दुनियाभर में खाई जाने वाली ब्रेड भूल से बनी:पिरामिड बनाने वालों को मजदूरी की जगह दी गई, महिलाओं ने आंदोलन तक कर डाला

नई दिल्ली2 महीने पहलेलेखक: भारती द्विवेदी
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ब्रेड दुनिया भर के लिए ‘स्टेपल फूड’ यानी ऐसा खाना बन चुका है जिसके बिना आपका किचन अधूरा है। हम भारतीयों ने तो अपनी रसोई में ब्रेड के साथ न जाने कितने एक्सपेरिमेंट किए हैं। कभी ब्रेड को दूध में डालकर खीर को गाढ़ा बनाया है, तो कभी इसके दही-बड़े तक बना लिए। झटपट मीठा बनाना पड़ जाए तो शाही टोस्ट भी इसी ब्रेड से बन जाता है।

आज ‘फुरसत का रविवार’ है, आप और हम चलिए ब्रेड पर ही बात करते हैं। कहीं न कहीं नाश्ते में जरूर गरमागरम ब्रेड पकौड़ा, ब्रेड रोल या ब्रेड-बटर खाया जा रहा होगा।

मांओं को सुबह-सुबह कुछ न समझ आए तो बच्चे के टिफिन में ब्रेड जैम पैक कर उन्हें तसल्ली हो जाती है कि चलो बच्चा भूखा तो नहीं रहेगा। हम सबके नाश्ते या स्नैक्स-टाइम में ब्रेड अलग-अलग शक्ल लेकर शामिल होती है।

26 जनवरी को हमारे ‘गणतंत्र दिवस’ समारोह में मुख्य अतिथि रहे मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सिसी के देश में ही ब्रेड ईजाद हुई थी। आइए जानते हैं कि यही ब्रेड मिस्र से चलकर भारत तक कैसे और किस रूप में पहुंची?

मिसल, वड़ा पाव और सारे पाव पुर्तगालियों की देन

पाव और ब्रेड की कहानी कुछ ऐसी है कि 1498 में वास्को डि गामा के भारत आने के 12 साल के अंदर पुर्तगालियों ने गोवा पर कब्जा किया। वो मिडिल ईस्ट के जरिए गोवा पहुंचे। मिडिल ईस्ट खासकर इजिप्ट वो जगह है, जिसे ब्रेड की जन्मभूमि माना गया। पुर्तगालियों को गोवा में ब्रेड की कमी महसूस होने लगी। यहां उनके पास बेक करने के लिए न अवन था, न मैदा और न ही यीस्ट। फिर पुर्तगाली बेकर्स ने मैदा की जगह आटा और यीस्ट की जगह ताड़ी की कुछ बूंदें मिलाकर पुर्तगाली पाव (Portuguese pao) बनाया। सेंकने के लिए अवन की जगह गर्म जमीन का इस्तेमाल किया।

इस तरह पुर्तगाली पाव गोवा का बेसिक फूड बना। गोवा से ये मुंबई पहुंचा और फिर नॉर्थ इंडिया के मुस्लिम बेकर्स गोवा पाव का अपना वर्जन तैयार करने लगे। आज पाव स्ट्रीट फूड का अहम हिस्सा बन गया है।

अनजाने में इजिप्ट बेकर ने बना दी ब्रेड

माना जाता है कि 4000 BC में इजिप्ट का कोई एक बेकर हर दिन की तरह फ्लैटब्रेड (रोटी) बनाने जा रहा था, लेकिन वह घंटे भर के लिए दूसरे काम में मशगूल हो गया और बाद में जब उसने इस आटे से रोटी बनाई तो वो कुछ ज्यादा ही फूलने लगी। यह देखकर उसे बड़ी हैरानी हुई।

इस रोटी का स्वाद और टेक्सचर भी अलग था, लेकिन ये हुआ कैसे? दरअसल, आटे को घंटे भर छोड़ने की वजह से हवा में मौजूद वाइल्ड यीस्ट से आटे का फर्मेंटेशन हुआ, जिसकी वजह से रोटी फूली भी और टेस्ट भी अलग हो गया। यहीं से एक्सपेरिमेंट करते-करते रोटी धीरे-धीरे ब्रेड या ‘डबल रोटी’ की शक्ल में प्लेट में आई।

वाइट ब्रेड की तुलना में मल्टीग्रेन, होल वीट ब्रेड हेल्दी को ऑप्शन माना जाता है। वजह है इनके बनने का प्रोसेस। होल वीट में जहां गेंहू के हर पार्ट का इस्तेमाल होता है। वहीं, वाइट ब्रेड रिफाइंड आटा यानी मैदा होता है। पीसने के दौरान इसमें से चोकर निकाल देते हैं।

आज की ब्रेड क्यों सेहत के लिए नुकसानदायक है?

