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प्राइवेट पार्ट में इन्फेक्शन से कैंसर का खतरा:महिलाओं के लिए पर्सनल प्रोडॅक्ट्स की भरमार, हाईजीन की जरूरत पुरुषों को ज्यादा

नई दिल्ली5 महीने पहलेलेखक: मनीष तिवारी
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दुनिया में हर मिनट करीब 700 लोग 'सेक्शुअली ट्रांसमिटेड इन्फेक्शंस' यानी STI की चपेट में आ रहे हैं। करोड़ों लोग हर साल HIV, हर्पीज, हेपेटाइटिस-बी जैसी लाइलाज बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। एक्सपर्ट्स के मुताबिक इसकी सबसे बड़ी वजह है प्राइवेट पार्ट्स साफ न रखना। जिससे उनमें सैकड़ों तरह के बैक्टीरिया, फंगस और वायरस पनपने लगते हैं।

यही वजह है कि बीते कुछ वर्षों में 'इंटीमेट केयर प्रोडक्ट्स' के नाम पर एक बड़ा बाजार तैयार हो गया है। लेकिन, प्राइवेट पार्ट्स की हाईजीन की बात होने पर सारा फोकस महिलाओं पर चला जाता है, जबकि संक्रमण फैलने का ज्यादा खतरा पुरुषों से होता है। इसलिए यह समझना जरूरी है कि प्राइवेट पार्ट्स की सफाई के लिए आने वाले ये प्रोडक्ट्स क्या वाकई काम के हैं और संक्रमण से बचने के लिए क्या करना चाहिए।

लेकिन, इससे पहले समझते हैं कि हमें इन संक्रामक बीमारियों को इतनी गंभीरता से लेने की जरूरत क्यों है...

अब हम जानेंगे कि प्राइवेट पार्ट्स के जरिए संक्रमण कैसे फैलता है और संक्रमण के पीछे क्या कारण हैं। इसका खमियाजा सबसे ज्यादा महिलाओं को भुगतना पड़ता है, इसलिए पहले उनके बारे में ही जानते हैं...

फीमेल के प्राइवेट पार्ट में बैक्टीरिया की 200 से ज्यादा प्रजातियां

दरअसल, शरीर के दूसरे हिस्सों की तरह मेल और फीमेल के प्राइवेट पार्ट्स भी तमाम तरह के बैक्टीरिया का घर हैं। फीमेल प्राइवेट पार्ट में बैक्टीरिया यानी सूक्ष्मजीवों की 200 से ज्यादा प्रजातियां रहती हैं। इसलिए इसे ‘वेजाइनल ईकोसिस्टम’ भी कहते हैं।

ये बैक्टीरिया फीमेल प्राइवेट पार्ट में कॉलोनी बनाते हैं। जिसे साइंस में वेजाइनल माइक्रोबायोटा, वेजाइनल फ्लोरा या वेजाइनल माइक्रोबायोम जैसे नाम दिए गए हैं।

वेजाइनल माइक्रोबायोटा में सबसे ज्यादा संख्या होती है लैक्टोबैसिलस बैक्टीरिया की, जो गुड बैक्टीरिया हैं। इनके अलावा एनारोबिक, प्रिवोटेला, डायलिस्टर, एटोपोबियम जैसे ढेरों बैक्टीरिया और कैंडिडा जैसे फंगस भी प्राइवेट पार्ट में मौजूद होते हैं, लेकिन इनकी संख्या काफी कम रहती है।

दरअसल, लैक्टोबैसिलस अपने साथ रह रहे घातक बैक्टीरिया जैसे कि एनारोबिक और कैंडिडा फंगस के साथ ही pH लेवल पर भी कंट्रोल रखता है। नुकसान पहुंचाने वाले बैक्टीरिया को मार देता है। इंफेक्शन फैलने से रोकता है। इससे वेजाइनल माइक्रोबायोटा में संतुलन बना रहता है।

नीचे दिए गए ग्रैफिक्स से समझें लैक्टोबैसिलस बैक्टीरिया सेक्शुअल हेल्थ के लिए कितने जरूरी हैं...

