प्रेग्नेंट महिलाओं के लिए डिजाइन करती हूं कपड़े:नौकरी छोड़ शुरू किया बिजनेस तो फैमिली हुई नाराज, 2 साल में टर्नओवर 5 करोड़

नई दिल्ली2 महीने पहलेलेखक: भारती द्विवेदी
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मैं रुचि वर्मा दरभंगा बिहार से हूं। बचपन दरभंगा में ही बीता। मध्यमवर्गीय परिवार से आती हूं। पापा एसबीआई में जॉब करते हैं और मां हाउस वाइफ। हमें तीन बहनें ही हैं। अपने पैशन को फॉलो करके आज मैं एक सफल बिजनेसवुमन हूं। ‘ये मैं हूं’ में जानिए दरभंगा से मुंबई और फिर बतौर फैशन डिजाइनर मेरी जर्नी ….

कोटा में मैं छह महीने भी नहीं टिक पाई

हर पेरेंट्स की तरह मेरी मां चाहती थी कि हम तीनों बहनें इंजीनियर बने। उनके सपने को पूरा करने के लिए मैं कोटा चली गई। वहां पहुंचकर मुझे एहसास हुआ कि मैं ये नहीं कर सकती। केमिस्ट्री-फिजिक्स के अक्षर मेरी आंखों के सामने घूमने लगे। किसी भी मिडिल क्लास फैमिली के लिए कोटा कोचिंग का खर्च उठाना बड़ी बात होती है। घर वालों ने काफी खर्चा करके कोटा भेजा है, उसका क्या होगा? मां-बाप का सोचकर मन में काफी उलझन थी। ये सब सोचकर मैंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की लेकिन मुझसे नहीं हो पाया। मैं छह महीने में वापस आ गई।

दिल-दिमाग फैशन इंडस्ट्री की तरफ जा रहा था

दरभंगा की धरती अपनी कला के लिए जानी जाती है। मेरे ऊपर दरभंगा का रंग था। मेरे घर के बगल में एक आंटी थी, जो सिलाई का काम करती थीं। उनका काम मुझे बचपन से अट्रैक्ट करता था। गांव घर में बुटीक शब्द कहां इस्तेमाल होता है। सिलाई का काम लोगों की नजर में दर्जी का काम है। मुझे वो काम पसंद है,ये मैं घर में नहीं बता पाई। मैंने हिम्मत करके पापा को बताया कि मेरी दिलचस्पी आर्ट्स में है। इंजीनियरिंग की पढ़ाई मुझसे नहीं हो पाएगी। पापा ने सब सुन लिया। उन्हें भी एहसास हो चुका था कि इंजीनियरिंग मेरे लिए सही नहीं है। उन्होंने कहा वापस आ जाओ। जो भी पढ़ाई करनी हो दरभंगा से करो। मैं घर वापस आ गई। दसवीं के बाद मैंने निफ्ट और इंजीनियरिंग दोनों का एग्जाम दिया। मेरा निफ्ट में हो गया।

दरभंगा से मुंबई जाने का फैसला भी मुश्किल था

निफ्ट का एग्जाम क्लियर करने के बाद मुंबई जाने का फैसला भी थोड़ा मुश्किल रहा। मां चाहती थी कि मैं पटना या कोलकाता कैंपस ही जाऊं। दरभंगा से निकलकर मुंबई जाना बड़ी बात थी। वो भी अकेली। लेकिन जब मैंने मुंबई जाने का फैसला किया तो घर वालों का सपोर्ट मिला। वो मेरे लिए लाइफ चेंजिंग मोमेंट था।

छोटे से एक्सपोर्ट हाउस ने बहुत कुछ सिखाया

कॉलेज के आखिरी साल में मैं एक एक्सपोर्ट हाउस के लिए कैंपस सेलेक्शन हो गया। वहां मुझे छोटे बच्चे के साथ मैटरनिटी वियर की डिजाइनिंग पर काम करने मौका मिला। तीन साल तक मैंने एक्सपोर्ट हाउस के लिए काम किया और बहुत कुछ सीखा। सेम जगह पर ऑफिस, फैक्ट्री होने की वजह से वहां मैंने डिजाइनिंग के अलावा, प्रिटिंग, स्टिचिंग, सैंपलिंग, प्रोडक्शन का काम सीखा। फ्रेशर के तौर पर मेरे लिए वो एक्सपीरिएंस काफी नया और काम का था।