इंसान तब से ब्रेड बना और खा रहा है, जब उसे फर्मेंटेशन (खमीर) की एबीसीडी भी नहीं पता थी। 1840 में फ्रांस के साइंटिस्ट लुईस पॉश्चर ने खमीर के बारे में दुनिया को बताया, लेकिन लोग कई हजार साल पहले से उसी तरीके से ब्रेड बना रहे थे। तब यह एक होममेड प्रोसेस होता था।

लोग ब्रेड बनाने के लिए नेचुरल फर्मेंटेशन का सहारा लेते थे। इसमें सिर्फ गेहूं, पानी, नमक और थोड़ी सी चीनी का इस्तेमाल करते थे, लेकिन जब 20वीं सदी में ब्रेड बेकिंग का औद्योगीकरण हुआ, तब ये होममेड नहीं रह गई। नेचुरल फर्मेंटेशन की जगह कई तरह की केमिकल ने ले ली।

बाजार में रेडीमेड यीस्ट मिलने लगी। कंपनियों के पास न तो टाइम था और न ही सब्र कि वो आटे में प्राकृतिक तरीके से खमीर उठने का इंतजार करें। इस चक्कर में आटे की शेल्फ लाइफ बढ़ाने के लिए उसमें से कई न्यूट्रिशंस को हटा दिया गया। साथ ही ब्रेड में खमीर और वाइटनिंग के लिए केमिकल मिलाए जाने लगे। कई पीढ़ियों तक वाइट ब्रेड अमीरों का पसंदीदा और डार्क ब्रेड गरीबों का खाना माना जाता था।

फर्मेंटेशन की वजह से ब्रेड में होता है एल्कोहल

अमेरिकन केमिकल सोसाइटी की 1920 की एक रिसर्च के अनुसार फर्मेंटेशन के दौरान निकलने वाले एथेनॉल की वजह से ब्रेड में 0.04 से लेकर 1.9 फीसदी तक एल्कोहल मौजूद होता है। ये न सोचिएगा कि अल्कोहल से नशा होता है, यह सिर्फ ब्रेड का टेस्ट बेहतर बनाने के लिए किया जाता है।

कोस-कोस पर पानी बदले, चार कोस पर वाणी। ये कहावत खानपान और पहनावे के साथ ब्रेड पर भी लागू होती है। आज मार्केट में हर मौके के लिए तरह-तरह की ब्रेड मौजूद है। जैसे- फ्लैटब्रेड, क्विक ब्रेड, यीस्ट राइजिंग ब्रेड, हॉलीडे ब्रेड।

यीस्ट राइजिंग ब्रेड

वाइट ब्रेड, बगेट, ब्रियोच ब्रेड, चबाटा ब्रेड (Ciabatta), फोकेशिया ब्रेड, होल वीट ब्रेड, मल्टीग्रेन ब्रेड, यीस्ट रोल्स, राई ब्रेड, सौरडौउ ब्रेड (Sourdough)

ब्रेकफास्ट ब्रेड

सुबह के नाश्ते का पॉपुलर ऑप्शन तो ब्रेड है ही, लेकिन कुछ ब्रेड ऐसी हैं जो पारंपरिक रूप में ही परोसी जाती हैं। बेग्लस, इंग्लिश मफिन और क्रोसॉन्स इसी तरह की ब्रेड हैं।

क्विक ब्रेड

बनाना ब्रेड, जुकिनी ब्रेड, पंपकिन ब्रेड, कॉर्न ब्रेड, सोडा ब्रेड, डंपर ब्रेड।

हॉलीडे ब्रेड

हॉला ब्रेड (Challah), जोफ़ ब्रेड, वेनोका ब्रेड

फ्लैटब्रेड

मट्ज़ो ब्रेड, ग्रिसिनी ब्रेड, नैकब्रॉड ब्रेड, टॉर्टियाज, युफ्का, किस्टीबी ब्रेड, तेंडेयर नान (Tandyr nan), नान, रोटी, पराठा, पिटा, लवासा, अरेपज

अलग-अलग देशों की ब्रेड जो दुनिया में मशहूर

एशिया- सांगक, बारबरी, टैफ्टून और लवासा ईरान में सबसे लोकप्रिय ब्रेड हैं। इन सबको अलग शेप, साइज, कलर, टेक्सचर और फ्लेवर में तैयार किया जाता है।

चीन की ट्रेडिशनल ब्रेड मंटू है, जिसे स्टीम बन भी कहा जाता है। भारतीय उपमहाद्वीप में चपाती, रोटी, नान, पराठा, पूड़ी जैसी फ्लैटब्रेड खाई जाती है। इन सबके बनाने के लिए आटा, मैदा, बेसन का इस्तेमाल होता है।

