एक कमरे से मधुबनी पेंटिंग की शुरुआत, आज बना बिजनेस:पेंटिंग से सजी साड़ियों, बैग की देशभर में डिमांड, 300 महिलाओं को दिया काम

2 महीने पहलेलेखक: भाग्य श्री सिंह
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क्या जरूरत ये सब करने की है? जब मैंने अपना कुछ करने और अपनी अपनी पहचान बनाने की सोची तो अस्तित्व पर कई सवाल उठे। मन की गहराई से मैं अपनी पहचान बनाना चाहती हूं। मैं खुद के और दूसरों के लिए भी कुछ करना चाहती थी। मेरे पास पति, बच्चे और सपोर्ट करने वाला प्यार परिवार था। लेकिन फिर भी एक कमी खलती थी। मैं हमेशा कहती भी थी कि मेरे पास मेरे होने का बोध नहीं है।' ये कहना है बिहार की फेमस मधुबनी आर्टिस्ट ऊषा झा का।

उषा का सफर आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने शुरुआत की और मजबूती से अपनी लक्ष्य को हासिल करने के लिए लगी रहीं। धीरे-धीरे कारवां बढ़ता रहा और अब तक उनके साथ 300 से ज्यादा महिला कारीगर जुड़ चुकी हैं और अपनी जिंदगी संवार रही हैं।

कम उम्र में हुई शादी, लेकिन पढ़ाई जारी रखी
मैं बिहार के छोटे से गांव भद्रेश्वर से ताल्लुक रखती हूं। मेरी पढ़ाई-लिखाई पूर्णिया से हुई। छोटे शहरों में शादियां जल्दी हो जाया करती हैं। माता-पिता ने 10वीं पास करते ही मेरी शादी करा दी। शादी करके मैं पटना आ गई। लेकिन मन में कई ख्वाब बिखर गए थे। मैं अंदर से डरी हुई थी कि अब मैं क्या करूंगी? क्या आगे की पढ़ाई बंद हो जाएगी? लेकिन किस्मत अच्छी थी कि ससुराल में जब सबको मेरे मन की बात चली तो किसी ने मेरी पढ़ाई जारी रखने के फैसले का विरोध नहीं किया। ये दीगर बात है कि किसी ने सपोर्ट भी नहीं किया था। हां पति जरूर मेरा सपोर्ट सिस्टम हमेशा बने रहे। प्राइवेट ट्यूशन, पत्राचार और सरकारी स्कूली शिक्षा के माध्यम से मैंने मास्टर डिग्री हासिल की।

बचपन की कला को तराशकर बनी कलाकार
पढ़ाई-लिखाई के साथ ही मेरे मन में अपनी पहचान बनाने की ख्वाहिश पंख फैलाती रही। 1991 तक मेरे बच्चे बड़े हो गए और मेरे पास काफी खाली वक्त होता था। तो मैंने ठान लिया इस समय का सही इस्तेमाल मैं अपनी पहचान बनाने में करूंगी। मैंने काफी सोचा कि मैं ऐसा क्या करूं जो आगे तक किया जा सकता है। मैंने मिथिला कला में हाथ आजमाना शुरू किया। तब मैं नहीं जानती थी कि भविष्य में यही मेरी पहचान बन जाएगी। शादियों में जब कोहबर (रीति-रिवाज के लिए गोबर और लाल रंग से बनी पेंटिंग) बनाया जाता है तो उसमें भी मिथिला कला की झलक देखने को मिलती है।

300 से ज्यादा महिला कारीगर मेरे साथ काम कर रही हैं।
300 से ज्यादा महिला कारीगर मेरे साथ काम कर रही हैं।

कोहबर से हुई मधुबनी पेंटिंग की शुरुआत
मुझे आज भी याद है जब परिवार में कोई शादी पड़ती थी तो मैं खुद कोहबर बनाती थी। आज के समय में शादी की तैयारी हॉल बुकिंग और मेन्यू बुकिंग के साथ शुरू होती है। उन दिनों हम कोहबर से शुरुआत किया करते थे। शुरुआत में मैंने मधुबनी पेंटिंग दीवारों पर बनानी शुरू की। इसके बाद साड़ी, कपड़े और पेपर पर भी पेंटिंग की। उन दिनों जब मैं अपने दिल की सुनकर दीवार पर पेंटिंग बना रही थी तब मैंने सोचा भी नहीं था कि मधुबनी पेंटिंग पैसा कमाने और परिवार चलाने का जरिया बनेगी। लेकिन अब समय के साथ यह रोजगार का साधन बन कर उभरी है।