बैक्टीरिया का संतुलन बिगड़ने से होता है इंफेक्शन

हर महिला का वेजाइनल माइक्रोबायोटा DNA, खानपान, सफाई, स्मोकिंग हैबिट्स, सामाजिक परिवेश, सेक्शुअल बिहेवियर, सेक्स हॉर्मोंस के तौर-तरीकों के आधार पर अलग होता है। उम्र के हर पड़ाव के दौरान प्यूबर्टी हासिल करने और पीरियड्स, प्रेग्नेंसी से लेकर मेनोपॉज तक इसमें बदलाव आता रहता है।

कभी-कभी कुछ वजहों से प्राइवेट पार्ट में मौजूद अच्छे-बुरे बैक्टीरिया का संतुलन बिगड़ जाता है।

हाईजीन प्रोडॅक्ट्स का इस्तेमाल करने, संबंध बनाने, गर्भनिरोधक या एंटीबायोटिक्स दवाएं खाने, शरीर में हाॅर्मोनल बदलाव, इम्यूनिटी कमजोर होने, बीमारी, तनाव, खराब लाइफस्टाइल और खानपान में लापरवाही के कारण प्राइवेट पार्ट में मौजूद अच्छे बैक्टीरिया कम हो सकते हैं। बैड बैक्टीरिया या फंगस हावी हो सकते हैं। जिससे इन्फेक्शन फैल सकता है।

वेजाइनल बैक्टीरिया में असंतुलन से प्राइवेट पार्ट में खुजली, जलन, सूजन, दर्द, लाली आ सकती है। गाढ़े, सफेद या भूरे रंग का डिस्चार्ज हो सकता है, जिससे दुर्गंध भी आ सकती है। संबंध बनाने के दौरान दर्द या यूरीन के दौरान जलन हो सकती है। हालांकि, कभी-कभी बिना कोई लक्षण दिखे भी संक्रमण फैलता है और समस्या गंभीर हो जाती है।

इन समस्याओं का सामना न करना पड़े, इसलिए महिलाओं को वेजाइनल माइक्रोबायोटा का बैलेंस बनाए रखना चाहिए...

इन्फेक्शन की वजह से हो सकती हैं ये बीमारियां

प्राइवेट पार्ट को नुकसान पहुंचाने वाले बैक्टीरिया के बढ़ने से बैक्टीरियल वेजाइनोसिस हो सकता है। यह संक्रमण होने के बाद महिलाओं में सेक्शुअली ट्रांसमिटेड इन्फेक्शन यानी STI का खतरा बढ़ जाता है। वे हर्पीज, HIV, गोनोरिया, क्लैमिडिया जैसी बीमारियों की चपेट में आ सकती हैं।

बैक्टीरिया के असंतुलन से ट्राइकोमोनिएसिस, कैंडिडियासिस जैसे संक्रमण भी हो सकते हैं। कैंडिडियासिस इन्फेक्शन प्राइवेट पार्ट में कैंडिडा फंगस के बढ़ने से होता है। इन समस्याओं के कारण फर्टिलिटी में कमी आने से लेकर प्री-मैच्योर बर्थ और कैंसर तक का खतरा हो सकता है।

यह संक्रमण प्रेग्नेंट महिलाओं और उनके गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए बेहद घातक है...

प्राइवेट पार्ट कुदरती तरीके से खुद को रखते हैं साफ, प्रोडॅक्ट्स से इन्फेक्शन का खतरा 20 गुना ज्यादा

अगर किसी तरह का कोई इन्फेक्शन नहीं है तो फीमेल प्राइवेट पार्ट खुद को साफ रख सकते हैं। इसके लिए अलग से किसी तरह का कोई प्रोडॅक्ट यूज करने की जरूरत आमतौर पर नहीं पड़ती। टॉयलेट जाने के बाद साफ हाथों और साफ पानी से इसकी सफाई करना काफी है।

