दिल्ली महिला आयोग की प्रमुख स्वाति मालीवाल को नशे में धुत एक कार ड्राइवर ने 15 मीटर तक घसीटा। यह घटना बुधवार देर रात एम्स हॉस्पिटल के पास की है, जब स्वाति दिल्ली की सड़कों पर रियलिटी चेक करने निकली थीं। मामले में पुलिस ने आरोपी हरीश चंद्र को अरेस्ट कर लिया है।
महिलाओं के खिलाफ रेप और हिंसा के मामलों को पुरजोर तरीके से उठाने वाली स्वाति मालीवाल की कहानी पढ़िए उन्हीं की जुबानी...
स्वाति मालीवाल कहती हैं, 'मैंने बचपन से ही अपने घर की चारदीवारी में डोमेस्टिक वायलेंस देखा। मां और पापा के रिश्ते की कड़वाहट को मैंने गहराई से महसूस किया। मैं शुरू में अपनी मां को जिस दर्द से गुजरते देखा जिसे बयां करना मुश्किल है, शायद इसीलिए मैं दूसरों के लिए काम कर पाती हूं।'
स्ट्रांग वैल्यूज हैं मेरी लाइफ का हिस्सा
पापा एयरफोर्स में थे और मां टीचर। पापा की पोस्टिंग देश भर में अलग-अलग जगहों पर रही तो मैंने देश के अलग-अलग कल्चर को देखा और सीखा। बहुत स्ट्रांग वैल्यूज मेरी लाइफ में हैं और ये मेरे जीवन का सबसे अच्छा पार्ट है। मेरी पढ़ाई भी कई जगहों से हुई। मां उत्तर प्रदेश के मेरठ से थीं और पापा हापुड़ से। मां और पापा के बीच काफी प्रॉब्लम्स थीं। इसलिए मां ने 6वीं क्लास के बाद ही मुझे नानी के घर भेज दिया। नानी-नाना नोएडा में रहते थे तो जिंदगी का काफी हिस्सा उनके साथ गुजरा।
प्रिंसिपल ने मां से कहा-इसके मन में डर पैदा करो
मैं बचपन से ही निडर स्वभाव की थी। गलत बातों पर मुझे बहुत तेज गुस्सा आता और मैं गलत के खिलाफ हमेशा से आवाज मुखर करती थी। मेरी मां बचपन का एक किस्सा आज भी लोगों से शेयर करती हैं- मेरी प्रिंसिपल ने मेरी मां को मीटिंग के लिए बुलाया और कहा कि कैसी बच्ची है ये? इसे बिलकुल डर नहीं लगता। इसके मन में थोड़ा डर पैदा करो।
जिंदगी ने मुझे गलत के खिलाफ लड़ना सिखाया
मुझे ऐसा लगता है कि जिंदगी की चुनौतियां और संघर्ष आपको निडर बनाते हैं। जिंदगी अपने आप आपको लड़ना सिखा देती है।
आज मुझे लगता है कि मेरा निडर होना ही मेरी ताकत है। अगर मैं डर जाउंगी तो सिस्टम के खिलाफ कैसे लडूंगी। सिस्टम उन सभी लोगों को तोड़ने की कोशिश करता है जो धारा से अलग बहकर सच के लिए खड़े होते हैं। बेबाकी के बिना सच के लिए लड़ना मुश्किल है।
मुश्किलें हमें भविष्य के लिए तैयार करती हैं
मैं श्रीमद्भागवत गीता और कर्म के सिद्धांत में भरोसा रखती हूं। अगर आप डर जाएं तो कोई लड़ाई नहीं लड़ सकते। जब तक जिंदा हूं मैं झूठ और अन्याय के खिलाफ लड़ती रहूंगी ताकि एक बेहतर इंसान होने का फर्ज निभा सकूं। मैं मानती हूं कि मैं जैसे शुरू में थी वैसी ही अब भी हूं। मैं कभी प्रार्थना में ईश्वर से आसान जीवन नहीं मांगती। मेरा मानना है कि जीवन में जो मुश्किलें आती हैं वो हमें मजबूत बनाती हैं और हमें भविष्य के लिए तैयार करती हैं। मैं ईश्वर से मांगती हूं कि न मेरे अंदर अहंकार पैदा हो और न ही डर। मेरे अंदर हमेशा ऊर्जा बनी रहे ताकि मैं लोगों की मदद कर सकूं। मुझे इस बात से डर लगता है कि मैं कहीं डर न जाएं।
विपश्यना और आध्यात्म से पाया सुकून
जीवन में संयम बैठाने के लिए मैं योग, मेडिटेशन और विपश्यना का सहारा लेती हूं। अभी तक मैं विपश्यना के 20 सेशन कर चुकी हूं। इससे मन सकारात्मकता से भरा रहता है और ऊर्जा महसूस होती है। अपने आसपास की नकारात्मकता से दूर रहने के लिए मैं अध्यात्म से जुड़ी हुई हूं।
इंजीनियरिंग की जॉब छोड़ गरीब बच्चों को पढ़ाया
