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दिल्ली के अस्पतालों के मैटरनिटी वार्ड की पड़ताल:प्रेग्नेंट महिलाओं को चादर भी नसीब नहीं, डिलीवरी के समय थप्पड़ मारते हुए लेबर रूम में भेजा

नई दिल्ली8 महीने पहलेलेखक: दीप्ति मिश्रा/सुनाक्षी गुप्ता
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देश की राजधानी दिल्ली के सबसे बड़े अस्पताल सफदरजंग का एक वीडियो पिछले सप्ताह काफी वायरल हुआ। वीडियो में एक महिला अस्पताल के बाहर बच्चे को जन्म देती नजर आ रही है। महिला के परिजन का आरोप है कि अस्पताल ने गर्भवती महिला को एडमिट करने से इनकार कर दिया, जिसके बाद महिला ने इमरजेंसी वार्ड के बाहर ही बच्चे को जन्म दिया।

मरीजों के प्रति सरकारी अस्पताल का ऐसा रवैया देखकर वुमन भास्कर की रिपोर्टिंग टीम ने सफदरजंग समेत दिल्ली के चार कोनों में मौजूद बड़े अस्पतालों का जायजा लिया। भास्कर पड़ताल में देखें दिल्ली के सरकारी अस्पतालों के मैटरनिटी वार्ड का सच...

अस्पताल 1 - डॉ भीमराव अंबेडकर अस्पताल
स्थान - रोहिणी

नंगे बदन दर्द से चिल्लाती गर्भवतियों को एक चादर भी नसीब नहीं
नॉर्थ-वेस्ट दिल्ली के सबसे बड़े अस्पताल में रोजाना करीब 30 से 40 महिलाओं की डिलीवरी होती है। बिल्डिंग के लेबर रूम में पहुंची तो ऑपरेशन थियेटर से पहले मौजूद एक कमरे में सभी गर्भवतियों को भेड़-बकरियों की तरह बंद कर रखा था। एक-एक बिस्तर पर तीन-तीन महिलाएं बैठी थी। ज्यादातर महिलाओं ने तो कपड़े पहन रखे थे, मगर कुछ के तन पर एक कपड़ा भी नहीं था, वे नंगे बदन दर्द से चीख रही थीं। न ही उनकी कोई सुनने वाला और न ही कोई उन्हें एक चादर देकर इज्जत ढंकने वाला। कुछ महिलाओं का वॉटर ब्रेक हो चुका था। शरीर से तरल पदार्थ बहता हुआ जमीन पर गिर रहा था। मगर कोई ध्यान देने को तैयार नहीं।

आमतौर पर लेबर रूम में किसी भी पुरुष के प्रवेश की इजाजत नहीं होती, मगर यहां पुरुष वार्डबॉय भी काम के सिलसिले में घूम रहे थे। कुछ महिला नग्न अवस्था में लेटी हुईं थी। वार्ड में मौजूद बाकी मेडिकल स्टाफ अपनी नियमित ड्यूटी पूरी करने में व्यस्त थे, उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं कि वहां कौन एंट्री कर रहा है। लेबर पेन में तड़पती ये महिलाएं खुद ही एक-दूसरे को सहारा देने का काम कर रही थीं।

हर मरीज के नसीब में नहीं आता अस्पताल का बिस्तर, डिलीवरी के अगले ही दिन जमीन पर गद्दा बिछाए बैठ जाती हैं महिलाएं।
हर मरीज के नसीब में नहीं आता अस्पताल का बिस्तर, डिलीवरी के अगले ही दिन जमीन पर गद्दा बिछाए बैठ जाती हैं महिलाएं।

ये तो बच्चा पैदा होने तक की जंग है, इसके बाद हम उस वार्ड में पहुंचे जहां नॉर्मल डिलीवरी के बाद महिलाओं को रखा जाता है। यहां भी आलम कुछ खास नहीं था। एक बिस्तर पर दो-दो महिलाएं लेटी हुई थी। किसी को बिस्तर पर जगह नहीं मिली तो उन्होंने जमीन पर ही गद्दा बिछाकर नवजात को लेकर लेटना सही समझा।