अगर किसी वजह से जरूरत पड़े तो बाहरी हिस्से में माइल्ड सोप यूज कर लें, लेकिन प्राइवेट पार्ट के अंदर साबुन वगैरह न जाने दें। डूशिंग और स्प्रे से सफाई करने से फायदे की जगह नुकसान ज्यादा होता है। मॉइस्चर, एंटी-ईचिंग क्रीम, फेमिनिन वाइप्स, स्प्रे, वैक्सिंग, शेविंग, पाउडर का इस्तेमाल संक्रमण की वजह बन सकता है।

2018 में कनाडा के रिसर्चर्स ने पाया कि प्राइवेट पार्ट्स की सफाई के लिए सैनिटाइजर जेल यूज करने से फंगस का खतरा 8 गुना और बैक्टीरियल इन्फेक्शन का खतरा 20 गुना ज्यादा बढ़ जाता है। वहीं, इंटीमेट वॉश प्रोडॅक्ट्स यूज करने से बैक्टीरिया के संक्रमण का खतरा 3.5 गुना, UTI का खतरा दोगुने से ज्यादा हो जाता है। एंटीसेप्टिक सॉल्यूशन और जेल के इस्तेमाल से भी बैक्टीरियल इन्फेक्शन हो सकता है।

लोग इंटिमेट केयर प्रोडॅक्ट्स के खतरों से अंजान हैं और इसका बाजार बढ़ता जा रहा है...

हाईजीन प्रोडॅक्ट्स में मौजूद केमिकल दे सकता है कैंसर

टोरंटो यूनिवर्सिटी में हुई एक रिसर्च में पाया गया है कि साबुन, शैंपू, टूथपेस्ट से लेकर परफ्यूम तक में ऐसे घातक केमिकल पाए जाते हैं, जो सेहत के लिए घातक बैक्टीरिया खत्म करने वाली एंटीबॉडीज को ही नुकसान पहुंचा रहे हैं। हाईजीन के लिए यूज होने वाले इन प्रोडॅक्ट्स में ट्राईक्लोसन, बेंजीन और एस्बेटस जैसे केमिकल की मात्रा काफी ज्यादा होती है।

पाउडर में पाया जाने वाला एस्बेटस ओवेरियन कैंसर की वजह बन सकता है। टूथपेस्ट में मौजूद ट्राईक्लोसन भी कैंसर दे सकता है। दुनिया भर में लाखों लोगों की मौत इसकी वजह से हो रही है।

महिलाओं की आदतें उन्हें बना रहीं संक्रमण का शिकार

हाईजीन से जुड़ी महिलाओं की आदतें भी कई बार संक्रमण की वजह बनती हैं। इसका पता लगाने के लिए हंगरी की 'यूनिवर्सिटी ऑफ सेगेड' के रिसर्चर्स ने कई रिपोर्ट्स का एनालिसिस किया। जिसमें सामने आया कि गलत आदतें और जानकारी की कमी के कारण महिलाओं के प्राइवेट पार्ट में इन्फेक्शन का खतरा बढ़ जाता है।

शरीर की बनावट और प्राइवेट पार्ट्स के बीच दूरी का असर भी इन्फेक्शन पर पड़ता है। NCBI पर मौजूद एक रिपोर्ट के मुताबिक यूरेथ्रा यानी यूरिनल ओपनिंग, वेजाइनल ओपनिंग और रेक्टम के बीच अगर दूरी कम होती है, तो बैक्टीरिया और वायरस के एक अंग से दूसरे अंग तक पहुंचने का खतरा बढ़ जाता है।

इसलिए महिलाओं को यह जानना बहुत जरूरी है कि वे अपने प्राइवेट पार्ट्स की सफाई कैसे करें...