मुट्ठी भर लोगों से की थी शुरुआत, 300 से ज्यादा महिलाएं जुड़ीं
1991 में मैंने पटना के बोरिंग रोड स्थित अपने घर से 'पेटल्स क्राफ्ट' की शुरुआत की। शुरू में मैंने बस एक कमरे में पेंटिंग करनी शुरू की। इसके बाद काम इतना बढ़ गया है कि अब कलाकारों के साथ पूरे घर में पेटिंग का काम करती हूं। मैं कस्टमर्स के लिए मधुबनी आर्ट से सजी साड़ियां, बैग और स्टोल तैयार करती हूं। मैंने अपने कारीगरों के साथ मिलकर कस्टमर्स की मॉडर्न डिमांड को पूरा किया है और 50 से ज्यादा प्रोडक्ट्स जैसे बैग, लैंप, साड़ी और अन्य घरेलू आइटम्स पर मधुबनी पेंटिंग की। सरकार से लेकर दुनिया के भर के कई टूरिस्ट और फेमस लोग उनके कस्टमर हैं। हमेशा से ऐसा नहीं था। मैंने बस मुट्ठी भर लोगों के साथ मिथिला पेंटिंग की शुरुआत की। दो कारीगर बस मेरे साथ घर पर काम करती थी और बाकी मिथिलांचल से ही काम कर रहे थे। आज उनके साथ काम करने वाली 300 से ज्यादा महिलाएं आर्थिक रूप से स्वतंत्र हैं और अपनी आजीविका भी कमा रही हैं।

ऊषा झा की उपलब्धियों के लिए उन्हें कई अवार्ड मिले हैं।
ऊषा झा की उपलब्धियों के लिए उन्हें कई अवार्ड मिले हैं।

मेरी सिखाई महिलाओं ने खोला अपना बिजनेस
2008 में मैं गांवों में जो काम कर रही थी उसे ऑफिशियल करने का सोचा और अपने एनजीओ 'मिथिला विकास केंद्र' का रजिस्ट्रेशन कराया। अब हम NGO के जरिए महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत बनाते हैं। महिलाएं साक्षर बनेंगी तो अपने बच्चों को भी अच्छी शिक्षा दे पाएंगी। हम महिला कारीगरों को सेहत के लिए भी जागरूक करते हैं। ऐसी कई महिलाएं हैं जिन्हें मैंने मधुबनी आर्ट की ट्रेनिंग दी। वो मुझसे सीख कर अपना बिजनेस खोल चुकी हैं और अच्छा कमा रही हैं। मैंने जब मिथिला पेटिंग बेचनी शुरू की तो ऑनलाइन सेलिंग प्लेटफॉर्म नहीं थे। अपनी पेंटिंग्स बेचने के लिए मैं घर-घर, शहर और विदेशों में भी जा चुकी हूं। हम पेंटिंग्स की स्टाल लगाते ताकि पेटिंग्स बेचीं जा सके।

राष्ट्रपति भवन में आज भी मेरी पेंटिंग
मैंने कभी अपने प्रोडक्ट्स की मार्केटिंग नहीं की लेकिन जिन लोगों को काम पसंद आया उन्होंने मेरी पेंटिंग खरीदी और तारीफ की। तारीफ का ये सिलसिला जारी रहा और इस तरह मेरा काम चल निकला। टेक्नोलॉजी और ऑनलाइन सेलिंग से मेरा काम काफी आसान हो गया है। हम वॉट्सएप पर ऑर्डर लेते हैं और अपने कारीगरों को वॉट्सएप पर ही डिजाइन भेजते हैं।
बिहार में आज ऊषा मधुबनी पेंटिंग का जाना-पहचाना नाम है। पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल जब बिहार के दौरे पर आईं थीं तब मैंने उन्हें 14 फुट की मधुबनी पेंटिंग गिफ्ट की थी। आज भी राष्ट्रपति भवन में वो पेंटिंग लटकी हुई है।

बिहार महिला उद्योग संघ की सचिव हूं
पिछले कुछ सालों में मैंने पटना के एक कॉलेज में गेस्ट लेक्चरर के रूप में बच्चों को पढ़ाया, 17 सालों से बिहार महिला उद्योग संघ की सचिव हूं। शुरूआती दिनों में मैंने जिन महिलाओं को आर्ट ट्रेनिंग दी उनमें से कई अब नई पीढ़ी की महिलाओं को मधुबनी आर्ट की ट्रेनिंग दे रही हैं। कला का सिलसिला जारी रहना चाहिए।

मैं कर सकती हूं, तो आप क्यों नहीं?
मैं यही नहीं ठहर जाना चाहती हूं बल्कि आगे चलकर मैं बिहार-नेपाल सीमा से सटे गांवों और कस्बों में ज्यादा से ज्यादा ट्रेनिंग सेंटर खोलना चाहती हूं। ऐसी कई जगहें हैं जहां सरकार आज भी नहीं पहुंच पाई है। मैं चाहती हूं कि ज्यादा से ज्यादा महिलाएं मुझसे जुड़ कर आत्मनिर्भर बनें। मेरा मानना है कि जब मैं ये कर सकती हूं तो आप भी इसे कर सकते हैं। मेरी उपलब्धियों के लिए मुझे वूमेन इकोनॉमिक फोरम अवाॅर्ड भी मिला।

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