आकाश मिसाइल सिस्टम की अगुवाई कर देश का बढ़ाया मान:परीक्षा में 7 बार फेल हाेने पर भी नहीं मानी हार, देश में आई चौथी रैंक

नई दिल्ली4 महीने पहलेलेखक: दीक्षा प्रियादर्शी
  • कॉपी लिंक

“उस रोज जैसे-जैसे कर्तव्य पथ पर सलामी मंच की ओर बढ़ रही थी। जिंदगी के संघर्ष का पूरा सफर फिल्म की एक रील की तरह मेरे आंखों के सामने से गुजर रहा था। उस पल मैं एक ऐसे इमोशनल मोमेंट में सांस ले रही थी, जिसे मैं आपके सामने शब्दों में नहीं समेट पाऊंगी”। ये शब्द हैं लेफ्टिनेंट चेतना शर्मा के, जिन्होंने इस बार गणतंत्र दिवस परेड में भारत में निर्मित 'आकाश मिसाइल सिस्टम' का नेतृत्व किया।

मिसाइल सिस्टम को लीड करते हुए जब चेतना निकली तो पूरा कर्तव्य पथ तालियों से गूंज उठा और लोग उनके चेहरे की चमक और शौर्य की तारीफ करते नहीं थके। वुमन भास्कर से बातचीत में लेफ्टिनेंट चेतना शर्मा ने बताया कि कई बार असफल होने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और कोशिश करती रहीं। अपनी कोशिश में असफल होने पर वो बचपन में सुनी एक शायरी को मन ही मन दोहराती। 'कयामत तक बैठ तू धरने पर ऐ किस्मत, मैं कोशिश करने से कभी इस्तीफा नहीं दूंगी।'

8वीं के बाद अपनी पहली कमजोरी मैथ्स पर पाई जीत

मेरा जन्म राजस्थान के खाटू श्याम गांव में हुआ था। मेरे पेरेंट्स वहां एक स्कूल में टीचर थे। मेरी शुरुआती पढ़ाई बंधू पब्लिक उच्च माध्यमिक विद्यालय में हिंदी मीडियम से हुई। ये वही स्कूल था जिसमें मेरे माता-पिता पढ़ाते थे। शुरुआती दौर में मैं ओवरऑल अच्छी, मगर मैथ्स एवरेज स्टूडेंट रही। मगर, 8वीं के बाद मैंने अपनी कमजोरी मैथ्स पर फोकस किया। बिना किसी के मदद के एग्जांपल से सम्स सॉल्व किए तो मुझे ये समझ आया कि चाह लें तो कुछ भी मुश्किल नहीं है। बस जरूरत है पहल और मेहनत कर के उसे सीखने की।

शायद यही कारण रहा आखिरकार मैं अपने डर को दूर भगाने में सफल रही। मैं जब 10वीं में आई तो अपने शौक के लिए 9 वीं क्लास के बच्चों को मैथ्स पढ़ाने लगी। इसी दौरान मैंने अपनी कमजोरियों से लड़ना और जीतना सीखा। मैथ्स जो कल तक मेरी कमजोरी था, अब मेरी ताकत बन चुका था।

मैथ्स के डर को दूर भगाकर उसे फेवरेट सब्जेक्ट बना लेना पहला ऐसा मौका था जब चेतना ने अपने डर से लड़ना सीखा था।
मैथ्स के डर को दूर भगाकर उसे फेवरेट सब्जेक्ट बना लेना पहला ऐसा मौका था जब चेतना ने अपने डर से लड़ना सीखा था।

कॉलेज गई तो दुनिया को अलग नजरिए से देखना सीखा

10 वीं में मेरे बहुत अच्छे मार्क्स आएं और इसलिए मैंने पीसीएम लिया। पढ़ाई को लेकर मैं हमेशा अपने बड़े भाई से प्रभावित रही। इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जाम्स दिए और मुझे एनआईटी भोपाल में सिविल इंजीनियरिंग में एडमिशन मिल गया। ये मेरी पहली जीत थी।

