• Hindi News
  • Women
  • This is me
  • No One Gives Houses On Rent After Listening To The Theatre, The Award Winning Film 'Gamak Ghar' Shines

कॉलेज गई तो लोग कहते लड़की भाग जाएगी:थिएटर सुन कोई नहीं देता किराए पर मकान, अवॉर्ड विनिंग फिल्म ‘गामक घर’ से चमकी

नई दिल्ली3 महीने पहलेलेखक: भारती द्विवेदी
  • कॉपी लिंक

समाज के कुछ नियम आगे बढ़ाने वाले हैं तो कुछ स्टीरियोटाइप। हमारे समाज में लड़कों के लिए अलग नियम और लड़कियों के लिए अलग। जब कोई समाज के बनाए ढर्रे से अलग हटकर कुछ करने की कोशिश करता तो उसे बागी, बेशर्म जैसा तमगा मिल जाता है। खासकर लड़कियों के लिए। एक लड़की जो रंगमंच की दुनिया में नाम कमाना चाहती थी। उसने अपने सपने को पूरा करने के लिए तमाम जद्दोजहद किए, लेकिन लोगों ने उसके काम को ऑर्केस्ट्रा का नाम दे दिया। तानों से हार न मान उस लड़की ने थिएटर में अपना मुकाम हासिल किया है। आज ‘ये मैं हूं’ में बात थिएटर आर्टिस्ट शिवानी झा की…

पेरेंट्स ने हमेशा अपना भविष्य तय करने की छूट दी

मैं दरभंगा जिले के माऊ बिहट गांव से हूं। आठवीं तक पढ़ाई भी वहीं से की। सरकारी स्कूल की हालत देख पापा ने मेरा एडमिशन प्राइवेट में करा दिया था। बचपन से ही सिंगिंग, डांसिंग ड्रामा और में दिलचस्पी थी। मेरे पेरेंट्स हमेशा आर्ट्स के लिए बढ़ावा देते थे। उनका कहना था कि तुम लोगों को जो अच्छा लगे वो करो। मेरे घर वालों ने हम तीनों भाई-बहन को हमेशा ही अपना भविष्य चुनने की छूट दी। घर में मुझे भाइयों से ज्यादा तरजीह मिली क्योंकि मैं काफी मन्नतों के बाद पैदा हुई थी।

नाना-नानी की वजह से मुझे स्पोर्ट्स छोड़ना पड़ा

मेरी मां सरकारी टीचर थीं, उनकी पोस्टिंग घर से दूर हो गई। पापा के लिए घर और मुझे मैनेज करना थोड़ा मुश्किल था तो मुझे नानी के घर समस्तीपुर भेज दिया गया। मैंने वहां पढ़ाई के साथ स्पोर्ट्स जॉइन कर लिया। लेकिन मेरे नाना-नानी को यह पसंद नहीं था। वो चाहते थे कि मैं सिर्फ पढ़ाई करूं और स्पोर्ट्स छोड़ दूं। उनकी इस सोच के पीछे वही टिपिकल माइंड सेट था कि लड़की होकर ये सब करना ठीक नहीं। मुझे स्पोर्ट्स छोड़ना पड़ा। लेकिन मैंने फैसला कर लिया था कि आगे की पढ़ाई मैं उनके पास रहकर नहीं करूंगी। मैंने अपने मम्मी-पापा से कहा या तो मुझे दरभंगा बुला लो या पटना एडमिशन करे दें।

पेरेंट्स से लोगों ने कहा-अकेले रख रहे हो, भाग जाएगी

साल 2015 मैंने दरभंगा के सीएम साइंस कॉलेज में बॉटनी बीएससी के लिए एडमिशन ले लिया। पहली बार था जब मुझे अकेले ही सब करना था। ये बात रिश्तेदारों और गांव वालों को अच्छी नहीं लगी। लोगों ने मेरे पेरेंट्स से कहना शुरू किया कि अकेले क्यों भेज रहे हो? बाहर बहुत गलत काम होता है। लड़कियां अकेले रहती हैं तो भाग जाती हैं। देखना ये भी भाग जाएगी। खैर, इन सब के बाद भी मैं कॉलेज गई और वहां पढ़ाई के साथ यूथ फेस्टिवल में हिस्सा लेने लगी। मैंने थिएटर करना शुरू किया, फिर मुझे यह सब करना अच्छा लगने लगा।

थिएटर करने की वजह से मकान मालिक ने निकाल दिया

दरभंगा में अकेले रहना मेरे लिए काफी चुनौती भरा रहा। एक तो घर से कभी दूर नहीं रही तो सारा काम खुद करना पड़ता था। फिर हर दिन लोगों के ताने और सवाल भरी नजरों का सामना करना होता था। मुहल्ले में मेरे लिए बातें होने लगी थीं। थिएटर रिहर्सल करने में कई बार रात हो जाती थी। कोई साथी अगर घर ड्रॉप करने आता तो अगली सुबह उसकी अलग कहानी सुनने मिलती थी। लोगों की बात सुनकर मकान मालिक ने मुझे घर खाली करने बोल दिया। नए रूम के लिए मेरी मां काफी भटकी। जहां भी जाती तो पहले ही मकान मालिक को बताती कि मेरी बेटी थिएटर करती है, कभी-कभार देर हो सकती है। यह सुनकर ही लोग रूम नहीं देते और मां को चार बातें सुना देते थे। जैसे-तैसे एक मकान मालिक मुझे रूम देने को तैयार हुआ।

