चमकती-दमकती स्किन पाने के लिए लड़कियां सदियों से तरह तरह के जतन करती रही हैं। शरीर के किसी हिस्से पर बॉडी हेयर नजर न आएं, इसके लिए वे वैक्सिंग और थ्रेडिंग से लेकर प्लकिंग तक की तकलीफ भी सह जाती हैं।
मगर, अब पुरुषों की तरह लड़कियां भी शेविंग कर रही हैं, ताकि वे होंठों के ऊपर-नीचे, गाल और चिन समेत शरीर के दूसरे हिस्सों पर मौजूद बॉडी हेयर से निजात पा सकें।
पुरुषों की तरह वे भी अपने लिए बकायदा वुमन शेविंग किट रखने लगी हैं, जिसमें रेजर से लेकर आफ्टर शेविंग स्मूदिंग जेल तक शामिल है।
सिर्फ वुमन रेजर का ग्लोबल मार्केट ही अरबों रुपए का हो चुका है...
कुछ साल पहले तक लड़कियों के लिए शेविंग बहुत खराब बात मानी जाती थी। चेहरे पर रेजर चलाना तो छोड़ दीजिए, बॉडी हेयर के लिए शेविंग करना किसी गुनाह से कम नहीं था। इसकी वजह थी शेविंग से जुड़े मिथ, जिनमें ये माना जाता है कि रेजर का इस्तेमाल से बॉडी हेयर थिक और डार्क हो जाते हैं, बालों की ग्रोथ बढ़ जाती है और स्किन डार्कनिंग की प्रॉब्लम भी हो जाती है। आज भी इसी मिथ से घिरी हुई हैं।
रिसर्च गेट पर मौजूद एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन में 99 फीसदी महिलाएं शरीर के किसी न किसी हिस्से से बॉडी हेयर रिमूव करती हैं। इंडिया में 75 फीसदी महिलाएं प्यूबिक हेयर रिमूव करवाती हैं। हालांकि, अधिकतर महिलाएं इसके लिए ब्यूटी सैलून जैसी जगहों पर जाकर प्रोफेशनल्स की मदद लेती हैं।
‘बॉम्बे बाई बॉम्बे शेविंग कंपनी’ की चीफ एक्सपीरियंस ऑफिसर सिद्धा जैन बताती हैं कि लॉकडाउन से पहले तक 80 से 90 फीसदी हेयर रिमूविंग मार्केट सैलून, पार्लर जैसी सर्विसेज के कब्जे में था। जहां वैक्सिंग से लेकर थ्रेडिंग तक की सर्विसेज मिलती हैं। लेकिन, लॉकडाउन के दौरान जब इन सर्विसेज पर रोक लगी तो लड़कियों ने हेयर रिमूविंग के लिए घरेलू उपायों पर ध्यान देना शुरू किया।
और, इसके साथ ही महिलाओं में शेविंग तेजी से पॉपुलर हुई। लॉकडाउन के बाद 2020-21 में हेयर रिमूविंग प्रोडक्ट्स बनाने वाली इंडस्ट्री में बूम आया। यह तरीका महिलाओं को इतना पसंद आया कि पुरुषों के लिए डेडिकेटेड मानी जाने वाली शेविंग इंडस्ट्री ने खासतौर पर महिलाओं की शेविंग से जुड़े प्रोडक्ट्स बनाने पर फोकस बढ़ा दिया।
लॉकडाउन की पाबंदियों के बीच लड़कियों में किस तरह शेविंग हैबिट्स बदलीं, बता रही हैं एक्सपर्ट...
शेविंग के बाद बाल डार्क और थिक क्यों लगते हैं?