जॉब करके खुशी नहीं मिल रही थी, कहीं कुछ कमी थी

साल 2012 में मुझे पहली नौकरी मिली थी। 2019 तक मैं चार कंपनी में काम कर डिजाइनर से सीनियर डिजाइनर के पोजीशन तक पहुंच चुकी थी। मैं जॉब कर रही थी पर सैटिस्फेकशन नहीं मिल रहा था। काम बढ़ता जा रहा था। फिक्स सैलरी की आदत सी पड़ गई थी। लेकिन हरदम लगता कुछ तो मिसिंग है। बचपन में टेलर आंटी और दसवीं के बाद फैशन डिजाइनर मनीष मल्होत्रा मेरे आइडियल थे। मुझे लग रहा था कि मुझे भी अपना ब्रांड शुरू करना है। सिर्फ नौकरी के लिए मैंने निफ्ट की पढ़ाई नहीं की है।

नौकरी छोड़ने के फैसले से घरवाले खुश नहीं थे

मैंने साल 2019 में नौकरी छोड़ने का फैसला किया। पेरेंट्स और हस्बैंड को जॉब छोड़ने के बारे में बताया तो वो खुश नहीं थे। पहले पति ने सपोर्ट करने से मना कर दिया फिर मेरे पेरेंट्स ने भी। उनलोगों को रिएक्शन था कि तुम्हें एक सेटल लाइफ क्यों छोड़नी है? घर में सारे लोग ही बैंकिंग सेक्टर से जुड़े हैं तो बिजनेस उनके समझ से भी परे था। लेकिन मैंने फैसला लिया और नौकरी छोड़ दी। नौकरी छोड़ने की वजह से पति ने दो दिन तक बात नहीं की। मैंने रिसर्च वर्क करके अगले 3-4 महीने की प्लानिंग पेरेंट्स को बताई फिर जाकर वो थोड़ा कंविंस हुए।

जब फील्ड में पहुंची तब असली स्ट्रगल शुरू हुआ

फील्ड में उतरने से पहले मैंने काफी रिसर्च शुरू किया था। ये देखा कि मार्केट में किस सेक्शन की डिमांड बढ़ रही है। मैटरनिटी क्लॉथ में काफी उम्मीद दिखी और मैंने पहले भी इस पर काम भी किया था। थोड़ा कॉन्फिडेंस आया और मैंने अपना प्रोडक्ट चुना। जब फील्ड में पहुंची तो असली स्ट्रगल शुरू हुआ। वन मैन आर्मी की तरह मुझे सबकुछ खुद करना था। अब तक मैंने सिर्फ डिजाइनिंग का काम किया था। लेकिन अब प्रोडक्शन लाइन, लोगो डिजाइनिंग, मर्चेंडाइज, पैकेजिंग, डिलीवरी फाइनेंस जैसी चीजें भी मुझे ही करनी थी। मेरा बजट कम था इसलिए सबसे ज्यादा दिक्कत यहां हुई। शुरू में प्रोडक्ट की क्वांटिटी 15 थी। प्रोडक्ट क्वांटिटी सुनकर वेंडर मुझे पर हंसते और साथ काम करने से मना कर देते। वो मेरे लिए रिजेक्शन था। फिर भी सारी मुश्किलों से डील करते हुए मैंने अपना ब्रांड AARUVI मैटरनिटी क्लॉथ के साथ शुरू किया। तभी कोविड का दौर आ गया।

दो साल में ढाई लाख का बिजनेस करोड़ तक पहुंचाया

कोविड का दौर सबके लिए मुश्किल भरा रहा। मैंने अपना बिजनेस ऑफलाइन ही सोचा था। लेकिन कोविड के चलते ऑफलाइन काम शुरू नहीं हो पाया। फिर मुझे ऑनलाइन जाना पड़ा। कोविड का वो दौर मेरे ऑनलाइन बिजनेस के लिए फायेदमंद साबित हुआ। मैंने मिंत्रा, अमेजन और फ्लिपकार्ट से टाईअप करने के लिए बात की। उस वक्त मिंत्रा ने प्रोडक्ट क्वांटिटी कम होने की वजह से मेरा प्रोपजल एक्सेप्ट नहीं किया। अमेजन और फ्लिपकार्ट के साथ बात बनी। लॉन्च के 24 घंटे के ही अंदर मुझे ऑर्डर मिलने लगा। आज मेरा ब्रांड अमेजन, फ्लिपकार्ट, मीशो, नायका के साथ मिंत्रा पर भी अवेलबल है। मैंने ढाई लाख के साथ अपना लेबल शुरू किया था। दो साल हो गए आज मेरा बिजनेस का टर्नओवर 5 करोड़ पहुंच गया है। अब मेरा लक्ष्य हर छह महीने में अपने ब्रांड में क्लॉथ की नई कैटेगरी ऐड करने का है।

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