हम लड़कियों को सपने देखने का हक नहीं। घर की दहलीज नहीं लांघ सकते। जो समाज के बनाए पैमानों को तोड़ती हैं, उनसे बाहर निकलती हैं तो सोसाइटी उन्हें कैरेक्टरलेस, उनके सपनों को पाप बता देती है।
बिहार के आरा की 24 साल की मॉडल और मेकअप आर्टिस्ट आनंदी सागर सिंह वुमन भास्कर से खास बातचीत में कहती हैं, बचपन निपट गरीबी में बीता। कहने को संयुक्त परिवार था लेकिन रात में तेज बारिश में एक छाते के नीचे हम चार भाई-बहनों और मां-पिता को रात काटनी पड़ी है।
दिल्ली से बिहार लौटना पड़ा
पापा आर्ट की फील्ड में रहे, उन्हें कभी एकमुश्त तनख्वाह नहीं मिली। फ्रीलांसिंग काम रहा। मैं पैदा तो दिल्ली में हुई लेकिन जब तीन साल की थी तब परिवार की आर्थिक स्थिति बिगड़ी और हमें वापस बिहार जाना पड़ा।
बिहार में स्वागत थप्पड़ों के साथ
दिल्ली में पली लड़की जब बिहार गई तो वहां घर के सदस्यों ने ही थप्पड़ जड़कर स्वागत किया। बाजार अगर भेजा और एक मिनट की भी देरी हुई समझ लो कि घर आकर पिटना है। पापा उन दिनों बीमार थे और मां घर में रहती। बच्चों पर ज्यादती होती पर वे भी कुछ कह नहीं पाते।
पेरेंट्स ने साथ दिया तो आगे पढ़ पाई
जब 10वीं में थी घर वाले मेरी शादी कराना चाहते थे। पापा-मम्मी ने मेरा साथ दिया और मुझे आगे पढ़ाया। 12वीं के बाद मुझे बिहार से बीए नहीं करना था। इसके लिए अपनी जिद पर पापा के साथ कोलकाता और मुंबई गई। लेकिन कहीं बात नहीं बनी। कहीं लोग पसंद नहीं आए तो कहीं भाषा पल्ले नहीं पड़ी।
इग्नू से पढ़ाई शुरू की
आखिरकार दिल्ली में इग्नू से बीए का फॉर्म भरा। लेकिन यहां भी फर्स्ट ईयर पूरा हुआ। सेकेंड ईयर नहीं हुआ। फिर मैंने हिमाचल यूनिवर्सिटी से डिस्टेंस से फॉर्म भरा। घर बैठकर पढ़ना इसलिए तय किया क्योंकि घर की बिगड़ती हालत मुझसे देखी नहीं जा रही थी।
घर की बड़ी बेटी हूं इसलिए ज्यादा सोचती हूं
घर में बड़ी बेटी होने के नाते मुझ पर अनकहा दबाव होने लगा। इस बीच मैंने बुक पब्लिकेशन में काम करने से लेकर सेल्समैन का भी काम किया। फिर एक वक्त आया कि इंवेंट मैनेजमेंट भी किया जिसमें एक ऐसी कंपनी मिली जो पब एक्टिविटीज पर काम करती थी।
गंदी नजरों से लोग देखते
जब रात को पब से घर आती तो आसपास के लोग मुझे गंदी नजरों से देखते। कुछ लोग मेरे कैरेक्टर पर सवाल उठाते। कोई यह नहीं पूछता कि आखिर मैं ऐसा क्यों कर रही हूं।
मैं 12-12 घंटे काम करती लेकिन उसका पैसा बहुत कम मिलता। लेकिन काम करते-करते लोगों से संपर्क अच्छे हो गए थे। साथ ही ग्रेजुएशन की पढ़ाई भी पूरी कर रही थी।
लॉकडाउन के दौरान नए आइडियाज आए
नौकरी कब तक करती। मैं थक चुकी थी। तभी लॉकडाउन हो गया। इस दौरान मेरी सारी सेविंग्स खत्म हो गई। मैं खाली हाथ हो गई। सोचा कि कुछ अपना काम किया जाए। मुझे बचपन से आईब्रो बहुत अच्छा बनाना आता था। मैंने यूट्यूब से मेकअप के वीडियो देखने शुरू किए।
मेकअप स्टूडियो खोला, जो ठप पड़ गया
हाथ साफ होने के बाद दिल्ली में एक सैलून खोला। यह मेकअप स्टूडियो दो महीने चला। फिर ठप पड़ गया। मेरी बची-खुची सेविंग्स भी खत्म हो गई। मैंने देखा कि लोग सोना, घर, बड़ी गाड़ी पर खूब खर्च करेंगे लेकिन किसी मजदूर को उसकी मेहनत की कमाई बहुत तंग हाथ से देते हैं।
फिर से मेकअप स्टूडियो खोला
मैंने लोगों से उधार लेकर एक और मेकअप स्टूडियो खोला। इस बार नाम रखा शैन्योर। यह नाम मेरी मां, दोस्त और मेरे नाम से मिलकर बना है। आज मैं जो भी कर पाई हूं वह सभी के सहयोग से कर पाई हूं। इसलिए पार्लर के नाम में भी वह साझापन दिखता है।
यूनिसेक्स पार्लर खोला
मेरे एरिया में लड़कों का अलग सैलून है और लड़कियों का पार्लर अलग है। मैंने यूनिसेक्स पार्लर खोला, जिससे लड़के और लड़कियां दोनों को एक ही जगह सर्विस मिल सके। इस पार्लर को चलाने के अलावा मैं कपड़े, ज्वेलरी के ब्रांड्स के लिए मॉडलिंग भी करती हूं।
उम्मीद का दामन थाम आगे बढ़े
कांटों पर पांव रखकर मैं यहां तक पहुंची हूं। कैसे बिना छत के घर के नीचे टपकती रात में परिवार ने दिन काटे हैं। पैसे नहीं थे तो अपनों ने भी दुत्कारा। मैं वो दिन भूल नहीं सकती। अब जिंदगी का एक ही लक्ष्य है कि जितनी जल्दी हो सके, अपने परिवार को एक बेहतर जिंदगी दे पाऊं।
मैं हमेशा लड़कियों को कहती हूं कि कभी उम्मीद न हारें और अपने सपनों के लिए जिद्दी बन जाओ। मुझ में जिद ही थी कि उधार लेकर इतना बड़ा सैलून खोला। उम्मीद है इसे और आगे ले जाऊं।
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