लापरवाही की हद तो तब देखने को मिली जब एक नवजात लावारिस लेटा हुआ मिला। उस बच्चे के साथ न ही उसकी मां थी, न ही कोई नाते-रिश्तेदार उस बच्चे का ख्याल रखने के लिए मौजूद थे। ड्यूटी पर मौजूद नर्स को भी बच्चे की कोई जानकारी नहीं थी।

दिल्ली के अंबेडकर राव अस्पताल में रोजाना 500 से अधिक मरीज ओपीडी के लिए आते हैं।
दिल्ली के अंबेडकर राव अस्पताल में रोजाना 500 से अधिक मरीज ओपीडी के लिए आते हैं।

अस्पताल - 2 - जीटीबी अस्पताल
स्थान - दिलशाद गार्डन

महिला बच्चे को जन्म दे रही थी और नर्स उसे थप्पड़ मारते हुए कहती है लेबर रूम में चलो
पूर्वी दिल्ली के सबसे बड़े अस्पताल गुरु तेग बहादुर अस्पताल में आस-पास के इलाके की ज्यादातर महिलाएं इलाज कराने आती हैं। यहां पोस्ट डिलीवरी वार्ड में हालत भले ही बेहतर हो मगर प्री-लेबर रूम में महिलाओं को जानवरों से भी बुरा बरताव किया जाता है। प्री-लेबर रूम में मुश्किल से 6-7 बिस्तर होंगे, हर बेड पर कम के कम 3 महिलाएं तो बैठी ही थी।

जब उनसे बात की तो पता लगा कि रात के समय यहां एक बेड पर 4-4 महिलाओं को बैठाया जाता है। लेबर पेन में कराहती ये गर्भवतियां लेटना तो दूर बैठने के लिए भी संघर्ष करती हैं। नाथू कॉलोनी निवासी सुषमा बताती हैं कि अगर हम टॉयलेट के लिए बिस्तर छोड़कर जाते हैं तो वापस आने पर जगह मिल जाए इस बात की भी गारंटी नहीं होती। इसलिए घंटों टॉयलेट रोककर बैठे रहते हैं।

अस्पताल में दवा मिल जाती है मगर जगह नहीं मिलती। दिन में तीन और रात को एक बेड पर 4 मरीज।
अस्पताल में दवा मिल जाती है मगर जगह नहीं मिलती। दिन में तीन और रात को एक बेड पर 4 मरीज।

हर्ष विहार की रानी (नाम बदला हुआ) बताती हैं कि उन्हीं के सामने वाले बिस्तर पर कुछ घंटे पहले ही एक महिला की डिलीवरी हुई, वे ऑपरेशन थिएटर तक भी नहीं जा सकी। उसे कई घंटों से दर्द हो रहा था और डॉक्टर को बार-बार पुकार रही थी, मगर किसी ने उसकी नहीं सुनी। जब बच्चा बाहर आता दिखा, तब जाकर डॉक्टर व नर्स उसके पास पहुंचे।

उसे अगले कमरे में ले जाने के लिए कोई स्ट्रेचर या व्हीलचेयर नहीं लाई गई बल्कि नर्स उसी महिला को थप्पड़ मारते हुए कहने लगी की पैदल चलकर बगल के कमरे में जाओ, वहां डिलीवरी होगी। रानी बताती हैं कि ये सब देखकर वह खुद अपनी डिलीवरी को लेकर काफी डर हुई हैं। उनका कहना है कि यहां डॉक्टर तब तक मरीज को गंभीरता से नहीं लेते जब तक जान पर न आ पड़े।

टॉयलेट भी जाना हो तो घंटों करती हैं इंतजार, कि कहीं वापस आई तो बिस्तर पर जगह न मिले।
टॉयलेट भी जाना हो तो घंटों करती हैं इंतजार, कि कहीं वापस आई तो बिस्तर पर जगह न मिले।