रिसर्च के मुताबिक अंडरवियर हाईजीन, बाथिंग हैबिट्स, मेंस्ट्रुअल हाईजीन और कोइटल हाईजीन से जुड़ी आदतों का असर महिलाओं की सेक्शुअल हेल्थ पर पड़ता है।

अब जानते हैं कि यह आदतें कैसे सेहत पर असर डालती हैं और संक्रमण की वजह बनती हैं:

1. इनरवियर का कपड़ा और सफाई

कई फीमेल अंडरवियर ऐसे होते हैं जिसका कपड़ा पसीना नहीं सोखता। कंपनियां युवतियों के लिए नाइलॉन और सिंथेटिक लॉन्जरी ला रही हैं। लेकिन, कॉटन की तुलना में नाइलॉन कम पसीना सोखता है। इससे प्राइवेट पार्ट्स के आसपास नमी बनी रहती है और वहां संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए चुस्त और सिंथेटिक मैटीरियल की जगह लूज फिटिंग वाले कॉटन अंडरवियर यूज करने चाहिए। समय पर इन्हें बदल दें।

2. बैठकर नहाने से प्राइवेट पार्ट में हो सकता है संक्रमण

नहाने के तरीके और इस दौरान यूज किए जा रहे प्रोडॅक्ट भी प्राइवेट पार्ट में इन्फेक्शन का खतरा बढ़ा सकते हैं। रिसर्च के अनुसार जो महिलाएं बैठकर नहाती हैं, उन्हें संक्रमण का खतरा ज्यादा होता है। जिस स्टूल पर बैठकर नहा रही हैं, वह साफ नहीं है, तो वेजाइनल इन्फेक्शन और यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन हो सकता है।

जो महिलाएं अक्सर खड़े होकर नहाती हैं या शॉवर लेती हैं, उन्हें न सिर्फ संक्रमण का खतरा कम होता है, बल्कि जेनाइटल हाईजीन के लिए अलग से किसी प्रोडॅक्ट की जरूरत नहीं पड़ती। इसी तरह, प्राइवेट पार्ट से होने वाले डिस्चार्ज, पसीना, यूरिन की नियमित सफाई से दुर्गंध व संक्रमण का खतरा घटता है।

इसी तरह, नहाने वाली महिलाओं की तुलना में न नहाने वाली महिलाएं बैक्टीरियल इन्फेक्शन की चपेट में ज्यादा आती हैं।

नहाने के दौरान यूज किए गए साबुन, शैंपू से प्राइवेट पार्ट का pH लेवल बिगड़ सकता है, जिससे इन्फेक्शन हो सकता है। ये प्रोडॅक्ट अच्छे बैक्टीरिया को भी नुकसान पहुंचा देते हैं।

3. पीरियड्स में खराब नैपकिन और नमी से फैल सकता है फंगस

पीरियड्स के दौरान सेनेटरी पैड्स की जगह यूज किए जाने वाले मैटीरियल, पैड्स को बदलने, नहाने, जेनाइटल डूशिंग यानी स्प्रे से सफाई करने का भी संक्रमण पर असर पड़ता है।

सैनिटरी पैड्स की बजाए कपड़ा यूज करने वाली महिलाएं संक्रमण का शिकार ज्यादा होती हैं। इसी तरह, डिस्पोजेबल नैपकिंस की जगह रियूजेबल सैनिटरी पैड्स यूज करने वाली महिलाओं पर कैंडिडा फंगस और बैक्टीरियल इन्फेक्शन का खतरा ज्यादा होता है।

गलत तरीके अपनाने से प्राइवेट पार्ट में होने वाली नमी फंगस का खतरा बढ़ा देती है। एक बार कैंडिडा का इंफेक्शन होने के बाद कपड़ों को अच्छे से धुलकर सुखाए बिना इस फंगस से निजात पाना मुश्किल हो सकता है।

कपड़े, अंडरवियर और रियूजेबल पैड्स को बाहर धूप की जगह टॉयलेट के अंदर सुखाने से भी उनमें बैक्टीरिया और कैंडिडा फंगस के पनपने का खतरा बढ़ जाता है।

पीरियड्स के दौरान नियमित तौर पर नहाने, अच्छे से सफाई रखने से बैक्टीरियल इन्फेक्शन का रिस्क कम रहता है। प्राइवेट पार्ट्स की सफाई से पहले हाथ साफ करना ज्यादा जरूरी है।

