• Hindi News
  • Women
  • Told My Mother I Want To Be A Girl, It Felt Wrong To Touch Boys, Research On Changing Gender, Then Became Priya

केरल की पहली ट्रांसवुमन डॉक्टर:मां से कहा-लड़की बनना चाहता हूं, लड़कों का छूना गलत लगता था, जेंडर बदलने पर की रिसर्च, फिर बनी प्रिया

केरलएक वर्ष पहलेलेखक: आयुषी गोस्वामी
  • कॉपी लिंक

21वीं सदी के भारत में ट्रांसजेंडर कम्युनिटी को आज भी रूढ़िवादी नजरिए से देखा जाता है। अपने ही परिवार का सहयोग न मिलने के कारण ये लोग सेक्स वर्क तक करने के लिए मजबूर हो जाते हैं। लेकिन क्या हो अगर इन्हें समाज का सहयोग मिले और दूसरों की तरह जीवन में बराबरी के अवसर मिलें? इसका जीता जागता उदाहरण हैं केरल की पहली ट्रांसजेंडर डॉक्टर वीएस प्रिया।

केरल के त्रिशूर की रहने वाली डॉ. प्रिया सीताराम आयुर्वेदिक हॉस्पिटल में कंसल्टेंट फिजीशियन हैं। करीब 30 साल तक परिवार की अपेक्षाओं को पूरा करने और दुनिया से अपनी पहचान छुपाने के बाद उन्होंने साल 2018 में एक बड़ा फैसला लिया। प्रिया ने हॉर्मोन थेरेपी और सर्जरी की मदद से अपना जेंडर बदलने की प्रक्रिया शुरू की। बड़ी बात यह है कि इसमें न केवल उनके माता-पिता, बल्कि सहकर्मियों और मरीजों ने भी साथ दिया।

बचपन में मां से कहा- मैं लड़की बनना चाहता हूं

त्रिशूर में जन्मी डॉ. प्रिया का नाम जिनु ससिधरन रखा गया था।
त्रिशूर में जन्मी डॉ. प्रिया का नाम जिनु ससिधरन रखा गया था।

त्रिशूर में जन्मी डॉ. प्रिया का नाम जिनु ससिधरन रखा गया था। पर इस नाम के साथ उनकी असली पहचान ने बहुत संघर्ष किया। प्रिया कहती हैं, "बचपन में हम जो अंदर महसूस करते हैं, वही बाहर दिखाते हैं। यह जीवन का सबसे मासूम वक्त होता है। मैं अपने माता-पिता से हमेशा यही कहती थी कि मुझे लड़की बनना है, लड़कियों की तरह रहना है। पर उन्हें लगता था कि यह मेरा बचपना है और समय के साथ सब बदल जाएगा।"

स्कूल में लड़कों का छूना गलत लगता था

प्रिया बताती हैं कि स्कूल के दिनों में साथ पढ़ते बच्चे उन्हें बुली करते थे। चाल-ढाल से लेकर खेलने के तरीके तक, हर चीज पर उनका मजाक उड़ाया गया। वे कहती हैं, "मैं हमेशा लड़कियों से दोस्ती करती थी। मुझे उन्हीं के साथ खेलने और बातें करने में कंफर्टेबल महसूस होता था। जब कोई लड़का मुझे छूता तो मैं उससे कहती कि दूर रहो, मैं लड़की हूं। इस दौरान मैं अपनी अंदरूनी और बाहरी दुनिया से लगातार संघर्ष करती रही।"

पैरेंट्स को लगा मुझे मानसिक बीमारी है

पढ़ाई के बाद 2012 में प्रैक्टिस शुरू कर डॉ. प्रिया अपने करियर में सफल हुईं।
पढ़ाई के बाद 2012 में प्रैक्टिस शुरू कर डॉ. प्रिया अपने करियर में सफल हुईं।

प्रिया के अनुसार, टीनएज उनकी जिंदगी का सबसे कठिन फेज था। इस दौरान शरीर में होने वाले बदलावों की वजह से उन्हें खुद से नफरत होने लगी थी। किसी से कुछ न कह पाने के चलते वो अपनी भावनाएं डायरी में लिखती थीं। प्रिया बताती हैं कि एक बार डायरी उनके मां-बाप के हाथ लग गई। इसके बाद वे उन्हें मनोवैज्ञानिक के पास ले गए, लेकिन डॉक्टर ने प्रिया को मानसिक बीमारी होने की संभावना से इनकार कर दिया। इससे प्रिया के पैरेंट्स को अपनी परवरिश पर संदेह होने लगा।

