दिल्ली के अस्पतालों की बदहाली पर पड़ताल करते हुए वुमन भास्कर की रिपोर्टर ने ग्राउंड पर जाकर व्यवस्थाओं का जायजा लिया। रिपोर्ट 24 जुलाई को प्रकाशित हई रिपोर्ट में दिल्ली-एनसीआर के पांच अस्पताल सफदरजंग अस्पताल, आंबेडकर अस्पताल, जीटीबी अस्पताल, डीडीयू अस्पताल और नोएडा अस्पताल के मैटरनिटी वार्ड की हकीकत को दर्शाया गया।
मौके पर भास्कर रिपोर्टर सुनाक्षी गुप्ता और दीप्ति मिश्रा को अस्पताल में ढेरों लापरवाही और कमियां मिली। कहीं निवस्त्र गर्भवती महिलाओं को चादर तक नसीब नहीं थी तो कहीं गर्भवतियों को थप्पड़ मारते हुए लेबर रूम ले जाया जा रहा था। भास्कर की इस रिपोर्ट के आधार पर दिल्ली कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स ने सुओ-मोटो एक्शन लेते हुए चार अस्पतालों को कारण बताओ नोटिस जारी किया है।
26 अगस्त तक देनी होगी जांच रिपोर्ट
कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में नई दिल्ली स्थित सफदरजंग अस्पताल, रोहिणी स्थित डॉ भीमराव आंबेडकर अस्पताल, दिलशाद गार्डन स्थित जीटीबी अस्पताल और हरि नगर स्थित दीन दयाल उपाध्याय हॉस्पिटल के चिकित्सा अधीक्षक को नोटिस जारी कर उनसे इस लापरवाही के पीछे का कारण पूछा गया है।
मैटरनिटी वार्ड में चल रही गड़बड़ियों और अव्यवस्थाओं के लिए जिम्मेदार डॉक्टर, नर्स और अन्य मेडिकल स्टाफ के खिलाफ जांच करने का आदेश दिया है। इन सभी अस्पतालों को 26 अगस्त 2022 से पहले सबूतों के साथ अपनी जांच रिपोर्ट दिल्ली कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स के सामने पेश करनी होगी।
गर्भवतियों को तुरंत इलाज ना देना सबसे बड़ी लापरवाही
नोटिस में भास्कर वुमन की रिपोर्ट का जिक्र करते हुए लिखा है कि अस्पताल गर्भवतियों को इमरजेंसी में भर्ती नहीं करते हैं, मजबूरन वह अस्पताल के बाहर बच्चों को जन्म दे रही हैं। जबकि अस्पताल में एक-एक मरीज के साथ 2-3 तीमारदार बिस्तर घेर लेते हैं।
यहां तक की कुछ अस्पताल में पोस्ट डिलीवरी वार्ड खाली पड़े रहते हैं, मगर इसके बाद भी अस्पताल गर्भवतियों को तुरंत इमरजेंसी में इलाज करने के बजाए उनसे ओपीडी का पर्चा लाने का दबाव बनाते हैं। यह सरासर गलत है।
प्री-लेबर रूम में एक बेड पर 3-4 महिलाएं, नंगे बदन दर्द से चिल्लाती गर्भवतियों को चादर भी नसीब नहीं
नॉर्थ-वेस्ट दिल्ली के सबसे बड़े अस्पताल आंबेडकर अस्पताल के प्री-लेबर रूम में एक बिस्तर पर तीन-तीन महिलाओं को बिठाया जाता है। ज्यादातर महिलाओं ने तो कपड़े पहन रखे थे, मगर कुछ के तन पर एक कपड़ा भी नहीं थे, वे नंगे बदन दर्द से चीख रही थीं। न ही उनकी कोई सुनने वाला और न ही कोई उन्हें एक चादर देकर इज्जत ढंकने वाला। कुछ महिलाओं का वॉटर ब्रेक हो चुका था। शरीर से तरल पदार्थ बहता हुआ जमीन पर गिर रहा था। मगर कोई ध्यान देने को तैयार नहीं।
इसी तरह दिलशाद गार्डन के प्री-लेबर रूप में दिन में 3 और रात में 4 गर्भवतियों को बैठाया जाता है। घंटों दर्द से चीखती महिलाएं डॉक्टर को पुकारती रहती हैं। मगर जब तक बच्चा बाहर आता न दिखे कोई डॉक्टर या नर्स मरीज के पास नहीं जाता। लेबर रूम में ले जाने के लिए स्ट्रेचर या व्हीलचेयर नहीं लाई जाती बल्कि नर्स ही महिला को थप्पड़ मारकर लेबर रूम में पैदल चलाकर ले जाती है। वह भी तक जब उसकी डिलीवरी हो रही होती है।
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