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मेंस्ट्रुअल कप और पी डिवाइस प्राइवेट पार्ट का सुरक्षा कवच:सैनिटरी पैड बदलने की टेंशन से राहत, गंदे टॉयलेट से भी मुक्ति

नई दिल्ली2 महीने पहलेलेखक: ऐश्वर्या शर्मा
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महिलाओं को 2 चीजें सबसे ज्यादा कॉन्शियस बना देती हैं- पीरियड्स और वॉशरूम की जरूरत। पीरियड्स में सैनिटरी पैड्स बदलने की टेंशन और यूरिन का प्रेशर आते ही घर से बाहर टॉयलेट खोजने पर भी न मिलने की टेंशन।

यह दोनों हालात महिला की सेहत के दुश्मन भी बन सकते हैं।

यह बात कितनी गंभीर है इसे ऐसे समझा जा सकता है कि दुनिया में हर साल 15 करोड़ मामले यूटीआई यानी यूरीनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन के सामने आते हैं। 5 में से 1 महिला इसकी शिकार होती है। ये आंकड़े अमेरिका की नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के हैं। इंटरनेशनल जर्नल ऑफ साइंस एंड रिसर्च के अनुसार 3 में से 1 महिला को 24 साल की उम्र से पहले यूटीआई का इलाज कराना पड़ता है। भारत की बात करें तो यहां न यूटीआई के आंकड़े हैं और न ही इस इश्यू पर बात होती है।

महिलाओं को प्राइवेट पार्ट से जुड़ी समस्याएं अधिक होती हैं। इसकी वजह पीरियड्स के दौरान साफ-सफाई न रखना और यूरिन को लंबे समय तक रोकना और गंदे टॉयलेट्स का इस्तेमाल करना है। मजबूरी इतनी कि इस बारे में किसी से बात भी नहीं कर सकतीं और न ही उनकी इस समस्या को कोई समझ पाता है।

वहीं, पीरियड्स भी महिलाओं के लिए मुसीबत साबित हो सकते हैं। पेट का दर्द सताता है और बार-बार सैनिटरी पैड बदलने की जरूरत महसूस होती है। समय पर सैनिटरी पैड चेंज न हो तो कपड़े खराब हाेने का डर लगा रहता है। साथ ही रैशेज और प्राइवेट पार्ट में इन्फेक्शन होने का खतरा भी रहता है।

पीरियड्स में हाइजीन सबसे ज्यादा जरूरी है।

भारत में 64% महिलाएं इस्तेमाल करती हैं सैनिटरी नैपकिन

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (2019-21) में सामने आया है कि भारत में 15 से 24 साल की उम्र की 64% महिलाएं सैनिटरी नैपकिन इस्तेमाल करती हैं। जबकि 49.6% महिलाएं पीरियड्स में सैनिटरी नैपकिन और कपड़ा यूज करती हैं। 15% महिलाएं लोकल लेवल पर बने नैपकिन और केवल 0.3% महिलाएं ही मेंस्ट्रुअल कप यूज करती हैं। यानी एक ही महिला अलग-अलग तरीकों के प्रॉडक्ट यूज करती हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक पीरियड्स होने पर देश की 77.6% महिलाएं स्वच्छ और सुरक्षित तरीके अपनाती हैं।

बिहार, मध्यप्रदेश और मेघालय में सबसे कम इस्तेमाल

उत्तर प्रदेश, असम और छत्तीसगढ़ में 15 से 24 साल तक की उम्र की 70% लड़कियां इसका इस्तेमाल करती हैं। सबसे कम सुरक्षित मेंस्ट्रुअल प्रोडक्ट बिहार (59.2%), मध्यप्रदेश (60.9%) और मेघालय (65.3%) में इस्तेमाल किए जाते हैं।

