मेरा नाम जया मेहता है। मैं दिल्ली से हूं और ओडिसी डांसर हूं। मैंने अपना पूरा जीवन इस कला को समर्पित किया। हाल ही में मैंने एक किताब लिखी जो चित्रों के जरिए बच्चों को भारतीय शास्त्रीय नृत्य से जुड़ी कहानियां बताती हैं।
खजुराहो में हुए नृत्य समारोह ने बदल दी दुनिया
मैं जब ग्रेजुएशन कर रही थी, उस समय मैं खजुराहो में हुए नृत्य समारोह में गई। वहां नृत्यांगना को देखकर लगा मानो मूर्तियां डांस कर रही हैं। उसी समय मैं इन मूर्तियों को अपने शरीर में महसूस करना चाहती थी। मैंने अपनी गुरु प्रतिभा जेना सिंह से ओडिसी नृत्य सीखा और इससे जुड़े मुझे 22 साल हो गए हैं।
मैं गुरु सुरेन्द्र नाथ जेना की ओडिसी शैली को प्रस्तुत करती हूं। उनकी रचना में मैंने भक्ति, कविता और शिल्पकला को गहराई से समझा।
इतिहास से हमेशा जुड़ाव रहा
मैंने विजुअल आर्ट्स किया। जब मैं इतिहास की पढ़ाई कर रही थी तब मैंने अपना रिसर्च पेपर अजंता अलोरा की मूर्तियाें के बारे में लिखा।
मुझे देश की शिल्पकला और मंदिरों से काफी जुड़ाव रहा है। मैं मंदिरों को और गहराई से समझना चाहती थी। इस दौरान मैंने अपने देश की कला के बारे में बहुत कुछ जाना। तब तक मैं ओडिसी नृत्य सीखने लगी थी।
हालांकि, मैं बचपन से डांस कर रही हूं लेकिन कभी शास्त्रीय नृत्य नहीं किया।
हर नृत्य एक राज्य की संस्कृति और शैली से जोड़ता है और मुझे ये जोड़ बहुत पसंद है। मैंने अपने नृत्य की ही कविता लिखी 'द पोएटिक साड़ी'।
मां ने पहचान ली थी मेरी प्रतिभा
मैंने दिल्ली के स्प्रिंगडेल स्कूल से स्कूलिंग की है। वहां कई तरह के कल्चरल प्रोग्राम होते हैं। मैंने बचपन से थिएटर और डांस प्रोग्राम में हिस्सा लिया। मेरी मां भी जानती थी कि मुझे कला में रुचि है।
ऐसे में उन्होंने मुझे 10 साल की उम्र में कथक गुरु से जोड़ने की कोशिश की। लेकिन तब मेरी डांस सीखने में खास रुचि नहीं थी।
वेब डिजाइनर की नौकरी की और छोड़ दी
मैंने कुछ साल तक वेब डिजाइनर की नौकरी की। मैं इस काम को करके खुश नहीं थी तो नौकरी छोड़ दी। मेरे पेरेंट्स वैज्ञानिक हैं। उन्होंने मुझे कभी किसी काम को करने के लिए जोर जबरदस्ती नहीं की। उन्होंने भी मेरे फैसले को स्वीकार किया।
जब हम समाज के कहने पर नहीं चलते और अपनी राह खुद बनाते हैं तो वह चुनौती बन ही जाती है। जब मैंने डांस को पूरी तरह अपना लिया तो कई लोगों ने उस पर प्रश्न उठाए।
कुछ लोगों ने मेरे पति से पूछा कि आपकी पत्नी डांसर है। लेकिन इसके अलावा क्या करती हैं? वह सोचते कि डांस पार्ट टाइम काम है लेकिन यह काम नहीं है।
वहीं, कई बार मेरे पेरेंट्स को रिश्तेदार बोलते थे कि जया तो पढ़ाई में अच्छी रही है तो डांसर क्यों बनी?
