बच्चे अक्सर बिस्तर गीला कर देते हैं, क्योंकि छोटी उम्र में उन्हें इस बात का पता नहीं होता है कि कब उन्हें यूरिन पास करने की जरूरत है। सर्दियों और बरसात के दिनों में पेरेंट्स के लिए इस समस्या से निपटना और ज्यादा मुश्किल होता है। इसके अलावा पेरेंट्स की परेशानी तब और बढ़ जाती है, जब बच्चा बड़ा हो जाने के बावजूद बिस्तर गीला करता रहे। कई बच्चों में चार से पांच साल तक की उम्र में ये दिक्कत देखी जाती है। वहीं, कुछ बच्चों में यह परेशानी टीनेज की उम्र तक में भी देखने को मिलती है। बड़े होने के बावजूद वो बिस्तर गीला कर देते हैं, इस परेशानी पर बात कर रही हैं चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉक्टर रीतिका सिंघल।
बच्चे क्यों बिस्तर गीला करते हैं?
एक स्टडी के मुताबिक तीन साल तक की उम्र में 40% बच्चे बिस्तर पर ही यूरिन पास करते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि बच्चों को पता ही नहीं होता कि उन्हें कब यूरिन पास करने की जरूरत है या फिर उन्हें यूरिन पास करने को लेकर सही ट्रेनिंग नहीं मिलती। डॉ. सिंघल कहती हैं कि पांच साल से छोटे बच्चों को बेड वेटिंग में नहीं गिना जाता। ऐसा इसलिए क्योंकि कुछ बच्चे चीजें जल्दी सीख जाते हैं, जबकि कुछ को समय लगता है। अगर पांच साल से ऊपर के बच्चे ऐसा करते हैं, तो ये जानना जरूरी है कि बच्चे को टॉयलेट ट्रेनिंग दी गई है या नहीं।
जिन बच्चों को ये सिखाया ही नहीं गया है तो उन्हें हम प्राइमरी की कैटेगरी में रखते हैं। वहीं, ऐसे बच्चे जो पहले यूरिन पास करने के लिए वॉशरूम जाते थे या घर पर किसी बड़े को बताते थे, उन्होंने ऐसा करना शुरू कर दिया है, तब हम उन्हें सेकेंडरी कैटेगरी का मानते हैं। जिन बच्चों ने टॉयलेट हैबिट्स सीख लेने के बाद बिस्तर गीला करना शुरू कर दिया है, उनके साथ कोई वजह जुड़ी होती है।
क्यों होती है बच्चों में ये परेशानी?
डॉ. सिंघल बताती हैं कि कुछ बच्चे डर की वजह से भी ऐसा करते हैं। उन्हें डांटने के बजाय उनके मन को जानने की कोशिश करें। बच्चों द्वारा क्लास-रूम में यूरिन पास करने की शिकायत पेरेंट्स तक आने की वजह से बच्चा डर जाता है। इसके अलावा कुछ बच्चे स्कूल में मिली मेड की डांट-फटकार से भी डर जाते हैं, जिसकी वजह से वो दिन या रात में यूरिन पास कर देते हैं।
पेरेंट्स इन बातों रखें ध्यान
डॉ. सिंघल कहती हैं कि पेरेंट्स को बच्चे की टॉयलेट ट्रेनिंग पर ध्यान देना चाहिए। कुछ पेरेंट्स सोचते हैं कि बच्चे को दवा मिल जाए और वो रातों-रात यूरिन पास करना बंद कर दे, लेकिन उन्हें समझना होगा कि ये किसी चमत्कार की तरह नहीं हो सकता। शुरुआती कोशिश यही होनी चाहिए कि बच्चों को बिना दवा के सिर्फ डेली हैबिट्स में यह सिखाया जाए। इसमें तीन महीने से साल भर भी लग सकता है, लेकिन यही रास्ता बच्चे के लिए बेहतर है। टीनेज अवस्था में आने तक बच्चों में यह परेशानी खत्म हो जाती है। हालांकि, फिर भी किशोरों में यह दिक्कत देखी जाती है, उसे ठीक करने के लिए पेरेंट्स डॉक्टर से मिलकर उनकी सलाह पर आगे बढ़ें।
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