पीरियड्स में सफाई न रखना मौत का पांचवां सबसे बड़ा कारण

पीरियड्स के दौरान मेन्स्ट्रुअल हाइजीन ना रखना महिलाओं में स्वास्थ्य समस्याओं के चलते जान गंवाने का दुनिया में 5वां कारण है। वॉटर ऐड की रिपोर्ट के अनुसार पानी की कमी और हाइजीन नहीं होने के कारण दुनिया में 8 लाख महिलाएं अपनी जान गंवा देती हैं।

इन्हीं समस्याओं से निपटने की खातिर महिलाओं के लिए बने मेंस्ट्रुअल कप और पी डिवाइस बहुत उपयोगी है। यूरिन इंफेक्शन से बचने के लिए पी डिवाइस एक मजबूत हथियार है।

आज महिलाओं के लिए बने 2 हाइजीनिक सैनिटरी प्रोडक्ट्स के बारे में बात करते हैं। पहले बात मेंस्ट्रुअल कप की:

मेंस्ट्रुअल कप प्राइवेट पार्ट में फिट होता है

पीरियड्स में सैनिटरी पैड और टैंपून का इस्तेमाल करना एक ड्यूटी बन जाता है। लेकिन टैंपून और पैड के मुकाबले मेंस्ट्रुअल कप को बार-बार इन्हें खरीदने और बदलने का झंझट नहीं होता। सर गंगाराम हॉस्पिटल, दिल्ली में गायनोलॉजिस्ट डॉ. माला श्रीवास्तव कहती हैं कि मेंस्ट्रुअल कप सेहत के लिहाज से सैनिटरी पैड के मुकाबले ज्यादा सेफ है। इसे कोई भी बहुत आसानी से इस्तेमाल कर सकता है।

यह नेचुरल रबर या सिलिकॉन के बने होते हैं। इन्हें वजाइनल कैनॉल में फिट किया जाता है जिससे पीरियड्स का ब्लड इसमें जमा होता है।

मेंस्ट्रुअल कप लचीले होते हैं जो आसानी से धोकर दोबारा इस्तेमाल किए जाते हैं। 1 मेंस्ट्रुअल कप को साफ करके 10 साल तक इस्तेमाल कर सकते हैं।

ग्राफिक्स से जानिए मेंस्ट्रुअल कप के फायदे:

स्किन के साथ ही नेचर और पॉकेट फ्रेंडली

फोर्टिस हॉस्पिटल, नोएडा में गायनोकॉलोजिस्ट डॉ. आराधना सिंह के अनुसार मेंस्ट्रुअल कप ग्रीन मेंस्ट्रुअल प्रोडक्ट के तहत आते हैं। ये डिस्पोजेबल सैनिटरी पैड के मुकाबले स्किन फ्रेंडली और नेचर फ्रेंडली हैं।

सैनिटरी पैड्स पर्यावरण के लिए खतरनाक हैं। लेकिन मेंस्ट्रुअल कप री-यूजेबल हैं। यह 500 रुपए का 1 कप 10 साल तक इस्तेमाल किया जा सकता है जो इसे पॉकेट फ्रेंडली भी बनाता है।

क्यों न करें सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल?

भारत में सैनिटरी पैड का बाजार 5661 करोड़ रुपए का है। 64% महिलाएं इसका इस्तेमाल करती हैं। लेकिन इनका इस्तेमाल कैंसर की जड़ माना जाता है। भारत में जारी 'मेंस्ट्रुअल वेस्ट 2022' की रिपोर्ट के अनुसार सैनिटरी नैपकिन में Phthalates नाम का केमिकल इस्तेमाल होता है जो प्लास्टिक बनाने में भी यूज होता है। यह केमिकल कैंसर का कारण बन सकता है। साथ ही इनफर्टिलिटी, पीसीओडी और एंडोमेट्रियोसिस की दिक्कत भी कर सकता है। इससे लकवा मार सकता है और याददाश्त भी जा सकती है।