जब मैं कॉलेज गई तो कई नए अनुभव हुए। कॉलेज में कई बच्चे ऐसे थे, जो संपन्न परिवार से आने के साथ-साथ अच्छी अंग्रेजी भी बोलते थे। मैं इंग्लिश सीखने के लिए उनके साथ घूमने लगी, लेकिन कुछ दिनों बाद समझ आया कि मेरी फैमिली कंडिशन उनके बराबर की नहीं। वो सब कुछ मेरी पहुंच के बाहर है, जो वे करते हैं। फिर मेरे कई विदेशी दोस्त बनें और मैंने उनसे बहुत कुछ अच्छा और नया सीखा।

ट्यूशन पढ़ाना और सेकेंड ईयर की पढ़ाई करना

सेकेंड ईयर में वीकेंड्स पर भोपाल से होशंगाबाद जाकर एक इंस्टीट्यूट में बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। बच्चों को पढ़ाने के साथ अच्छी बातों और आदतों के लिए मोटिवेट करती। मेरा मानना है कि बड़ा बनने के लिए जिंदगी में जो भी करो वो बेहतर तरीके से करो।

पापा को धांधली के केस में फंसाया गया, तारीफ करने वाले लोग सवालियां नजरों से देखने लगे

जब थर्ड ईयर में गई तो पापा के नाम धोखाधड़ी से एक धांधली के साथ जोड़ दिया गया। जो लोग कल तक हमारी तारीफ करते नहीं थकते थे, वो अब हम पर सवालिया नजर डालने लगे। इस दौरान मेरे नानाजी ने हमें बहुत सपोर्ट किया। ये वो समय था जब मन ही मन मैंने ये फैसला किया कि मैं सिविल सर्विसेज की तैयारी करूंगी। क्योंकि समाज को बेहतर गवर्नेंस की जरूरत है।

तैयारी के दौरान एक ऐसा समय आया जब मुझे खुद पर डाउट होने लगा। या यूं कहें कि मैं ये समझ नहीं पा रही थी कि मैं क्या कर रही हूं। सब कुछ अच्छा था, लेकिन मुझे कुछ खाली सा लगता था। मैंने अपना ध्यान भटकाने के लिए खुद को पढ़ाई में झोंक दिया।

चेतना का कहना अगर उनके माता-पिता ने उन्हें मोटिवेट और सपोर्ट नहीं किया होता तो वो आज यहां तक नहीं पहुंच पाती।
चेतना का कहना अगर उनके माता-पिता ने उन्हें मोटिवेट और सपोर्ट नहीं किया होता तो वो आज यहां तक नहीं पहुंच पाती।

6 से 7 एग्जाम्स दिए, फिर भी रही असफल

कॉलेज का फाइनल्स देने के बाद मैंने एसएसबी का इंटरव्यू दिया और पहले दिन ही स्क्रीनिंग में बाहर हो गई। मुझे बहुत धक्का लगा। मैं समझ गई कि मुझे अभी बहुत मेहनत करनी है।

वापस घर गई तो आईएएस की तैयारी करने के लिए दिल्ली जाने की सोची। इसके बाद मैं प्रिप्रेशन के लिए दिल्ली रहने लगी और अपना 6 महीने का कोर्स पूरा किया। इस बीच मुझे समझ आया कि आईएएस एग्जाम क्रैक करने में मुझे और समय लगेगा। कोर्स पूरा होते ही जनवरी 2018 में घर चली आई और पेरेंट्स को मनाया कि अब घर पर ही तैयार करूंगी।

घर आने के बाद मैंने एसएससी (स्टाफ सर्विस कमीशन) सीजीएल का फर्स्ट एटेम्प दिया, लेकिन फाइनल लिस्ट में सिलेक्शन नहीं हुआ। इसके बाद सीडीएस का एक इंटरव्यू कॉल आया जिसकी लिखित परीक्षा मैंने दिल्ली में रहते हुए दी थी। इस बार भी मैं मेरिट आउट हो गई। ऐसे करते-करते मैंने कुल 6 से 7 एग्जाम्स दिए, लेकिन कई बार असफलता मिली।