लोगों के लिए थिएटर का मतलब ऑर्केस्ट्रा था

मैं बचपन से आर्ट्स से जुड़ी थी, जिससे जुड़ाव बीच में टूट गया। कॉलेज गई तो वो सपना फिर से जगने लगा। वहां माहौल और मौका दोनों मिला। सिंगिंग, डांसिंग और ड्रामा में जिला, स्टेट, नेशनल तक मेडल जीते। कॉलेज की तरफ से यूथ फेस्टिवल में पार्टिसिपेट किया और जीती। लेकिन मैं चाहे जितना भी अच्छा कर रही थी लोगों को चैन नहीं था। जब जीते हुए मेडल-ट्राफी घर में दिखाती तो उन्हें बहुत खुशी होती थी। लेकिन आस-पड़ोस के लोगों के लिए वो सब बेकार थे। वो कहते ये कौन सा काम है। दिन भर लड़कों के साथ घूमती रहती है। अकेले पता नहीं कहां-कहां जाती है। इससे पढ़ाई तो होती नहीं।

ऑडिशन में अच्छे ग्रेड लाने वाली पहली आर्टिस्ट बनी

ग्रेजुएशन के बाद घर वाले चाहते थे कि मैं बॉटनी से एमएससी करूं। लेकिन मैंने फैसला किया कि मैं एमए थिएटर में ही करूंगी। घरवाले भी मान गए। साल 2019 में दरभंगा आकाशवाणी में ड्रामा आर्टिस्ट के लिए ऑडिशन चल रहा था। मैंने हिंदी और मैथिली दोनों के लिए ऑडिशन दिया। ऑडिशन का रिजल्ट आया तो मुझे सीधे बी हाई ग्रेड मिला था। न्यूकमर के लिए बी ग्रेड होता है। जिनके पास पहले से बी ग्रेड होता है उन्हें बी हाई ग्रेड मिलता है। मुझे न्यूकमर होने के बाद भी हिंदी में बी हाई मिला था। किसी भी आर्टिस्ट के लिए यह बहुत बड़ी बात होती है। आकाशवाणी के डायरेक्टर ने मुझे कहा तुम पहली ऐसी आर्टिस्ट हो, जिसका डायरेक्ट सेलेक्शन बी हाई में हुआ है।

एमए का रिजल्ट आया तो मैं यूनिवर्सिटी टॉपर थी

मैं लगातार आर्ट में बेहतर कर रही थी। रेडियो में ड्रामा आर्टिस्ट के तौर पर काम कर रही थी। ड्रामा टीम के साथ मिलकर ‘मिस्टर नौंटकी 2.2’ नाम से अपना यूट्यूब चैनल चलाती थी। कई शॉर्ट फिल्में कीं। मैथिली फिल्म ‘गामक घर’ में काम किया। इस फिल्म की अलग-अलग मंचों पर खूब सराहना हुई। जियो मामी फिल्म फेस्टिवल में अवॉर्ड भी मिला। नाम, मेडल सबकुछ कमाना के बाद भी गांववालों का नजरिया मेरे लिए नहीं बदल रहा था। लेकिन जब मेरे एमए का रिजल्ट आया और मैं यूनिवर्सिटी टॉपर बनीं फिर मैंने वो बदलाव महसूस किया। रिश्तेदार और दरभंगा जहां मैं रहती थी वहां लोगों की नजरों में खुद के लिए तारीफ देखी।

पापा रिश्ता ले जाते तो कहते मेरी बेटी थिएटर करती है

मैंने हमेशा से सोच रखा था शादी घरवालों के हिसाब से करूंगी। वहीं पापा चाहते थे कि मैं अपने हिसाब से लड़का पसंद करूं ताकि वो मेरे काम को समझ सके। पापा जहां भी शादी के लिए जाते पहले ही बता दें कि मेरी लड़की थिएटर करती है। अगर आपलोगों को दिक्कत नहीं हो तभी बात आगे बढ़ाएंगे। शादी तय होने में मेरा काम खूब आड़े आया। एक जगह बात बनी। मैंने अपने होने वाले पति को अपने काम के बारे में बताया। ये भी बताया कि शादी के बाद भी मैं थिएटर करना चाहती हूं। वो मेरे फैसले के साथ रहे। शादी के बाद मुझे नितिन चंद्रा की फिल्म ‘जैक्सन हॉल्ट’ का ऑफर मिला। इस दौरान मैं चार महीने की प्रेग्रेंट थी। फिलहाल मुझे मैथिली फिल्म ‘विद्यापति’ का ऑफर आया है। इसमें मुझे रानी लखिमा का रोल निभाना है। आगे भी कई प्रोजेक्ट पर बात चल रही है।

खबरें और भी हैं...