मैं डॉ. अनीता खोखर दिल्ली के सफदरजंग हॉस्पिटल में बने वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज में कम्युनिटी मेडिसिन विभाग की डायरेक्टर प्रोफेसर और फिजिकल कंसल्टेंट हूं।
मैं कई साल से महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर के बारे में जागरूक कर रही हूं क्योंकि शरीर के इस हिस्से पर ध्यान नहीं दिया जाता। आज मैं क्लीनिकल ब्रेस्ट एग्जामिनेशन में एक्सपर्ट हूं।
ब्रेस्ट के बारे में कोई खुलकर बात नहीं करता
मैं 2001 से वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज में पढ़ा रही हूं। इस दौरान मेरा ध्यान ब्रेस्ट कैंसर पर गया।
मैंने अनुभव किया कि 50 से 70% महिलाएं डॉक्टर के पास तब जाती हैं, जब वह स्टेज 3 या 4 पर पहुंच जाती हैं।
इसके बाद मैंने इस दिशा में काम करना शुरू किया।
वर्कशॉप करने के लिए प्रोग्राम डिजाइन किया
2003 से मैंने दुनिया भर में ब्रेस्ट कैंसर पर हुई रिसर्च और वीडियो जुटाने शुरू किए। सारा मटीरियल तैयार कर उसे भारत में बने सभी रीजनल कैंसर सेंटर के डायरेक्टर्स को भेजा ताकि उनके एक्सपर्ट कमेंट भी शामिल करूं और एक अच्छा प्रोग्राम बनाकर वर्कशॉप शुरू करूं।
इस काम में मुझे काफी समय लग गया। इस बीच 2009 में फ्लोरिडा के मामा केयर से क्लीनिकल ब्रेस्ट एग्जामिनेशन की ट्रेनिंग ली।
ट्रेनिंग लेने और मैटीरियल तैयार करने के बाद मैंने पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन बनाई और ब्रेस्ट के सिलिकॉन मॉडल खरीदे ताकि महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर के बारे में अच्छे से समझा सकूं।
हमारे देश में महिलाओं को यह तक नहीं पता होता कि ब्रेस्ट कहां से कहां तक है? उसकी जांच कैसे करनी है। अब तक मैं 250 से ज्यादा वर्कशॉप कर चुकी हूं।
शुरू में मैं रविवार को या छुट्टी लेकर वर्कशॉप करने जाती थी। अब मैं ऑफिस से परमिशन लेकर जाती हूं।
महिलाएं खुलकर बात नहीं करती थीं
मेरी पहली वर्कशॉप एक गर्ल कॉलेज में थी। उसके बाद मैंने कुछ नर्सिंग कॉलेज में वर्कशॉप की। दरअसल उस समय मैं देखना चाहती थी कि मैं जिस विषय के बारे में समझा रही हूं वह आम महिलाओं को समझ आ भी रहा है या नहीं।
इसके लिए मैंने वर्कशॉप से पहले कुछ सवाल पूछे। फिर वर्कशॉप के बाद फीडबैक लिया।
इससे मुझे समझ आ गया कि महिलाएं मेरी बात को समझ रही हैं। मैं स्कूल, कॉलेज, आरडब्ल्यूए, ऑफिस, गांव समेत कई जगह वर्कशॉप करती हूं।
जब मैंने यह काम शुरू किया था तब महिलाएं अगर गांठ हो तो तब भी नहीं बताती थीं। ब्रेस्ट के बारे में बात करना शर्म समझती थीं। जबकि आज महिलाएं अपनी मेडिकल रिपोर्ट साथ लाती हैं।
गांव की महिलाएं इस बारे में खुलकर बात करती हैं जबकि शहर की महिलाएं आज भी संकोच करती हैं। मैं वर्कशॉप में महिलाओं को उनकी मदद के लिए ही स्किल सिखा रही हूं। उन्हें बताती हूं कि शीशे के सामने खड़े होकर ब्रेस्ट की खुद जांच करें ताकि अगर कुछ बदलाव महसूस हो तो सही समय पर इलाज शुरू हो जाए।
हर प्रोफेशन से जुड़ी महिलाओं को देती हूं ट्रेनिंग
मैं कई हॉस्पिटल के डॉक्टर, पैरामेडिकल स्टाफ, आशा वर्कर और आंगनवाड़ी वर्कर को ट्रेनिंग देती हूं।
मैं उन्हें कहती हूं कि खुद के साथ-साथ महिलाओं को भी सेल्फ ब्रेस्ट एग्जामिनेशन के बारे में बताएं। खासकर 30 साल के बाद यह जांच जरूरी है।
मदद चाहिए होती है तो एनजीओ से संपर्क करा देती हूं
मुझे वर्कशॉप के बाद कई महिलाओं ने मदद के लिए संपर्क किया। कुछ मरीजों के पास कीमोथेरेपी के लिए पैसे नहीं होते तो मैं कोशिश करती हूं कि किसी एनजीओ से उन्हें मदद मिल जाए।
कुछ महिलाओं की एम्स में इलाज कराने में भी मदद की।
महिलाओं से जुड़ी किताबें भी लिखी हैं
मैंने 4 किताबें लिखी हैं। 5वीं किताब अभी लिख रही हूं। मेरी पहली किताब 'Breast Cancer: The Way to Detection, Protection & Prevention' थी जो 2010 में पब्लिश हुई। इसमें ब्रेस्ट कैंसर से जुड़ी सभी जानकारी है। दूसरी किताब 'Women over 40' है।
मुझे इस काम के लिए कई अवॉर्ड भी मिल चुके हैं। 2018-19 में मुझे मेडिसिन और हेल्थ केयर के क्षेत्र में वुमन अचीवर्स अवॉर्ड, आयुष मंत्रालय और एसोचैम की तरफ से मेरे प्रोग्राम ‘Know your breast, save yourself’ को पुरस्कृत किया गया। 2020 में स्वस्थ भारत की तरफ से SKOCH अवॉर्ड और एशियन अचीवर्स अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।
मेंटल हेल्थ पर भी काम कर रही हूं
मैंने इमोशनल फ्रीडम टेक्निक की भी ट्रेनिंग ली हुई है। मैं कुछ स्कूलों में टीचर्स और बच्चों को ट्रेनिंग देती हूं ताकि उनकी मेंटल हेल्थ अच्छी रहे।
ग्राफिक्स: सत्यम परिडा
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