कुछ कर पाने का जज्बा हो तो कोई भी मुश्किल छोटी लगने लगती है। तंगी में बीता बचपन, जहां खाने के भी लाले पड़े हो। लेकिन सपना देश का प्रतिनिधित्व करने का था। सपना देश के लिए मेडल जीतने का था। उस सपने को पूरा करने के लिए तमाम चुनौतियों से गुजरी और देश का मान बढ़ाया। लेकिन जब खुद मदद की जरूरत पड़ी तो सबने हाथ खड़े कर दिए। ऐसे में उस लड़की ने अपना सपना ही बदल दिया लेकिन हिम्मत नहीं हारी। नए सपने को भी हासिल करके दिखाया। आज ‘ये मैं हूं’ में बात जूडो खिलाड़ी और रेसलर पारुल वर्मा की।
पैसों की तंगी के बीच बीता हम बहनों का बचपन
मैं यूपी के मेरठ से हूं। घर में मां-पापा के अलावा हम चार बहनें और एक भाई है। भाई हम सबसे छोटा है। घर में सिर्फ पापा कमाने वाले थे। उनकी कमाई पर घर के बाकी लोगों का जीवन निर्भर था। पापा के पास एक छोटी सी डेयरी की दुकान थी। जो ज्यादा चलती नहीं थी। हमारी परवरिश के लिए उन्होंने ई-रिक्शा लिया और चलाना शुरू किया। पापा ने हर कोशिश करके हमें पढ़ाया है। स्कूल में ही खेल की तरफ दिलचस्पी बढ़ी।
रिश्तेदारों से ताने मिलते रहे इसे लड़की बनाओ
मेरा बचपन लड़कों जैसा बीता है। हम चार बहनों के बाद भाई का जन्म हुआ। शायद इस वजह से पापा ने मुझे हमेशा लड़कों जैसा पाला। बॉयकट बाल, लड़कों के कपड़े तो मेरा एटीड्यूड भी वैसा ही रहा। बचपन से निडर रही, जिसका नतीजा था कि कोई कुछ कहता तो पीट देती। हालांकि, रिश्तेदारों को हम कभी अच्छे नहीं लगे। उनकी तरफ से मदद तो नहीं मिली लेकिन ताने खूब मिले। वो हमेशा पापा से कहते इसे लड़की बनाओ। लंबे बाल और सूट में रखो। फिर इसकी शादी कर दो। वर्ना हाथ से निकल जाएगी।
मेरे लिए तो मां-बाप भगवान से कम नहीं हैं
एक गरीब घर में चार लड़कियों का होना, घर से ज्यादा समाज के लिए सिरदर्दी थी। कभी किसी ने मदद नहीं की और न ही अच्छी सलाह दी। बस आते-जाते ताने और नसीहत जरूर दे जाते थे। शादी कैसे करोगे? दहेज कहां से लाओगे? शादी जल्दी कर दो, वर्ना बहुत दिक्कत होगी। यहां तक की पापा की बीमारी का ठीकरा भी बेटियों के सिर पर था। चार बेटियां हो तो किसे न अटैक आ जाए। लेकिन इन सबके बाद भी मेरे मां-पापा ने हमारी परवरिश में कोई कमी नहीं की। पापा जैसे-तैसे कमाकर लाते और मां रेसलिंग और जूडो के हिसाब से हमारे खानपान का ध्यान रखती थी।
रिश्तेदारों की वजह से जबरन बड़ी बहन की शादी हो गई
मेरी बड़ी बहन पढ़ने में अच्छी थी। बीकॉम फर्स्ट ईयर में थी, तभी उसकी जबरन शादी कर दी गई। उसने लड़के को देखा तक नहीं था। सीधा मंडप में घूंघट करके बिठा दिया गया। मेरे मां-पापा बहुत सपोर्टिव रहे हैं। लेकिन एक समय पर उन पर मेरी बुआ ने इतना दबाव बनाया। यहां तक की लड़का भी ढूंढकर ले आईं। शादी हो गई फिर कुछ समय बाद पापा को एहसास हुआ कि उनसे गलती हो गई। उन्होंने बड़ी बेटी के साथ नाइंसाफी कर दी। उसके बाद दुनिया चाहे जितना सुनाती, मेरे पापा ने हम तीन बहनों को कभी शादी के लिए नहीं कहा। उन्होंने कहा अपना पूरा ध्यान खेलने पर लगाओ।
पापा अस्पताल में थे लेकिन उन्हें मेरे स्पोर्ट्स को लेकर फिक्र थी
