नेटफ्लिक्स के शाे ‘सेक्स एजुकेशन’ में अलग-अलग संस्कृतियों में फीमेल ऑर्गेज्म पर बात की गई है । सितंबर 2021 में इस ब्रिटिश रोमांटिक कॉमेडी का चौथा सीजन शुरू हुआ। ऐसी धारणा है कि ऑर्गेज्म का ज्यादा सुख पुरुष के हिस्से आता है और महिलाएं इस सुख की खुशी कम पाती हैं। सेक्सोलॉजिस्ट मानते हैं कि फीमेल ऑर्गेज्म आज भी राज बना हुआ है।
सौ में से 14 महिलाओं के हिस्से में खालीपन
यह एक भ्रम है कि संबंध बनने के बाद पुरुष ही केवल चरम सुख पर पहुंचते हैं क्योंकि उनमें इजैक्यूलेशन होता है। वीर्य स्खलन चरम सुख में पहुंचने का संकेत देता है पर भारत में आर्गेज्म पर पहली बार इंटरनेशल काॅन्फ्रेंस कर चुके सेक्सोलॉजिस्ट डॉ. प्रकाश कोठारी इस बात से साफ इनकार करते हैं। इस विषय पर गहन अध्ययन कर चुके डॉ. कोठारी का कहना है कि स्त्री-पुरुष दोनों इस सुख में बराबरी के हकदार होते हैं।
पढ़ी-लिखी महिलाएं जहां इस सुख को ऑर्गेज्म के नाम से जानती और समझती हैं, वहीं, कम पढ़ी-लिखी महिलाएं इसे ‘नशा’ का नाम देती हैं। ऊर्दू के जानकार ‘सुकून’ कहते हैं। भाषा कोई भी इसका सुख पूरी तरह अहसास से जुड़ा है। साल 2015 में मेडिकल न्यूज टूडे में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार 100 में से 14 महिलाओं ने कभी इस सुख का अनुभव नहीं किया, जबकि 6 के हिस्से में हर बार यह सुख आता है।
महिलाओं के हिस्से में आता है मल्टीऑर्गेज्म
अपनी पुस्तक ‘ऑर्गेज्म न्यू डायमेंशन’ में डाॅ. प्रकाश कोठारी ने इस बात का जिक्र किया है कि चरम सुख के मामले में महिलाओं की तुलना में पुरुषों के साथ नाइंसाफी हुई है। संबंध बनाने के दौरान महिला अधिकतम 13 बार ऑर्गेज्म का अनुभव कर सकती है, जबकि पुरुष को यह सुख एक ही बार मिलता है।
ऐसे में महिलाओं को अधिक लकी समझा जा सकता है। यह भी सच है कि चरम सीमा का आनंद पूरी तरह दिमागी है और महिलाएं इसका अनुभव करती हैं।
महिलाओं के हिस्से में सुख ही सुख
डॉ. कोठारी के अनुसार, ऑर्गेज्म के समय ब्लड प्रेशर कई गुना बढ़ जाता है। इसके बावजूद कभी यह सुनने को नहीं मिलता कि इस बढ़े हुए ब्लड प्रेशर की वजह से संबंध बनाने के दौरान किसी की मृत्यु हो गई हो। महिलाओं की सेहत पर भी ऑर्गेज्म का अच्छा असर देखा गया है। इससे मेन्सट्रूएशन के समय होने वाले दर्द में 50%की कमी आती है।
Why Good Sex Matters पुस्तक के लेखक और सेक्स थेरेपिस्ट डॉ. नैन वाइज की मानें तो, आर्गेज्म के दौरान ब्रेन से न्यूरोट्रांसमीटर्स और न्यूरोपेप्टाइड्स रिलीज होते हैं। यह इमोशनल हेल्थ के लिए अच्छे माने जाते हैं। इससे गहरी नींद आती हैे, इम्युनिटी बेहतर होती है और मूड भी फर्स्ट क्लास रहता है। साइंस तो यह भी मानता है कि ऑर्गेज्म स्किन की ब्यूटी बढ़ाने का काम करता है।
डॉ. कोठारी समझाते हुए कहते हैं कि पुरुष और महिला, मानसिक और शारीरिक रूप से अलग-अलग होते हैं। इन दोनों की भावनात्मक जरूरतें और स्वभाव भी अलग होता है। सामाजिक तरक्की के बावजूद अंतरंग सुख के दौरान यह बदल जाती है, लेकिन हमारे समाज में स्त्री की जरूरतों को समझने और उसकी शारीरिक जरूरतों को नजरअंदाज किया जाता है।
पोर्नोग्राफी नियमावली पर मत जाएं
ड्यूरेक्स ग्लोबल सेक्स सर्वे 2017 यह बताता है कि करीब 80% पुरुषों के मुकाबले 70% महिलाएं सेक्स संबंधों के दौरान हर बार ऑर्गेज्म का अनुभव नहीं करती हैं। ऑर्गेज्म में असमानता के पीछे भावनात्मक और शारीरिक कारण हैं। इस स्टडी में यह भी पाया गया कि अधिकतर पुरुष महिलाओं की शारीरिक संरचना नहीं समझते और वे यह भी नहीं समझते कि इस असमानता का महिला की सेक्स लाइफ पर कितना गंभीर असर पड़ता है।
चरम सुख की इस असामनता को गंभीरता से लेने की जरूरत है, इसमें सही सेक्स एजुकेशन ही मददगार हो सकती है। पोर्नोग्राफी पर मिलने वाली जानकारी सेक्स की नियमावली नहीं हो सकती। यह जरूरी है कि पति-पत्नी इस विषय पर बात करें और अपनी सेक्स चाहतों को लेकर खुल कर बातें करें। दंपती का इस विषय पर खुलकर बात करना उनका एक-दूसरे में विश्वास बढ़ाता है। रिश्ते में सुधार आता है। इस अध्ययन का एक ही मकसद था कि पति-पत्नी के रिश्ते बेहतर हो।
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