1 सैनिटरी नैपकिन 4 प्लास्टिक बैग के बराबर पर्यावरण फैलाता है

सैनिटरी नैपकिन पर्यावरण की सेहत भी बिगाड़ रहे हैं। 'टॉक्सिक लिंक्स' नाम के एन्वायरमेंट ग्रुप की रिपोर्ट के अनुसार भारत में साल 2021 में 1230 करोड़ सैनिटरी पैड कूड़ाघर में फेंके गए। एक सैनिटरी पैड 4 प्लास्टिक बैग के बराबर है। इसे नष्ट होने में 250 से 800 साल का वक्त लग जाता है।

भारत में 35 करोड़ महिलाओं को पीरियड्स होते हैं और हर महीने 1 महिला करीब 20 सैनिटरी पैड इस्तेमाल करती है। इससे आप सोच सकते हैं कि पर्यावरण कितना दूषित हो रहा है।

पानी में उबालकर ही इस्तेमाल करें

मेंस्ट्रुअल कप 6 से 8 घंटे तक लगा सकते हैं। जिस महिला को पीरियड्स में हैवी फ्लो रहता है या ट्रैवलिंग के दौरान यह डिवाइस बहुत सुविधाजनक रहती है। इसे धोकर दोबारा यूज किया जा सकता है लेकिन इसकी सफाई पर ध्यान देना जरूरी है।

हर इस्तेमाल से पहले मेंस्ट्रुअल कप को गर्म पानी में उबालना चाहिए और जब पीरियड्स खत्म हो जाएं तो साफ करके सूखे कपड़े से ढककर रखना चाहिए। उबाल नहीं सकते तो इलेक्ट्रिक सैनिटाइजर से साफ भी कर सकते हैं।

अगले महीने मेंस्ट्रुअल कप दोबारा यूज किया जा सकता है। अगर मेंस्ट्रुअल कप लगाकर ट्रैवल कर रही हैं तो इसका ब्लड डिस्कॉर्ड कर टिश्यू पेपर से अच्छी तरह साफ करके इसे दोबारा यूज किया जा सकता है।

लापरवाही से हो सकता है इन्फेक्शन

मेंस्ट्रुअल कप से इन्फेक्शन नहीं होता, यह बात सही है। लेकिन अगर हाइजीन का ध्यान नहीं रखा जाएगा तो इन्फेक्शन हो सकता है। अगर कोई महिला मेंस्ट्रुअल कप को बिना पानी में उबाले इस्तेमाल करती हैं, इसे निकालते समय या डालते समय उसके हाथ साफ नहीं होते तो प्राइवेट पार्ट में इन्फेक्शन हो सकता है।

हाथों पर कई बैक्टीरिया होते हैं। अगर बिना हाथ धोए कप लगाया जाए तो बैक्टीरिया कप के जरिए प्राइवेट पार्ट में चले जाते हैं। इससे वजाइना का एसिडिक लेवल जिसे pH कहा जाता है, वह असंतुलित हो जाता है। इसलिए मेंस्ट्रुअल कप को लगाते और निकालते समय हमेशा हाथों को साबुन से अच्छे तरीके से धोना चाहिए।

डॉ. आराधना सिंह के अनुसार कई बार महिलाएं मेंस्ट्रुअल कप को निकालकर कहीं भी रख देती हैं या उसे साफ तो करती हैं लेकिन अच्छे से स्टोर करके नहीं रखतीं, यह भी इन्फेक्शन का कारण बन जाता है।

अनमैरिड लड़कियों को आ सकती है दिक्कत

नोएडा के कम्यूनिटी हेल्थ सेंटर में गायनोकॉलोजिस्ट डॉ. मीरा पाठक कहती हैं कि अक्सर मेंस्ट्रुअल कप को लगाने में अनमैरिड लड़कियों को दिक्कत आती है। यह उनके लिए पेनफुल भी हो सकता है क्योंकि इसे प्राइवेट पार्ट के अंदर फिट करना होता है। ऐसे में वह गायनोकॉलोजिस्ट की मदद से इसे लगाना सीख सकती हैं।