कॉलेज में लड़के की तरह जिंदगी जीने का फैसला लिया

प्रिया ने स्कूल के अनुभवों को पीछे छोड़ एक नॉर्मल जिंदगी जीने का फैसला लिया। वे कहती हैं, "मैंने त्रिशूर के वैद्यरत्नम आयुर्वेदिक कॉलेज से बैचलर ऑफ आयुर्वेद, मेडिसिन एंड सर्जरी (BAMS) की पढ़ाई की। इसके बाद डॉक्टर ऑफ मेडिसिन (MD) की पढ़ाई भी की। इस दौरान अपनी पहचान को कभी बाहर नहीं आने दिया। सिर्फ पढ़ाई और करियर पर ध्यान दिया। लड़कों के तौर-तरीके सीखे। एक नॉर्मल लड़के की तरह नए दोस्त बनाए।"

पढ़ाई के बाद 2012 में प्रैक्टिस शुरू कर डॉ. प्रिया अपने करियर में सफल हुईं। उन्होंने कई जगहों पर काम किया। 2014 में सीताराम आयुर्वेदिक हॉस्पिटल जॉइन करने के बाद उन्हें एहसास हुआ कि वो अपने जीवन में खुश नहीं हैं। "मुझे लगने लगा था कि ऐसी जिंदगी जीना बेकार है, इससे बेहतर तो मरना है।"

शुरू हुआ जिनु से प्रिया बनने का सफर

प्रिया के अनुसार, ट्रांजीशन में उन्हें अपने सहकर्मियों से पूरा सहयोग मिला।
प्रिया के अनुसार, ट्रांजीशन में उन्हें अपने सहकर्मियों से पूरा सहयोग मिला।

प्रिया ने ठाना कि वो अपनी जिंदगी को इस तरह बेकार नहीं होने देंगी। उन्होंने जेंडर बदलने के विषय पर रिसर्च शुरू की। प्रिया कहती हैं, "मैंने खुद को इस विषय पर 3 साल शिक्षित किया। 2016 तक मुझमें आत्मविश्वास जागा कि जेंडर चेंज करके मैं अपनी असली पहचान सबके सामने ला सकती हूं। इसके बाद मैंने इस बारे में पैरेंट्स से बात की। शुरुआत में उन्हें मेरे करियर को लेकर चिंता हुई, लेकिन बाद में वे खुशी-खुशी मान गए। उनकी सहमति से ही मैंने ट्रांजीशन शुरू किया।"

प्रिया ने आगे कहा, "मैंने हॉस्पिटल में भी सभी सहकर्मियों से बात की। ट्रांसजेंडर और जेंडर आइडेंटिटी पर उनकी राय जानने के लिए सबसे पहले एक सर्वे किया। मुझे पता चला कि लोगों को इस बारे में ज्यादा नॉलेज नहीं है। इसलिए हर एक स्टाफ मेंबर से अलग से बात की। उन्हें बताया कि ट्रांसजेंडर होना कोई बीमारी नहीं है। यह एक साल तक चला।"

एक साल बाद प्रिया ने एक मीटिंग में पूरे हॉस्पिटल के सामने ये घोषणा की कि वे ट्रांसवुमन हैं और जल्द ही अपना ट्रांजीशन करने वाली हैं। प्रिया के अनुसार, उन्हें अपने सहकर्मियों से पूरा सहयोग मिला। उन्होंने अपने रेगुलर पेशेंट्स को भी अपने ट्रांजीशन के बारे में पहले से जानकारी दी।

बचपन से ही सेक्स एजुकेशन बेहद जरूरी: डॉ. प्रिया

प्रिया के अनुसार, बचपन से ही जेंडर और सेक्स के बारे में शिक्षा देना जरूरी है।
प्रिया के अनुसार, बचपन से ही जेंडर और सेक्स के बारे में शिक्षा देना जरूरी है।

डॉ. प्रिया का कहना है कि समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए बचपन से ही जेंडर और सेक्स के बारे में शिक्षा देना जरूरी है। इससे बच्चों में स्टिग्मा और कंफ्यूजन दूर होगा और वे अपने परिवार को भी शिक्षित कर सकेंगे।

प्रिया के अनुसार, इन विषयों पर जानकारी न होने के कारण ट्रांसजेंडर कम्युनिटी का संघर्ष दोगुना हो जाता है। वे न केवल शारीरिक रूप से परेशान होते हैं, बल्कि मानसिक रूप से भी कठिनाइयों का सामना करते हैं। "मैं खुशनसीब हूं जो मेरे माता-पिता ने मुझे आगे बढ़ाया, पढ़ाया-लिखाया। ये मेरी सक्सेस स्टोरी है कि मैं खुद को शिक्षित कर अपने परिवार को शिक्षित कर सकी। पर 90% ट्रांसजेंडर्स को समाज स्वीकार नहीं करता। इससे लोग गलत राह पर चलने लगते हैं। मुझे उम्मीद है कि आने वाली पीढ़ी ज्यादा जागरूक, सहयोगी और मददगार होगी।"

खबरें और भी हैं...