पाकिस्तान में पिछले कुछ सालों से महिला दिवस के मौके पर वहां ‘औरत मार्च’ निकाला जा रहा है। इस दौरान उन बहादुर महिलाओं के भी किस्से सामने आ रहे हैं; जिन्होंने पाकिस्तान में रहकर दम दिखाया है।
ऐसी ही एक शख्सियत थीं, भोपाल की राजकुमारी आबिदा सुल्तान। जो भोपाल की अगली बेगम सुल्तान मानी जा रही थीं। वह उस दौर में हवाई जहाज उड़ाया करतीं और बाघों का शिकार करती थीं। लेकिन बंटवारे के बाद उन्होंने सब कुछ छोड़ पाकिस्तान जाने का फैसला किया।
वो सिर्फ अपने बेटे के साथ पाकिस्तान गईं। पाकिस्तान में उन्होंने नई जिंदगी शुरू की और एंबेसडर जैसे ऊंचे ओहदे तक पहुंचीं। उनके बेटे शहरयार खान हाल तक पाक क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष हुआ करते थे।
‘वो आम राजकुमारी जैसी नहीं थी’
आबिदा सुल्तान भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह खान की सबसे बड़ी बेटी थीं। नवाब की तीन बेटियां ही थीं। ऐसे में आबिदा ही भोपाल पर शासन करने वाली थीं। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।
बता दें कि भोपाल रियासत में अलग-अलग समय पर 4 महिला शासक हुईं। आबिदा की दादी और परदादी भी भोपाल पर राज कर चुकी थीं। ऐसे में आबिदा की परवरिश भी शासक बनाने की दृष्टि से ही की गई। अपनी दादी की निगरानी में कम उम्र में ही उन्होंने प्लेन उड़ाने, घुड़सवारी से लेकर हथियार चलाने और शिकार करने में महारत हासिल कर ली।
उनकी परवरिश बिल्कुल किसी राजकुमार की तरह की गई। उन्हें कपड़े भी लड़कों जैसे पहनाए जाते थे।
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पति ने दिखाई नवाबी तो तान दी थी बंदूक
17 साल की उम्र में आबिदा की शादी कोरवाई के नवाब सरवर अली ख़ान से हुई। आबिदा और कोरवाई नवाब को एक लड़का भी हुआ। लेकिन यह शादी ज्यादा दिन तक चल नहीं पाई। शासक की तरह पली-बढ़ीं आबिदा ने कोरवाई के नवाब सरवर अली ख़ान की निगरानी में रहने से इनकार कर दिया। वो अपने बेटे के साथ भोपाल लौट आईं।
उधर, नवाब सरवर अली ख़ान वायसराय लॉर्ड विलिंगडन से शिकायत कर अपने बेटे को वापस लेने चाहते थे। जब इस बात की भनक आबिदा को लगी तो वो गुस्से में कोरवाई पहुंचीं और नवाब पर भरी बंदूक तानकर कहा-मेरे जीतेजी तुम बच्चे को हासिल नहीं कर पाओगे। राजकुमारी के तेवर को देख नवाब में बेटे को पाने की ख़्वाहिश हमेशा के लिए छोड़ दी।
इसके बाद आबिदा पूरी तरह से अपने शौहर और उसकी रियासत से अलग हो गईं। उनके भोपाल लौटने पर माना गया कि अब आबिदा अपने पिता की विरासत को संभालने के लिए तैयार हैं।
37 साल की उम्र में बेटे और दो सूटकेस संग गईं पाकिस्तान
देश के बंटवारे के बाद राजकुमारी आबिदा ने भोपाल और कोरवाई की रियासत को ठुकराकर पाकिस्तान जाने का फैसला किया। वो अपने बेटे शहरयार खान और दो सूटकेस संग पाकिस्तान पहुंच गईं।
पाकिस्तान जाकर उन्होंने मोहम्मद अली जिन्ना की बहन के साथ मिलकर नए बने मुल्क की सियासत में अपने को स्थापित करने की कोशिश की। लेकिन उनकी कोशिश ज्यादा सफल नहीं हुई। बाद में उन्हें ब्राजील में पाकिस्तान का राजदूत बनाया गया।
छोटी बहन के लिए छोड़ी भोपाल की रियासत
1960 में जब आबिदा के पिता और भोपाल के नवाब की मौत हुई तो एक बार फिर से उन्हें भोपाल की रियासत संभालने की ऑफर दिया गया। लेकिन इस बार शर्त यह थी कि उन्हें पाकिस्तान की नागरिकता छोड़नी पड़ेगी।
आबिदा ने इससे इनकार करते हुए अपनी छोटी बहन के लिए भोपाल की रियासत को छोड़ दिया। उन्होंने पाकिस्तान में ही रहकर वहां की सियासत में हाथ आजमाने का फैसला किया।
जिन्ना की बहन को लड़ाया राष्ट्रपति का चुनाव
पाकिस्तान के सूत्रधार माने जाने वाले मोहम्मद अली जिन्ना हर फैसला अपनी बहन फातिमा जिन्ना से पूछकर ही लेते थे। जब तक जिन्ना जिंदा रहे फातिमा अनौपचारिक रूप से पाकिस्तान की सत्ता चलाती रहीं। लेकिन जिन्ना के निधन के बाद पाकिस्तान के नए हुक्मरानों ने फातिमा को किनारे कर दिया।
अपने भाई की लोकप्रियता को देखते हुए फातिमा ने चुनाव के सहारे सत्ता हासिल करने की कोशिश की। इस दौरान राजकुमारी आबिदा उनकी सबसे करीबी सहयोगी बनीं। उनकी सोच थी कि फातिमा के राष्ट्रपति बनने के बाद पाकिस्तान की राजनीति में उनका भी कद काफी बड़ा हो जाएगा।
मगर फातिमा जिन्ना अयूब खान से राष्ट्रपति का चुनाव हार गईं और आबिदा भी पाकिस्तान की राजनीति में बहुत प्रभावी नहीं रह गईं।
अपनी नायिकाओं को याद कर रहीं पाकिस्तानी महिलाएं
पिछले कुछ सालों में पाकिस्तान में महिला अधिकारों को लेकर मुखरता देखी जा रही है। हर साल ‘औरत मार्च’ के आसपास उन महिलाओं की चर्चा होने लगती है। जिन्होंने पाकिस्तान की राजनीति में कभी दम दिखाया था। इस दौरान पाकिस्तानी महिलाएं शहजादी के अलावा फातिमा जिन्ना, इकबाल बानो, राणा लियाकत को भी याद कर रही हैं।
आपने पाकिस्तान जाकर बसने वाली भोपाल की बहादुर शहजादी आबिदा की कहानी तो जान ली। लेकिन पाकिस्तान को बनाने और उसे संवारने वाली ऐसी 5 और महिलाओं के नाम तारीख में दर्ज हैं। इनमें से कई महिलाओं की हत्या कर दी गई, कुछ को देश छोड़ना पड़ा तो कुछ आज भी कट्टरपंथियों से लोहा ले रही हैं।
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