मेंस्ट्रुअल कप 2 साइज के होते हैं। ग्राफिक्स देखिए:

संबंध बनाने में नहीं आती दिक्कत, लेकिन प्रेग्नेंसी नहीं रुक सकती

डॉ. मीरा पाठक के अनुसार मेंस्ट्रुअल कप लगाने के दौरान संबंध भी बनाए जा सकते हैं। दरअसल, यह कप वजाइना के अंदर सर्विक्स पर फिट होते हैं। अधिकतर इसका हिस्सा सर्विक्स में होता है इसलिए संबंध बनाते हुए पार्टनर को एहसास ही नहीं होगा कि मेंस्ट्रुअल कप फिट हैं।

इसमें लीकेज का डर नहीं रहता। लेकिन इससे प्रेग्नेंसी नहीं रुक सकती है क्योंकि मेंस्ट्रुअल कप स्पर्म की यूट्रस में एंट्री को नहीं रोक सकता।

अगर इन्फेक्शन हो तो न करें इस्तेमाल

डॉ. आराधना सिंह कहती हैं कि मेंस्ट्रुअल कप का इस्तेमाल हमेशा गायनोकॉलोजिस्ट से पूछकर ही करें। अगर किसी को पीरियड्स में हेवी ब्लीडिंग होती है तो उनके लिए यह कप अच्छा है। लेकिन किसी महिला को वजाइनल इन्फेक्शन, सर्वाइकल इन्फेक्शन हो, गर्भाशय में फैबरॉइड हो या यूट्रस बाहर आ गया हो तो ऐसी महिलाओं को मेंस्ट्रुअल कप इस्तेमाल नहीं करने की सलाह दी जाती है। अगर किसी महिला की कोई सर्जरी हुई हो तब भी ऐसा करने से मना किया जाता है।

6 से 8 घंटे में खाली करने होते हैं मेंस्ट्रुअल कप

दिल्ली के बीएलके मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल में गायनोकॉलोजिस्ट डॉ. निधि खेरा के अनुसार मेंस्ट्रुअल कप के बारे में अनमैरिड और मैरिड महिलाओं के कई सवाल होते हैं। लेकिन शादीशुदा महिला को ही हम इसे इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं। इसे 6-8 घंटे में खाली कर देना चाहिए। अगर किसी को पीरियड्स का हैवी फ्लो हो तो और जल्दी बदल देना चाहिए क्योंकि अगर मेंस्ट्रुअल कप भर जाए तो लीकेज हो सकती है।

मेंस्ट्रुअल कप का इस्तेमाल करने से पहले कई चीजों पर ध्यान देना होता है, ग्राफिक्स देखिए:

अटक सकता है मेंस्ट्रुअल कप, लेकिन सेहत को कोई खतरा नहीं

डॉ. निधि खेरा कहती हैं कि मेंस्ट्रुअल कप को वजाइना में रखने का एक तरीका होता है। कप की C या U शेप बनाकर उसे अंदर डालकर सर्विक्स पर फिट किया जाता है। अगर यह ठीक से फिट नहीं किया जाए या सही साइज का न हो तो यह अंदर टेढ़ा हो सकता है। इससे दर्द होगा लेकिन यह खतरनाक नहीं है। अगर यह अटक जाए तो गायनोकॉलोजिस्ट के पास जाकर निकलवा लें।

कुंवारी लड़कियों से दूर है मेंस्ट्रुअल कप

डॉ. निधि खेरा कहती हैं कि हमारी सोसायटी में मेंस्ट्रुअल कप को लेकर जागरूकता की कमी है। कुछ जगहों में यह बिक भी नहीं रहा। कुछ महिलाओं को लगता है कि यह महंगा है जबकि अगर सैनिटरी पैड से इसकी कीमत आंकी जाए तो यह काफी सस्ता है।