मैं हमेशा से पढ़ने में अच्छी रही हूं। मैंने लेडी श्री राम कॉलेज में इकॉनमी जॉइन किया। लेकिन परिवार के कहने पर मैंने JSS कॉलेज में इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ाई की। कैंपस प्लेसमेंट के जरिए मेरा सिलेक्शन HCL में हुआ। जॉइनिंग पीरियड में ऐसा संयोग बना कि बगल के ही एक स्कूल में एक उम्रदराज अंकल पढ़ाते थे। मैंने भी उनके साथ बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। उस समय मैं महज 22 साल की थी। लेकिन जब मैंने गरीबी, लाचारी और अन्याय देखा तो लगा कि मेरा दर्द बहुत कम है। जॉब छोड़ कर मैं उस स्कूल में पढ़ाने लगी।
सूचना का अधिकार कानून ने बदला नजरिया
इसी बीच देश में सूचना का अधिकार कानून आया। मुझे यह बहुत पसंद आया। इस कानून ने रोल रिवर्स कर दिया। ब्यूरोक्रेट (सरकार) से कोई सवाल नहीं पूछ सकता। पहली बार आम इंसान को ये पॉवर मिली कि वो सरकार से सवाल पूछ सके। राइट टू एक्ट मूवमेंट में मैं अरविन्द केजरीवाल के NGO परिवर्तन से जुड़ गई और 10 साल तक कार्यकर्ता के रूप में समाज के लिए काम करती रही।
10 साल झुग्गियों में रही, मिला जिंदगी का असली सबक
8 से 10 साल मैं गांव की झुग्गियों में खाक छानती रही। मैं मानती हूं कि जिनके लिए हमें काम करना है अगर हम उनके साथ रह कर उनकी समस्याओं को नहीं समझ सकते तो उनके जीवन में क्या ही बदलाव ला पाएंगे। जब मैं झुग्गी में रहने गई तो सोचा था कि मैं उनके लिए कुछ काम करने जा रही हूं, कुछ सिखाने और पढ़ाने का रही हूं। लेकिन जब मैं झुग्गी में रही तो मुझे महसूस हुआ कि वहां के लोगों ने मेरी मदद करी। जिन लोगों के पास खाना तक नहीं था वो भी खुश रहना जानते थे। मैंने वहां से सीखा कि कैसे आप सिंपल सी जिंदगी जी कर भी सुखी रह सकते हैं।
किताबों से ज्यादा सिखाती है जिंदगी
मैं गली-गली में जाकर मोहल्ला सभा मूवमेंट करती, अस्पताल जाकर गरीबों को दवाईयां मुहैया कराती, यौन हिंसा की शिकार महिलाओं की मदद से मैंने काफी कुछ सीखा। लोगों की मदद करते हुए मैंने सीखा कि लोगों की मदद करना दरअसल खुद की मदद करना है। जीवन जो सबक आपको सिखाता है वो किताबें आपको नहीं सिखा सकतीं।
किस्मत का यू-टर्न
अन्ना आंदोलन में मैं कोर कमिटी की मेंबर रही। अरविन्द केजरीवाल, अन्ना हजारे और किरण बेदी ने मेरे काम को सराहा। मैं तब बस 26 साल की थी। मैं अलग-अलग आंदोलनकारियों से मिलती रही ताकि समाज में कुछ बदलाव ला सकूं। इसी बीच अरविन्द केजरीवाल जी दिल्ली के मुख्य मंत्री बन गए। उनका कॉल मुझे आया कि जो लड़की बिना पॉवर के लड़-लड़ के काम करवा देती है वो पॉवर मिलने पर कमाल करेगी। उन्होंने मुझे एडवाइजर बनाया और 6 महीने बाद DCW की चेयर पर्सन बनाया। उन्होंने कहा कि लड़ना है, बेबाकी से लड़ो, मैं वही कर रही हूं।
फिलहाल मेरा राजनीति से कोई लगाव नहीं है। लेकिन मेरा मानना है कि राजनीति में सही लोग होने से देश का भविष्य संवर जाएगा। महिलाओं का राजनीति में होना उनके लिए जरूरी है। पार्लियामेंट में सिर्फ 14% महिलाएं हैं। स्टेज लेजिसलेचर में 10 फीसदी महिलाएं हैं। सरकार और मंत्रालयों को पुलिस की जवाबदेही बढ़ानी चाहिए।
टॉक्सिक शादी तोड़ किया खुद को आजाद
मेरी लाइफ के दो सबसे बड़े यू टर्न रहे। पहला जब मैंने HCL की जॉब छोड़कर स्कूल में पढ़ाना शुरू किया। दूसरा जब मेरा डिवोर्स हुआ। मेरी शादी दुखों से भरी थी। 7 साल की शादी में मैंने काफी दुख झेला। हमारे बीच कोई तालमेल नहीं था और हम ज्यादा साथ भी नहीं रहे। मानसिक प्रताड़ना, गाली गलौज से आजिज आकर जब मैंने शादी खत्म करने का मन बनाया तो भी काफी तकलीफ हुई। मेरे लिए यह आसान नहीं था। मैंने सोचा कि जब मैं दूसरों की मदद के लिए अपना सब कुछ कुर्बान करने की कोशिश करती हूं तो खुद के लिए क्यों नहीं। तभी से मैंने मन को मजबूत किया और खुद का ख्याल रखना शुरू किया। मेडिटेशन, योग, डांसिंग और जिमिंग के जरिए मैंने खुद को खुश रखना सीखा। मैंने कई आध्यात्मिक किताबें पढ़ीं। लंबे समय से मैं जिस रिश्ते को ढो रही थी जब वो टूटा तो दुख उसके साथ ही चला गया।