चंडीगढ़ शिफ्ट हुई, फिर आया इंटरव्यू का कॉल

मेरी असफलताओं का असर मुझपर ना परे इसलिए घर से दूर चंडीगढ़ शिफ्ट हो गई और कोचिंग में पढ़ाने लगी। यहां मेरे कोचिंग के बॉस प्रतीक सर ने मेरी बहुत हेल्प की। वो मुझे हमेशा मोटिवेट करते। अक्टूबर 2019 में मेरा सीडीएस इंटरव्यू के लिए कॉल आया। इस बार मैंने सारे राउंड क्लियर किए और मेरा लास्ट इंटरव्यू करीब एक घंटे का चला। मेरे अनुसार इंटरव्यू अच्छा रहा था, लेकिन इसके बाद भी मैं खुद को तैयार करने लगी कि अगर नहीं भी हुआ तो मैं मायूस नहीं होंगी।

7 बार असफलता हाथ लगने के बाद चेतना ने हार नहीं मानी और कोशिश करती रहीं।
7 बार असफलता हाथ लगने के बाद चेतना ने हार नहीं मानी और कोशिश करती रहीं।

आखिरकार हुई आर्मी के लिए सिलेक्ट, ऑल इंडिया रैंक थी 4

जनवरी 2020 में मैं अपने भाई के शादी के लिए घर गई। इस दौरान मेरा रिजल्ट आया और मेरी ऑल इंडिया रैंक 4 थी। मेरे पेरेंट्स और घरवालों की खुशी का ठिकाना नहीं था। मगर, मैंने बैठने और खुशियां मनाने के बजाए फिजिकली खुद को आर्मी के लिए तैयार करने की सोची। भाई की शादी के बाद जिम जॉइन किया। कोविड की वजह से जॉइनिंग डेट आगे खिसक गई, लेकिन मैं घर पर ही फिजिकल ट्रेनिंग करने में जुट गई।

फाइनली एकेडमी पहुंची और ट्रेनिंग खत्म होने के बाद नाम के आगे जुड़ा लेफ्टिनेंट

15 जून को मैंने फाइनली एकेडमी जॉइन की। आर्मी की ट्रेनिंग शुरु हुई।फिजिकल ट्रेनिंग टेस्ट में मैंने बहुत अच्छा स्कोर किया। सेकेंड टर्म में फिंगर इंजरी हो गई, लेकिन मैंने हार मानने के बजाए अपनी कोशिश जारी रखी और टेस्ट दिया। कमीशनिंग होने से एक महीने पहले तक मुझे नहीं पता था कि मैं पास होंगी या फिर 6 महीने के लिए एक्सटेंड कर दी जाऊंगी।लेकिन, कामयाबी ने मेरा हाथ थामा और मैंने अपनी मेहनत और साथियों की मदद से फिजिकल टेस्ट क्लियर कर लिया। इसके बाद मैं कमीशन होकर एयर डिफेंस रेजीमेंट में लेफ्टिनेंट के तौर पर कार्यरत हुई। यह मेरे लिए जिंदगी का पहला जश्न था।

कर्तव्य पथ पर अपने रेजिमेंट को रिप्रेसेंट करना चेतना के लिए एक सपने को जीने जैसा है।
कर्तव्य पथ पर अपने रेजिमेंट को रिप्रेसेंट करना चेतना के लिए एक सपने को जीने जैसा है।

परेड का हिस्सा बनना एक सम्मान जैसा, बच्चों को करना चाहती हूं मोटिवेट

जनवरी 2023 की शुरुआत में मुझे पता चला कि मुझे अगले महीने गणतंत्र दिवस परेड में अपने यूनिट को लीड करना। मेरी खुशी की ठिकाना नहीं था। मैं खुद को खुश किस्मत मानती हूं कि मेरे कमांडिंग ऑफिसर ने मुझे इस लायक समझा और मुझे ये मौका दिया। किसी भी ऑफिसर का ये सपना होता है कि वो कर्तव्य पथ पर गणतंत्र दिवस परेड का हिस्सा बने। मैंने वो सपना जिया है, मेरे लिए ये गर्व और सम्मान की बात है।

मेरा सपना है कि मैं हमेशा अपने देश के लिए कुछ अच्छा करने के लिए जानी जाऊं। जीवन में मुझे जब भी मौका मिलेगा मैं बच्चों को पढ़ाना चाहुंगी। उन्हें ये सीखाना चाहुंगी कि कभी हार ना माने, मेहनत से जी ना चुराएं और हमेशा फ्यूचर के लिए प्लान बी भी सोच कर रखें। अगर मैं हिम्मत हार जाती तो आज यहां आपके सामने ना होती।