गोदना ट्राइबल आर्ट को बनाया पॉपुलर:MP-छत्तीसगढ़ की जनजातियां काजल से बनाती हैं टैटू, डांस ने बदली मेरी जिंदगी

नई दिल्ली5 महीने पहलेलेखक: ऐश्वर्या शर्मा
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मेरा नाम सहाना राव है और मैं चेन्नई से हूं। मैं दिल से आर्टिस्ट हूं और चाहती हूं कि अलग-अलग क्षेत्रों से ट्राइबल आर्टिस्ट सामने लाऊं। हमारे देश में कई जनजातियां हैं जिनका अपना कल्चर और कला है। मैं उनकी कला को देश और दुनिया के सामने लाने की कोशिश कर रही हूं।

चिट्ठी लिखकर परफॉर्मेंस के लिए बुलाया

मैं 5 साल से कला के क्षेत्र में काम कर रही हूं। चेन्नई में दक्षिण चित्रा म्यूजियम से शुरुआत की। वहां मैं त्योहारों के दौरान जनजातियों से संपर्क करती थी और उन्हें परफॉर्मेंस के लिए बुलाया करती। मैं उन्हें चिट्ठी लिखकर कार्यक्रमों के लिए आमंत्रित करती थी। चेन्नई में उनके आने और रहने की व्यवस्था करती।

मैं उगादी के समय आंध्र प्रदेश और तेलंगाना से ट्राइबल डांसर बुलाती थीं। कारगीरों को भी बुलाया। वह अपने हुनर का प्रदर्शन करते थे।

दशहरा के समय कर्नाटक से डांस या सिंगिंग ग्रुप को बुलाती।

गोदना की कला को लोगों तक पहुंचाने का लिया जिम्मा

एक दिन मेरी मुलाकात मणिपुर के गोदना कलाकार मो नागा से हुई। उनसे ही मुझे गोदना के बारे में पता चला। गोदना टैटू आर्ट है जिसमें स्याही की बजाय काजल का इस्तेमाल होता है और हाथों से सुई की मदद से प्रकृति से जुड़ी आकृतियां बनाई जाती हैं।

हजारों साल से जनजातियों के बीच गोदना की कला चलती आई है। लेकिन आज यह कला उनके बीच से खत्म होती जा रही है। जबकि शहरों में मशीन से टैटू बनाने का चलन खूब है लेकिन लोग वेस्टर्न डिजाइन ही बनवाते हैं।

इसके बाद मैंने गोदना के बारे में खूब रिसर्च की। कई जनजातियों के लोगों से बात की लेकिन गोदना अब बहुत कम लोग ही करते हैं। ऐसे में मैंने गोदना प्रोजेक्ट शुरू किया और भारत के हर हिस्से में रहने वाली जनजाति के गोदना कलाकार ढूंढने लगी। 6 महीने की मशक्कत के बाद बैगा और गोंड जनजाति से मध्यप्रदेश की मंगला बाई, ओजा जनजाति से छतीसगढ़ की लख्मी और केवला नाग और तमिलनाडु से कुरूम्बा जनजाति की एस जानकी मिलीं। इसमें मो नागा भी शामिल हुए।

इन लोगों के साथ मैंने दिल्ली में गोदना आर्ट को समर्पित एक इवेंट किया जहां शहर के लोगों को पता चला कि मॉडर्न और मशीनी टैटू के बीच हमारे देश में हाथ से नेचुरल तरीके से टैटू यानी गोदना भी हजारों साल से बनाया जा रहा है।

कई प्रोजेक्ट्स से जुड़ी

मैंने मिनिस्ट्री ऑफ कल्चर के साथ कई प्रोजेक्ट किए। मैंने दिल्ली के इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट्स के साथ 6 महीने प्रोजेक्ट किया। मैक्स म्यूलर भवन में 4 महीने तक अफगान कम्यूनिटी के लिए प्रोजेक्ट पर काम किया।

ऊटी में टोडा जनजाति के बीच बिताया समय

मैं तमिलनाडु के ऊटी में 2 दिन तक टोडा जनजाति के साथ रही। वह लोग बहुत सादगी से जीते हैं। ताजी हवा, नदी, झरनों के बीच अपने कल्चर में रहकर खुश हैं। अपने रीति-रिवाज के अनुसार ही जी रहे हैं। अपनी भाषा में बोलते हैं।

ट्रेडिशनल कपड़े पहनते हैं। उन्हें बाहरी चीजों से कोई मतलब नहीं और ना ही अपने कल्चर के साथ कोई रोक-टोक चाहिए।

डांस को बनाया जिंदगी

मैंने बचपन में भरतनाट्यम सीखा। लेकिन जब कॉलेज गई तो उस वक्त कुचिपुड़ी सिखने लगी। अब मैं कुचिपुड़ी डांसर हूं। मैं यह कला कुचिपुड़ी आर्ट अकैडमी से सिखी।

मुझे मेरी मां ने डांस की अहमियत बताई। डांस ने ही मुझे बदला। इस कला में एक्सप्रेशन हैं, पेटिंग, क्राफ्ट, कहानी, इतिहास, सब शामिल हैं। मैंने महाबलीपुरम, पुरी बीच फेस्टिवल जैसे कई इवेंट में परफॉर्म किया।

अब मैं ओडिसी डांस सीख रही हूं। मैं दिल्ली के त्रिवेणी कला संगम में परफॉर्म भी किया।

फ्री में डांस सीखा और सिखाती भी हूं

मैं 12-13 साल से डांस सीख रही हूं और सिखा भी रही हूं। मैंने फ्री में चेन्नई में डांस सिखा। दरअसल वहां गुरुकुल सिस्टम है।

फिलहाल मैं एक कम्युनिटी डांस सेंटर में बच्चों को डांस सिखाती हूं। वहां कुछ बच्चे फीस देकर तो कुछ मुफ्त में डांस सीख रहे हैं। इससे पहले मैं चेन्नई के सयाद्री स्कूल में भी डांस सिखा चुकी हूं।

कई कलाओं को लोगों के बीच करना है पॉपुलर

चूंकि मैं खुद एक आर्टिस्ट हूं इसलिए आर्ट को हमेशा प्रमोट करने का सोचती हूं। हमारे देश में ऐसी कई कलाएं हैं जिनके बारे में बहुत कम लोगों को मालूम है। गोदना के अलावा मैं टैंपल ज्वेलरी के लिए कुछ करना चाहती हूं। इसमें कुछ खास तरह के डिजाइन बनाए जाते है जो सिर्फ तमिलनाडु के कुछ गांव में ही बनते हैं।

इसके अलावा केरल के अरनमूला मिरर भी केवल पथानामथिट्टा जिले के छोटे से गांव अरनमूला में ही बनते हैं। यह तमाम कलाएं हमारे देश की पहचान है जो खत्म होती जा रही हैं और शायद आगे आने वाली पीढ़ी इसके बारे में जान भी नहीं पाएगी इसलिए मैं इन्हें जिंदा रखना चाहती हूं।