मैं पैसों की दिक्कत तो बचपन से देखते आई। साल 2015 में मेरा सिलेक्शन ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी के लिए हो गया था। उसके बाद मुझे टीम के साथ ओडिशा जाना था, तभी मेरे पापा को हार्ट अटैक आ गया। मुझे याद है मेरे अकाउंट में जीरो बैलेंस था। कैसे भी करके मैं पापा को देखने पहुंच गई। जब पापा ने मुझे देखा तो उनका पहला रिएक्शन यह रहा कि तू यहां क्या कर रही है? तुझे तो खेलने जाना था। तू जा यहां से।
जूडो सेंटर जाने के लिए पैसे नहीं थे, लेकिन इंटरनेशनल खेला
साल 2007 में मैंने स्टेट के लिए अपना पहला गोल्ड जीता था। उसके अगले साल ही मैंने नेशनल लेवल पर गोल्ड जीता। तब से लगातार खेलती रही और मेडल लाती रही। 2008 में ही मैंने इंटरनेशनल खेला। हंगरी में फर्स्ट ‘वर्ल्ड जूडो चैम्पियनशिप’ के लिए चुनी गई थी। मुझे कुछ नहीं पता था। बाहर के हिसाब से कोई एक्सपीरिएंस नहीं था। पास में एक फोन तक नहीं था। बस एक चीज थी मेरे पास-कॉन्फिडेंस।
मैंने वहां क्वार्टर फाइनल खेला। सपना ओलिंपिक तक जाना था, लेकिन वो पूरा नहीं हो पाया। मैंने जूडो और रेसलिंग दोनों में स्टेट- नेशनल खेलते हुए लगभग 40 मेडल जीते हैं।
अखिलेश-योगी दोनों सीएम से मदद मांगी लेकिन कुछ नहीं हुआ
मेरा बैकग्राउंड अगर अच्छा होता तो शायद मैं भी कॉमन वेल्थ या ओलिंपिक खेलती। लेकिन मेरे पास कोई सपोर्ट नहीं था। किस्मत भी साथ नहीं दे रही थी। नेशनल के लिए दो कॉम्पिटिशन में सिलेक्शन के बाद भी नहीं खेल पाई क्योंकि प्रैक्टिस के दौरान हाथ टूट गया। खेल विभाग की तरफ से कभी कोई मदद नहीं मिली। फिर 2018 में पापा को दोबारा हार्ट अटैक आ गया। स्पोर्ट्स कोच के लिए डिप्लोमा किया ताकि सरकारी नौकरी मिल जाए और बच्चियों को मैं देश के लिए तैयार कर सकूं। लेकिन वो भी पूरा नहीं हो पाया। सैफई में कांट्रैक्ट बेसिस पर दो साल कोच रही उसके बाद वो भी खत्म हो गया। सैफई दंगल के दौरान जॉब के लिए मैं अखिलेश यादव से मिली थी। उस वक्त वो सीएम थे लेकिन कुछ नहीं हुआ। सीएम योगी से भी मिलकर मदद मांगी वहां से भी कोई मदद नहीं मिली।
आम से खास लोगों को सीखा चुकी हूं सेल्फ डिफेंस ट्रेनिंग
कोच होने के साथ ही मैंने एनसीसी के जरिए ग्वालियर में ऑफिसर ट्रेनिंग में 200 लोगों को सेल्फ डिफेंस सिखाया है। लखनऊ में मैं रेसलिंग में इंडिया कैंप लगा चुकी हूं। इसमें विनेश फोगाट भी थी, जो मेरी रूममेट थी। देश की अलग-अलग जगहों पर लोगों को सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग दे चुकी हूं।
2021 में पापा की मौत के बाद घर के खर्च और मां की देखरेख की जिम्मेदारी भी मेरे कंधों पर आ गई। ये जिम्मेदारी खेल के साथ पूरी नहीं हो सकती थी। मुझे कहीं से कोई मदद भी नहीं मिली इसलिए मैंने अपना सपना ही बदल दिया। खेल से रुख बदल सारा ध्यान टीचर बनने की तरफ लगा दिया। मैंने हरियाणा टीजीटी का एग्जाम दिया था, जो क्लियर हो गया है। शायद अब अपने ही दम पर अपनी किस्मत थोड़ी बदल पाऊं। कोच बनकर न सही टीचर बनकर बच्चों की जिंदगी संवार सकूंगी।
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