यूरोप- यहां ब्रेड की अनगिनत वैराइटी मौजूद है। अकेले जर्मनी का दावा है कि उनके पास ब्रेड, रोल्स और पेस्ट्रीज के 1300 से अधिक टाइप हैं। यूरोपियन कंट्री फ्रांस का पैन डी मी, बगेट, इटली का फोकेशिया ब्रेड, इंग्लैंड का कॉटेज लोफ, क्रम्पेट, तुर्की का युफ्का, लवासा, पीटा दुनिया भर में काफी पॉपुलर है।

तुर्की के लोगों के लिए ब्रेड कितनी जरूरी खाना है, इस बात से समझिए कि इनके नाम गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड है। रिकॉर्ड के मुताबिक, 2000 में यहां प्रति व्यक्ति ब्रेड की खपत 199.6 किलोग्राम थी।

ये दुनिया में सबसे अधिक है। जर्मनी में यूरोपियन ब्रेड म्यूजियम भी है। इस म्यूजियम में ब्रेड मेकिंग का इतिहास सुरक्षित रखा गया है। प्रर्दशनी के माध्यम से अनाज खेती की शुरुआत, ब्रेड बेकिंग का इतिहास, मिलिंग प्रोसेस जैसी चीजों के बारे में बताया जाता है।

ब्रेड के पॉपुलर टाइप तो आपने जान लिए। अब सैंडिवच से जुड़ी एक दिलचस्प बात आपको बता देते हैं। दो ब्रेड के बीच बीफ रखकर खाने का चलन ब्रिटिश स्टेटमैन जॉन मोंटागु ने शुरू किया था। क्योंकि उनके पास फोर्थ अर्ल ऑफ सैंडविच की उपाधि थी, इसलिए दो ब्रेड के बीच स्टफिंग को सैंडविच कहा गया।

ब्रेड के हेल्दी और अनहेल्दी होने की बहस पुरानी

ब्रेड को लेकर हेल्दी या अनहेल्दी की डिबेट पुरानी है। पहले भी कई लोगों ने होल वीट ब्रेड को रिफाइंड न होने की वजह से अनहेल्दी बताया। कुछ लोगों ने तो ब्रेड को ही खारिज कर दिया।अमेरिका में 1920-30 के दशक में ‘एमिलोफोबिया’ यानी कि ‘स्टार्च का डर’ आंदोलन हुआ था। एमिलोफोबिया एमाइलोफेजिया से बना है। यह एक मेडिकल टर्म है, जिसका मतलब होता है जरूरत से ज्यादा स्टार्च खाना। 1943 में अमेरिकियों ने एक प्रोटेस्ट स्लाइस ब्रेड की डिमांड को लेकर भी किया था। 1928 के पहले ब्रेड की शक्ल कुछ और होती थी।

महिलाओं ने विरोध किया तो कटी ब्रेड फिर बिकने लगी

ब्रेड लंबी या गोल शक्ल में पूरी बिकती थी। लेकिन 1928 में पहली बार अमेरिका की एक बेकरी में स्लाइस्ड ब्रेड बिकनी शुरु हुई। दूसरे विश्वयुद्ध में जब चीजें काफी महंगी हो गई तो अमेरिकी सरकार ने बचत के लिए ब्रेड को काटकर बेचना बंद कर दिया। इस बैन के खिलाफ लोगों ने आंदोलन किया। क्योंकि स्लाइस्ड ब्रेड लोगों के लिए सहूलियत बन चुकी थी। खासकर महिलाओं के लिए। विरोध देखकर बैन हटा और स्लाइस्ड ब्रेड वापस बिकने लगी।

क्या आप जानते हैं कि दुनिया के सात अजूबों में शामिल इजिप्ट के मशहूर ‘गीज़ा के पिरामिड’ बनाने वाले मजदूरों को मजदूरी के तौर पर ब्रेड और वाइन दी जाती थी।

अंतरिक्ष यात्री एल्ड्रिन ने जब चांद पर खाई फ्लैटब्रेड

साल 1969 में पहली बार अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग, बज एल्ड्रिन की टीम चांद पर पहुंची। चांद पर कदम रखने के बाद एल्ड्रिन के पहले खाने में ब्रेड और वाइन थी।

दरअसल, अंतरिक्ष यात्रियों को अपने साथ निजी चीजें ले जाने की छूट मिली थी। धार्मिक प्रवृत्ति के एल्ड्रिन अपने साथ कम्यूनियन ब्रेड, वाइन और चांदी का एक छोटा प्याला ले गए थे। चांद पर पहुंच कर उन्होंने बिल्कुल उसी अंदाज में वाइन के साथ ब्रेड खाई, जिसका जिक्र बाइबिल में मिलता है।

ग्राफिक्स: सत्यम परिडा

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