4. कोइटल हाईजीन: इंटरकोर्स से पहले और बाद में भी सफाई जरूरी

कोइटल हाईजीन का मतलब इंटरकोर्स से पहले या बाद में प्राइवेट पार्ट्स की साफ-सफाई करने से है। रिसर्चर्स के मुताबिक एक तिहाई महिलाएं संबंध बनाने से पहले या बाद में हाईजीन का ख्याल नहीं रखती हैं। जिससे इन्फेक्शन का खतरा बढ़ता है।

अनप्रोटेक्टेड इंटरकोर्स के दौरान वेजाइना में फीजियोकेमिकल एनवॉयरनमेंट बदलता है। इंटरकोर्स के 8 घंटे बाद तक pH लेवल बढ़ा रहता है। जिससे वेजाइनल माइक्रोबायोटा में भी बदलाव आता है।

इस दौरान होने वाले स्राव, पसीना, यूरिन वगैरह के जरिए बैक्टीरिया के फैलने का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए इंटरकोर्स के बाद प्राइवेट पार्ट की सफाई बहुत जरूरी है। अच्छे कोइटल हाईजीन बिहैवियर के लिए पार्टनर का सपोर्ट भी उतना ही जरूरी होता है।

प्राइवेट पार्ट्स में संक्रमण से महिलाएं बची रहें, इसके लिए एक्सपर्ट की इस सलाह पर करें अमल...

प्राइवेट पार्ट्स में इन्फेक्शन का ऐसे लगाएं पता

प्राइवेट पार्ट्स में किसी तरह का कोई इंफेक्शन है या नहीं, इसका पता आप खुद से घर पर ही लगा सकती हैं। एक्सपर्ट्स इसके लिए 3 तरीके बताते हैं:

1. देखकर

2. गंध से

3. महसूस करके

अगर आपको प्राइवेट पार्ट की स्किन में रैशेज, दाने या किसी तरह का कोई बदलाव महसूस हो, तो यह किसी इन्फेक्शन का संकेत है। डॉक्टर के पास जाना चाहिए। वेजाइनल डिस्चार्ज से किसी तरह की दुर्गंध आना या फिर जलन, खुजली, दर्द जैसी समस्याएं संक्रमण की वजह हो सकती हैं।

शेविंग के दौरान रखें ख्याल

प्यूबिक हेयर्स प्राइवेट पार्ट्स की स्किन के लिए रक्षा कवच का काम करते हैं। इंटरकोर्स और दूसरी एक्टिविटीज के दौरान स्किन सुरक्षित रहती है। जिससे बैक्टीरिया और वायरस को पनपने और शरीर के अंदर जाने का मौका नहीं मिलता है। अगर फिर भी शेविंग करना चाहते हैं, तो हर बार नया ब्लेड यूज करें।

हेल्दी प्राइवेट पार्ट्स के लिए यह जरूरी है कि खानपान का भी ख्याल रखा जाए...

प्राइवेट पार्ट छूने से पहले हाथ साफ करना बेहद जरूरी

शौचालय जाने के बाद ही नहीं, बल्कि उससे पहले भी हाथों को साफ करना उतना ही जरूरी है। ऐसा न करने पर आपके हाथों में मौजूद बैक्टीरिया, वायरस, केमिकल आपके प्राइवेट पार्ट्स तक पहुंच सकते हैं। यह न सिर्फ आपको संक्रमण का शिकार बना सकते हैं, बल्कि गंभीर रूप से बीमार भी बना सकते हैं।

यह तो रही महिलाओं की बात, लेकिन पुरुषों के लिए प्राइवेट पार्ट्स की सफाई रखना कितना जरूरी है और इसके लिए उन्हें क्या करना चाहिए, यह जानने के लिए पढ़िए आगे...

