आज दुनिया मुझे चट्टान की तरह मजबूत समझती है। मेरे हंसते हुए चेहरे में मेरी कामयाबी का अक्स दिखता है। लेकिन इस खुशी, हंसी के पीछे बहुत सारा त्याग, संघर्ष, अपनों को खोने का गम छिपा है। सरवाइवर से फाइटर बनने तक बहुत सी केंचुलें निकाल फेंकनी पड़ी तब पुनर्जागरण हुआ। ये शब्द हैं राजस्थान में केयर्न ऑयल एंड गैस कंपनी में सीएसआर प्रमुख हरमीत सेहरा के।
छोटी उम्र में कंधों पर बड़ी जिम्मेदारी
कोलकाता में जन्मी हरमीत वुमन भास्कर से खास बातचीत में कहती हैं, ‘मेरा खुशियों से भरा परिवार था। बड़ा भाई हर वक्त मेरा रक्षा कवच बना रहता और मां-पिता दुलार लुटाते, लेकिन जब गंभीर बीमारी की वजह से मां गुजर गई तो 15 साल की उम्र में बड़ी जिम्मेदारियां संभालनी पड़ी।
हमेशा खिलखिलाने वाली लड़की के चेहरे पर अब मायूसी छाने लगी, लेकिन एक दिन पिता ने समझाया कि उदास होने से काम नहीं चलेगा, आगे बढ़ना सीखो। मैंने खूब मेहनत की। बीए, एमबीए किया और 23 साल की हुई तब शादी हो गई।
असफल शादी और दुधमुंही बेटी की जिम्मेदारी
शादी सफल नहीं रही और एक दुधमुंही बेटी को लेकर मुझे ससुराल की दहलीज पार करनी पड़ी। अब तक जो लड़की बहुत नाजों से पली थी अब वह नितांत अकेली थी। सिर पर न मां का साया और न पति का साथ। ये वक्त मेरे लिए इतना कठिन था कि मैं रोज जीने से ज्यादा मरने के बारे में सोचती। आत्महत्या की भी कोशिश की।
मैं रोज तिल-तिल मरकर जी रही थी, लेकिन फिर एक दिन मेरे भीतर से आवाज आई कि आखिर मैं ऐसे कब तक जीऊंगी। मर जाऊंगी तो मेरी बेटी को कौन देखेगा। बस इसके बाद मैं जली हुई राख के समान ऐसे ऊपर उठी कि कभी नीचे आने के बारे में सोचा ही नहीं।
बेंगलुरु में मार्केटिंग का काम किया। भरी दुपहरी हो या कड़कड़ाती ठंड, दुधमुंही बेटी को पीठ पर डाले डोर टू डोर मार्केटिंग की। प्रोडक्ट्स बेचे। दिन भर मेहनत करती तब बेटी के लिए एक बोतल दूध खरीद पाती।
बेटी बनी प्रेरणा स्रोत
मेरी बेटी मेरी प्रेरणा स्रोत बनी। अब तक मेरा भगवान से एक ही सवाल होता था ‘वाई मी’, फिर मैंने ‘ट्राय मी’ कहना शुरू किया। अब मैंने परेशानियों से हारना या उनसे डरना बंद कर दिया। खूब किताबें पढ़ीं। सालों टीवी नहीं देखा। सिर्फ काम किया।
चूंकि मैं सिंगल मदर थी तो इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा। पिछले 20 सालों से किसी शादी में नहीं गई क्योंकि लोग मेरी जिंदगी के ड्राइवर खुद बनना चाहते थे।
मुझे याद है ओडिशा में एक कंपनी में काम करने के दौरान मुझे कई साल प्रमोशन नहीं दिया गया। लोग मेरे काम को नहीं मेरे शरीर को देखते। मान कर चलते कि सिंगल महिला है तो काम अच्छा नहीं करती होगी। लेकिन ऐसा वक्त आया जब मेरी कंपनी के मालिक को मुझसे माफी मांगनी पड़ी, क्योंकि मैं अच्छा काम कर रही थी। आखिरकार देर से ही पर मुझे प्रमोशन भी मिला।
मर्दों को लताड़, समाज सेवा का काम
मर्दों से भरी दुनिया में सिंगल मदर का काम करना इतना आसान नहीं। मेरी लाइफ में टर्निंग पॉइंट तब आया जब राजस्थान में पांच साल पहले वेदांत में काम शुरू किया। अर्निंग बढ़ी और जिंदगी पटरी पर आई। अब केयर्न ऑयल एंड गैस कंपनी में सीएसआर हेड हूं।
यहां रहते हुए मैंने सूखे राजस्थान में पानी के प्रोजेक्ट पर काम किया। शिक्षा के क्षेत्र में काम किया। रेन वाटर हार्वेस्टिंग के अलावा सरकार के साथ मिलकर कुएं बनवाए। 124 आरओ प्लांट्स लगवाए ताकि लोगों को पानी की किल्लत न हो। महिलाओं और बच्चों की सेहत के लिए भी काम किया।
राजस्थान के लोगों ने मुझे इतना प्यार दिया कि अब ये परिवार जैसे लगते हैं। मैंने नौकरी के साथ-साथ अपनी बच्ची को भी पढ़ाया। उसे पढ़ने के लिए पुणे भेजा और आज वह पढ़ाई में अच्छा कर रही है।
सिर उठाकर जीएं
निजी जिंदगी और कामकाजी जिंदगी के बीच बैलेंस बनाया और आज दोनों ही फ्रंट पर खुद को सफल मानती हूं। मैं सभी से अपील करती हूं कि कुछ ऐसा करो कि आप सिर उठाकर जी सकें।
मेरे काम को सरकारों ने विभिन्न सम्मानों से भी नवाजा है। अब मैं हर महिला को यही कहना चाहूंगी कि हारने के हजार कारण होते हैं लेकिन हमें जीतने के बारे में सोचना है। जिंदगी को खत्म करने के बारे में नहीं, जीने के बारे में सोचें और सकारात्मक सोच रखें। जितना अच्छा पढ़ सकते हैं पढ़ें और सरवाइवर की तरह नहीं फाइटर की तरह जीएं।
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