लड़के हों या लड़कियां, अधिकतर का मानना है कि शेविंग से बाल सख्त, घने और मोटे हो जाते हैं। लेकिन, यह सिर्फ मिथ है। अमेरिका के मायो क्लिनिक के मुताबिक शेविंग की वजह से बालों की थिकनेस, कलर या फिर ग्रोथ पर कोई असर नहीं पड़ता। शेविंग के बाद भी आपके बॉडी हेयर वैसे ही रहते हैं, जैसे पहले थे।
शेविंग की वजह से सारे बाल एक बराबर हो जाते हैं। इसलिए एक-दो दिन बाद जब बाल बढ़ने शुरू होते हैं, तब हमें खुरदरेपन का अहसास होता है। इसी वजह से इस फेज में बाल ज्यादा थिक और डार्क लगते हैं।
डॉक्टर ने बताया शेविंग से बालों की ग्रोथ पर क्यों कोई असर नहीं पड़ता...
लड़कियों के मन में शेविंग से जुड़ी कई तरह की धारणाएं जड़े जमाए हैं। लेकिन, हकीकत इसके एकदम उलट होती है। ऐसी गलत धारणाओं की वजह से शेविंग तकलीफदेह भी हो सकती है।
इसलिए इन सभी मिथ की सच्चाई जाननी जरूरी है...
लड़के और लड़कियों की स्किन में ही अंतर नहीं होता है, बल्कि दोनों के शरीर पर उगने वाले बालों में भी अंतर होता है
दो तरह के बॉडी हेयर
लड़के और लड़कियों दोनों के चेहरे और शरीर के दूसरे हिस्सों पर 2 तरह के बाल होते हैं- वेलस हेयर और टर्मिनल हेयर।
वेलस हेयरः ठुड्डी, गाल, माथा, गर्दन और होंठ के ऊपर-नीचे वे हल्के रोएं हैं, जो आमतौर पर आसानी से दिखाई नहीं देते।
टर्मिनल हेयर: थोड़े डार्क, थिक और लंबे होते हैं और अक्सर अपर-लोअर लिप्स, चिन और गले के आसपास देखे जा सकते हैं।
लड़कियों के चेहरे पर वेलस हेयर ज्यादा होते हैं, जबकि लड़कों के चेहरे और शरीर के दूसरे हिस्सों पर टर्मिनल हेयर ज्यादा होते हैं।
शेविंग के जरिए इन दोनों तरह के बालों को साफ किया जा सकता है...
लड़कियों की स्किन के लिए फायदेमंद है शेविंग
डॉ. हरलीन बताती हैं कि शेविंग के काफी फायदे हैं। धूल, डेड स्किन और मेकअप के अंश की वजह से चेहरे की स्किन रूखी और खुरदुरी महसूस हो सकती है। शेविंग से डेड स्किन और त्वचा पर चिपकी धूल, मेकअप, जर्म्स साफ हो जाते हैं। स्किन स्मूद और सॉफ्ट फील होने लगती है, ग्लो बढ़ जाता है। फॉलिकल्स खुल जाते हैं, इससे स्किन केयर प्रोडक्ट आसानी से एब्जॉर्ब होते हैं।
लेकिन, इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि शेविंग का तरीका सेफ हो...
हेयर रिमूविंग के दूसरे तरीकों से ज्यादा आसान है शेविंग
एक्सपर्ट्स का कहना है कि कुछ लोगों की स्किन सेंसिटिव होती है, जिससे वैक्सिंग और केमिकल्स वाले प्रोडक्ट्स का खराब असर पड़ता है। थ्रेडिंग, प्लकिंग जैसे तरीके काफी टाइम कंज्यूमिंग होते हैं और इनसे होने वाला दर्द महिलाएं सहन करना नहीं चाहतीं। जबकि, इसके विपरीत शेविंग ज्यादा आसान है। बिना किसी एक्सपर्ट के इसे घर पर खुद से कर सकते हैं। वैक्सिंग की तरह इसमें कोई दर्द भी नहीं होता।
हालांकि, महिलाओं को शेविंग के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती, इसलिए अक्सर उनसे कई तरह की गलतियां होती हैं...
