रिश्ता निभाने के लिए मन में प्यार जरूरी है या शरीर पर सुहाग की निशानियां? मद्रास हाई कोर्ट ने पत्नी द्वारा मंगलसूत्र न पहनने को पति के खिलाफ मानसिक क्रूरता की पराकाष्ठा बताते हुए तलाक का फैसला सुनाया। महिला की शादी 2008 में हुई थी, 2011 से पति-पत्नी अलग रह रहे थे। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस दौरान महिला ने अपनी तरफ से शादी निभाने का कोई प्रयास नहीं किया। सवाल यह है कि शादी का रिश्ता पति-पत्नी दोनों के बीच रहता है, फिर रिश्ता निभाने का सारा बोझ औरतों के सिर पर क्यों?
आर्टिमिस हॉस्पिटल, गुरुग्राम के मेंटल वेलनेस डिपार्टमेंट की HOD डॉ रचना कुमार सिंह, उदित नारायण पीजी कॉलेज पडरौना- कुशीनगर, उत्तर प्रदेश के समाजशास्त्र विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर विश्वंभर नाथ प्रजापति और इलाहाबाद हाई कोर्ट के एडवोकेट क्षितिज चौहान बता रहे हैं कि यह फैसला किस हद तक सही है?
हिंदू धर्म में मंगलसूत्र का जिक्र नहीं
समाज शास्त्र के प्रोफेसर विश्वंभर नाथ प्रजापति ने बताया कि हिंदू धर्म के वेद, उपनिषदों में कहीं भी मंगलसूत्र का जिक्र नहीं है। विवाह में फेरों और सिंदूर का वर्णन जरूर मिलता है। समाज में मंगलसूत्र का चलन बाद में आया है। विवाह में प्रेम और आपसी तालमेल जरूरी है।
शादी का रिश्ता महिला और पुरुष दोनों के बीच होता है। इसे निभाने की जिम्मेदारी दोनों की होती है। पुरुष कर्तव्यों का पालन न करे तो यह महिला के खिलाफ मानसिक हिंसा है। मंगलसूत्र पहनना या न पहनना स्त्री का निर्णय है। इससे शादी किसी तरह से भंग नहीं मानी जा सकती।
मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाली कल्पना (बदला हुआ नाम) ने बताया कि ऑफिस वियर के साथ मंगलसूत्र अच्छा नहीं लगता इसलिए वो इसे नहीं पहनतीं और सिंदूर से उन्हें एलर्जी है।
रिश्ते में मंगलसूत्र से ज्यादा प्यार जरूरी
डॉक्टर रचना ने बताया कि पितृसत्तात्मक समाज में महिला को सिंदूर, चूड़ी और मंगलसूत्र जैसे चीजों से मानसिक रूप से बांध दिया जाता है। शादी पुरुष और स्त्री के बीच होती है। विदेशों में महिला और पुरुष दोनों हाथ में रिंग पहनते हैं। प्यार या रिश्ते को दिखाने के लिए किसी दिखावे की जरूरत नहीं है। रिश्ता आपसी समझ से चलता है।
रिश्ता निभाना दोनों की जिम्मेदारी, एक की नहीं
लैंगिक समानता की बात करने वाला समाज महिलाओं से उम्मीद करता है कि वो बच्चे पाले,ऑफिस का काम करे और फिर घर वापस आ कर सारे काम निपटाए। रिश्ता आपसी समझ और विश्वास से मजबूत बनता है, यह जबरदस्ती का सौदा नहीं है।
हाउस वाइफ सिंधु सिंह (बदला हुआ नाम) ने बताया कि मंगलसूत्र सुहाग का प्रतीक है, लेकिन कई बार ड्रेस के साथ मैच न होने पर वो इसे उतार भी देती हैं।
क्या कहता है कानून?
एडवोकेट क्षितिज चौहान ने बताया कि हिन्दू मैरिज एक्ट 1955 की धारा 5 के मुताबिक, विवाह के लिए किसी भी व्यक्ति को पहले से शादीशुदा नहीं होना चाहिए, यानी शादी के समय दोनों पक्षों में से किसी का भी पहले से जीवनसाथी नहीं होना चाहिए। इस प्रकार, यह अधिनियम बहुविवाह पर रोक लगाता है।
हिंदू मैरिज एक्ट 7
हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 7 के मुताबिक, हिंदू विवाह में सप्तपदी यानी शादी के समय सात फेरों की मान्यता है। इसमें पत्नी का मंगलसूत्र पहनना अनिवार्य नहीं बताया गया है। अदालत ने मंगलसूत्र न पहनने को तलाक का आधार माना, लेकिन यह समझ से परे है। जब पुरुष शादी का कोई प्रतीक नहीं पहनता, तो महिलाओं के लिए सिंदूर, मंगलसूत्र की बाध्यता क्यों है?
मानसिक रूप से स्वस्थ होना जरूरी
शादी के समय अगर कोई भी पक्ष बीमार है, तो उसकी सहमति वैध नहीं मानी जाएगी। भले ही वह वैध सहमति देने में सक्षम हो, लेकिन किसी मानसिक विकार से ग्रस्त नहीं होना चाहिए, जो उसे शादी के लिए और बच्चों की जिम्मेदारी के लिए अयोग्य बनाता है। दोनों में से कोई पक्ष पागल भी नहीं होना चाहिए।
विवाह की उम्र के लायक हो
दोनों पक्ष में से किसी की उम्र विवाह के लिए कम नहीं होनी चाहिए। दूल्हे की उम्र न्यूनतम 21 साल और दुल्हन की उम्र कम से कम 18 साल होनी चाहिए।
सपिंड विवाह मान्य नहीं
एडवोकेट क्षितिज चौहान के अनुसार, दोनों पक्षों को सपिंडों या निषिद्ध संबंधों की डिग्री के भीतर नहीं होना चाहिए, जब तक कि कोई भी कस्टम प्रशासन उन्हें इस तरह के संबंधों के बीच विवाह की अनुमति नहीं देता।
हिन्दू मैरिज एक्ट में कहीं भी यह नहीं लिखा है कि यदि मंगलसूत्र न पहना जाए तो यह क्रूरता का प्रतीक है या इसका मतलब है कि महिला शादी को नहीं मानती।
गौतलब है कि, यह कोई पहला मामला नहीं है जब अदालत ने अजीबो-गरीब फैसला सुनाया है। इससे पहले भी गुवाहाटी हाई कोर्ट ने पति द्वारा दायर की गई तलाक की याचिका मंजूर की थी। कोर्ट की डबल बेंच ने टिप्पणी की थी कि पत्नी यदि सिंदूर लगाने और शाखा चूड़ियां पहनने से इनकार करे तो माना जा सकता है कि उसे शादी अस्वीकार है।
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