अस्पताल-3: सफदरजंग अस्पताल
स्थान - नई दिल्ली

खाली बेड होने पर भी मरीज भर्ती क्यों नहीं
सेंट्रल हॉस्पिटल सफदरजंग अस्पताल देश और राजधानी के सबसे बड़े अस्पतालों में एक है। यहां सिर्फ दिल्ली ही नहीं बल्कि आस-पास के क्षेत्र से मरीज रेफर होकर आते हैं, क्योंकि यहां स्वास्थ्य सेवाएं अधिक हैं, हर तरह की मशीन और एनआईसीयू भी मौजूद है। प्रसूति और स्त्री रोग विभाग के लिए अलग से पांच मंजिला बिल्डिंग है, दो लेबर रूम हैं। हर फ्लोर पर 10 से ज्यादा वार्ड रूम बने हैं। इनमें मरीजों के लिए पर्याप्त जगह है। नियम के अनुसार मरीज के साथ सिर्फ एक ही तीमारदार अस्पताल में रुक सकता है, मगर इसके बाद भी एक मरीज के साथ करीब 3-4 लोग बैड पर कब्जा किए बैठे रहते हैं।

सफदरजंग अस्पताल में मरीजों के लिए व्यवस्था सभी, मगर एंट्री पाना मुश्किल, करना पड़ता है इंतजार।
सफदरजंग अस्पताल में मरीजों के लिए व्यवस्था सभी, मगर एंट्री पाना मुश्किल, करना पड़ता है इंतजार।

तीसरे और चौथे तल पर पहुंचने पर कई पोस्ट डिलीवरी वार्ड में बिस्तर खाली पड़े हुए दिखे। इसके बावजूद इमरजेंसी में आए मरीज को भर्ती करने से पहले मेडिकल स्टाफ उन्हें ओपीडी का पर्चा लेकर आने को कहता है। मरीज को तुरंत बेड नहीं दिया जाता।

दो लेबर रूम में दिन-रात होती है डिलीवरी, ड्यूटी पर रहते नर्सिंग स्टाफ करता है महिलाओं की जांच।
दो लेबर रूम में दिन-रात होती है डिलीवरी, ड्यूटी पर रहते नर्सिंग स्टाफ करता है महिलाओं की जांच।

अस्पताल - 4 - दीन दयाल उपाध्याय हॉस्पिटल
स्थान - हरी नगर
दिल्ली के ​दीन दयाल उपाध्याय हॉस्पिटल में फर्स्ट और सेकंड फ्लोर पर मैटरनिटी वार्ड बने हुए हैं। एक फ्लोर पर करीब 7 रूम हैं। हर में रूम 3-4 महिलाएं थीं, जबकि कई सारे बेड खाली भी पड़े थे। हालांकि, वार्ड के गर्भवती महिलाओं के साथ आए, उनके परिजनों के बैठने के ​लिए सिर्फ दो बेंच पड़ी थी। इस कारण ज्यादातर लोग जमीन पर लेटे-बैठे थे। एक महिला टॉयलेट में जमीन पर बैठी कपड़े धुल रही थी। बात करने पर पता चला कि बहू पूजा ने पोती को जन्म दिया है। कल छुट्टी होगी। पोती ने कपड़े गंदे कर दिए हैं। वहीं धुल रही हैं। जबकि वार्ड में भर्ती ज्यादातर महिलाएं दिल्ली की रहने वाली थी।

कभी लिफ्ट तो कभी शौचालय के बाहर ठिकाना बनाते हैं तीमारदार, नहीं है बैठने की व्यवस्था।
कभी लिफ्ट तो कभी शौचालय के बाहर ठिकाना बनाते हैं तीमारदार, नहीं है बैठने की व्यवस्था।

अस्पताल - 5 - जिला अस्पताल नोएडा
स्थान - सेक्टर-30 नोएडा
जिला अस्पताल नोएडा के फर्स्ट फ्लोर पर मैटरनिटी वार्ड बना है। वार्ड की स्थिति बेहतर है। भर्ती हुई महिलाओं को दवाएं व देखभाल ठीक से मिल रही है। बाहर वार्ड पर भर्ती गर्भवती महिलाओं के साथ आईं तीमारदार महिलाएं भी उन्हीं के साथ बेड पर बैठीं नजर आईं।

नोएडा जिला अस्पताल में मरीज और तीमारदार दोनों के लिए पर्याप्त जगह नहीं है।
नोएडा जिला अस्पताल में मरीज और तीमारदार दोनों के लिए पर्याप्त जगह नहीं है।