महिलाओं के लिए मार्केट में अलग शेविंग किट
कुछ महिलाएं पुरुषों के शेविंग प्रोडक्ट्स यूज करती हैं, तो कुछ कपल एक ही शेविंग किट शेयर करते हैं। लेकिन, अब मार्केट में महिलाओं के लिए खासतौर पर डिजाइन किए गए रेजर से लेकर शेविंग क्रीम, जेल और दूसरे शेविंग प्रोडक्ट्स मौजूद हैं।
ये प्रोडक्ट्स महिलाओं की शेविंग हैबिट्स, उनकी स्किन और जरूरतों का ख्याल रखते हुए बनाए गए हैं। उदाहरण के तौर पर, मेल रेजर की तुलना में महिलाओं के लिए बनाए गए रेजर ज्यादा एरिया कवर करते हैं, उनकी ग्रिप कर्वी एरिया में शेविंग के लिए सहूलियत देती है। अलग-अलग बॉडी पार्ट्स के लिए फेस रेजर से लेकर प्यूबिक रेजर तक आने लगे हैं।
ट्रिमर और ट्विस्टर जैसे प्रोडक्ट्स ट्रैवेलिंग के दौरान आसानी से इस्तेमाल किए जा सकते हैं।
महिलाओं की स्किन पुरुषों की तुलना में ज्यादा सेंसिटिव होती है। इसीलिए उनके लिए शेविंग क्रीम, सूदिंग जेल और आफ्टर शेव मॉइश्वराइजर तक अलग आते हैं। पुरुषों के प्रोडक्ट्स की तुलना में महिलाओं के प्रोडक्ट्स में फ्रेगरेंस भी अलग होती है। वुमन शेविंग प्रोडक्ट्स पुरुषों के शेविंग प्रोडक्ट्स की तुलना में महंगे भी होते हैं।
लड़कियों का शेविंग करना बन जाती थी नेशनल न्यूज
आज से 100 साल पहले तो लड़कियों के शेविंग करने से जुड़ी खबर अमेरिका में नेशनल न्यूज बन जाती थी। 24 मई 1920 को अमेरिका के न्यूजपेपर 'द सिएटल स्टार' ने एक खबर छापी। एक लड़की ओपेन स्टॉकिंग ड्रेस पहनने के लिए अपने पैरों में शेविंग कर रही थी। इस दौरान टखने के नीचे रेजर लगने से वह चोटिल हो गई। लड़की अपने साथी डॉक्टर के पास गई। उस डॉक्टर ने यूनिवर्सिटी ऑफ कंसास हेल्थ कमेटी के सेशन के दौरान इस घटना की जानकारी दी।
अखबार में छपने के बाद यह घटना चर्चा का विषय बन गई...
सिर्फ एक्ट्रेस और डांसर यूज करती थीं हेयर रिमूविंग क्रीम
19वीं सदी का फैशन अलग था। महिलाओं की ड्रेसेज ऐसी बनती थीं, जिनमें वे सिर से पैर तक पूरी तरह ढंक जाती थीं। इसलिए उन दिनों महिलाएं हाथ-पैर और शरीर के दूसरे हिस्सों पर मौजूद बालों की परवाह नहीं करती थीं। 1910 के दशक से पहले हेयर रिमूविंग क्रीम्स का इस्तेमाल सिर्फ एक्ट्रेस और डांसर ही करती थीं या फिर सर्जरी से पहले इसे यूज किया जाता था।
महिलाओं में ऐसे शुरू हुआ बॉडी हेयर हटाने का चलन
आम महिलाओं में बॉडी हेयर हटाने का चलन कब और कैसे शुरू हुआ, इसपर भी रिसर्च हो चुकी है। 1982 में रिसर्चर क्रिस्टीन होप ने पाया कि 'Harper's Bazaar' और 'McCall's' जैसी मैग्जीन्स में 1915 में हेयर रिमूविंग क्रीम्स के विज्ञापन छपने शुरू हुए। कंपनियों ने चेहरे, गले और बगल में मौजूद बालों को टारगेट करते हुए विज्ञापन छपवाने शुरू किए। हेयर रिमूविंग क्रीम बनाने वाली कंपनियों का सबसे ज्यादा फोकस अंडरआर्म्स पर ही था।
1922 में Harper's Bazaar में छपा हेयर रिमूविंग क्रीम का विज्ञापन...