23 साल की उम्र में पहली बार स्टेज पर परफॉर्म किया
मेरी पहली परफॉर्मेंस दिल्ली के पूसा इंस्टीट्यूट में थी। मैं तब 23 साल की थी। यह सोलो डांस था। ऑडियंस ने मेरे नृत्य को काफी सराहा लेकिन मुझे खुद की परफॉर्मेंस अच्छी नहीं लगी। तब मैं सोच रही थी इससे और बेहतर कर सकती थी।
अपनी लिखी कविता पर किया नृत्य
बचपन से ही मैं कविताएं लिखती आई हूं। लेकिन जब विजुअल आर्ट की पढ़ाई की तो लिखना छोड़ दिया। कुछ अरसे पहले ही मैंने दोबारा कविता लिखनी शुरू की।
नीदरलैंड में इंडिया डांस फेस्टिवल एंड इंटरनेशनल पॉइट्री फेस्टिवल था। वहां मैंने अपनी लिखी कविता ‘सखी’ पर मशहूर डांसर अनिमा के साथ परफॉर्म किया।
किताब छपवाने की सोची
जब मैं स्टेज पर अपनी कविताओं को डांस के साथ पेश कर रही थी तब कुछ लोगों ने मुझसे पूछा कि क्या वह मेरी कविता इस्तेमाल कर सकते हैं? तब मुझे लगा कि अब मुझे अपनी कविताओं की किताब छपवानी चाहिए।
मैंने ‘द पोएटिक साड़ी’ नाम की किताब की रचना की। यह कविताएं अंग्रेजी में हैं लेकिन मैंने इसमें संस्कृत और हिंदी के शब्द भी इस्तेमाल किए।
तस्वीरों के जरिए शास्त्रीय नृत्य सिखाने की कोशिश
2006 और 2009 में मैं मां बनी। जब आप मां बनते हैं तो आपका जिंदगी के प्रति दृष्टिकोण बदल जाता है। हम बच्चों को अलग-अलग चीजें दिखाना चाहते हैं। उन्हें नई चीजों से जोड़ना चाहते हैं।
जब वह छोटे थे तो मैं पिक्चर बुक्स से कहानी सुनाती थी। मैंने अनुभव किया कि इंटरनेशनल डांस पर बच्चों के लिए कई पिक्चर बुक्स हैं लेकिन शास्त्रीय नृत्य पर ऐसी कोई किताब नहीं। जबकि हमारे देश में कई लोकनृत्य हैं। ऐसे में मैंने ‘नृत्य कथा’ नाम से किताब लिखी। इसमें फोटो के जरिए बच्चों को शास्त्रीय नृत्य की कहानियां बताई गई हैं।
11 साल से डांस सिखा रही हूं
मैंने डांस स्कूल खोला हुआ है जहां मैं पिछले 11 साल से नृत्य सिखा रही हूं।
इसके अलावा मैंने ‘वैरी स्पेशल आर्ट’ नाम की एनजीओ में ऐसे बच्चों को डांस सिखाया जो अनाथालय से आते थे। मैंने डांस की कई वर्कशॉप भी लीं।
मैं दूर दराज के गांव के स्कूलों में जाकर बच्चों को डांस सिखाना चाहती हूं।
लोगों ने नृत्य को खूब सराहा
मुझे याद है, मैं इस्तांबुल में एक परफॉर्मेंस की थी। वहां मुझे किसी ने कहा कि परफॉर्मेंस देखकर ऐसा लग रहा था कि भगवान कृष्ण के भाव उनकी तरफ बहते आ रहे थे। यह सुनकर मैं बहुत खुश हुई।
वहीं, जयपुर के एक फेस्टिवल में मैंने हनुमान चालीसा पेश की थी। यह परफॉर्मेंस मैं अपनी बहन के साथ कर रही थी। तब मुझे किसी ने कॉम्प्लिमेंट दिया कि ऐसा लग रहा था कि विराट कोहली और गौतम गंभीर क्रिकेट खेलने आए हैं। उन्होंने कहा कि हमारे परफॉर्मेंस में उन्हीं की तरह तेजी, स्फूर्ति और तालमेल था।
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