सर्जरी के बाद ब्रा में रूमाल-पॉलीथिन पहनती थीं महिलाएं:कविता ने समझा दर्द, 7500 से ज्यादा ब्रा फ्री बांटीं, मुफ्त में इलाज भी कराती हैं

नई दिल्ली10 महीने पहलेलेखक: ऐश्वर्या शर्मा
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भारत में ब्रेस्ट कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इससे जूझती कई महिलाओं को अपने शरीर के सबसे अहम हिस्से को रिमूव करना पड़ा। यह उनके लिए कैंसर से भी बड़ा दुख होता है। जिंदगी भर बिना ब्रेस्ट के जीना सबसे बड़ी पीड़ा होती है। यह बात 48 साल की दिल्ली में रहने वालीं कविता गुप्ता ने कही।

कविता गुप्ता ने वुमन भास्कर को बताया कि मैंने जब ऐसी महिलाओं से बात की तब मुझे उनके दर्द का एहसास हुआ। चूंकि सिलिकॉन ब्रा बहुत महंगी आती है इसलिए मैंने खुद से प्रोस्थेटिक ब्रा बनाई और इसे मुफ्त में बांटना शुरू किया।

पति को हुआ था ब्लड कैंसर

मेरे हसबैंड सीए थे। उन्हें ब्लड कैंसर का पता चला। इसके बाद उनकी जॉब छूट गई। हमारा काफी समय अस्पताल में बीतता था। चूंकि हसबैंड खुद इस बीमारी से जूझ रहे थे और उन्हें इस तकलीफ का अंदाजा था इसलिए उन्होंने 2015 में कैंसर पीड़ितों की मदद के लिए विन ओवर कैंसर (Win over cancer) संस्था बनाई। उनका इलाज फरीदाबाद के मेट्रो हॉस्पिटल में चल रहा था।

इलाज कर रहे डॉक्टर सुमंत गुप्ता ने उन्हें ब्रेस्ट कैंसर से जूझ रही महिलाओं की तकलीफ बताई और कहा कि आप उनके लिए कुछ करें। ब्रेस्ट रिमूव होना उनके लिए किसी सदमे से कम नहीं होता। सिलिकॉन ब्रा बहुत महंगी होती है इसलिए महिलाएं उन्हें खरीद नहीं पातीं। इसके बाद मैंने इस बारे में सोचा।

कविता गुप्ता के हसबैंड ने 2015 में 'विन ओवर कैंसर' संस्था बनाई थी।
कविता गुप्ता के हसबैंड ने 2015 में 'विन ओवर कैंसर' संस्था बनाई थी।

कई ब्रेस्ट कैंसर पीड़ित मरीजों से मिली

डॉक्टर के कहने के बाद मैंने इस बारे में रिसर्च करनी शुरू की। मैंने बाजार में सिलिकॉन ब्रा का रेट पता किया तो वह 8 हजार रुपए से ज्यादा की थी। मैं कुछ ऐसी महिलाओं से मिली जो इतनी महंगी ब्रा नहीं खरीद सकती थीं। किसी ने ब्रा के अंदर रूई, रूमाल या कपड़ा लगाया हुआ था। एक महिला ने तो पॉलीथिन तक लगा रखी थी। उनकी बातें मेरे दिमाग में घूमती रही।

2016 में मैंने भी अपने हसबैंड के साथ एनजीओ को चलाना शुरू किया। मैंने उन्हें दिसंबर 2020 में खो दिया लेकिन उनका सपना पूरा करना अब मेरा सपना है। वह हमेशा कैंसर पीड़ितों की मदद करना चाहते थे।

बुटीक का काम किया था इसलिए फैब्रिक की जानकारी थी

शादी के बाद मैंने 3 साल तक बुटीक का काम किया था। ऐसे में मुझे फैब्रिक की जानकारी थी। मैंने सोचा कि मैं खुद ही महिलाओं के लिए ब्रा डिजाइन करती हूं। पहले मैंने फोम की ब्रा बनाने की सोची लेकिन डॉक्टर ने कहा कि फोम पेशेंट को नुकसान पहुंचा सकता है।