जब कंपनियां बताने लगीं कैसे बनें 'वेल ग्रूम्ड वुमन'
1920 के बाद ग्रीक और रोमन फैशन से इन्स्पायर होकर स्लीवलेस ड्रेसेज का ट्रेंड शुरू हुआ। इस फैशन से के आते ही महिलाओं की अंडरआर्म्स दिखने लगीं।
इस तरह, स्लीवलेस ड्रेसेज और हेयर रिमूविंग कंपनियां विज्ञापनों के जरिए महिलाओं के भीतर छिपी झिझक दूर करने में कामयाब हुईं। विज्ञापनों की मदद से महिलाओं के मन में यह बात बैठाई गई कि फैशनेबल दिखने के लिए अंडरआर्म्स का क्लीन होना जरूरी है।
इन विज्ञापनों में यहां तक कहा गया कि अंडरआर्म्स चेहरे जितनी ही स्मूद और चमकती हुई होनी चाहिए। कॉस्मेटिक कंपनियों के साथ ही पुरुषों के लिए शेविंग किट बनाने वाली जिलेट जैसी कंपनियों का ध्यान भी महिलाओं पर गया।
1917 में जिलेट कंपनी अपने विज्ञापनों में पुरुषों के साथ महिलाओं पर भी फोकस करने लगी...
50 साल में कंपनियों ने ऐसे बदला महिलाओं का मन
1901 में डिस्पोजेबल ब्लेड्स वाले सेफ्टी रेजर का आविष्कार हुआ और 1919 में इंस्टैंट शेविंग क्रीम आई, जिससे शेविंग आसान हो गई। 1920 में शॉर्ट स्कर्ट का ट्रेंड शुरू हुआ तो हेयर रिमूवल इंडस्ट्री ने पैरों पर भी फोकस करते हुए विज्ञापन देने शुरू कर दिए। क्रिस्टीन होप की रिसर्च के मुताबिक 1920 के दशक की शुरुआत में 'Harper's Bazaar' के 66 फीसदी विज्ञापनों में टांगों के बालों का जिक्र हुआ, जबकि 10 फीसदी विज्ञापन सिर्फ लेग्स की हेयर ग्रोथ पर थे। 1940 के दशक में 'Harper's Bazaar' में छपे बॉडी हेयर रिमूव करने से जुड़े 56 फीसदी विज्ञापनों का फोकस सिर्फ पैरों पर रहा।
1950 का दशक आते-आते फैशन ड्रेसेज में टांगों का दिखना नॉर्मल बात हो चुकी थी। इस दौरान पत्रिकाओं में ऐसे लेख छपे, जिनमें महिलाओं द्वारा पैरों के बाल न हटाने की बात को खराब बताया गया। 1964 में अमेरिका में 15 से 44 साल की 98 फीसदी महिलाओं ने बॉडी हेयर रिमूव कराने की बात मानी। इस समय में जो महिलाएं स्लीवलेस और शॉर्ट ड्रेसेज पहनना चाहती थीं, उनके लिए शेविंग करना जरूरी माना जाने लगा।
इस तरह, 50 साल में हालात एकदम बदल गए। 1920 में जहां किसी लड़की का शेविंग करना खबर बनी, वहीं 5 दशक के बाद हाथ-पैर और चेहरे पर नजर आने वाले बालों की आलोचना होने लगी।
महिलाओं और पुरुषों में शेविंग का चलन बीते 5 हजार साल से है, लेकिन समय के साथ इसमें बदलाव आते रहे...
ग्राफिक्स: सत्यम परिडा
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