वो लड़की जो झुग्गी-झोपड़ी में पली, जिसका घर फूलों को बेचकर चलता। वो लड़की जिसका रंग सांवला पर टैलेंट से भरी, वो लड़की है कहां...वो लड़की अब जा रही अमेरिका। मुंबई के स्लम एरिया घाटकोपर ईस्ट में जन्मी सरिता माली इन दिनों सोशल मीडिया से लेकर अखबारों में खूब पढ़ी जा रही हैं।
वुमन भास्कर से खास बातचीत में सरिता माली कहती हैं कि मेरे रिश्तेदार जो कभी मेरे पेरेंट्स को ये कहकर ताना मारते थे कि ‘तुम्हारी बेटी दिल्ली में किस तरह की पढ़ाई कर रही है यह हम अच्छे से जानते हैं।’ वे लोग जो पापा को कहते थे कि सांवला रंग है बेटी का, कम पढ़ाओ, ज्यादा पढ़ा-लिखा लड़का नहीं मिलेगा। अरे फूल बेचते हो, तो बच्चे इससे ज्यादा क्या कर पाएंगे। क्यों लड़कियों की पढ़ाई पर पैसा खर्च कर रहे हो। ऐसे ताना मारने वालों के मुंह पर आज ताला लगा है। वे शॉक्ड हैं। आज मैं अमेरिका जा रहीं हूं पढ़ने के लिए।
एक नहीं दो-दो पीएचडी
दरअसल, जेएनयू से मेरी पीएचडी खत्म होने वाली है। अब मेरा अमेरिका के दो विश्वविद्यालयों में चयन हुआ है। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया और यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन। मैंने यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया को चुना है। इस यूनिवर्सिटी ने मेरी मेरिट और अकादमिक रिकॉर्ड के आधार पर अमेरिका की सबसे प्रतिष्ठित फेलोशिप में से एक 'चांसलर फेलोशिप' दी है। अब पीएचडी करने अमेरिका जा रही हूं। यहां तक पहुंचना इतना आसान नहीं था।
पिता फूल बेचकर परिवार चलाते
मेरा जन्म एक झुग्गी में हुआ। पिता फूल बेचकर घर चलाते, मां उनकी मदद करने के साथ-साथ घर संभालतीं। बचपन से भोजन से ज्यादा गरीबी देखी।
पिता को जब कभी रेड लाइट पर खड़ी गाड़ियों के पास फूलों के गुलदस्ते बेचते देखती और अमीर लोग उन्हें दुत्कार देते तो कलेजा भीतर से रूआंसा हो जाता। भरे मन से पिता घर आते और हम चारों भाई-बहनों को यही सीख देते- ‘जितना पढ़ सकते हो पढ़ो और बड़े आदमी बनो। मैं नहीं चाहता कि तुम्हें भी इस तरह फूल बेचना पड़े।’
पिता की बातें मेरे लिए बूस्टर डोज
बस पिता जी की बातें ही मेरे लिए बूस्टर डोज होतीं। मुंबई के सरकारी स्कूल से 10वीं तक की पढ़ाई की। पांचवीं क्लास में थी, तभी समझ में आ गया था कि हिंदी साहित्य से मुझे जुड़ना है। महादेवी वर्मा की ‘मैं नीर भरी दुख की बदली’! मेरी सबसे पहली और सबसे प्रिय कविता बनी क्योंकि मैं इससे खुद को जोड़ पाती थी।
11वीं से लेकर ग्रेजुएशन तक अंग्रेजी मीडियम में रही। मैंने 12वीं में हिंदी विषय में कॉलेज में टॉप किया था। इस दौरान पढ़ाई के साथ-साथ डिबेट, ड्रामा, निबंध लिखना, स्टोरी राइटिंग और अन्य जिस भी तरह के कॉम्पीटिशन होते, उसमें मैं हिस्सा लेती और जीतकर आती। मुंबई में ही 2013 में एक अखबार में बेस्ट स्पीकर चुनी गई। ग्रेजुएशन में गोल्ड मेडलिस्ट रही।
गरीब थी लेकिन हमेशा रही टॉपर
2014 में जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में दाखिला लिया। एमए में टॉप 3 में रही। 2016 में एमफिल-पीएचडी के टेस्ट में पहली रैंक आई। 2016 से 2018 तक एमफिल पूरी की। हिंदी-मराठी उपन्यासों में आदिवासी समाज पर एमफिल की। मेरे गाइड प्रो. देवेंद्र चौबे ने बहुत मदद की। अभी मेरी पीएचडी चल रही है। मैंने स्त्री भक्त कवयित्रियों पर रिसर्च की है। जेएनयू आना मेरे लिए टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। इसी संस्थान ने मुझे समाज को देखने का नजरिया दिया। यूं कहूं कि एक बेहतर इंसान बनाया।
पढ़ेंगी बेटियां तो बढ़ेंगी बेटियां
पूर्वाग्रहों में जीने वाले लोग और लड़कियों को कैरेक्टर सर्टिफिकेट देने वाले लोग आज चुप हैं। मेरा सांवले रंग से डिग्रियों की खुशबू चारों तरफ महक रही है। अब मैं हर लड़की को कहना चाहूंगी कि खुद में पढ़ने की भूख जगाओ। पढ़ाई को ही पैशन बनाओ। पढ़ना सिर्फ नौकरी के लिए नहीं बल्कि खुद का विकास करने के लिए है। पढ़ेंगी बेटियां तो बढ़ेंगी बेटियां।
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