मैं सुमन लता कौशिक डाकिया हूं। डाकिया सुनकर आपके दिमाग में एक पुरुष की छवि जरूर उभर रही होगी। लेकिन खतों को आपके घर तक पहुंचाने की जिम्मेदारी एक महिला डाकिया भी तो निभा सकती है।
आपके संदेश महिला-पुरुष डाकिया का भेद नहीं करते। आज वर्ल्ड पोस्ट डे पर मैं आपसे अपनी कहानी शेयर कर रही हूं।
2016 से शुरू हुआ डाकिया बनने का सफर
मैं दिल्ली से हूं। एक दिन अखबार में देखा कि पोस्ट ऑफिस में भर्ती के लिए आवेदन मांगे गए हैं। मुझे नहीं पता था कि जिस पोस्ट के लिए मैं फॉर्म भर रही हूं, वह पूरी तरह फील्ड वर्क है।
मैंने अप्लाई किया और 2016 में डाकघर की नौकरी जॉइन कर ली। जॉइनिंग के बाद मेरी 15 दिन की ट्रेनिंग हुई। मैं अपने बैच में अकेली महिला डाकिया थी।
आसान नहीं था डाकिया बनना
जब मुझे पोस्ट ऑफिस के लिए जॉइनिंग लेटर मिला तो मेरे पति ने इस काम के लिए मना कर दिया था। मैंने उन्हें समझाया कि इस काम में कोई बुराई नहीं है।
फिर जहां मैं सरकारी नौकरी के लिए कोचिंग ले रही थी, वहां की टीचर से बात कराई। उन्होंने भी समझाया। तब जाकर मेरा परिवार माना।
समाज की नजरों में पोस्टमैन की अच्छी छवि नहीं
हमारे समाज में पोस्टमैन को इज्जत की नजरों से नहीं देखा जाता है। जब लेटर लेकर किसी के घर पहुंचते हैं तो लोग पैसे देने लगते हैं। मैंने इस धारणा को तोड़ा।
कई लोगों ने मुझे बेचारा समझा और पैसे देने लगे तो मैंने उन्हें कहा कि लेटर घरों तक पहुंचाने के लिए डाकिया पैसे नहीं लेते। सरकार से सैलरी मिल रही है। इस बात पर लोग मुझे हैरानी से देखते।
कुछ लोगों को लगा मुझे पोस्टमैन ने भेजा है
लड़की और डाकिया हो ही नहीं सकता। कुछ लोग मुझे देखकर ऐसा ही सोचते थे। जब मैं लेटर लेकर लोगों के घर जाती तो उन्हें लगता कि मुझे डाकघर से डाकिया ने भेजा है।
वह कहते कि ‘मैडम आप क्यों आ गईं? पोस्टमैन क्यों नहीं आया?’ अगर बैंक में लेटर देने जाती तो उन्हें लगता कि मैं डेप्यूटेशन पर हूं और पोस्टमैन ने किसी मजबूरी में मुझे भेजा है।
पूरे दिन में 100 लेटर बांंटने होते हैं
मैं स्कूटी पर पूरे इलाके में लेटर बांटती हूं। 1 दिन में कम से कम 70 और ज्यादा से ज्यादा 100 लेटर बांटने होते हैं। कई बार सेहत तो कई बार आंधी, बारिश, गर्मी अड़ंगा डालते हैं लेकिन एक पोस्टमैन को हर हालात में काम करना होता है।
हमारी जिंदगी में कुछ फिक्स नहीं है। हर दिन नए लोगों तक खत पहुंचाने होते हैं। लंच का टाइम फिक्स नहीं होता। बारिश में भीग कर तो गर्मी में लू से बचकर काम करना होता है। लेकिन मुझे इस काम में मजा आता है।
पहले इस फील्ड में अजीब लगता था लेकिन आज मुझे खुशी होती है कि मैं यह काम कर रही हूं।
जब पहली बार पोस्टमैन ने साइन कराए तो खुशी मिली
नौकरी करने से पहले मुझे डाकघर और पोस्टमैन के काम की कोई जानकारी नहीं थी।
लेकिन मुझे याद है तब मैं 5वीं क्लास में थी तब पोस्ट के जरिए मेरा डिबेट कॉम्पिटिशन का सर्टिफिकेट आया था और पोस्टमैन ने मेरे हाथ से ही साइन करवाए थे। उस दिन मुझे बहुत अच्छा लगा था।
कॉलेज की लड़कियां और बुजुर्ग करते हैं तारीफ
जब भी कॉलेज या स्कूल की लड़कियों की किताब या रोल नंबर आता है और मैं उनके घर पर पोस्ट देने जाती हूं तो वह मुझे देखकर कहती हैं कि आप बहुत अच्छा काम कर रही हैं। वह मेरी तारीफ करती हैं।
एक बार एक बुजुर्ग अपने लेटर की तालाश में पोस्ट ऑफिस आए। उनका घर बंद पड़ा था और वह दूसरी जगह शिफ्ट हो चुके थे। लेटर को लेकर बहुत परेशान थे। उन्होंने मुझे अपनी परेशानी बताई तो मैंने उनका लेटर ढूंढा।
मुझे 30 मिनट बाद उनका खत मिला। उसे देखकर जो खुशी उनके चेहरे पर आई, वह देखने लायक थी। उन्होंने मुझे आशीर्वाद भी दिया।
ग्राफिक्स: सत्यम परिडा
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