पुरुषों के प्राइवेट पार्ट में 42 तरह के बैक्टीरिया

फीमेल प्राइवेट पार्ट माइक्रोबायोम की तरह ही मेल प्राइवेट पार्ट माइक्रोबायोम भी कई तरह के बैक्टीरिया का घर है। द ट्रांसलेशनल जीनोमिक्स रिसर्च इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार पुरुषों के प्राइवेट पार्ट की स्किन में 42 तरह के बैक्टीरिया रहते हैं। फोरस्किन में मौजूद ये बैक्टीरिया कई बार संक्रमण की वजह बनते हैं। अगर सफाई न की जाए, तो संक्रमण पार्टनर तक पहुंच सकता है।

फीमेल पार्टनर तक पहुंच सकता है संक्रमण

बैक्टीरियल वेजाइनोसिस महिलाओं को होने वाला सबसे कॉमन इन्फेक्शन है। दुनिया भर की 20 फीसदी महिलाएं इससे पीड़ित हैं। शिकागो की इलिनॉइस यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स के मुताबिक मेल प्राइवेट पार्ट माइक्रोबायोम में बैक्टीरियल वेजाइनोसिस फैलाने वाले बैक्टीरिया भी रहते हैं।

इसीलिए विशेषज्ञ हमेशा कहते हैं कि पुरुषों को भी अपने प्राइवेट पार्ट्स की सफाई का ख्याल रखना चाहिए...

सफाई न करने से कैंसर तक का खतरा

प्राइवेट पार्ट की सफाई न करने से पुरुषों को भी इन्फेक्शन का खतरा रहता है। प्राइवेट पार्ट में संक्रमण से पुरुषों को इरेक्टाइल डिस्फंक्शन और प्राइवेट पार्ट का कैंसर तक हो सकता है। उन्हें इजैकुलेशन से जुड़ी दिक्कतें हो सकती हैं। लिबिडो में कमी आ सकती है।

फोरस्किन का ख्याल न रखने और सफाई न करने के कारण पुरुष पैराफाइमोसिस, बैक्टीरियल और फंगल इन्फेक्शन की चपेट में भी आ सकते हैं। STI और कैंडिडा का इंफेक्शन सेक्शुअल पार्टनर तक पहुंच सकता है।

फोरस्किन के नीचे व्हाइट डिस्चार्ज हो सकता है, जिसे स्मेग्मा कहते हैं। अगर पुरुषों को डिस्चार्ज के साथ ही प्राइवेट पार्ट के ऊपरी हिस्से में दर्द, खुजली, जलन होने लगे और वह लाल दिखे, तो यह बैलेंटिस का संकेत हो सकता है।

फोरस्किन के ज्यादा टाइट होने से फाइमोसिस की समस्या हो सकती है। इससे प्राइवेट पार्ट के ऊपरी हिस्से में दर्द, सूजन, ब्लीडिंग और इंफेक्शन हो सकता है। यूरिनेशन में भी समस्या हो सकती है।

इन समस्याओं का सामना न करना पड़े, इसके लिए जानिए एक्सपर्ट क्या कहते हैं...

सर्कमसिजन से 60 फीसदी तक कम हो जाता है HIV का खतरा

सर्कमसिजन में फोरस्किन हटा दी जाती है, जिससे उसके नीचे बैक्टीरिया को पनपने का मौका नहीं मिलता और संक्रमण का खतरा कम हो जाता है।

HIV की रोकथाम के लिए WHO और UNAIDS भी सर्कमसिजन यानी खतने को बढ़ावा देते हैं। WHO के मुताबिक इससे HIV संक्रमण का खतरा 60 फीसदी तक कम हो जाता है।

सर्कमसिजन के बाद पुरुष जननांग में रह रहे बैक्टीरिया में 33.3 फीसदी की कमी आती है। रिसर्चर्स ने बताया कि फोरस्किन हटाने के बाद 12 तरह के बैक्टीरिया खत्म हो गए। ये वे बैक्टीरिया थे, जो ऑक्सीजन के संपर्क में आकर नहीं जी सकते थे। इससे पहले हुई रिसर्च में भी साबित हुआ है कि खतने से HIV संक्रमण सहित दूसरे सेक्शुअल ट्रांसमिटेड इंफेक्शंस में कमी आती है।

पॉपुलेशन हेल्थ मीट्रिक्स की 2016 की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में 15 साल से अधिक उम्र के 39 फीसदी पुरुषों का सर्कमसिजन हुआ है।

ग्राफिक्स: सत्यम परिडा

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