मैं दुख से परेशान होने की जगह मजबूत फैसला लिया। अब मेरे मन में कोई बोझ नहीं है। जब आपको पता है कि कोई रिश्ता चल ही नहीं सकता तो उसे तोड़ कर आजाद हो जाने में ही समझदारी और खुशी है। टॉक्सिक रिश्ते को तोड़ कर मिलने वाली खुशी की बात ही अलग है। मैं खुश हूं कि मैंने अपनी जिंदगी पर काम किया और जिंदगी की नई शुरुआत की। मेरी हमेशा से आदत रही है कि मुझे हमेशा बेहतर बनना है, मुझे लड़ना है। अगर आप आज मुझसे पूछें कि लाइफ में आपका क्या रिग्रेट है तो मैं कहूंगी कुछ भी नहीं। जब आप जीवन के नकारात्मक अनुभवों से भी सकारात्मक सबक लेते हैं तो जीवन वास्तविकता में बदलता है।
8 साल की बच्ची से रेप, कानून बनवाने के लिए सरकार से लड़ी
दिल्ली में 8 महीने की बच्ची के साथ बलात्कार हुआ था। मैं उससे मिलने हॉस्पिटल गई थी। मैंने उस बच्ची को गोद में उठाया था और लगातार खून बह रहा था। मैं बहुत गुस्से में थी। इसी बीच कठुआ गैंग रेप भी हुआ। मैं लंबे समय से सरकार से डिमांड कर रही थी कि छोटे बच्चों के बलात्कारियों को फांसी की सजा दी जाए। लेकिन यह कानून नहीं बन पा रहा था। इसके बाद मैं आमरण अनशन पर बैठी कि अब चाहे जान भी चली जाए मेरी मांग पूरी होने तक मैं हिलूंगी नहीं। अनशन के 10वें दिन देश की सरकार यह कानून लेकर आई कि छोटे बच्चों का रेप करने वालों को फांसी की सजा दी जाएगी।
13 दिन के आमरण अनशन पर बैठी
कानून बन गया लेकिन व्यवहार में नहीं आया। इसके बाद हैदराबाद में एक फिजियोथेरेपिस्ट का बलात्कार कर उसे जला दिया गया। तब मैं 13 दिन के अनशन पर बैठी। ये भी मेरे जीवन का भावुक पल है। देश में कई महिला आयोग हैं जो पॉवर होने के बाद भी महिलाओं के लिए कोई जरूरी कदम नहीं उठा रहे हैं। क्योंकि वो जानते हैं कि गलत के खिलाफ आवाज उठाने का मतलब सीधे माफिया और गुंडों से पंगा लेना है। मेरी जिंदगी भगवान की कृपा से चल रही है।
सिर पर कफन बांधकर करती हूं अपना काम
हमारे पास करीब 500 महिलाएं शिकायतें करने आती हैं। लड़कियां रो रही होती हैं, चिल्ला रही होती हैं। ये दर्द ही मुझे ताकत देता है कि मैं अन्याय के खिलाफ लडूं। मैं मानती हूं कि जिस जगह मैं काम कर रही हूं मुझे कफन सिर पर बांध कर ही काम करना है। इतिहास गवाह है कि जब किसी ने अच्छा काम करने की कोशिश की है तो उसे काफी आलोचना और लांछन का सामना करना पड़ा। रोज मैं पुलिस को नोटिस इश्यू करती हूं, रोज क्रिमिनल्स के खिलाफ एक्शन लेना पड़ता है। मैंने सिक्योरिटी भी नहीं ली है। मैंने परिवार को बोला है कि जब तक जिंदा हूं अन्याय के खिलाफ लड़ती रहूंगी। समस्या सबकी जिंदगी में होती है। कुछ लोग उससे लड़ना सीखते हैं और कुछ को वो आग झुलसा देती है। मैं यह मानती हूं कि कोशिश यही होनी चाहिए कि दूसरों का दुख सीने में लेकर अगर हम उनका भला करने की कोशिश करेंगे तो दुख धीरे धीरे करके ठीक होगा और मरहम बन जाएगा।
दूसरों की तकलीफ में साथ देना भी मदद
मैं यह नहीं कह रही कि हम सोशल वर्कर बन जाएं। लेकिन दूसरों की तकलीफ में उनका साथ देना भी मदद है। दूसरों के दर्द को समझें। हम शहरों में रहते हैं जहां किसी से दुआ-सलाम करने की भी फुर्सत नहीं है। ऐसे में अगर हम पड़ोसी को देखकर मुस्कुरा दें तो यह भी एक सोशल वर्क है।
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