सास का जिक्र आते ही नियम, कायदे-कानून, कड़क मिजाज औरत की छवि बनती है। वहीं बहू की भी समाज में संस्कारी, आज्ञाकारी और सबकुछ सहने वाली लड़की की छवि होती है! कुल मिलाकर कहें तो सास-बहू यानी 36 का आंकड़ा। लेकिन आज ‘ये मैं हूं’ में हम आपको बिहार की एक ऐसी सास-बहू जोड़ी से मिला रहे हैं, जिन्होंने टीम की तरह काम करके बिजनेस फील्ड में कमाल कर दिया है। दोनों ने घर के किचन से खाने का बिजनेस शुरू किया था। आज ‘द छौंक’ ब्रांड की मालिकन हैं। ‘द छौंक’ की सफलता की कहानी बहू मंजरी सिंह से जानिए, उन्हीं की जुबानी...
तीन साल की उम्र में बिहार से हरियाणा आ गई
मैं बिहार से हूं लेकिन जब तीन साल की थी तो पेरेंट्स जॉब की वजह से हरियाणा के सोनीपत शिफ्ट हो गए। हमें दो बहनें हैं। बचपन से अच्छी लाइफ रही है। पापा एचआर और मेरी मां डीएवी स्कूल की टीचर थीं। बारहवीं तक की पढ़ाई मैंने सोनीपत से ही की है। पहले डॉक्टर बनने का सोचा फिर स्कूल के दौरान ही झुकाव कॉमर्स की तरफ हो गया। सीए बनने का सपना देखने लगी। इस वजह से मैंने डीयू से बीकॉम की पढ़ाई की।
सीए बनने का सपना छूट तो बिजनेस में उतरी
मेरी शादी 2010 में हुई थी। फिर मैं सोनीपत से दिल्ली शिफ्ट हो गई। शादी से पहले सीए बनना था। लेकिन मां की तबीयत की वजह से शादी जल्दी हो गई और वो सपना छूट गया। काम तो करना था इसलिए पति की मदद से मैंने अमेजन के साथ मिलकर फैशन-लाइफस्टाइल का बिजनेस शुरू किया। वो जब थोड़ा ठीक चला तो हमने ग्लास-कंटेनर का काम किया। उसमें भी हमें अच्छा रिस्पांस मिला।
लॉकडाउन में सासू मां को आया ‘द छौंक’ का आइडिया
मेरा ससुराल भागलपुर में हैं। मेरी सासू मां हिरण्यमयी शिवानी बीच-बीच में हमारे पास आती-जाती रहती थी। कोविड के दूसरे दौर के पहले वो हमारे पास आई थीं। भागलपुर वापस जाना था लेकिन लॉकडाउन की वजह से दिल्ली में फंस गई। तब उन्हें ‘द छौंक’ का आइडिया आया। उस वक्त सब कुछ बंद था। लोग न घर जा पा रहे थे और न उन्हें घर का खाना मिल पा रहा था। फिर हमने गुरुग्राम में रह रही बिहारी कम्युनिटी के लिए खाना बनाने का काम शुरु किया। शुरू में हमने 20-30 लोगों के खाने से शुरू किया। घर के किचन में ही हम सास-बहू ने मिलकर पारंपरिक बिहारी खाना बनाया। फिर लोगों तक उसे पहुंचाया।
बिहारियों से ज्यादा गैर बिहारियों के बीच खाना पॉपुलर
हमारे बनाए खाने को पहले दिन भी ठीक रिस्पांस मिला। एक महीने के अंदर रिस्पांस ठीक से बहुत अच्छा हो गया। हमदोनों का बनाया खाना बिहारियों से ज्यादा गैर बिहारियों के बीच पॉपुलर हो गया। उसके बाद हमलोगों ने स्विगी-जोमैटो से टाइअप किया। शुरुआत में बजट 40-50 हजार था। हमारा खाना लोगों को इतना पसंद आने लगा कि कई कस्टमर ढूंढते-ढूंढते घर तक आ जाते थे। फिर उन्हें हमने अपने घर में बिठाकर खिलाया था।
रिस्पांस देख ‘द छौंक’ को बड़ा करने का फैसला किया
मेरे हर काम में पति का बहुत सपोर्ट रहा है। जब मैं अमेजन के साथ ऑनलाइन अपना बिजनेस कर रही थी, तब भी उन्होंने बहुत सपोर्ट किया था। साइड में आज भी मेरा वो काम चल रहा है। फिर जब सासू मां ने ‘द छौंक’ का आइडिया दिया, तब इसमें भी उन्होंने हमदोनों की काफी मदद की। ‘द छौंक’ नाम के पीछे भी पति की मेहनत है। स्विगी-जोमैटो के अलावा अब हमारे पास अपनी वेबसाइट है। पहले हमें पूरे दिन में 30-40 ऑर्डर मिलते थे। लेकिन आज 500 से भी ज्यादा ऑर्डर आते हैं। हमारे मेन्यू में बिहार ट्रेडिशनल वेज-नॉनवेज डिश, मिठाइयां शमिल है।
देश के अलग-अलग हिस्सों में ‘द छौंक’ सर्व करने को तैयार
हमदोनों 40-50 हजार से ‘द छौंक’ का काम शुरू किया था। आज हर महीने 4 लाख से अधिक कमाई होती है। हमने 20-30 लोगों के पार्टी ऑर्डर से लेकर 5200 लोगों तक को सर्व किया है। हमदोनों की मेहनत और बॉन्डिंग का कमाल है कि हमारा जायका इतनी तेजी से लोगों के जुबान पर चढ़ा रहा है। फिलहाल गुरुग्राम और द्वारका में हमारे चार आउटलेट्स हैं। हाल ही में अहमदाबाद में हमने एक आउटले्स शुरू किए हैं। अब तैयारी दिल्ली-एनसीआर मुंबई, बेंगलुरु, जयपुर शहर के लिए है। जल्द ही इन शहरों में ‘द छौंक’ लोगों के बीच होगा। हमारी कोशिश है कि इस साल देश के अलग-अलग शहरों में 40-50 आउटलेट्स शुरू करें। ‘द छौंक’ को अब तक कई अवॉर्ड मिला चुका है। पिछले साल हमें बेस्ट क्लाउड किचन का अवॉर्ड भी मिला।
हमारी बॉन्डिंग कमाल की, एक-दूसरे के सबसे अच्छे दोस्त
मेरी सास हमेशा से हाउस वाइफ रही हैं। उनकी शादी जल्दी हो गई थी। उन्होंने शादी के बाद पोस्ट ग्रेजुएशन किया है। वैसे तो उनके कई सारे सपने थे। कई चीजों में दिलचस्पी है। खाना बनाने उनमें से एक है। वो बिहारी खाने के अलावा और भी कई तरह का खाना बनाती हैं। उन्हें एक्सपेरिमेंट पसंद है। वो हर समय कुछ न कुछ सीखती रहती हैं। मेरी सास का बिजनेस पॉइंट काफी स्ट्रांग है। इसके अलावा मैं कहूंगी कि हमदोनों की बॉन्डिंग काफी अच्छी है। मेरी सास मेरी अच्छी दोस्त हैं। वो अपने बेटों-बेटियों से जितनी बातें नहीं शेयर करती, उतना वो मुझसे कर लेती हैं। मैं उनकी बिजनेस पार्टनर ही नहीं बल्कि राजदार भी हूं।
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