फिर मैंने कॉटन की कई लेयर डालकर ब्रा बनाई और उसके साथ कृत्रिम ब्रेस्ट यानी प्रोस्थेसिस तैयार की। इसे तैयार करने में 6 महीने का समय लग लगाया। डॉक्टर सुमंत ने इस ब्रा को ठीक बताया।

'डिग्निटी' नाम से किट बनाई जिसमें प्रोस्थेटिक ब्रा बांटी जाती हैं।
'डिग्निटी' नाम से किट बनाई जिसमें प्रोस्थेटिक ब्रा बांटी जाती हैं।

प्रोजेक्ट ‘गरिमा’ के तहत शुरू किया ब्रा बांटना

एक प्रोस्थेटिक ब्रा बनाने की लागत 1750 रुपए आई। एक किट में 2 सेट होते हैं। यानी 2 प्रोस्थेसिस (कृत्रिम ब्रेस्ट) और 2 पॉकेट ब्रा। पॉकेट ब्रा में प्रोस्थेसिस को लगाना पड़ता है। प्रोजेक्ट ‘गरिमा’ के तहत मैंने इसे एम्स और टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल में बांटना शुरू किया।

आज मैं 26 राज्यों में प्रोस्थेटिक ब्रा बांटती हूं। कुरियर सर्विस के भी चार्ज नहीं लिए जाते। इसके लिए आधार कार्ड, ओपीडी कार्ड और मेडिकल रिपोर्ट देखी जाती हैं। अभी तक मैं 7500 महिलाओं को फ्री में ब्रा बांट चुकी हूं। 6 महीने बाद दोबारा भी सेट दिया जाता है। इन ब्रा को धोया जा सकता है।

सरकार इस ब्रा को नहीं मानती मेडिकल प्रोडक्ट

सिलिकॉन ब्रा न तो किसी सरकारी पैनल में कवर होती और न ही इंश्योरेंस में इसका रिम्बर्समेंट मिलता है। इसे मेडिकल प्रोडक्ट नहीं समझा जाता। सरकार इसे गारमेंट की तरह देखती है। इस वजह से महिलाएं 8-10 हजार रुपए की ब्रा नहीं खरीदतीं।

मैं कुछ ऐसी महिलाओं से मिली जिनकी ब्रेस्ट 10 साल पहले रिमूव हुई थी लेकिन वह सिलिकॉन ब्रा नहीं खरीद सकती थीं। कई महिलाओं के दिमाग में यह भी बात थी कि पहले ही इलाज पर काफी पैसा खर्च हो रहा है तो वह कैसे इतनी महंगी ब्रा खरीदें।

कविता गुप्ता अपनी बेटी के साथ इस काम को संभाल रही हैं।
कविता गुप्ता अपनी बेटी के साथ इस काम को संभाल रही हैं।

कैंसर पीड़ितों का मुफ्त में कराया इलाज

कई ऐसे मरीज हैं जो कैंसर का इलाज नहीं करा सकते। जब हमें अस्पतालों की मदद से ऐसे पेशेंट का पता चलता है तो हमारी संस्था उनके लिए फंड इकट्ठा करती हैं। अभी तक 50 से ज्यादा कैंसर पीड़ितों का इलाज मुफ्त में कराया है।

कई जगह चला रहे हैं जागरूकता अभियान

हर महिला को अपनी ब्रेस्ट का सेल्फ एग्जामिनेशन करना चाहिए और 40 की उम्र के बाद हर साल मैमोग्राफी करवानी चाहिए ताकि गांठ हो तो सही समय पर पता चल जाए।

जब ब्रेस्ट कैंसर का पहले ही पता चल जाता है तो कुछ दवाओं और रेडिएशन से इसे ठीक किया जा सकता है। इससे ब्रेस्ट रिमूव नहीं होती और न ही कीमोथेरेपी का दर्द सहना पड़ता है।

हमारी संस्था कॉलेज, स्कूल, ऑफिस, लेडीज क्लब और सोसायटी में हर महीने जागरूकता अभियान चलाती है।

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