हमारी सोसाइटी में वर्जिनिटी एक बड़ा मुद्दा है। अनमैरिड लड़कियों को हम भी इसका इस्तेमाल करने की सलाह नहीं देते। हालांकि इसका कोई मेडिकल कारण नहीं है। लेकिन सोसायटी के हिसाब से देखा जाए तो इससे लड़कियों को शादी से पहले वर्जिनिटी खोने का डर रहता है क्योंकि मेंस्ट्रुअल कप से हाइमेन की झिल्ली टूट जाती है जिसे थोड़ा दर्द होता है। लेकिन अगर किसी अनमैरिड लड़की को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता तो वह इनका इस्तेमाल कर सकती हैं।

हमने 4 गायनोकॉलोजिस्ट से मेंस्ट्रुअल कप के बारे में बात की और चारों ने ही इसे सुरक्षित बताया। ऐसे में इसके इस्तेमाल से परहेज करना खुद की सेहत के साथ-साथ पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाना है।

अब बात करते हैं पी डिवाइस की यानी बिना बैठे यूरिन करने का आसान तरीका। लेकिन उससे पहले ग्राफिक्स में देखिए सैनिटरी पैड, टैंपून और मेंस्ट्रुअल कप भारत में कब आए:

खड़े होकर यूरिन हो सकता है पास

डॉ. आराधना सिंह कहती हैं कि पी डिवाइस ट्रैवलिंग के दौरान अच्छा ऑप्शन है। घर से बाहर महिलाओं को अक्सर गंदे पब्लिक टॉयलेट मिलने की समस्या से दो-चार होना पड़ता है।

इसे वजाइना के अंदर लगाने की भी जरूरत नहीं। इसे यूरेथ्रा पर रखकर यूरिन किया जाता है। इसमें बैठने की भी जरूरत नहीं क्योंकि यह खड़े-खड़े आसानी से यूज किया जा सकता है। यह पोर्टेबल यूरिनेशन डिवाइस है।

यूरिन इंफेक्शन से बचाए

पिंकिशी और सैन्फे नाम की कंपनी ने भारत में एक ऑनलाइन सर्वे कराया, जिसमें सामने आया कि 90% महिलाएं पब्लिक टॉयलेट इस्तेमाल करने से डरती हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह है गंदगी। महिलाओं ने गंदे शौचालय का इस्तेमाल करने के मुकाबले यूरिन को रोकना बेहतर समझा। ऐसी ही सिचुएशन से बचने के लिए पी डिवाइस बने हैं।

पी सेफ नाम की कंपनी के अनुसार भारत में 50% महिलाएं अपनी पूरी जिंदगी में एक यूरिन ट्रैक्ट इन्फेक्शन यानी यूटीआई का शिकार जरूर होती हैं।

यूटीआई में मूत्राशय और इसकी नली के जरिए ई-कोलाई नाम का बैक्टीरिया यूरिनरी ट्रैक्ट के जरिए शरीर में घुसकर ब्लैडर और किडनी को नुकसान पहुंचाता है। महिलाएं इस इन्फेक्शन की ज्यादा शिकार होती है क्योंकि उनका यूरेथ्रा गंदी टॉयलेट सीट पर बैठने से जल्दी बैक्टीरिया के कॉन्टेक्ट में आ सकता है।

पी डिवाइज कई तरह के आते हैं, ग्राफिक्स में देखिए:

जोड़ों में दिक्कत तो बड़े काम की चीज

अगर किसी महिला को मसल्स पेन या आर्थराइटिस यानी गठिया की परेशानी हो तो उसे बैठकर यूरिन करने में परेशानी होती है। ऐसे में पी डिवाइस बहुत मददगार साबित होते हैं।

ग्राफिक्स: सत्यम परिडा

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