे। सैनिक ने उसकी हालत को देखते हुए अफगानिस्तान में मौजूद अमेरिकी सैनिक हॉस्पिटल में उसे भर्ती करा दिया।
इस दौरान सैनिक ने सभी नियमों का पालन करते हुए सभी कागजी कार्यवाही पूरी की। इस दौरान बच्ची का नाम बेबी 'एल' रख दिया गया। बच्ची के शुरुआती टेस्ट में पाया गया कि उसके सिर और पैर में फ्रैक्चर हैं। अस्पताल में इलाज हुआ और बच्ची ठीक हो गई। जोशुआ मस्ट का उस बच्ची के प्रति भावनात्मक जुड़ाव होता गया और उन्होंने उसे गोद लेने का फैसला किया। इस सिलसिले में उन्होंने व्हाइट हाउस में भी गुहार लगाई।
बच्ची को अमेरिकी सैनिक जोशुआ मस्त और उनकी पत्नी स्टेफनी को अभिभावक के तौर पर सौंप दिया गया। अब साढ़े तीन साल की यह छोटी बच्ची कम से कम चार अदालती मुकदमों की उलझन में फंसी हुई है।
हाल ही में शरणार्थी के रूप में अमेरिका पहुंचे एक अफगान दंपती ने अमेरिकी मरीन और उसकी पत्नी के खिलाफ संघीय अदालत में कथित तौर पर अपनी बच्ची का अपहरण करने का मुकदमा दायर किया है।
अफगान दंपती कहते हैं कि उन्हें पता नहीं था कि अमेरिकी अदालतों में क्या हो रहा था। जब वे बच्ची से मिले तो खुशी के आंसू छलक आए।
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